Tuesday, October 25, 2016

सरकार की कथनी और करनी में अंतर है

केंद्र सरकार का नारा है स्वदेशी अपनाओ वहीँ दूसरी ओर नारा है आओ हमने FDI के लिए लाल कार्पेट बिछाया है।
साहब अजीब उलझन है एक ओर चाइनीज सामानों को न खरीदने के लिए लोगों से अपील करते हो वहीँ सरकार करोड़ों की मैट्रो डील करती है। जब स्वदेशी ही अपनाना है तो सरकार FDI को भारत में घुश्ने ही क्यों दे रही है। क्यों FDI को बढ़ावा दे रही है? कहीं न कहीं केंद्र सरकार की नज़रों में खोट नजर आता है। यही FDI जब कांग्रेस ला रही थी तब विपक्ष में बैठी बीजेपी इसके विरोध में थी वह नहीं चाहती थी की FDI भारत में आये। परन्तु विपक्ष  से जैसे ही वे सरकार में आये तो FDI इनकी पहली प्रार्थमिकता बन गयी।

हर बार इनके नीति और नियति में खोट दिखाई देता है। वहीँ भक्त लोग इस बात से अघाते नहीं फिर रहे उनका कहना है मोदी जी जो भी कर रहे हैं वह बहुत अच्छा कर रहे हैं। परन्तु वे उन दूरगामी परिणामों से कोशों दूर हैं कि भविष्य में यों ही कोई 15-20 साल बाद भारत दिवालियापन की ओर बढ़ा चलेगा। और यह सिर्फ FDI की नीतियों के कारण होगा।  यदि भारत को किसी देश से सीख लेनी हो तो वह है हमारा पडोशी बांग्लादेश । जो आहिस्ता आहिस्ता स्वदेशी के बल बुते अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहा है।

वहीँ भारत में गरीबों की आबादी लगभग 65% के आसपास है। अब यह सीधी सी बात है कि आज के आधुनिक युग में हर किसी को मोबाईल चाहिए । गरीब व्यक्ति भी यही चाहेगा कि मैं भी जमाने के साथ चलूँ। महंगा न सही पर अपनी जरूरत के हिसाब से एक सस्ता सा मोबाईल खरीद लूँ। ऐसे वक्त में हम ये कहें कि स्वदेशी अपनाएं तो स्वदेशी मोबाईल कंपनी भारत की एक भी नहीं यहाँ तक कि सारे पुरचे तक चाइना से बनकर आते हैं । हर व्यक्ति यही चाहता है कि मुझे जहाँ सस्ता और टिकाऊ सामान मिले उसे खरीदे। हर कोई दो रुपये कमाना या बचाना चाहता है। और आप कहते हैं चाइनीज सामान का बहिष्कार करो। माननीय प्रधनमंत्री जी मैं बहिष्कार करने के लिए तैयार हूँ तो क्या आप चाइना द्वारा करोड़ों की डील का बहिष्कार कर सकते हैं? यदि हमारा प्रधान सेवक ऐसा कर सकता है तब पूरा देश आपके साथ खड़ा है  क्या आप ऐसा करेंगे?
-भास्कर जोशी

Wednesday, October 5, 2016

युद्ध हुआ तो ....................


उडी में हुए आत्मघाती हमले से पूरा भारत खौल उठा है हर भारतीय नागरिक पकिस्तान से बदला लेना चाहता है जो कि स्वाभाविक है। एसे मौक़े पर हर भारतीय का ख़ून खौल उठता है। जिस प्रकार पाकिस्तानी आतंकियों ने कायराना तरीक़े से आघात पहुँचाया है तब एसे समय में भारतीय नागरिकों का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर होना लाज़मी है चाहे वह हिन्दू हो या भारतीय मुस्लिम समाज। हर कोई पाकिस्तान को सबक सीखाने की बात  कहता है।

जब अपनों की जान पर बात आती है तब पूरा हिंदुस्तान एक होकर दुश्मन से बदला लेने को आतुर हो जाता है। हर हिंदुस्तानी उड़ी में हुए आतंकी घटना होने के बाद से पकिस्तान से बदला चाहता है। पाकिस्तान की आतंकवादी विचारधारा एक नपुंसक की भाँति है  जो सामने से वार करने के बजाय छुप छुप कर पीठ पीछे से कायराना हमला करता है। एसे आतंकियों पर नकेल कसना बहुत ज़रूरी है। भारतीय सेना के जवान एसे कायरों पर लगाम लगाने में सक्षम है।

