Saturday, March 26, 2016

घन्तर-7: प्रेस वार्ता:6

घन्तर-7
भीकू दा प्रेस वार्ता -6

क्या होगा पहाड़ का। विनाश के कगार पर खड़ा है। भीकू दा आप कुछ करते क्यों नहीं ?

भुला मुझे अगर विधानसभा में घुसने की छूट होती तो इनके कपड़े "उतार उतार कर एक एक को पकड़ पकड़कर सीसोण झपका झपका के भुत्त उलाय देता" सारे नेता बिरादरी याद रखते।

भिकूदा वो तो तुम इनके घर जाकर भी कर सकते हो?

ना भुला ना ये राजनीति के ठेकेदार उस काम को व्यक्तिगत लड़ाई समझकर मुझे नेक्सलाइट या माओवादी घोषित कर देंगे। और इनकाउंटर करवाकर मेरा ढीश्यूम कर डालेंगे । मेरा तो ये लोग कर देंगे ना .........इनकी जड़ बहुत गहरी है भुला, इनके जड़ पर पहुँचकर आरा चलाना होगा।

बल भिकूदा कैसा आरा और कैसी जड़ ?

भुला ये नेता लोग हैं इनकी जड़ें बहुत मज़बूत और विनाशकरी है जिस ओर फैलती है वहाँ सूखा या अकाल पड जाता है इसलिए इन नेताओं के जड़ व टहनियों पर आरा लगाकर बार बार झटनी होनी चाहिए। तभी अच्छी कोपलें आएँगी। हो सकता है किसी पेड़ में मीठे रसीले फल भी लग आये।

भिकूदा यह कैसे सम्भव है नेता कभी अपनी के सगे नहीं हुवे फल तो दूर की बात है।

भुला इसकी ज़िम्मेदारी हम लोगों के कंधे पर है। हम कैसे नेता को चुनते हैं यह हमारा अधिकार है पर हम लोग कच्ची पक्की शराब में बिक जाते हैं और अपना बेसकिमती वोट ऐरे ग़ैरे नेतों को दे बैठते हैं। आज की स्थिति ऐसी हो गयी है कि पार्टी वर्सेज़ पार्टी । यदि कोई निर्दलीय अच्छा साफ़ सुधर व्यक्ति चुनाव लड़ता है तो उसे कोई नहीं देखता। हमें यह नज़रिया बदलना होगा।

जारी है भीकू दा के साथ प्रेस वार्ता अगले सवाल जवाब के साथ
भास्कर जोशी पागल
9013843459

Tuesday, March 22, 2016

हे देवभूमि देवो !

जागो हे ! म्यर पहाड़ देवभूमि  देवो
संकटों ले घेरी गो म्यर पहाड़ भूमि
करी दियो कृपा हम परि, धरि दियो लाज |
जागो हे ........................................

गों-गौनु में पाणिक आज,  है गे चौपट
नौ-धार सब सूख गेई,  जमि गेछौ  काई
डाड मारणी पाणी लिजी, म्यर पहाड़े भाई बन्धु
बरषे दियो कृपा हम परि, करि दियो चमत्कार ||
जागो हे !........................................

पहाड़ों का गाड़-गध्यारों हडिक दीखाण है गयीं
हरिया-भरिया सार हमेरी, बीन पाणी बांज है गयीं
म्यर पहाड़ फिर जीवन दीजो, करि दियो उपकार
जागो हे ! म्यर पहाड़ देवभूमि  देवो

देवा ! तुमहूँ  पुकारण में डर मगें लागणे
बदरी-केदार में  तुमुल तांडव नाचे दियो
म्यर पहाड़े इस्ट मितुर  सब बह दियो
हम नर बानर तुमर बालक हया
धरि दिया छतर छाया हम पर, कर दिया उपकार
जागो हे ! म्यर पहाड़ देवभूमि  देवो

पहाड़ की गत करि है

पहाड़ की गत करि है

कस जुलम कर गया
पहाड़ की गत कर गया

रात्ती-ब्याव भसा-भसी
लधोड़ि हालण में रौंछा
कस य लधोड़ि हैगे
पहाड़गणी डकारण में रौंछा

