Wednesday, September 23, 2015

डर मत

डर मत
डर को डरा
डर, डर कर
कब तक जियेगा ।
डर का
डर लिए
क्यूँ छिपता है
डर से
डर का
सामना कर
डर को
इतना डरा
कि तेरे डर से
डर कर फिर
सामने
न आये ।

Friday, September 18, 2015

हिन्दी_रूठ_गयी.........

हिंदी तुम क्यों रूठ गयी
लेख, कविताएँ, गीत लिखे
भाषण बोल बोले हिंदी के
तुम फिर भी रूठ गयी ।
१४ सितम्बर हरदौल वाणी में प्रकाशित 

स्वर से लेकर व्यंजन तक
पाश्च्यात्य में बाँट दिए तुमने
सीना छलनी कर पूछते हो !
हिंदी तुम क्यों रूठ गयी?

लिखे होंगे लेख, कविताये, गीत तुमने
बोल भाषण दिए होंगे हिंदी के
मेरा तो आश्तित्व ही खतरे में है
और तुम पूछते हो मैं क्यों रूठ गयी।

तुमने तो हिंदी का ऑपरेशन कर डाला
चीर फाड़कर अंगों को उधेड़ डाला
तुम्हारे शब्दों से मेरी हृदय गति थम गयी
और तुम पूछते हो मैं क्यों रूठ गयी।

घुटन होती है तुम्हारे हिन्दी से मुझे
गिनती के चंद सांसें बची है मुझमें
आई सी यू के वेल्टीलेटर पर लेटी हूँ
और तुम पूछते हो मैं क्यों रूठ गयी। 

गेवाड़ घाटी