Thursday, July 21, 2016

कहानी-पिता की मज़बूरी

कहानी का पहला भाग सोमवार 18 जुलाई हरदौल वाणी के साप्ताहिक अखबार में प्रकाशित करने के लिए संपादक आदरणीय श्री देवी प्रसाद गुप्ता (श्री जी) साहित्य संपादक श्री ललित मोहन राठौर भाई जी का बहुत बहुत आभार। मित्रो यह कहानी चार भाग में लिखी गयी है। पहल भाग प्रकाशित होने पर आप सभी के बीच है दूसरा, तीसरा तथा चौथा भाग ज्यों ज्यों प्रकाशित होंगे आप सभी के बीच होगा । आप सभी मित्रों द्वारा आशीर्वाद, दुलार सस्नेह बना रहे। यह प्रकाशित होने वाली मेरी दूसरी कहानी है इस से पहले की कहानी भी हरदौल वाणी अख़बार में ही प्रकाशित हुई थी आप सभी का साथ बना रहे। 

पिता की मजबूरी

भाग (१)

 दीवान भाई व उनकी पत्नी  बहुत परेशान थे। परेशानी का कारण था उनका छोटा बेटा 14 साल का रघु। जोकि उसकी बीमारी ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी। अब तक बहुत से डॉक्टरों को दिखा चुके थे बहुत से  जांच करवाये गये पर रिपोर्ट में कुछ नहीं निकलता । डॉक्टर कमज़ोरी बताकर दवाई का पर्चा हाथ में थमा देते। बिस्तर पर लेटे हुए उसे तीन महीने हो चुके थे। दीवान भाई  अपने बेटे रघु  की दिन रात सेवा करते लेकिन रघु की  बीमारी से वह काफ़ी बदहाल हो चुके थे। बीमारी क्या है यह मालूम होता तो अबतक रघु ठीक हो गया होता।

रघु शारीरिक तौर पर कमज़ोर हो चुका था। उसे अंदर बाहर  लाने-लेजाने के लिए हरसमय एक सहारा चाहिए था। दीवान भाई ने क्या कुछ नहीं किया, हकिम, वैद्य से लेकर एक से बढ़कर एक डॉक्टरों को दिखा चुके थे। पर नतीजा कुछ न निकलने से हताश हो चुके थे। एक दिन रघु को देखने के लिए गाँव के कुछ लोग आए उन्होंने  रघु की स्थिति देखी। गाँव के लोग उसके स्वस्थ होने की कामने करते। दीवान भाई गाँव वालों के साथ बैठ अपना दुखडा रोने लगे। गाँव के लोगों ने कहा कि एक बार आप किसी पूछ बाधा (पूछ्यार) करने वाले को क्यों नहीं दिखा लेते। क्या पता क्या हो ? दिखलाने में हर्ज ही क्या है। दीवान भाई इसके लिए कभी तैयार नहीं थे। वे इन सब में विश्वाश नहीं रखते थे लेकिन उनकी पत्नी अपने बेटे की सलामती के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार थी। माँ है ना ! 

दीवान भाई के लाख समझाने पर भी उनकी पत्नी ने उनकी एक न सुनी और ज़िद्द कर बैठी। दीवान भाई ने अपनी पत्नी की ज़िद्द और बेटे की बीमारी के आगे मजबूरन घुटने टेककर हालत से समझौता कर लिया ।

अगले दिन गाँव के बुज़ुर्गों से राय मस्वरा की और उन्हीं लोगों ने पूछ बाधा करने वाली महिला का पता बताया  जो गाँव से एक कोष की दुरी पर रहती थी। दीवान भाई व उनकी पत्नी पूछ बाधा करने वाली महिला के घर पहुँचे। विचार विमर्श करने के बाद, पुछ्यार करने वाली ने बताया कि ' इस परेशानी का कारण आपका  घर ही है इष्टों देवता का रुष्ट होना है। इष्ट (देवता) का कोप सिर्फ़ आपके बेटे पर ही नहीं पूरे परिवार पर पड़ा है। अगर समय पर कुछ ना किया गया तो बाक़ी घर के सदस्यों के साथ भी एसा ही कुछ हो सकता है ।' दीवान भाई ने पूछा कि देवता को कैसे शांत करें?-पूछ करने वाली ने बताया कि आप अपने घर में देव पूजा का आयोजन कराएँ याने  की जागर करवाएँ। अपके गाँव में जागर वाले ज़गरी और ड़ंगरी को बुलाएँ। कैसे करवाना है यह  आप लोग बैठकर तय करलें । दीवान भाई ने बात मानकर पूछ बाधा करने वाली को कुछ पैसे दिए और वहाँ से लौट आया।