पहाड़ों का बाट घ्वैटों
टेंडर पास करौण में रौंछा
ढूँगा क़ैं ट्याड लग़ैबेर सिमेंटक बाट बतुँछा
नोटों बंडल पर सेत लग़ैबेर मलाई पु जस च्यापण में रौंछा

रुढी दिना पाणिक़ ग़ाव ग़ाव ऐंछौ
पाणिक़ लिजी याँ मारा-मरि हैं ज़ैछौ
तुम पाणि लाइन उखाड़ बेर
घरक लैंटर बिछौण में रौंछा

तुमूल तो पहाड़कि यस गत करि हैछौ
खुंण खुंण कर बेर भकार  भरि हैछौ
आजि खानु आजि च्यापनु न्यार है रैछौ
रई सई बची-ख़ुचि पहाड़ लै तुमूल बेची हैछौ

फड़वा ब्यालच सांपो मैल लै थामी हैछो
छः फ़ुटक़ गड़्यर खानि हैछो
क़ानि में झ्वल, झ्वल में काव बोरियक चीथौड कफ़न धरि राखौ
इंतज़ार करणोयी बख़तकि ग़ड्यार में हानि द्युला।
भास्कर जोशी पागल

हरदा दिलाओ ना

हरदा दिलाओ ना

भिकूदा बोला हरदा से
शारबियों की भी पिनशन लगाओ
जेब भी ख़ाली ख़ाली सी
पेट भी है ख़ाली ख़ाली
कुछ न मिला तो
न रहेगी जान हमारी
दो बूँद ज़िंदगी की
शराब हमें पिलाओ ना
भिकूदा..........

नौकरी पानी मिलती नहीं
खेती पाती भी रही नहीं
शुगर बंदर और छोड़ दिए
हमारा खाना पाणी भी खा गये
अब गुज़ारा कैसे हम करेंगे
जुगाड़ लगाकर
आरक्षण हमें भी दिलाओ ना
भिकूदा .....

आमा बूबु की पिनशन लगवाई
मँगाईयों की भी पेंशन दिलाई
रह गये हम दो सैणी मैस
साथ में लद गया बाख़ौड़ भैंस
अब खाने के भी पड़ गए लाले
बिरोज़गारों शारबियों को भी
पिलशन दिलाओ ना
भीकू दा .........

ठेके वाले हमको पऊवा देते नहीं
ब्याव को दो पैक पीने को मिलता नहीं
एसे कैसे हम जिएँगे
ब्याव को हम कैसे घुरी-पड़ी मिलेंगे
शारबियों की इजात तुम्हारे हाथों में
चक्कर ऐसा कुछ चलाओ ना
जोकि मिला करे घर-गोठ्यारों में
भिकूदा बोला हरदा से ........

भास्कर जोशी पागल

आँचल की पीढ़ा

आँचल की पीढ़ा

भूल गए तुम, अपने आँचल को ।
याद भला, तुम्हें कैसे आये।
देव भूमि में, जन्मे थे तुम ।
इसी जननी को, तुम भूल गये।
भूल गये............

अपनी आँचल की छांव में, पाला है तुम्हें ।
जो भी माँगा, सीने से लगाकर दिया तुम्हें।
जीने के लिए, सबकुछ तो दिया तुम्हें ।
इक बार तो मुझे याद किए होते ।
भूल गये............

पहाड़ ही  हूँ मैं , तुम्हारे लिए ।
जो यादों का बोझ, ढोये जा रही ।
नन्हें से थे तुम, खेले कूदे।
जवानी आते ही, मुझको भूल गये।
भूल गये............

इतने निष्ठुर, तुम कब, कैसे हो गये।
जो माँ माटी की याद न आए ।
कास कि तुम जान पाते, आँचल की पीड़ा को ।
तो मेरा आँचल, इसक़दर सुना न होता ।
भूल गये............
-भास्कर जोशी'पागल'

खेलूं होरी

खेलूँ होरी

खेलूँ मैं होरी तोरे संग
 रंग रंगिली संग
तोरी हँसी ठिठोली संग
खेलूँ मैं .......

