तेरा दुखड़ा कौन सुने
हाथ तुम्हारे जंजीरों से जकडे
मुह खुले, पर लगे ताले रे|
सरकारें जिन्हें घुट्टी पिलाये
खुश हुए “विलोचन” मतवाले रे
“दुशासन” नया तमासा दिखाए
बंदरिया नाच नचाये रे|
दावे बड़े नए नवेले “राजाओं” के
सपने दिखाते डिजटल युग के
वाक् पटुता में बड़े लुभाने
विपदा में दिखाए सपने सुहाने रे |
गुम होते बच्चे भविष्य भारत के
कोई खोज खबर नही उनकी रे
“धूमकेतु” की भैंस, मुर्गियां
खोये
“एलियन” पल भर ढूढ़ निकाले
रे |
“धृष्टराज” माल का भाव न जाने
किसानों से ख़रीदे एक टके में रे
पैकेट में उद्योग जगत हवा भरकर बेचे
माल कमाये करोड़ों रे|
अन्नदाता के गले फंदा
रंगरलियाँ मनाये “कौरव” रे
भूखे पेट गरीबी दर-दर भटके
पंख लग, नेता उड़ जाए रे |