Friday, January 16, 2015

कहाँ ढुँढु तुझे

कहाँ ढुँढु किस ओर तरासुं तुझे।
कहीं भी तेरा कोई ठिकाना न मिला।।

गली, नुक्कड हर चौराहे ढुँढा तुझे।
पर ठेकुली तेरा कोई अता पता न मिला।।

कई खत भेजे पोस्ट ऑफिस से मैने।
उन खतों का अब तक कोई जवाब न मिला।।

तुझे लेकर न जाने कितने ख्वाब संजोये  हैं मैंने।
चाँद तारों को भी खबर हो गयी पर तुझे खबर न हुई ।।

न चाहकर  भी कई बार मिस किया  तुझे।
तूने कभी मिस किया उसकी हिचकियाँ तक मुझे न मिली।।

तेरी तलाश में अपनी सुध खो बैठा हूँ तेरी बाला से।
फिर भी मेरी सुध का तुझ पर कोई असर न पड़ा|

तुझे ढुँढ-ढुँढ कर मेरी आँखेँ भी पथरा गयी।
इसे मेरी बेचैनी कह या पागलपन तुझे ढुँढे बगैर हार न मानुँगा।।

Wednesday, January 14, 2015

तत्वाणी का पर्व

नमस्कार मित्रो आप सभी को उत्तरायणी मकर संक्रांति की ढेरों शुभकामनाएँ|

 आज गांव में तत्वाणी मनाई जाएगी और कल को सिवाणी|
साभार : फेसबुक से 
तत्वाणी के नाम से बचपन की यादें लौट आई है 5-6 दिन पहले से तत्वाणी कैसे मनानी है उसके विषय में सभी  मित्रों की बैठक होती थी स्कुल से आते वक्त भी इसी बात की चर्चा होती थी कि तत्वाणी में क्या और किस तरह के पकवान बनवाने हैं इसे बात को लेकर चर्चा होती थी .. ..तय होने के अनुसार सभी मित्र बंधू पैसे जमाकर समान खरीद कर जिसके यहाँ तत्वाणी मनानी होती थी सारा सामान आलू, बेसन, मसाले, मूंगफली लाकर वहां रख दिया जाता था| तत्वाणी के दिन शाम होते होते सभी मित्र बंधू इक्कठा होकर पकवान की तयारी  में जुट जाते हैं सभी से कुछ न कुछ एक एक बर्तन घर से लाने  को कहा जाता था| साम को सरे बर्तन इक्कठा होने के बाद अगेठी में आग जलाई जाती थी लकड़ियों की कमी हमारे नही थी जितनी आग जला सको | रात में खूब पकोड़ियाँ बनती थी पकती तो कम ही थी कच्ची पकोड़ियाँ ही खा जाते थे | अंत में बारी अति थी मूंगफली की| रात के एक दो बजे तक तो  मूंगफली खाते खाते बीत जाते लेकिन रात्रि के तीसरे पहर की नींद बहुत हावी होती है कितनी भी कोशिसी करो उस प्रहार में स्वस्थ आदमी को भी नींद आती ही है और हम तो तब बच्चे थे | एक मित्र तो गजब के खराटे मार रहा था नींद टूट गयी उससे परेशान होकर फिर हम खुरापात में उतर आये| जो मित्र खराटे मार रहा था उसके नाख में रुई भर दी तो उसके खराटे बंद अब तो मजा आने लगा | रात में लकड़ियाँ जो जलाई थी उसके कोयले बच गये कोयले को पिस कर उसका घोल बनाया और सब के चेहरों  पर  में नई नई कलाकृति करने लगे | सोचिये खुरापात दिमाग फिर क्या क्या कर सकता है पूरी राक्षसों की सेना तयार  कर डाली| उसके बाद फिर हम सो गये| सुबह जब उठे तो एक दुसरे को देखकर जो हंसी के फुब्बारे फूटे वह देखने लायक था| सुबह को ठन्डे पाणी से नहाना था सिवाणी मनानी थी तो सभी अपने अपने कपडे तौलिया लेकर नौला पहुँच गये| स्नान करने के बाद फिर हम सभी अपने अपने घर लौट आये|
आज भी गाँव के वे दिन बहुत याद आते हैं गांव का बच्चपन और गांव की यादें बार त्योहारों पर याद आ ही जाती हैं

मेरे सभी मित्रों को तत्वाणी, सिवाणी और मकर संक्रांति की ढेरों ढेरों बधाई | 

Tuesday, January 6, 2015

"कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन"

6/1/2015 उत्तराँचल दीप में प्रकाशित 

गेवाड़ घाटी