तेरे रंग से रंग खिल जाए
बदरा भी झूमे नाचे गाये
खिल उठे सारा जग महकाए
खेलूँ मौज मनाऊँ हो होरी तोरे संग
खेलूँ ...........

जब तू लाल गुलाल उड़ाए
भर पिचकारी से रंग बरसाये
हंस हंस के तू रंग लगाए
मैं भी रंग जाऊँ तोरे संग
खेलूँ.........

जब फागुन तुझ पर चढ़ जाए
तन बदन से बिज़ूरी चमकाए
घायल हुवा मेरा अंग अंग
डूबे रंग्ग रसिक मनाऊँ तोरे संग
खेलूँ.........
भास्कर जोशी 'पागल'

होरी खेलूं

होली की ढेरों ढेरों शुभकामनायें

होरी खेलें

होरी खेलें बाल गुलाल
द्वार लला खेलें हो होरी
आयो फागुन खेलें हो होरी
द्वार लला........

अबको फागुन चढ़कर बोले
होरी रे होरी खेलें हो होरी
नंद भवन में खेलें हो होरी
द्वार लला......

रंग रंगीले धूम मचाये
लाल गुलाल उड़ाए मतवारे
मस्ती की धुन में थिरके हो होरी
द्वार लला .......

लीला करे धरती और अम्बर
बदरा घुमड़ घुमड़ कर नाचे
गरज बरस कर खेले हो होरी
द्वार लला........
-भास्कर जोशी पागल
901384

घन्तर-6 : भिकुदा प्रेस वार्ता

घन्तर-6
भिकूदा से प्रेस वार्ता-5

भीकू दा कभी पहाड़ में तेंदुवा बाग़ी हो जाता है तो कभी नेता। आम जनता की फ़िकर तो किसी को है ही नहीं

हाँ भुला! पिसना तो जनता को ही है तेंदुवा बाग़ी हो जावे तो आदमी मरे। नेता बाग़ी हो जावे तो तब भी आदमी ही मरे। नेताओं का क्या बिगड़ता है? मार तो आम जनता को ही पड़ती है। ये लोग तो सूटकेश में भर भरकर नोटों के बंडल दबा लिए होंगे।

बल भीकू दा आप इन्हें समझाते क्यूँ नहीं ?

भुला एक कहावत है "भैंस के आगे बीन बजाना" ये लोग न ही बात से समझते हैं ना ही लात से। नोटों के बंडल फेंको तमाशा देखो, तो इनकी दुम हिल हिलाने लगती है. ये पैसे के अलावा दूसरी कोई भाषा नहीं समझते हैं

बल भिकूदा कोई तो एसा रास्ता होगा जो इन्हें रास्ते पर ले आये?

क्यों नहीं भुला! रास्ते बहुत हैं पर सही आदमी रास्ता दिखाए तब ना। वैसे जनता ही इन्हें रास्ते पर ही रख सकती है लेकिन अपने यहाँ की जनता को फ़ुर्सत कहाँ ? कोई शराब पीकर नाले में पड़ा होगा तो कोई नेताओं की चमचा गिरी करने में लगा होगा तो कोई नींद के झोंक ले रहा होगा।

तो क्या भिकूदा ये सुधरेंगे नहीं ?

ज़रूर सुधरेंगे भुला!  लेकिन तब, जब ये जनता अपने वोट का हिसाब माँगेंगी। बात फिर वहीं घूम कर आ जाती कि जनता को नींद से झकोरे कौन। बहरहाल अभी जनता होली के रंग में धूत है होश में कम ही आती है और वहीं अपने नेता विधान सभा में होली के रंग में तमाशा दिखा रही है। इंतज़ार है कि ये इस नशे से बाहर निकलकर जनता की सुध लें पर यह होता नहीं दिखाई दे रहा है । एसे में उत्तराखंड का बनटा धार निश्चित है।

बल भीकू दा देहरादून में तो खिचड़ी पक रही है इस खिचड़ी से किसे लाभ होगा ?

