जीवन की पगडण्डी पर
चलना इतना आसन नहीं
हर पग पग पर
मायूसी और कठनाई है
जीने की हर राह
टूटती बिखरने लगती है
स्वप्नों का मंजिल
यूँ ही धरा रह जाता है
मानो जीवन की यही लाचारी है
फिर सोचता हूँ
क्या यही जीवन जीना है
मायूसी,लाचारी, कठनाई को देख
क्यूँ भागा-भागा फिरता रहता है
है अगर बन ठान्ने की
मायूसी को हथियार बना
कठिनाई को आसान बना
ना मुड़ना तू फिर पीछे कभी
सतत जीवन जीने का
सुफल सद्गुण राह बना ।
चलना इतना आसन नहीं
हर पग पग पर
मायूसी और कठनाई है
जीने की हर राह
टूटती बिखरने लगती है
स्वप्नों का मंजिल
यूँ ही धरा रह जाता है
मानो जीवन की यही लाचारी है
फिर सोचता हूँ
क्या यही जीवन जीना है
मायूसी,लाचारी, कठनाई को देख
क्यूँ भागा-भागा फिरता रहता है
है अगर बन ठान्ने की
मायूसी को हथियार बना
कठिनाई को आसान बना
ना मुड़ना तू फिर पीछे कभी
सतत जीवन जीने का
सुफल सद्गुण राह बना ।