सोशल मीडिया की अगर बात करें तो भारत के कोने कोने से एक ही आवाज़ उठ रही है कि पाकिस्तान से सीधे युद्ध कर आमने सामने की जंग का एलान कर दी जाय। परंतु सीधे तौर पर जंग करना क्या ठीक रहेगा?   अगर एसा होता है तो भारत की अर्थव्यवस्था के साथ साथ प्रधानमंत्री जी के विकास के दावों पर भी पानी फिर जाएगा। इस से अच्छा यही है कि पाकिस्तान का हुक्का पानी बंद कर दिया जाय। ताकि दुनियाँ की नज़र में पाकिस्तान अलग थलग पड़ जाए।

इधर प्रधानमंत्री मोदी जी की कूटनीति की तारीफ करनी होगी जिसके कारण पाकिस्तान की छटपटाहट नजर आ रही है। उसकी घबराहट साफ़ देखी जा सकती है। उड़ी हमले के बाद से वह अत्यधिक घबराया हुआ है कि भारत युद्ध ना छेड़ दे। लेकिन भारत सीधे युद्ध ना करके उसे कूटनीतिक तरीक़े से मात देने का मन बना चुका है। यह जरुरी नहीं कि हर बार बन्दुक की नोक के बलबूते से ही बदला लिया जाए , बदला लेने के कई और कूटनीतिज्ञ कारण भी हो सकते हैं ।

अगर सीधे आमने सामने पाक के साथ युद्ध हुआ तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि आधुनिक समय में युद्ध होना कितना विनाशकारी हो सकता है। यह राजा महाराजाओं के ज़माने का युद्ध नहीं होगा। ना ही यहाँ तलवार बाज़ी से युद्ध जीते जायेंगे। यहाँ सामना होगा विस्फोटक परमाणु एटम बम व घातक मिशाइलों से। ये एटम बम व मिशाइलें मौजूदा पीढ़ी के साथ साथ आने वाली नशलों को भी तबाह कर देगा।  जब भी परमाणु बम की बात उठती है तब हिरोशिमा और नागासाकी का ज़िक्र हमेशा याद किया जाता रहा है। सत्तर साल बीत जाने के बाद भी वह भयावह मंज़र याद दिलाता है कि परमाणु बम कितने ऊँचे दर्जे का राक्षस है और कितनी तबाही मचा सकता है जबकि समय के साथ साथ उन एटम बमों की शक्ति में इज़ाफ़ा होता गया है।

इधार अभी ताज़ा हाल सीरिया को ही देख लें।सीरिया युद्ध में हुए आत्मघाती बम विस्फोटों ने कितना नुक़सान पहुँचाया हैं। मौजूदा जनधन  की हानि होने के साथ साथ भविष्य की आने वाली नई पीढी पर कितना असर पढ़ा है। इसका आपने अंदेशा भी नहीं लगाया होगा। आज इंटरनेट मोबाइल हर किसी के हाथों में है ज़रा यूट्यूब पर सर्च कर सीरिया के विडीओज़ देखें, नवजात बच्चे किस प्रकार उन एटम बमों से ग्रसित हैं। यह देखने के बाद आप जान पाएँगे कि वर्तमान में युद्ध करना कितना विनाशकरी हो सकता है।आज यह संभव नहीं है कि जब किसी दो देशों के बीच युद्ध हो तो किसी एक ही देश का नुकसान होगा। बल्कि दोनों देशों को उसका नतीजा भुगतना होगा।

उधर अगर युद्ध की बात करें तो युद्ध करना अंतिम फ़ैसला है । जब कोई रास्ता न दिखे तब युद्ध ही एक मात्र सहारा है। अभी हमारी केंद्र सरकार बन्दुक की नोक पर युद्ध न करके कूटनीतिक तौर पर पाकिस्तानको घुटने टेकने पर मजबूर करेगी। सरकार को अभी युद्ध के लिए उकसाने की कोशिश न करें। युद्ध करना न करना अंतिम फैसला होगा। पर अभी भारत के पास कई विकल्प है पाकिस्तान का दम घोटने के लिए।

