Tuesday, February 26, 2013

जीवन जीना है

जीवन की पगडण्डी पर
चलना इतना आसन नहीं
हर पग पग पर
मायूसी और कठनाई है
जीने की हर राह
टूटती बिखरने लगती है
स्वप्नों का मंजिल
यूँ ही धरा रह जाता है
मानो जीवन की यही लाचारी है
फिर  सोचता हूँ
क्या यही जीवन जीना है
मायूसी,लाचारी, कठनाई को देख
क्यूँ भागा-भागा फिरता रहता है
है अगर बन ठान्ने  की
मायूसी को हथियार बना
कठिनाई को आसान बना
ना मुड़ना तू फिर पीछे कभी
सतत जीवन जीने का
सुफल सद्गुण राह बना ।

गेवाड़ घाटी