Wednesday, October 9, 2013

घोड़ी दिल्ली जाएगी

कुछ समय पहले की बात है । पहाड़ में एक परिवार लड़की देखने गया था।   लड़के को लड़की पसंद आ गयी और लड़की को लड़का । अब दोनों परिवार  के बिच बातें शुरू हो गयी।
लड़की का पिता :- लड़का कहा जॉब करता है ?
लड़के के पिता :- जी हमारा लड़का दिल्ली में काम करता है।
लड़की का पिता :-लड़का किस कम्पनी में काम करता है ?
लड़के के पिता :-लड़का फलने कम्पनी में काम करता है।
लड़की का पिता :-शादी के बाद हमारी लड़की कहाँ रहेगी ?
लड़के के पिता :-जहाँ हमारा लड़का रहेगा वहीँ आपकी लड़की भी रहेगी।
चलो सब कुछ बात हो गयी कुछ समय बाद दोनों की शादी भी हो ही गयी। अब दोनों लड़का-लड़की,  पति-पत्नी के बंधन में बध गये।
शादी के बाद लड़का दिल्ली जाने को तयार हो ही रहा था कि  उसकी पत्नी ने कहा में भी आपके साथ चलूंगी। अब लड़के को कुछ समझ में नही आया तो उसने आपने माँ बापू जी से पूछा की मैं अपनी पत्नी को साथ ले जा सकता हूँ ?  माँ बापू जी ने कहा अभी तो तुम दोनों की शादी हुई है लड़की ने अभी  हमारी जमीं, खेती,  जयदात नही देखि है  अभी तू अकेले ही जा वरना गांव वाले क्या कहेंगे। लड़का गाँव वालों के भय से अकेला ही  दिल्ली को चला गया और अपनी पत्नी को बोला  छ: महीने बाद  तुम्हे ले जाने आऊंगा। पत्नी परेशान हो गयी। अब उसे घर का सारा काम करना होता है सास ससुर की सेवा साथ-साथ खेतों में भी काम करना पड़ता था जो उसे पसंद नही,  इन सब कामों से वो छुटकारा चाहती थी। छ: महीने बीत जाने के बाद  लड़का वापस आया पत्नी खुश की साफ झलक रही थी की  अब  तो दिल्ली जाना ही है। माँ बापू ने बेटे से कहा बेटा हम भी गांव में अकेले हैं कुछ और दिन बहु को यही गांव में रहने दे हमरी भी सेवा पानी हो जाएगी। बेटा भी क्या करे वह फिर आपने काम के लिए दिल्ली लौट गया।  बहु से अब रहा नही गया। उसे रोज खेतों में काम करना व फिर सास ससुर  की सेवा करनी पड़ती थी जो की उससे रहा नही गया । बहु ने ठान ली की अब दिल्ली जाकर ही दम लुंगी। एक दिन बहु डलिये में कुदाल, दराती ले खेत पर निकल गयी और देख रही थी गाँव का कोई इधर से गुजर तो नही रहा। जैसे ही कोई गांव की एक महिला उस रस्ते से गुजर ही रही थी की बहु ने बिहोश होने का नाटक शुरू कर दिया। बड़ी मुशिकिल से चार लोग खेत से उठाकर घर लेकर आये बहु को पानी पिलाया तो ठीक हो गयी। दुसरे दिन जैसे ही फिर खेत के लिए निकल ही रही थी कि  घर पर ही बिहोस होने का शिलशिला जारी कर दिया। बिचारे  सास ससुर भी क्या करे पराई लड़की जो हुई तुरंत बेटे को घुमाया फ़ोन और सारी बात बता दी। बेटा भी दौड़ते-भागते घर पहुंचा। माँ बापू ने सारा वृतांत बताया की जैसे ही बहु काम करने जाती है यह बिहोश हो जाती  है । बेटा परेशान हो गया। पति  बेचार क्या करे उसे तो पता नही की उसकी पत्नी ये सब dilli जाने के लिए नाटक कर रही है वह घबराकर अपनी पत्नी को डॉ. के पास ले गया डॉ ने सरे चैकप किये पर डॉ को भी कुछ समझ में नही आया,  डॉ ने कहा सायद कमजोरी या कोई अन्दर ही अन्दर इन्हें बात सता रही है डॉ ने एक दवाई की पर्ची और बोल अपनी पत्नी को दवाई समय पर दे देना लड़का भी क्या करे। अपनी पत्नी को घर ले आया। पति के पास छुटियाँ थी नही तीन दिन के बाद उसे फिर वापस जाना था। और पत्नी ने अपना फैसला कर लिया था इस बार साथ जाकर ही छोडूंगी। दुसरे दिन की सुबह हुई  पत्नी खेत में जाने के लिए डलिया पकड़ा ही था कि वह फिर बिहोश होने का नाटक करने लगी। लड़का फिर परेशान हो गया गांव में किसी ने  समझाया की कंही भुत प्रेत का चक्कर तो नही। लड़के ने सोचा सायद हो भी सकता है  उसने उस दिन रात में पूछ करने वाले पुछ्यार का इंतजाम किया। पूछ करने वाला आदिमी जैसे ही अपने आशान पर बैठा की पत्नी ने अपना नाटक फिर शुरू कर दिया और बिहोश हो गयी। होश में लाने के बाद पूछ करने वाले ने  पूछा -
(बहु अपनी नाटक में थी और पूछ करने वाले व्यक्ति इस बात से अंजान था)
पुछ्यार :-  बता कौन है तू ?
बहु:- मैं देवी हूँ
पुछ्यार :- इसे क्यूँ परेशान किया है ?
बहु:- मैं किसी को कोई परेशान करने नही आई हूँ
पुछ्यार :- तो किस लिए आई है
बहु :- सवार घोड़ी दिल्ली जाएगी, दिल्ली जाकर ही घोड़ी ठीक हो जाएगी ये मेरे वचन है
परिवार के सभी लोग बहु को देवी समझ और बहुत का नाटक सही दिशा में जा रहा था।
घर वाले सभी राजी हो गये सभी ने हाँ भर दी कि घोड़ी दिल्ली ही जाये।
अब क्या था गांव में अन्धविश्वास की कमी तो है नही और बहु खुश वारे के न्यारे के न्यारे हो गये ।
दुसरे दिन लड़के को दिल्ली के लिए जाना ही था अब उसे अपने साथ अपनी पत्नी को भी ले जाना पड़ा।
अब सब कुछ ठीक हो गया पत्नी का बिहोस होने का नाटक खत्म हो गया।   गांव में माँ बापू अकेले थे।  बच्चों की याद तो हर किसी को आती ही है जब भी वे अपने बेटे को फ़ोन करते थे तो बहु फिर बिहोशी का  नाटक नाटक कर देती थी कहीं सास ससुर गांव में ना बुलाले और यही शील शिला चलता रहा । क्यूंकि घोड़ी को तो दिल्ली में ही रहना था।
प्रस्तुतकर्ता पं. भास्कर जोशी 'पागल'

1 comment:

vijender said...

ये कहानी तो सच लग रही है ! जागीरी के वक्त इसी को घोड़ी कहते हैं क्या ?

गेवाड़ घाटी