घर पहुँचने पर दीवान भाई ने गाँव के जगरी और ड़ंगरी को अपने घर देव पूजा (जागर) के लिए बुलाया। दोनों के पहुँचने पर दीवान भाई ने उनसे कहा कि मैं कल पूछ बाधा करने वाली महिला से मिला और उसने बताया कि हमारे घर का देवता रूष्ट हुवा है क्रोधित है  उसे आप ही शांत कर सकते हैं एसा पूछ बाधा करने वालीने कहा है। अब आप कैसे भी देवता को शांत कीजिए और मेरे बेटे को ठीक कीजिए। डंगरिए और जगरिए के बीच गुपछप बात हो रही थी कि तभी दीवान भाई ने कहा कि मुझे दिन-वार सुझाएँ कब और कैसे करना है।

जगरिए और डंगरिए ने दिन सुझाया और सामान की लिस्ट दे दी। कहा- यह सामान ले आना बाँकि क्या क्या लाना है वह आप मेरे सहायक से पूछ लेना वह आपकी मदद कर देगा। दीवान भाई को उन दोनों ने जो लिस्ट दी, उसके अनुसार सारा सामान बाज़ार से ले आये। सामान अपनी पत्नी को देते हुए दीवान भाई ने कहा - कुछ सामना बच गया हो तो सहायक से पूछ कर आता हूँ। दीवान भाई सहायक के पास गये । वह  लिस्ट दिखाई जो ज़गरी और ड़ंगरी ने दी थी। 
सहायक ने कहा- सारा सामान ले आए हो ना?
दीवान भाई- जी इस पर्चे के अनुसार सब ले आया हूँ। अगर कुछ बच गया हो तो बताएँ ताकि समय पर ला सकूँ
सहायक- असली सामान तो अभी भी छूट ही गया 
दीवान भाई - वह क्या ? उन्होंने जो बताया वह में ले आया हूँ। 
सहायक -इसीलिए उन्होंने मुझसे मिलने के लिए कहा था
दीवान भाई- तो बताएँ क्या सामान छूट गया है
सहायक- ड़ंगरी और ज़गरी के लिए खान पान सही होना चाहिए अगर वे नाराज़ हुवे तो बनने वाले काम और भी अधिक बिगड़ सकते हैं इसलिए उनके खान पान पर विशेष ध्यान रखना होगा।
दीवान भाई-आप बताएँ जो भी लाना हो, मैं लेकर आऊँगा बस मेरा बेटा ठीक होना चाहिए।
सहायक- ठीक है शाम को एक बोतल अलग से ले आना, अभी एक बोतल और एक मुर्ग़े का भुगतान दे ही दो। पूजा के दिन आपके घर पर करना ठीक नहीं होगा इसलिए हम अपने घर पर ही मुर्ग़ा बना लेंगे।
दीवान भाई ने जेब से दो हज़ार रुपए निकाले और सहायक को देकर अपने घर लौट आए दूसरे दिन पूजा के लिए तैयारी भी करनी थी।


भाग (२)