भुला सीधी सी बात है जनता को तो लाभ होगा नहीं। लाभ होगा तो उन नेताओं को जो हमारे वोट को धन बैंक समझकर अकाउंट खोले हैं और वे मेरी नज़र में वैश्या से भी निहायती हैं। चाहे वह किसी भी पार्टी का हो। ये वैश्या लोग सिर्फ़ पाँच साल में एक बार हमें रिझाने आते हैं और जो अपनी अदाकारी से हमें सम्मोहित कर लेता है उसका हम गुणगान कर उसे अपना बहुमूल्य वोट दे गँवाते हैं और फ़िट ये ऐस कैस में डूबे रहते हैं। पाँच साल ख़त्म होते होते इनकी नज़रें फिर उस वैश्या पर पड़ती है जिसने भर भरकर तिजोरी भर रखी हो। तब ऐसे में शेष वैश्या खिचड़ी पकाकर आगे की प्लानिंग बनाते हैं और  उसकी तिजोरी लूटने का प्लान बनाते हैं। तब ऐसे में जनता की रूख कौन करेगा। जब ये ठन ठन गोपाल हो जाते हैं फिर जनता का रुख़ करते हैं चूँकि देने के लिए नहीं बल्कि हाथ फैलाने के लिए। और जनता अपने आप को दानी कर्ण समझकर बहुमूल्य कवच दान कर बैठते हैं।

तो भिकूदा इसका निवारण कैसे होगा ?

देख भुला दौर है बिजनेश का। एक हाथ दे एक हाथ ले । 5 साल का बॉण्ड भराओ काम नहीं किया तो कोंट्रेक्ट कैनशील याने की नेता का पद छीन डालो स्तिफा माँगो। दूसरे कम्पनी को ओफ़र दो ।

भिकूदा के साथ प्रेस वार्ता जारी है बने रहिए नए सवाल जवाब के साथ।
भास्कर जोशी पागल
9014843459

इस से पहले के घन्तर सिरीज़ आप http://pagalpahadi.blogspot.in ब्लॉग लिंक में पढ़ सकते हैं

Thursday, March 17, 2016

मुझे भी आज़ादी चाहिए


मुझे भी आज़ादी चाहिए
मुझे उन राष्ट्र द्रोहियों से,
आज़ादी चाहिए
मुझे उस आज़ादी वाले से,
आज़ादी !चाहिए
मुझे उस आतंकवाद से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन अलगाव वाद से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन पाकिस्तानी समर्थकों से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन वामपंथियों से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस कट्टरपंथी से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस अन्ध भक्ति से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस पप्पूवाद से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस खुजलीवाद से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस  कूड़े से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस विकास रूपी विनास से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन जुमलों से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस दलाल मीडिया से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस आरक्षण से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस हार्दिक से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस जात पात से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन घोटालों से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन लुटेरों से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन चोरों से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन झूठे वादों से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस महँगाई से
आज़ादी चाहिए
मुझे उस काले धन से
आज़ादी चाहिए
मुझे उत्तराखंड के जिंदल ग्रूप से
आज़ादी चाहिए
मुझे नैनीसार के क़ब्ज़े से
आज़ादी चाहिए
मुझे तुम्हारी घटिया राजनीति से
आज़ादी चाहिए
मुझे नेताओं से
आज़ादी चाहिए
मुझे उन तमाम लोगों से
आज़ादी चाहिए
जो देश की मर्यादा खण्डितकर
बाज़ार में बेच रहे
मुझे इन सब से
आज़ादी चाहिए !
भास्कर जोशी पागल
http://pagalpahadi.bl

Friday, March 4, 2016

घन्तर-5 : होली स्पेशल पर भिकुदा से प्रेस वार्ता

घन्तर-5

होली स्पेशल पर भिकूदा से प्रेस वार्ता-4

बल भीकू दा इसी महीने होली और फ़ुल्देई का त्योहार आने वाला है आप अपनो को, कोई संदेश देना चाहेंगे ?

हाँ भुला बहुत अच्छा किया , होली और फ़ुल्देई की याद दिला दी। पर भुला मैं तो ना कोई नेता हूँ न हीं अभिनेता, जो लोग मेरा संदेश पढ़कर कहना मान लें । और कहें भी किस से, पढ़े लिखों से? अनपढ़ लोग होते तो सायद........। लेकिन भुला हरदा तो लोगों को नई नई स्कीम देकर पहाड़ियों को पहाड़ वापस आने के लिए प्रोत्साहन कर रहे हैं। नये नये संदेश देते रहते हैं मेरी  कोई क्या सुनेगा?

