Wednesday, October 31, 2012

धन्य है मेरा पहाड़



पहाड़ों की सुन्दर वादियों में
हमारे हृदय  की वेदना छिपा है

वो प्रभात की शुभ अलबेला में
सूर्योदय का उद्गम आनंद छिपा है ।

चिणियों की चहकती आवाज में
कोयल की कुहुकती रसास्वाद छिपा है ।

सीढ़ीदार खेतों की  हरियाली में
प्रकृति का व्यव्हार छिपा है ।

कल-कल-छल-छल बहती नदियाँ में
गिरते हुए झरनों का परपात छिपा है ।

देवों की देव भूमि उत्तराखण्ड में
हिमालय के आँचल में स्वर्ग छिपा है ।

ऐसी शुभ  पावन देव भूमि में
मेरा जन्मों का सौभाग्य छिपा है ।

हे माँ ! धन-धन्य है मेरा जीवन
जो तूने इस पावन भूमि पर मुझे जन्म दिया  ।

गेवाड़ घाटी