सुबह के चार बजे थे। दीवान भाई उठे, घर के बाँकि सदस्यों को भी समय पर जगा लिया गया ताकि समय पर घर के सारे काम हो जाए। दीवान भाई और उनकी पत्नी ने सुबह के आठ बजे तक घरेलु काम काज सब निपटा लिये। अब वे जागर की  तैयारी करने में जुट गये। इत्तेफाक  से उन्हें याद आया कि सहायक ने शाम  के लिए एक बोतल  शराब की और मँगाई थी। दीवान भाई ने अपनी पत्नी से कहा मुझे अभी बाज़ार जाना होगा, कुछ सामान छूट गया है उसे ले आता हूँ। तब तक तुम जागर के सारे सामान को एक टोकरी में लगाकर रख दो ताकि जब वे आएँ तो सारी सामग्री उन्हें देने में सुविधा होगी।
दीवान भाई ने झोला लिया, बाज़ार की तरफ़ चल पड़े । उधर ड़ंगरी, ज़गरी और सहायक अपनी पार्टी की तयारी में जुट गए। पहले ही वे दीवान भाई से एक बोतल और मुर्ग़े का पैसा ले चुके थे। दोपहर से ही उनका मुर्ग़ा-सुर्गा बोतल-सोतल खुल गयी। उन लोगों के हाथ में आज अच्छा ख़ासा मुर्ग़ा (दीवान भाई) जो फसा था। इधर दीवान भाई उनके शाम के पीने खाने के लिए एक बोतल शराब और ले आए।

शाम के छः बजे होंगे, तभी वे तीनों शराब पीकर-खा कर आ पहुँचे। दीवान भाई ने  उनकी आव भगत की, सम्मान के साथ आशन पर बिठाया। उनसे चाय नास्ते के लिए पूछा गया पर उन्होंने मना कर दिया और कहा- आज हमारा व्रत है बस एक बर्तन में हमें पीने के लिए पानी दे दें।
उधर रघु ने अपनी पीड़ा रोकर सबका ध्यान अपनी ओर खीचने की  पुरजोर कोशिश की, ताकि वह भी इस हलचल का कारण जान सके|  उसे बाहर जाना था पर घर के सभी सदस्य शाम  की तयारी में व्यस्त  थे। किसी को उसका ध्यान नहीं आया। जब उससे सहन नहीं हुआ तो वह रोने लगा। रोने की आवाज़ सुनकर उसकी माँ दौड़ती हुई पहुँची। माँ ने उसे देखा तो उसे बाहर ले आयी, रघु को बाहर आता देख दीवान भाई के आँखों से आँसूँ टपक पड़े। मन ही मन सोच रहे थे जिसके लिए यह सब ताम झाम हो रहा है आज मैं उसी को ही भूल गया हूँ कैसा बाप हूँ मैं, अपने बेटे की देख रेख तक न कर सका? वे अपने आप को कोषने लगे। दौड़ते हुए दीवान भाई रघु के पास पहुँचे, अपनी पत्नी से कहा- जाओ तुम घर के और काम देखो, रघु को मैं देखता हूँ।थोड़ा देर रघु को बाहर घुमाने के  बाद उसे बिस्तर पर लेटा दिया । उधर सहायक ने दीवान भाई को आवाज़ दी-दीवान भाई.... ओ दीवान भाई .......। दीवान भाई दौड़ते हुए उनके पास पहुँचे, सहायक ने उन्हें अपना कान नज़दीक करने  को कहा। सहायक कान में फुसफुसाते हुए कहा -आपसे जो एक बोतल अलग से शराब की मँगाई थी उसे मुझे चुपके  से दे दें।
दीवान भाई - जी ठीक है अभी लाया।
दीवान भाई अंदर गये और छुपते छुपाते वह शराब की बोतल उन्हें थमा दी।