बल भीकू दा कुछ समय पहले उन्होंने कहा था जो लोग पहाड़ से पलायन कर गये हैं वे पहाड़ आयें और भांग की खेती करें?

हाँ भुला मैंने भी सुना। पर  यह अच्छा काम किया हरदा ने। इससे पहले अच्छे काम किये या नहीं यह तो मुझे ख़बर नहीं पर हाँ भांग को बढ़ावा देने का काम बहुत अच्छा किया। यह सीज़न तो निकल गया। अगले सीज़न से भांग की खेती ज़रूर करूँगा, अहांण-कहाँण दाल, भट, मास, ग़हौत, जौ तिल, मडु, झुंगर, कौणी इन सभी को उजाड़ कर भांग की खेती कर आर्थिक दृष्टि  से भी मस्त खेती है।

बल भिकूदा भांग की खेती से तो नशे को बढ़ावा मिलेगा, क्या यह सही है ?

यः ख़ाल्लि लै भुला । भांग की खेती तो पैसा बटोरती है भुला।  पूरा का पूरा पेड़ नोटों का बंडल जो ठहरा। हरदा की तरफ़ से कोई मरे या जिए क्या फ़र्क़ पड़ता है और वैसे भी नशा तो लोग करेंगे ही। जब आप सुविधा दे रहे हो और जगह जगह शराब के ठेके खोल रहे हो, मोबाइल ठेके तक आपने खोल दिए हैं वैन में भर भरकर  शराब गाँवों में घुमा रहे हो उस से अच्छा तो यह भांग की खेती ही है। इसमें मर गये तो लाख के और बच गये सवा लाख के । मैंने तो उमेद दाज़्यू से भी बोला। दाज़्यू आओ भांग की खेती करते हैं। अत्तर लगाने के बाद गधेरे में चिलम भर भरकर पिया करेंगे। जितना बचेगा उसे हरदा को बेचेंगे। ताकि घर वालों का ख़र्च भी निकल सके।

बल भीकू दा होली में तो भांग का ही प्रचलन ठहरा वैसे तो । और हरदा तो इसकाम में दस गुना और तेज़ी लाएँगे!

हाँ भुला क्यों नहीं। परसों हरदा ने कहा है पुराने रीति रिवाजों को बढ़ावा देना है करके। और जब भांग की खेती करने की परमिशन मिल ही गयी तो इसबार होली में भांग ही भांग होगा, भांग के पकोड़े, भांग घोटा, चिलम पर चिलम! भांग ही भांग होगा हो।

बल भीकू दा हरदा भी भांग खाएँगे क्या ?

ना रे ना वे भला भांग क्यों खाए, वे तो नोटों के बंडल खाने का नशा करते हैं भुला, भांग तो हम जैसे गँवाड़ियों केलिए ठहरा, वे तो होली में मुजरा देख के नोट उड़ाने वालों में से हैं और हम भांग खा कर रोड गली मुहल्लों में घूरि रहते हैं। वे क्यों करे भांग का नशा। बड़े लोगों का बड़ा नशा होने वाला ठहरा।

बल भिकूदा भांग की खेती से फिर हरदा को क्या फ़ायदा होगा?

देख भुला ये बात पब्लिकलि नहीं बोली जाती। कभी मीडिया से उधर उतर कर आओ तब बताऊँगा। अभी होली आने वाली है मुझे भी गाँव वालों व अपने मित्रों के लिए भांग घोटा तैयार करना। आप ज़रूर पीकर जाना। आज साम को विनोद दाज़्यू के यहाँ बैठ होली में भी जाना है ! अभी के लिए आज्ञा दें । आप सभी को परिवार सहित होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

भिकूदा से सवाल जवाब जारी है। मिलेंगे नए सवाल जवाब के साथ। तब तक के लिए नमस्कार - पभजोपागल
भास्कर जोशी पागल
9013843459

Tuesday, March 1, 2016

घन्तर-4


भिकूदा के साथ प्रेस वार्ता-3

बल भीकू दा पहाड़ में आजकल बाग़ बौई गया है पहले तो एसा कभी नहीं हुवा?