आज के हालात भिन्न हैं हम लोग घर के किसी एक कोने में दुपक कर फ़ेसबुक, व्हट्सप, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया में अपनी प्रतिक्रियाएँ दे रहे होते हैं कि पाकिस्तान को सबक़ सीखाने के लिए युद्ध लड़ना चाहिए और यह सब एक कमरे में बैठे बैठे टेट्स डाल दिया जाता है। यह कहाँ तक उचित है। भावनायें व्यक्त करना अलग बात है और उकसाना कैसे ठीक हो सकता है इसपर विचार करना अतिआवश्यक है।
भास्कर जोशी
९०१३८४३४५९

श्रद्धाजंलि हिंदी को


आ गया दिन श्रद्धांजलि देने का
चौदह सितम्बर हिंदी दिवश का
हिंदी के हम भी हैं चेले
यह बतलाने का दिन आ गया।

शुभकामनाओ का अम्बार लगा है
हिंदी , हिंदी के दिन को याद किया जा रहा है
चलिये इसी बहाने ही सही हिंदी को याद कर लें
दो पुष्प हम भी हिंदी को अर्पित करदें

नए दौर के नए तरीकों संग
हिंदी को याद कर सोशल मीडिया पर स्टेट्स डाले
बधाई हो बधाई हो हिंदी दिवश की बधाई हो
चलो इसी  बहाने हम भी हिंदी के रखवाले बन जाएं

हिंदी को याद कर  कवि सम्मेलन , गोष्ठी करें
फूल माला से हिंदी के रण बांकुरों का स्वागत करें
तालियां बजाकर मदारियों सा लुफ्त उठायें
इन्हीं कारणों से जीते जी मर गयी हिंदी रखवालों के कारण ।
भास्कर जोशी

एक समीक्षा : इंद्रेण कुमाउनी पुस्तक लेखक पूरन चंद्र कांडपाल :

उत्तराखंड साहित्य के जन नायक  आदरणीय पूरन चंद्र कांडपाल जी का बहुत बहुत आभार।
आदरणीय कांडपाल जी से कई बार मुलाक़ात हो चुकी है आप सभी की कृपा से आगे भी होती रहेगी। कांडपाल जी से जब भी मुलाक़ात होती है उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है अभी कुछ दिन पहले एक पुस्तक विमोचन के अवसर पर उनसे पुनः मुलाक़ात हुई । मुलाकात के द्वरान उनसे पहाड़ की शब्द शैली पर बहुत कुछ सीखने को मिला है। हम युवा नए अटपटे भाषा की ओर बढ़े जा रहे हैं और अपने मूल भाषा को पीछे धकेल रहे हैं । चाहता तो था कि इस विवरण को पूरे कुमाउनी शैली में लिखूं पर उन अपने पहाड़ी मित्रों को भी ध्यान में रखता हूँ जो पहाड़ से शहर आकार अपनी मूल भाषा को भूल चुके हैं।