ज़गरी, ड़ंगरी और सहायक ने लोगों की नज़रों से छुपाते हुवे शराब की बोतल खोल ली । वे अपने घर से ही झोले में वे मुर्ग़े का माँस रख लाये थे| उन्होंने अपने झोले से मुर्ग़े की टाँग निकाली, मुँह पीछे की ओर किया और झट से शराब गटक गये ताकि कोई देख न ले। कई देर तक यह नाटक चलता रहा, उधर दीवान भाई और उनकी पत्नी ने भोजन का पूरा इंतज़ाम कर लिया था । रात के आठ बज गए थे। दीवान भाई की पत्नी ने कहा-जाओ जी ! ज़गरी, ड़ंगरी को खाने के लिए बुला लाओ, सबकुछ तैयार हो गया है।
दीवान भाई उन तीनों के पास गए और भोजन करने के लिए आग्रह किया। सहायक ने अपने झोले में झाँका, उसमें अभी भी शराब की पूरी बोतल भरी हुई थी मात्र एक पव्वा ही ख़त्म हुआ होगा। सहायक ने दोनों के कान में फुसफुसाते हुए कहा-अभी तो पूरी बोतल भरी हुई है एक-एक पैग और मार लेते हैं फिर चलते खाने को।
बहाना बनाते हुए ड़ंगरी ने कहा-दीवान भाई, बस आधा घंटा और रुक जाओ, मैंने अभी संध्या पूजा नहीं की, मैं पूजा कर लूँ फिर साथ में भोजन करते हैं।
दीवान भाई - जी ठीक है।
सहायक ने झोले से बोतल निकाली और शराब फिर गटक गये। बीच बीच में झोले से माँस के टुकड़े निकालते और झट से मुँह में दबा लेते।
जागरिए ने सहायक से कहा- अभी आधा बचाकर के रखना, रात में ज़रूरत पड़ सकती है। सहायक ने वैसा ही किया, शराब की बची हुई बोतल पर कसकर ढक्कन लगा दी गयी और झोले में डाल दिया गया। घर के किसी एक सदस्य से कहलावा भेजा कि ड़ंगरी ने अपनी पूजा कर ली  है अब वे खाने के लिए आ रहे हैं।

उनके भोजन के लिए चौकी लगायी गयी। तीनों के लिए भोजन परोसा गया। भोजन करने में ही घंटा भर से अधिक बीता दिया। नशे से अब उनकी ज़बान भी लड़खड़ाने लगी थी। जैसे तैसे भोजन करने के बाद वे उठने लगे तो वे सही से खड़े नहीं हो सके थे। शराब के नशे से उनके पाँव सीधे ने पड़कर आड़े तिर्छे पड़ने लगे। जगरिए ने दीवार का सहारा लिया और लड़खड़ाते हुए बोला-आप लोग भी जल्दी जल्दी खाइए फिर पूजा शुरू करते हैं। एक तसले में अलग से आग जल दीजिए उसकी राख पूजा में काम आएगी। दीवान भाई गये और तसला ले आए। राख बनाने केलिए उसमें लकड़ियाँ जला दी। उनकी पत्नी ने सभी को खाना खिलाया, चूल्हा चौकी, बर्तन साफ़ किए, यह सब करते-करते रात के साढ़े दस बज चुके थे।
घड़ी देखकर ज़गरी ने  आवाज़ देते हुए दीवान भाई व उनकी पत्नी को बुलाया, और कहा-समय बहुत हो गया है जल्दी जल्दी तयारी करो, पूजा का सामान ले आओ। दीवान भाई व उनकी पत्नी पूजा का सामान ले आये और सहायक को दे दिया।
ज़गरी, ड़ंगरी और सहायक के हालात देखकर यह नहीं लगा कि आज देव पूजा होनी है बल्कि एसा लग रहा था जैसे कि राक्षस, भुत पूजा की तैयारी हो रही हो। इसबीच जैसे तैसे देव पूजा करने का विधि विधान शुरू किया गया।जागर लगाने की तयारी की गयी।

भाग (३)

