Tuesday, May 28, 2013

बचपन की धुंधली यादें

कितना खुशनुमा था बचपन का पल
हँसता-खिल उठता हूँ उस पल में
याद करता हूँ बचपन को अपने
दुनियां भर की ख़ुशी मिल जाती उस पल में ।

ऐसे ही याद गार लम्हें बचपन के
आज भी याद आते हैं पल-पल में
खो जाता हूँ बचपन के उन पलों में
याद कर जी लेता हूँ पल-पल में ।

आज भी याद है उन दिनों की
स्कुल जाया करते थे हम सभी
तब बस्ता नहीं, झोला होता था कन्धों पर
झोले में होता, कलम दवात और पाटी ।

घर से निकलने से पहले
पाटी पर कोयले से चमक बनाते
दवात में घोल, खडमिट्टी का भरते
छोटी बांस की डंडी से नयाँ कलम बनाते ।

गुरूजी नित्य हमें पढना लिखना सिखाते
स्वर, व्यंजन, गिनती व पहाड़े का ज्ञान कराते
सहपाठी सभी, पाटी में लिखने का प्रयत्न करते
प्रतिदिन गुरूजी हमसे स्वर, व्यंजन का गुणगान कराते ।

गुरूजी की प्यार भरी डांठ से
दहाड़े मार रोदन करने लगते
आँखों से अश्रु के झरने बह उठाते थे
गुरूजी टॉफी देकर शांत किया करते थे ।

खेलते-कूदते स्कुल से घर को आना
खिल-खिलाकर अपने व लोगों को हँसाना
दौड़-भाग कर मित्रों संग मस्ती करना
जिस संग रास न आवे उस संग कट्टी कर देना ।

पेड़ों पर रस्सी लटकाकर झुला बनाना
खेल-कूदने में मित्रों संग मदमस्त हो जाना
दिन हो या रात उसकी की भी सूझ-बुझ न रहती
अपनी बचपन की दुनियां कुछ ऐसे ही थी ।

कैसे भूल सकता हूँ बचपन के उन पलों को
कैसे गुजर गया  बचपन के सुनहरे पल
क्षण भर भी देर न लगी समय बीतने में
कैसे निकल गया बचपन मेरा ?

प्रकृति कुछ ऐसा चक्कर चला दे
फिर से चला जाऊं बचपन में अपने
खिल-खिलाकर अपना व जग को हंसाऊं
नए सिरे से फिर अपना बचपन  जी पाऊं ।

Wednesday, May 8, 2013

अपनापन

जाने अंजाने में ही सही
याद कर लेना हमें
जब कभी भी
जरूरत पड़े तुम्हें
बिन संकोच के
आपना समझकर
कह देना तुम
यह भूल कर भी
मत सोचना कभी
अब भी आपके हैं हम
चाह कर भी कभी
निराश न करेंगे तुम्हें
हमारे दरवाजे
निश्छल-निष्कपट
हर वक्त खुले पाओगे तुम।
तुम अपने थे मेरे
और अपने ही रहोगे
गर गलती से भी गलती
हो गयी हो हम से
बैर मत रखना तुम
एक भूल की सजा
इस कदर न देना
जिससे टूट-बिखर जाऊँगा मैं
अपना छोटा या बड़ा
जानकर मुझको
क्षमा कर देना तुम
क्षमा कर देना तुम  -भास्कर जोशी

Monday, May 6, 2013

बांज कुड़ी

बैठी छी दगडिया खोय में,
कुड़ी हाल देखण छी मैं,
द्वारुं में ताई लागी,
धेइ में पिपौ डाव जामी,
यो छू दाज्यू बांज कुड़ी हाल।

पाखक धुरी मेंजी,
आमक डाव जामी,
पाखक बंधार में,
बानरूं कतार लागी,
भ्यार भतेर नाच लगे राखी,
यस  छू दाज्यू बांज कुड़ी हाल।

के बखत रौनक छी कुड़ी में,
तब बानर नै आदिम रुन्छी यो कुड़ी में,
उखो बगल पर सजाई डाली में,
नान तिन किलकार हौन्छी यां,
आज सन्नाटा छाई रे यां,
यो छू दाज्यू बांज कुड़ी हाल ।

ताल गोठ एक कुण में चुल हौन्छी,
दोहर कुण में भैंस,गोर, बाकर हुन्छी,
धिनाई छल छलाने कोहोड़ी भरी रुन्छी,
दै, दूध, घ्यून बहार लागी रुन्छी,
आज गोर भैन्सुं किल पर ले ध्युड लगगो,
यो छू दाज्यू बांज कुड़ी हाल ।

जब चेली बेटियों ब्या-बरियात हौन्छी,
ईष्ट मित्रों बहार लागी रौन्छी,
पास पडोशी गौ-गाड मदद गार हौन्छी,
मिल झूली बे सबे काम करछी,
कतु भौल माहौल बनी रुन्छी,
आज कस निशार लागी छू यां,
यो छू दाज्यू बांज कुड़ी हाल ।

बार-बार बांज कुड़ी सवाल पुछणों,
कधीन आल उ दिन जब कुड़ी आबाद हौल,
आगन में नान-तिनाक किलकारी गुन्जेली,
गोरु,बाछा, भैंस, बाकर धिनाई बहार हैली,
कब यो बांज कुड़ी, आबाद घर हौली दाज्यू,
कब यो बांज कुड़ी, आबाद घर हौली दाज्यू।

Thursday, May 2, 2013

भारत से इण्डिया

देशी में हाहाकार मची है
जनता सहमी सी दुपक रही है
देश परिवर्तन पर परिवर्तन कर रहा है
और भारत परिवर्तन से  इण्डिया हो गया है

देश में बहुत से बदलाव हुए हैं
कानून में  बदलाव किये गये हैं
भारत देश ऐसे बदला गया है
कि भारत बदलकर इंडिया हो गया है

नारी-नारी को सम्मान मिला
शिक्षा मिली, नारी को बढ़ावा मिला
आज नारी पर एसा ग्रहण लगा
कि भारत, न होकर इण्डिया हो गया

बदलता युग, बदलता समय
नयाँ आयाम होना जरुरी था
भारत देश को इतना बदल दिया गया
कि भारत से इण्डिया हो गया

पूर्व संस्कृति, पूर्व सभ्यता का खण्डन हुआ
नई विदेशी संस्कृति-सभ्यता से जोड़ा गया
भारत देश में न रही शर्म, न रही लज्जा
देखते ही देखते भारत से इण्डिया हो गया ।

गेवाड़ घाटी