 कांडपाल जी अब तक कई हिंदी पुस्तकों के साथ साथ कुमाउनी भाषा में भी कई पुस्तकें लिख चुके हैं । जिसमें कुमाऊंनी कवितायेँ। कुमाउनी कहानियां, गीत, निबंध संग्रह व् आदि हैं । उनमे में से  कुमाउनी सामान्य ज्ञान -उज्याव्, महामनखी- यह तीन भाषाओँ में लिखी है हिंदी कुमाउनी और अंग्रेजी में । महा मनखी में उन्होंने महान विभूतियों पर संक्षिप्त प्रकाश डाला है जिन्हें भारत रत्न और पद्मभूषण सम्मन से नवाजा गया है।
आदरणीय कांडपाल जी की कृपा से उनकी 6  पुस्तके मुझे पहले मुलाकातों में प्राप्त हुई हैं। अब जब उनसे पुस्तक विमोचन के द्वरान मुलाक़ात हुई तो उनके कर कमलों द्वारा -स्कूलीनना लिजी 154 अनुच्छेद , 30 कहाणी, और 16 चिट्ठी  से भरपूर " इंद्रेणी " पुस्तक सप्रेम प्राप्त हुई।
आदरणीय कांडपाल जी ने  भले ही यह पुस्तक छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर लिखी हो परन्तु यह बड़ों मानुसों के लिए भी उतनी ही कारगर साबित होगी, ऐसा मुझे लगता है।  154 अनुच्छेद 30 लघु कथाएं व् 16 चिट्ठियों में ज्ञान व् जीवन में उतारने लायक कई महत्वपूर्ण कहानियां व् अनुच्छेद व्यक्त की हैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है क़ि जिन कुमाउनी शब्दों को हमारी नई पीढ़ी भूल गयी है वे कुमाउनी शब्द इस संग्रह में नजर आते हैं।   जिसप्रकार कुमाउनी भाषा का प्रयोग आदरणीय कांडपाल जी ने किया है वे सीखने लायक है। कांडपाल जी ने 16 चिठियां लिखी है उन्हें पढ़ने का आनन्द ही कुछ और मिला शायद ही शब्दों में बयां कर पाऊं। चाचा, ताऊ, स्कुल, मुख्यमंत्री व् अन्य को हम कैसे कुमाउनी में पत्र लिखें इसपर काफी जोर दिया है।
 लिखा हुवा जितना छोटा या सूक्ष्म हो उतना ही मारक भी होता है। और यह कांडपाल जी के इंद्रेणि कुमाउनी पुस्तक में दिखाई देती है। मैंने आज से पहले कभी भी किसी भी  पुस्तक पर अपनी टिप्पणी नहीं दीं। क्योंकि भय रहता था कि अनजाने में पुस्तक के विषय में कुछ अनुचित न लिख बैठूं जिससे लेखक मेरी वजह से लज्जित महसूस करे। थोड़ा साहस जुटाकर आज थोड़ा बहुत लिखने का प्रयत्न किया है। साथ ही कांडपाल जी की इस पुस्तक ने लिखने के लिए भी बाध्य किया है। कुमाउनी भाषा को बढ़ावा व् सीखने के साथ साथ जीवन में उतारने योग्य कई महत्वपूर्ण शिक्षा दी है एक शिक्षक की भांति। कांडपाल जी की यह पुस्तक 'इंद्रेणि" कुमाउनी साहित्य भाषा सीखने वालों के लिए शिक्षक बनकर उभरी है ।

कविता

आप सभी के आशीर्वाद और हरदौल वाणी साप्ताहिक अखबार की कृपा से मेरी रचना को स्थान देने के लिए आदरणीय देवी प्रसाद गुप्ता जी (श्री जी), भाई ललित मोहन राठौर जी का बहुत बहुत आभार

कविता
मैं ही मैं
मैं ही ज्ञानी
मैं ही सबकुछ
मैं ही "अहम्"।

तू तुच्छ
तू मूरख
तू तेरी तूती
तू ही "खल"।

ये मेरा
वो भी मेरा
सब मेरा
मेरा ही "मरा"।

मैं बड़ा
सब में, मैं बड़ा
बड़ों का भी बड़ा
बड़ा ही "तेल में तला"।
भास्कर जोशी
9013843459

एक और भद्दी सियासत

कल दिल्ली में मनीष सिसोदिया प्रेस कॉन्फ्रेंस के द्वारान उनपर एक व्यक्ति ने स्याही फेंक दी। मुझे बहुत ख़ुशी मिली। वह स्याही फैकने वाला व्यक्ति किसी पार्टी से था या नहीं यह अलग मुद्दा है पर स्याही फेककर उसने अच्छा ही किया ।
दिल्ली में आप को वेश्या वृति करने के लिए जनता ने  कुर्सी पर नहीं बैठाया था बल्कि जनता के लिए कुछ काम करेंगे इस लिए बैठाया था पर आप ने क्या किया। रास लीला, वासना व कुर्सी के मोह में अय्याशियां। क्या यही थी आपकी नई राजनीति।
दिल्ली में हर साल इस मौसम में डेंगू और चिकनगुनिया जैसे जान लेवा बीमारियां पनपती हैं क्या आप को यह पता नहीं था। तब भी आप रंगरलियां मनाने विदेश चले गए। दिल्ली की जनता अस्तपतालों  पर पड़े पड़े अपनी बिमारी से लड़ रहे हैं तब इसे में आप दिल्ली की जनता से दूर मौज मस्ती कर रहे हैं। बाद में इसे राजनितिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं ।
सायद आप को याद हो या न हो पर मुझे अच्छे से याद है जब दिल्ली में शिला दीक्षित की सरकार थी तब आप ने क्या किया। कैसे कैसे नौटंकियां दिखाई थी। धरना दे दे कर आपने फालतू के सड़कों पर जाम लगाया था। तब से आजतक आप का क्या बदल गया । आप पहले भी जनता  को परेशान करते थे आज भी सरकार की कुर्सी मिल जाने के बाद भी जनता को परेशान ही कर रहे हैं
ऐसे लोगों पर स्याही क्या और कुछ फेकने चाहिए । जिस से ये राजनीति करना भूल जाएं। लेकिन साथ ही यह हिन्सा ठीक नहीं है. किसी पर स्याही या कुछ फेकना हिन्सा माना जाता है . विरोध के लिए ओर भी तरीके हैं.