जागर (देव पूजा) देखने के लिए गाँव वालों का जमावड़ा लग चुका था। कमरे का आधा हिस्सा ठसा ठस भर गया। कुछ लोग बाहर बैठे हुए थे, कई लोग दरवाज़े से झाँक रहे थे, तो कई खिड़की से। कमरे के बाक़ी हिस्से को सहायक ने रेखा खिंचीकर पाट दी थी। जिससे कि लोग उस आधे हिस्से में घुस ना सकें। वे तीनों एक क़तार में बैठे हुए थे। तभी सहायक ने लड़खड़ाते हुवे ज़बानसे आवाज़ लगाई- दीवान! अरे वो दीवान!
शराब के नशे में अब वे अपने आपको सबसे बड़ा आदमी समझने लगे थे। वास्तविकता भी यही थी, अगर वे न हों तो जागर कैसी! बाहर से दीवान भाई दौड़ते हुए अंदर पहुँचे। सहायक से कहा - जी आपने बुलाया?
सहायक- अब देर दार किस लिए। आओ और अपनी पत्नी, बेटे को भी साथ लेकर पूजा में बैठो, साथ ही वह सामान की टोकरी लेकर के आओ,  जिसमें पूजा का सामान रखा हुआ है और ड़ंगरी के लिए एक अलग सा आसन।
दीवान भाई ने अपनी पत्नी से कहा- अरे भागवान सुनती हो! बाहर का ये सब काम झाम छोड़ो, तुम्हें अभी पूजा में बैठना है और पूजा की टोकरी सजाकर तुमने जो रखी थी उसे जल्दी ले आओ। मैं रघु को लेकर आता हूँ कहीं सो न गया हो।

इसबीच दीवान भाई अपने बेटे रघु को ले आए और उनकी पत्नी पूजा की टोकरी। सहायक सामान सजाने लगा। देवता (डंगरिए) के लिए आसन लगाया गया। जागर की रस्म शुरू होने लगी। जगरिये ने अपने झोले में हाथ डाला पर शराब के नशे में उसका हाथ  बार बार झोले में न जाकर आडा तिरछा जा रहा था। कई बार प्रयास करने पर भी हाथ झोले में नहीं घुसता। अन्ततः झोले को ही उल्ट दिया। उसमे से हुडकी (देव पूजा (जागर) में बजाने वाला वाद्ययंत्र) अलग छटक़ गयी। हुड़कि को अपने हाथ में ले लिया और जैसे तैसे हुडुकी को दुरस्त किया। सहायक को एक कांसे की थाली दी गयी, उसने भी अपने झोले से दो छोटे छोटे पतले से डंडे निकाल लिए जिससे काँसे की थाली को बजाया जा सके। सहायक ने दीवान भाई से कहा- एक आरती की थाली लेकर आओ, बाहर तसले में जो आग जलाई थी उसमें राख तैयार हो गया होगा किसी से कहकर एक थाली में राख और एक थाली में चावल मंगाने को कहो। लेकिनदीवान भाई ख़ुद ही गये, एक थाली में राख और एक थाली में चावल ले आए।

जागर का दरबार सज चूका था। सहायक ने दीवान भाई को बुलाया और कहा की अपनी पत्नी और बेटे को ड़ंगरी के सामने बिठाओ।
सहायक ने आरती की थाल सजाई. धुप दीप जलाकर, उसे दीवान भाई के हाथ में दे दिया और कहा-आप दोनों आगे आकर देवता की (डंगरी) पूजा करो, आरती उतारो। सहायक जैसे जैसे बताता गया, दीवान भाई वैसे वैसे करते गये। सहायक ने डंगरी के आगे राख और चावल की थाली रख दिया, अपने गुरु (जगरिये) से कहा- गुरु सब रेडी है । अब आप चाल दो (कार्यक्रम को आगे बढ़ावो)

सहायक की बात सुनकर जगरिये ने हुड्किया हाथ में लिए और बजाना शुरू किया, हुडुका जैसे ही बजाने लगा तो उसके आवाज से कमरा हुड्किए से गूँज उठा- भम-पा-पकम-भम-पा-पक़म। साथ में सहायक ने कांसे की थाली को उल्ट कर उसे भी बजाने लगा। अब हुडकी और थाली एक साथ बज रथे। हुड़का और थाली से कमरा गूँजने लगा- भम-पा-पक़म-भम-पा-पक़म, टन-टना-टन-टन-टना-टन, दोनों एक साथ बज थे।

