Wednesday, July 31, 2013

पहाड़ भी रोता है

कब-कब  नहीं  रोया पहाड़
हर दिन हर पल हर क्षण रोता है पहाड़

जब तुमने अपने केवड़ पर ताले ठोखे
खेत-खलियानों को बंजर कर डाले
और तुम जिसदिन पहाड़ से प्लायन कर गये
उस दिन भी रोया था पहाड़ ।

विकाश के नाम पर पहाड़ के अंग-अंग में
कुदाल, संभल छैनी सब चला डाला
एक पल भी यह न सोचा
पहाड़ को भी दर्द हुआ होगा
उस दिन भी रोया था पहाड़ ।

पहाड़ के सीने में बांधों का बोझ बांध डाला
फिर एक के बाद एक बांधों का शिलशिला चला डाला
पहाड़ कब तक सहन करता बांधों बोझ
क्रोध से अपने  ही गोद में हजारों का बलिदान चड़ा डाला
उस दिन भी रोया था पहाड़ ।

कब-कब  नहीं  रोया पहाड़
हर दिन हर पल हर क्षण रोता रहा पहाड़ । 

Tuesday, July 30, 2013

म्यर पहाड़ पहाड़ जस निरेगोय
पहाड़ पहाड़ियों कारण बंजर हैगोय
कुड़ी, बड़ी सब बांज  है गयी
धार, नौ ले सब सुख पड़  गयी
म्यर पहाड़ पहाड़ जस निरेगोय -पं. भास्कर जोशी

Thursday, July 25, 2013

पहड्क कौतिक आज ले बार बार याद एँ

आज आपुण पहाड़क म्योल (म्यौव, कौतिक) याद उने। बहुत साल पैलिके बात छ जब हम नान छि लगभग 10 या 12 साल हम लोगुं उमर छि तब ।हमर यां अल्माड जिल में मासी सोमनाथक कौतिक बड़े भरी लागूं, खूब चहल पहल हें यां सोमनथक कौतिक 7 दिन तक चलूँ । हर साला मई मेहण में दोहर सोमवार बटी शनिवार तक यो म्योल लगी रूं। भिड़े मारी ठसा-ठस भरी रौन्छी।  पैली दिन इतवार रात  हैं सल्ट म्यल लागूं, सल्ट बटी नगाण, निशान लिबे मासी में ऊनि रात में खूब नाच गीत हुंची। तब दोहर दिन सोमनथक कौतिक लग्छी। अब जो कौतिक लागूं बेरस, न लोगुं रूचि दिखाई दीं, न कौतिक, कौतिक जस लागूं। आज बटी 10 या 15 साल पैली तक खूब कौतिक्यारों भीड़-भाड़ लाग्छी। तब हम लोग नान्ने भे। घर वाल हमुकें सोमवार दिन कौतिक में जाण निदिछि। सोमवार हें कौतिके रस्म वड घेंटण रिवाज निभौनी हाय ये विल हम लोगुं कें जाण नि दिछि। मंगलवार हैं फिर कौतिक शुरू सब आपुण कुटुम्भ परिवार लिबे 3 या 4  बजी लगभग  कौतिक देखें हिट दिछि। जब हम नान तिन कौतिक में जहाँ तैयार हुन्छी तब सब हमुकें 10 -5 , 10 -5 रुपें सब घर परिवार वाल दिछि। हम लोगुं जेब ठसा -ठस कम से कम 100 -150 रुपें इक्कठ कर लिछी ।  कौतिक जैबर खूब मस्ती करछी जेब में पैंस छने छि जे मन कर से खाय। फिर ले जेब में 20 -30 रुपें बचे बे धरछी कि आजी ३-४ दिने कौतिक छू । जब दोहर बार उल तब खर्च करुल । वे बाद एक दिन छोड़ बे फिर हम कौतिक देख हें हिट दिछि  । उधीन घर वाल हमुकें एक पैंस नि दिछि आपु जेब में जतु डबल छि वी लिबेर कौतिक नहें जनि भाय। अब हम आपु दगडियों दगे तली मली चक्कर पर चक्कर लागूण पे छि उधीन के खाय पी ना किलेकी जेब में 20,  30 रुपें छि खर्च करणे बात नि भे । जब हम मय्ल देखणाय तब एक हमुहेंबे छौट नान आपु इज हें जिद्द करणोय कि मिहें मुरूल खरीद  हम सब दगडी उगें देखिये हाय बहुत देर बटी । छौट नान मुखड में अंशु तहौड नाख़ में सिंगाड़े धार लागी बिच बाजार में डडा- डाड मारी बे अणकसी करी भेय । तब उन छौट नान आपु इज छे कुनो
नान - (थोड जिद्द और  डाड ले दगड में) ओइ क ओइ मीही मुरूल ली ले क 
इज - के हौ किले बौइ रछे भो ल्युल तिहें मुरूल 
नान - ना अल्ले ले 
इज - भो ल्युल को एल डबल निछी 
नान - (गाड़ी रोडक बिच्च-बीच में लम्पसार हैबे) ले मीही आल्ले ले मुरूल नतर में आज घर नि जुल 
इज - (सब लोग देखि भाय छौट  नान और इज कें  इजल चरों तरफ देख बे शर्मे मारी  कै दी ) चल पे चल ली ले मरुल को वाल लिले ।
नान - (खुसी, डाड ले दगड में) हूँ हूँ हूँ यो वाल ल्युल ।
जब छौट नान कै मुरूल मिल फिर उ खुसी हौय फिर उ आपु घर हें हिट दी और  हम लोग ले आपु आपु घर हें चल दी| आज ले उ दिन बार बार याद ऊनि ।
पं० भास्कर जोशी

Thursday, July 11, 2013

पहाड़ सुन्न छू

आज फिर  म्यर पहाड़ सुन्न छू
चारों तरफ अफरा-तफरी मची छू
घर-घर में लोग बिलबिलान हैगिन
गौं-गाड़क लोग घर बटी बेघर हैगिन ।

पाणी ले यस तबाही मचायी
मैसुं कुड़ी-बाड़ी सब समाय लिगोइ
जीवन भरी हांट-भांट टोडी कमाई
पाणी, पाणी जस बह लिगोइ ।

पहाडू पनै मैंस डर-डरान  हैगिन
कभते यो धार कभते पली धार भाजन हैगिन
न जाण  कभे बदल फटो द्यो तौहड़ में
यो सब देख-सुणी  बे पहाड़ लोग डर-डरान हैगिन ।

पाणी ले हमर पहाड़ यस गाज गाडो
बदरी-केदार समसान घाट बड़ेहालो
लोग आपण-आपणा कें ढुंढणी
और पाणी ले पहाड़े कमाऊ पूत बहै हालो ।

आज फिर म्यर पहाड़ सुन्न छू .............

गेवाड़ घाटी