काला सच

2 अक्टूबर काला दिवश
जी हां पूरा भारत 2 अक्टूबर को जब गांधी जयंती  मना रहा होता है उसी दिन उत्तराखंड काला दिवश मना रहा होता है। यह काला दिवश हर वर्ष दिल्ली जंतर मंतर पर 1994 मुज्जफरनगर में  शहीद हुए उत्तराखंड के आंदोलनकारियों को  याद कर, दोषियों को सजा देने की मांग की जाती है।

26 साल बीत जाने के बाद भी आजतक उन आरोपियों को सजा नहीं हुई जिन्होंने बर्बरता पूर्वक उत्तराखंड से दिल्ली आ रहे आंदोलनकारियों का कत्लेआम किया। आज भी वे दोषी खुले आम घूम रहे। उन दोषियों के खिलाफ तब से लेकर आज भी 2 अक्टूबर को जंतर मंतर पर काला दिवश के तौर पर धरना प्रदर्शन किया जाता है।

गत 2010 में, मैं जब दिल्ली आया तब जंतर मंतर की जानकारी अपने को नहीं थी । 2011 से  दिल्ली में उत्तराखंड के सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा । उसके बाद ही मुझे काला दिवश व मुज्जफर नगर काण्ड के बारे में पढ़ा और सुना । पिछले पांच वर्षों से मैं भी जंतर मंतर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराता रहा हूँ। लेकिन तब उत्तराखंड के कुछ ही गिने चुने लोग पहुँचते थे। यही कोई 30 या 40 लोग, वह भी बड़ी मुश्किल से। लेकिन पिछले साल जब गया तो देखा इसबार काफी उत्तराखंड के लोग एकत्रित हैं। परंतु उन 30 या 40 लोगों में से 4-5 ही लोग नजर आये जो हर साल दिखाई देते  थे। बाकी सब नदारद थे। जानने के बाद मालूम हुआ कि यह भीड़ उत्तराखंड क्रांतिदल की है। जिन्होंने अभी अभी उत्तराखंड क्रांति दाल जॉइन किया है। एक तरफ अच्छा भी लगा दूसरी ओर दुःख भी हुआ।

अच्छा इसलिए लगा कि पहली बार जंतर मंतर पर उत्तराखंड के लोगों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली। लगा कि दिल्ली केंद्र सरकार तक इस भीड़ का असर पड़ेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुवा।

दूसरी ओर दुःख इसलिए भी हुआ कि उत्तराखंड क्रान्ति दल इस से पहले कहाँ था जिसने उत्तराखंड राज्य आंदोलन की स्थापना की। पांच सालों से लगातार देख रहा था पर कभी इस प्रकार उत्तराखंड क्रांति दल के लोग नहीं दिखे।  एकाएक ऐसा क्या हो गया कि जंतर मंतर पर इनकी भीड़ उमड़ आयी। एकाएक ऐसा कौन सा सपना देख लिया था कि मुज्जफरनगर काण्ड की इन्हें याद हो आयी?

खैर अभी 2017 में उत्तराखंड में चुनाव होने हैं। सियासी दाव पेच खेलना कोई इन राजनीतिज्ञों से सीखें। जब चुनाव नजदीक आते हैं तभी इन्हें अगला पिछला याद आता है। वरना खामखां में तू कौन और मैं कौन?
भास्कर जोशी

हिंसा का मार्ग सही कैसे

शहीद सरदार भगत सिंह को याद कर आज मन में कई सवाल अंदर ही अंदर द्वन्द कर रहे हैं । शायद इसका जवाब आपके पास हो।

एक ओर भारत को ब्रिटीश की गुलामी से आजादी दिलाने वाला शहीद सरदार भगत सिंह है तो उधर आतंकी बुरहान वाणी । दोनों में कितना अंतर है यह मैं स्पष्ट नहीं कर पा रहा हूँ। हो सकता है कि इस पोस्ट को डालने के बाद कई लोग नाराजगी जाहिर करे पर सत्य अपनी जगह पर है।

