Tuesday, January 10, 2017

हाय पेंस

हरदौल वाणी अखबार में प्रकाशित मेरी कुमाउनी रचना को स्थान देने के लिया संपादकीय आदरणीय देवी प्रसाद गुप्ता जी (श्री जी), भाई ललित मोहन राठौर जी का बहुत आभार ।

हाय पैंसा

त मोदी ज्यूल कस बम फोड़
मेंस हाय पेंस हाय पेंस कुने रै गयीं

नेतानु ग्व में फाँस जस लटिक गो
उद्योग पतियों ब्लेड प्रेसर हाय हैगो

काव् पेंस पर मोदी काव जस  लाग गो
ठेकेदारों दलाली पर लै च्यांव जस लागि गो।

इथां  पैंस ले अब काव् बटि सफ़ेद है गईं
उथां सफ़ेद मेंसूं मुखड़ काव् है गईं।

त मोदी ज्यू तुमुल तस कस बम फोड़
पैंस हैबेर लै जेब खुंण खुंण है गईं

त मोदी ज्यूल कस बम फोड़
मेंस हाय पेंस हाय पेंस कुने रै गयीं
भास्कर जोशी
9013843459

पहाड़ी चील्हाड बनाने की विधि

पहाड़ी छोउ बनाने की विधि

पागल पहाड़ी के साथ जाने छोऊ बनाने की विधि ।
सबसे पहले बाज़ार जाकर किराने वाले से बेसन ख़रीद लें क्योंकि बेशन नहीं तो छोऊ नहीं बन पाएगा।
 सामग्री : बेसन परिवार अनुसार, तेल तलने लायक, एक पाव प्यांज, एक डाढ़ू, एक पाणियाँ, एक तवा, एक ड़ेग, नमक, मिर्च हल्दी आदि ।

महत्वपूर्ण बात : चूले के गेन्स या आग पर विशेष ध्यान रखें इसके बिना पकना असम्भव है गैंस बराबर चैक कर लें आधे में हाथ रुकने का मतलब है छोऊ में खलल उत्पन्न होना। साथ ही साफ़ सफ़ाई का ध्यान रखें कहीं संगव छोउ में ना छोई जाये वरना करारापन आने की पूरी सम्भावना होगी।इसलिए पहले सबकुछ चैक कर लें।

बनाने की विधि : परिवार अनुसार बेसन लें उसे एक डेग़ में उड़ेल दें वैसे चार लोगों के लिए एक पाव से हो जाएगा। अब 4-5 गाँठ प्याज़ लें उसका छिलका उतार लें। एसे ही मत काट लेना छिलने के बाद उसे बारीक काट लें।काटने के बाद उसे बेसन के साथ ड़ेग में उड़ेल दें। अब मिर्च को बारीक काटें और काटने के बाद उसे भी बेसनऔर प्याँजके साथ उड़ेल दें। इतना सबकुछ कर लेने के बाद उसमें पानी मिला लें । पानी की मात्रा भी उतनी ही हो जितना खप जाए याने जैसा आप पकोड़ी बनाते हैं उसी अनुसार बस आधा कप पानी की मात्रा और बढ़ा दें स्वादानुसार नमक मिर्च हल्दी उड़ेलदें फिर उसे अच्छे से डाडू से घोल लें।

अब आप चुल को जलाएँ और चूले में तवा रख दें। तवा गरम होने पर एक चम्मच तेल उड़ेल दें। अब डाड़ु से एक घपैक बेसन के उस घोल को लें और तवे में उड़ेल कर उसे तेज़ हाथ से गोल रोटी की तरह फैला लें। गेन्स अथवा चुले की आँच कम कर थोड़ी देर पकने दें साथ ही पणियाँ से हल्के हाथ उसे पलटाने की कोशिश करें। अगर सही समय पर उसे पलटाया नहीं गया तो वह छोउ तवे पर ही भड़ि जायेगा। समय रहते उसे पलटने के बाद फिर उसे हल्की आँच में पकने दें। जब पक जाए तो उसे अलग उतार कर खाने के लिए परोसें।

भांग की चटनी बनाकर इसके साथ खाएँ तो स्वाद में दोगुना इज़ाफ़ा होगा। अन्य किसी और चटनी का भी प्रयोग कर सकते हैं।

नोट:- छोउ दिखने व खाने में स्वादिष्ट हो तो मेरे लिए भोग पहले ही रख लें। वरना छिरो लगने के पूरे आसार रहेंगे।
भास्कर जोशी