घर का माहौल एकदम गमगीन हो चूका था। एक दम शांत, कमरे से चूँ तक आवाज़ नहीं उठ रही थी, सिवाय हुड़कि और थाली के। वे दोनों शराब के नशे में हुडकी और थाली बजाये जा रहे, लगभग पंद्रह मिनट तक ऐसे ही चलता रहा। सहायक अभी भी थोडा होश में था पर जग़री को शराब का अधिक ही नशा चढ़ा हुआ था। वह नशे में हुड्किए को बजाए जा रहा था।  इधर सहायक ने जगरिये को दो चार बार कोहनी मारी और कहा अब देवता को पुकारो, आगे की चाल लगाओ..............।

नशे में जगरिए ने देवता को पुकारने की जागर लगायी। सहायक भी पीछे पीछे से लयकार गा रहा था। लेकिन दोनों की जिह्वा शराब के नशे में न जाने क्या बड़ बड़ा रही थी। कुछ भी साफ़ साफ़ नहीं सुनाई दे रहा था। ड़ंगरिया अपने आसन पर एक टक़ बैठा हुवा था। प्रकट होने वाले देवता की अभी तक कोई हलचल नहीं हुई। जागर धुन लगाते हुए एक घंटे से अधिक समय बीत गया था। अंदर बैठे गाँव के लोग अब बड़बड़ाने लगे थे। तभी सहायक ने अपने गुरु जगरिए को फिर से कोहनी मारी।
सहायक- गुरु देवता तो प्रकट नहीं हो रहा, क्या किया जाय।
जगरिया- एक बार चाल, ज़ोर और ऊँची आवाज़ में देकर देखते हैं।
जगरिया और सहायक ने फिर एक बार जागर धुन ज़ोर और ऊँची आवाज़में लगाई। हुड़की और थाली को ऊँची आवाज से बजाया गया पर देवता था कि टस का मस ना हुवा, कोई भी हलचल नहीं दिखी। इसबार फिर सहायक ने जागरिए को कोहनी मारी, मूँड़ी हिलाते हुवे इशारा किया, कि गुरु कुछ नहीं हुवा। जगरिए ने जागर लगानी ठप कर (रोक) दी। थाली और हुड़की का बजना बन्द हो गया। कमरे में गाँव वालों की सड़बुड़ाहट होने लगी, इस बीच दीवान भाई बहुत चिंतित होने लगे, उन्हें लगा क्या जो हो गया।
दीवान भाई ने पूछा - क्या हुवा ? देवता प्रकट होगा की नहीं?
जगरिया- तुम्हारा देवता बहुत रूष्ट हुआ है। इसी लिए प्रकट नहीं हो रहा है। लेकिन फिर एक बार कोशिश करके देखते हैं तब तक थोड़ा चाय पानी का इंतज़ाम कर लो। (बहाना बनाते हुए)

दीवान भाई की पत्नी जागर से उठी, चाय पानी का इंतज़ाम करने लगी। उधर सहायक के झोले में अभी भी आधा बोतल  शराब बचा हुआ था। उसे देखते हुए सहायक ने जगरिये से कहा गुरु क्यों न हम भी इसे ख़त्म कर ही दें।
सहायक, जगरी और ड़ंगरी के बीच इशारा हुआ और वे तीनों बाहर जाने का बहाना बनाकर उस आधे बोतल शराब को भी चट कर आए। सभी को चाय पानी पिलाया गया। पुनः एक बार फिर जागर लगायी गयी। वही सब फिर से दोहराया गया। देवता की आरती करना, थाली और हुड़की का बजना। जागर धुन से देवता को पुकारना। इतना सबकुछ करने के बाद भी देवता प्रकट ही नहीं हुवा। भला होता भी कैसे। शराब-मुर्ग़ा खाने के बाद देवता कहाँ आने वाले थे, जबकि एसे में राक्षषों की सम्भावना और अधिक बढ़ जाती है।

देर बहुत हो चुकी थी। रात के एक बज गये होंगे। रघु भी यह सब देखकर चिड़चिड़ा सा हो गया था, वह बेचारा किसी से क्या कहता। एकाएक वह रोने लगा। इधर ज़गरी, ड़ंगरी और सहायक ने आपस में इशारा करते हुए जागर लगाना स्थगित कर दिया और यह सब दूसरे दिन के लिए टाल दिया गया।