हर माँ यही चाहती है कि उसका बेटा सरदार भगत सिंह जैसे देश भक्त हो।  जिसने आजदी के लिए हँसते हँसते अपनी जिंदगी भारत के नाम कर दी। ये वही शहीद सरदार भगत सिंह है जिन्हें तब ब्रिटिश सरकार ने आतंकवादी घोषित किया था। हिंसा के बल पर ब्रिटिश की नींव हिला डाली थी। भारत को आजाद कराने के लिए उन्होंने हिंसा का मार्ग अपनाया और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित कर फांसी के तख्ते पर लटका दिया। तब हिंदुस्तानियों ने सरदार भगत सिंह की इस कुर्बानी को भारत के लिए शहादत करार दिया।

अब दूसरी ओर है आतंकी बुरहान वाणी। जो कश्मीर को भारत से आजाद करना चाहते हैं। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ऐसा हम मानते हैं पर वे कुछ कश्मीरी अपने को आजाद नहीं समझते इन्हें लगता है कि वे भारत में गुलाम है। वे अपने को आजाद कराना चाहते हैं कश्मीर को आजाद कराने के लिए बुरहान वाणी ने भी वही हिंसा का रास्ता चुना जो शहीद सरदार भगत सिंह ने चुना था।

इन दोनों में अंतर स्पष्ट नहीं कर पा रहा हूँ क्या आप मदद कर सकते हैं ?-
भास्कर जोशी

कहो कैसी रही

कहो कैसी रही
अब आया न  मजा।

हर बार हिजड़ों की टोली भेज
मेरे देश में दहशत फैहलाय करते थे
अबकी बार बारी हमारी थी
तुम्हारे घर में घुसकर
हिजड़ों की टोली मिटा डाली।
कहो कैसी रही
अब आया न मजा।

बहुत इतराते थे तुम
साँपों को दूध पिलाकर
आतंकवादियों की माला गले में लटकाकर
एक एक पेच कसेंगे तुम्हारे नापाक मनसूबों पर
ना पाक रहेगा न तुम्हारी गीदड़ भक्ति
तुम्हारे घर में घुसकर तुम्हारी ही बजा डालेंगे
कहो कैसी रही
अब आया न मजा ।

सियासी भेड़ियों की सियासत

कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के कुछ चंद लोग, सच मानिये तो चंद लोग नहीं चंद नेता  सेना पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। क्या यह उचित है ?

इसी रविवार को जब हम अपने घरों में छुट्टी मना रहे थे, कुछ लोग मॉल में घूम रहे होंगे , कुछ लोग मूवी देखने थिएटर गए होंगे तो कुछ लोग किसी न किसी बहाने मौज मस्ती कर रहे होंगे पर तभी पकिस्तान से कुछ आतंकियों ने भारत में घुसने की कोशिश की। उस वक्त बॉडर पर 24 साल का जाबांज सिपाही अपने एक और साथी के साथ निगरानी रख रहा था। कि तभी पकिस्तान की ओर से कुछ आतंकी भारत की ओर घुस आए। तब उस 24 साल के बहादुर देश भक्त ने उन आतंकवादियों के साथ गोला बारी शुरू हो गयी। इसी के चलते उस 24 साल के लड़के का साथ दे रहा दूसरा माँ भारती का लाल सहीद हो गया। लेकिन उस जाबांज 24 के लड़के ने अपनी हिम्मत दिखाते हुए उनसे लड़ते रहा। तभी आतंकियों ने गर्नेट दाग कर उस जाबांज सिपाही को घायल कर दिया परन्तु इसके बाद भी वह भारत माँ की रक्षा के लिए लड़ता रहा और कई आतंकियों का खात्मा कर दिया।
गोली बारी की आवाज सुन भारत की सेना टुकड़ी वहां पहुंची तो उनके साथ मिलकर शेष बचे हुए आतंकियों को उलटे पांव भागने को मजबूर कर दिया। और यह सब 24 साल के जाबांज देश का सच्चा रक्षक ही कर सकता है।
इधर सियासी भेड़िये अपने गन्दी राजनीति करने के साथ साथ देश के रक्षकों पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। क्या कुर्सी की लालसा में आदमी इतना नीचे  गिर जाता है कि उसे सही गलत में फर्क नजर नहीं आता हो? देश की रक्षा करने वालों से सबूत मांगे जा रहे हैं? देश की मर्यादा अखंडता को दरकिनार कर देश द्रोह पर उतर आये हैं। यह कहाँ तक उचित है???

गेवाड़ घाटी