काला धन

पैसा को लपक सको तो लपक लो , क्योंकि आजकल नदी नालों में लक्ष्मी बह रही है।  छप्पर फाड़ के तो नहीं पर हाँ नहर, नदी फाड़ के पैसे जरूर बहे हैं। आये दिन ऐसी खबरें सुनने व् अख़बारों में  पढ़ने को मिल ही जाती  हैं। जिन लोगों ने काले धन के रूप में अपनी तिजोरियां भरी थीं अब वे अपनी तिजोरियों को पानी में बहा रहे हैं। मोदी जी द्वारा नोटबंदी का यह मुहीम इस नजर से देखें तो बहुत ख़ुशी होती है कि जो लोग काले धन पर कुंडली मरे बैठे हुए थे अब उनका काला धन इस रूप में भी बहार निकल कर आ रहा है।

अब जरा शहर से दूर गांवों का रुख करते हैं। पैसा आज के समय में जरूरत का साधन है सुईं से लेकर संबल तक। या यों कहें हर जरुरत का साधन रुपया है। बस जरुरत है एक बार गांव और शहर के बीच का अंतर समझने की ! क्योंकि ग्रामीण इलाकों में शहर जैसी सुविधाएं नहीं हैं विशेतः बैंकिग सुविधा।

नोटबंदी को शुरू किये 1 माह बीत चुका है, उसके बाद भी शहरों के लोग सुबह सुबह बैंक के आगे लाइन पर खड़े नजर आते हैं यदि कहीं पर खबर मिलती है कि फलाने ATM में पैसे हैं तो बड़ी लंबी कतार देखने को मिलती है। वह भी पलभर में, और तो और वह पैसा भी मुश्किल से उस लाइन में लगे आधे लोग के नशीब ही हाथ आता है। बाकी के लोग फिर कोई और ATM की तलाश में जुट जाते हैं। कहने का सीधा सा मतलब है एक माह बीत जाने के बाद भी लोगों की परेशानी अभी तक हल नहीं हुई हैं और यह सब उन शहरों में हो रहा है जो महानगरों के नाम से ख्याति प्रपात हैं। जहाँ हर चीज की सुविधा है फिर भी लोग सुविधा से वंचित हैं।

आइये अब जरा रुख करें गांव की ओर। गांव में रहने वाले लोग बैंक की सुविधाओं से आज भी वंचित हैं। अगर उन्हें अपनी जमा पूंजी कहीं जमा करनी भी होती है तो वे पोस्ट ऑफिस में जमा करते हैं वह भी 10 या 15 मिल की दुरी पर होते हैं । बैंक  उनकी पहुँच से बहुत दूर हैं यदि उन्हें अपनी वृद्धा पेंशन जैसी सुविधाएं भी लेनी होती हैं तब वे 6 महीने या साल भर बाद इक्कट्ठे ही निकालने जाते हैं और इस बीच उनका पूरा 2 या 3 दिन का समय लगता है।

इधर  ग्रामीण इलाकों के बैंकों  में अभी भी कैश उपलब्ध नहीं हो सका है थोड़ा बहुत जो उन बैंकों के पास था वह उनके अपने अधिकारियों के लिए भी पूरा नहीं हुवा। अब ऐसे में उन दूर सदूर ग्रामीणों की परेशानी भला कौन समझे?

आज भले ही भारत को युवा देश के रूप में दुनियां देख रहा हो पर आज भी भारत इतना सक्षम नहीं है कि हर व्यक्ति मोबाइल बैंकिंग का प्रयोग कर सके। अमूमन बीस करोड़ की आबादी आज भी बैंकों की सुविधाओं  से दूर है मोबाईल जैसी सुविधाओं का लाभ लेने में भी सक्षम नहीं हाँ। यह आंकड़ा अंदाजन है अगर सर्वे किया जाय तो यह आंकड़ा निश्चित ही बढ़ेगा। किंतु प्रधानमंत्री जी हमेशा गांव, गरीब और किसान की बात करते हैं। जब शहर में रहने वाले लोग परेशानी मेंहों, भले ही जनता इतनी दिक्कतों को झेलने के बाद भी  देश बदल रहा है को ध्यान में रखकर अपने को सांत्वना दे रहे हों, परंतु एक बार ग्रामीण बस्तियों का रुख जरूर करके देखें। उनके लिए किसी भी प्रकार से कोई सुख सुविधा नहीं। ऐसे में नोटबंदी का असर कितना पड़ा है यह आप और हम अन्दाज नहीं लगा सकते हैं।

 प्रधानमंत्री जी द्वारा लिया गया यह फैसला कारगर होगा , ऐसा मेरा मानना है साथ ही ऐसे फैसले देश हित में ही लिए जाते हैं जो स्वागत योग्य है। लेकिन उन गरीब ग्रमीणों की आवाज कब सुनी जायेगा या कब उन्हें रियायत मिलेगी, इसका उन दूर सदुर ग्रामीणों को प्रधानमंत्री मोदी जी का इन्तजार रहेगा।
भास्कर जोशी
9013843459