देख भुला पैली बात तो यह है कि उ बाघ नहीं है  उ तो गुलदाड (तेंदुवा) है। और हमारे पहाड़ में गुलदाड होते नहीं है मुझे तो लगता है यहाँ जानबूझकर गुलदाड छोड़े गये हैं।

बल भिकूदा आपको एसा क्यूँ लगता है ?

भुला हमारे पहाड़ के बाघ हो या अन्य जानवर वह कभी इंसानों पर हमला नहीं करता हाँ वर्षों में कभी एक या दो क़िस्से सुनने को मिलते थे की बाघ ने फलाणा गाँव के फलाणा आदमी को बुका दिया करके। पहाड़ के जानवर भी बड़े सीधे और मनखि होते हैं व्यर्थ में किसी पर भी हमला नहीं करते। चूँकि पहाड़ में आदिम जाति की पलायन होने से पहाड़ के जानवर भी पलायन कर गये हैं।

लेकिन भिकूदा जो ये गुलदाड आ रहे हैं क्या ये पहाड़ के नहीं हैं ?

ना भुला ना पिछले कुछ समय से पहाड़ में बंदर, लंगूर और सूँवर छोड़े गये हैं और अब यह गुलदाड। बंदर और लंगूरों के झुंड को टरक़ से छोड़ते हुए मैंने अपनी आँखों से देखा है। हमारे पहाड़ के जो पहले बंदर हुवा करते थे वे एक ही आवाज़ में भाग जाया करते थे उनके आने का भी समय होता था वह भी तब जब गाँव में फलों का सीज़न होता था। वे अधिक नुक़सान भी नहीं करते थे जात भले ही बंदरों की थी पर सभ्य बंदर थे लेकिन मूए अब के बन्दर तो उज्याड़ तो करते ही हैं साथ ही आदमी औरतों को भी बुक़ाने झपट्टा मारते हैं। बच्चों को तो पूछियेमत।

बल भिकूदा क्या ये वाक़ई में पहाड़ के जानवर नहीं हैं?

ना भुला ये अपने पहाड़े के तो नहीं लगते और जहाँ तक गुलदाड की बात है एसे लगता है जैसे कि ये पहाड़ में जानबूझकर छोड़े गये हैं। वह इसलिए भी कि यह घटना एक क्षेत्र की नहीं है अभी एक महीने से चौखूटिया में गुलदाड ने चार इंसानों को मार डाला। एक पल के लिए मान भी लूँ कि एक गुलदाड आदमखोर हो गया तो क्या बाक़ी गुलदाड भी बग़ावत पर उतर आए? चौखूटिया में चार लोग मारे गये, रामनगर में एक महिला को मार डाला, भिमताल में 11 लोगों को घायल कर दिया, थैलीसैण में एक गुलदाड आपसी लड़ाई में मारा गया, बागेश्वर में भी गुलदाड देखे गये हैं इस से क्या समझ में आता है जबकि उत्तराखंड पर्वतीय इलाक़े में गुलदाड पहले कभी देखे नहीं गये। हाँ बाघ ज़रूर होते थे।

तो क्या भिकूदा इसके पीछे का क्या सच हो सकता है

भुला मुझे तो लगता है यह पहाड़ को ख़ाली कराने की वकायत् चल रही है। ताकि उद्योगपति, ठेकेदार, भू माफ़िया, और उत्तराखंड के नेता बिरादरी के लोग मनमाफ़िक क़ब्ज़ा कर पहाड़ से चुना मिटी खनिज आदि बेच खाएँ। इसके पीछे बड़ी ताक़तें शामिल हो सकती हैं। पहले ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के लिए डराने धमकाने की कोशिश की फिर बाउंसर से लोगों को पीटा गया और अब गुलदाड छोड़कर पहाड़ियों का दमन किया जा रहा है ताकि पहाड़ के लोग गुलदाड के डर से पहाड़ छोड़ दे।

जारी है भिकूदा के साथ प्रेस वार्ता । बने रहिए अगले नए सवाल जवाब के साथ
पभजोपागल
भास्कर जोशी पागल
9013843459

गेवाड़ घाटी