Friday, June 28, 2013

पहाड़ मेरी विपदा

पहाड़ मेरी विपदा में छू
असहाय, लाचार छु
विकाशक  नाम पर
 नेतानु छलावा छू
नेतानुल जाग जागं धन्ध खोली
लुटी  खासोड़ी है पहाड़
 विकाश विकाश नाम पर
नेतानुल बेचीं-खाई  पहाड़

Sunday, June 16, 2013

तू पत्थर का पत्थर ही रहा

ऐसा क्या किया था
जो तूने कहर पर कहर ढाया
मेरे उत्तराखंड पर
क्यूँ विनाश की लड़ी लगा दी
वहां बसे लोगों पर
क्या वहां बसे लोग
तुझे देखाई नही पड़ते ?
 सीधे-साढ़े भोले-भाले, मन के सच्चे
क्या अब इन लोगों की तुझे जरुरत नही ?
पिछला घाव भरा नही कि
फिर तूने घाव हरे कर दिए
रोते बिलखते उन बच्चों कि
क्या उनकी भी ध्वनियाँ
तुझे सुनाई नही पड़ती ?
तिल-तिल तडपा-तडपा कर मारना
लगता है तेरी फिदरत बन गई
ठीक ही कहते हैं तू सोया ही रहता है
हाँ हाँ तू सोया ही रहता है
क्या फर्क पड़ता है तुझे
कोई जिए या मरे तुझे क्या फर्क पड़ा है
तू तो चैन की साँस ले रहा होगा
तुझे ये सब कहाँ दिखाई देता है
क्यूँ तुझे रोते बिलखती आवाजें
सुनाई नही पड़ती
 हमने तुझे कहाँ-कहाँ नही पूजा
निर्जीव पत्थर में भी तुझे भगवान समझकर  पूजा
और तू पत्थर का पत्थर ही बना रहा
तू पत्थर का पत्थर ही रहा  ।

गेवाड़ घाटी