स्वच्छ भारत मिशन पर दो टूक



लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी जी का वह भाषण तो आप सभी को याद होगा ही। भाषण में उन्होंने कहा था -भारत की गरीब जनता उस गंदगी से बीमार होती है जो आपके घर गली में बिखर रहता है। उस गंदगी से यदि एक व्यक्ति भी बीमार पड़ता है तो एक व्यक्ति बीमार नहीं होता बल्कि उसके साथ उसका पूरा परिवार उस बीमारी की चपेट में आ जाता है। आने वाले 2017 में महात्मा गांधी की 150 जयंती पर भारत को स्वच्छ बनाने का जो आह्वाहन किया था उस आह्वान पर पूरा देश प्रधानमंत्री जी के साथ खड़ा नजर आया, साथ ही वे स्वयं भी बाल्मीकि बस्ती में जाकर झाड़ू फेरते हुए नजर आये।

लाल क़िले के आह्वाहन के बाद भारत की अधिकांश आबादी प्रधानमंत्री जी के उस आह्वाहन से जुटने लगी । एक के बाद एक-एक कर बड़ी हस्तियां जुड़ते नजर आये। यहाँ तक की उन्हें ब्रांडएम्बेस्टर तक बना लिया गया। फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी बड़ी हस्तियां इस अभियान से जुड़ने पर अपने आपको खुशकिस्मत समझ रहे थे। बीजेपी के कार्यकर्त्ता तो दो कदम और आगे बढ़कर आये। वे लोग पहले खुद ही घास पत्ते फैलाते दिखे और फिर उसपर झाड़ू फेरते नजर आये।

यह शिलशिला यही तक नहीं थमा। भारत की कई सामाजिक संस्थाएं जो प्रधानमंत्री के उस स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित होकर गली गली मुहल्ले में जाकर गंदगी को दूर करने में मदद करने लगी। कई युवा साथी अपने मंडली को इकट्ठा कर साफ़ सफ़ाई करने के लिए आगे आए। वह भी इस विश्वास के साथ की भारत स्वच्छता की ओर बढ़ रहा है। आज भी वे लोग इसी जोश से कार्य कर रहे हैं कि कभी तो लोग बदलेंगे, कभी न कभी देश स्वच्छ होगा।

इतना सब कुछ कहे जाने व् सामाजिक संस्थाओं, छोटे छोटे संगठनों के कार्य करने के बाद भी गंदगी ज्यों की त्यों है। पहले दिन समाजिक संस्थाएं व संगठन सफाई करती  हैं तो दूसरे दिन फिर वहीँ गंदगी नजर आती है। इतने लोग आम जनता को सुधारने में लगी हैं फिर भी जनता सुधरती नहीं दिखी। आखिर क्यों ? इस सवाल का जवाब हम सभी को अपने अंदर ढूँढना चाहिए कि हम सुधर क्यों नहीं रहे ?

 हम हमेशा आम जनता की बात कहते पर असल में आम जनता हम ही हैं यह हम भूल जाते हैं। गंदगी साफ करने वाले सामाजिक संस्थाओं की परेशानी का कारण सिर्फ जनता ही नहीं है बल्कि, नगर पालिका व् केंद्र सरकार भी उनकी सबसे बड़ी परेशानी बनी हुई है। क्योंकि कई बार यह भी सुनते हुए पाया गया है कि नगर पालिका के आला अधिकारी उन्हें धमकाते हैं और उनके काम में दख़ल ने देने की सलाह दे डालते हैं। यही शिकायत लेकर जब वे विश्वाश के साथ राजनीतिक पार्टी दफ़्तर में जाते हैं तब पार्टी के लोग उन्हें अपने झंडे तले ही मदद करने की बात कहते हैं साथ इसके कि बिना उनकी पार्टी झंडा लिए वे उनकी सरकारी मदद नहीं करेंगे। ये तो वही वाली बात हो गयी 'रसगुल्ला बनाए कोई और खाए कोई और।

सन्यास ले लूँ कि

मैं सन्यास कहाँ से लूँ
ठेकुली से सन्यास
डांसी ढुंग से सन्यास
भीकू दा से सन्यास
फेसबुक से सन्यास
व्हाट्सअप से सन्यास
जीवन से सन्यास
नहीं नहीं सन्यास कैंसिल
अब मुझे सब चाहिए
समय लगेगा जरूर
समय के साथ चलने में
पर चाहिए मुझे सब कुछ
नेक काम में मेरी मदद करोगे ना
करोगे जरूर करोगे
चलो ठेकुली से शुरू करते हैं
आप मेरे लिए ठेकुली ढूंढो
मैं आपके लिए
डांसी डुंग तैयार रखता हूँ
भिकुदा से बात करके
फेसबुक पर स्टेटस डालता हूँ
बाकी बातें
व्हाट्सअप पर होती रहेगी। :p
भास्कर जोशी।

गेवाड़ घाटी