भाग (४)

सुबह के चार बजे रोज़ की तरह दीवान भाई उठे, घर के कामों में अपनी पत्नी के साथ हाथ बटाने लगे। सुबह की साफ़ सफ़ाई पूजा पाठ करते करते 8 बज गये थे। ड़ंगरी, ज़गरी और सहायक ये तीनों रात में यही दीवान भाई के यहाँ ठहरे हुवे थे। जब वे उठे तो वे एक दूसरे का मुख देख रहे थे, सायद पहले दिन जो उन्होंने किया था उससे वे लज्जित से हो गये थे। उन्हें भी ठीक से याद नहीं कि बीते रात में क्या किया था। कैसे कैसे ड्रामे किए थे। ज़गरी ने सहायक से कहा-कल रात देवता प्रकट हुवा कि नहीं। सहायक तब इन दोनों से थोड़ा होश में था उसने बीती रात की सारी कहानी बयां की। बताया कि आपने आज के लिए जागर टाल दी थी। उन तीनों की जब आपस में बातें हो रही थी कि तभी दीवान भाई ट्रे में तीन कप चाय ले आये। चाय हाथों में थमाते हुवे दीवान भाई ने कहा- गुरु शाम के लिए क्या तयारी करनी है? बजार से कुछ लाना वग़ैरह हो तो बता दीजिए। मैं बाज़ार जाकर अभी ले आता हूँ।
ड़ंगरी ने बात टालते हुवे कहा- नहीं नहीं जो सामान आप पहले से लाए हुए हो उसी से काम हो जाएगा।
दीवान भाई चाय की ट्रे लेकर वहाँ से बाहर चले आए।
दीवान भाई के चले जाते ही सहायक ने ड़ंगरी से कहा- क्या गुरु ! यह मौक़ा बार बार नहीं आता। शाम के लिए भी एक बोतल शराब मँगवा ही लेते ।
ड़ंगरी- देख भाई ! दीवान भाई पहले से ही अपने बेटे के लिए बहुत परेशान है। पहले ही डॉक्टर वग़ैरह में काफ़ी रूपैया पैसा गँवा चुका  है और फिर इस जागर में भी बहुत रुपए पैसे ख़र्च हो चुके हैं अगर कल को भगवान न चाहे उसके बेटे को कुछ हो गया तो यह पाप का बोझ लेकर हम कहाँ जाएँगे। उन लोगों ने अब हमपर आस जगा रखी है। एसे में भला .......ना बाबा ना । मेरा मन अब नहीं मान रहा है।
ज़गरी- हाँ हाँ बिलकुल सही कहा। आज शाम को एसा कुछ नहीं होना चाहिए। रात गयी सो बात गयी।

शाम होते होते जागर की तयारी शुरू हो चुकी थी। खाना पीनी  समय से होने लगा था। शाम के छः बजे थे कि खाना पानी के लिए आवाज़ लगाई गयी। सभी सदस्यों ने भोजन किया। और साफ़ सफ़ाई करते करते शाम के आठ बज गये थे।
वे तीनों ने आज शराब को छूवा तक नहीं। जैसे कि शराफ़त पर उतर आए हौं। कुछ देर बाद वे तीनों अंदर गए और देव पूजा जागर की तैयारी में जुट गए। देवता का आसान लगाया गया। जग़री और सहायक ने अपना आसान लगाने के बाद अपने साज हूड़किया ठीक करने लगे। सहायक ने भी काँसे की थाली और उसे बजाने के लिए दोनों डंडे निकाल लिए। गाँव वालों का जमावड़ा भी लगने लगा था। आज पहले दिन से अधिक गाँव वालों की भीड़ देखने के लिए जमा हो गई थी। दीवान भाई और उनकी पत्नी बाहर बिखरे हुए सामान को संभालने में जुटे थे कि तभी सहायक ने आवाज़ लगाई- दीवान भाई अरे ओ दीवान भाई! पूजा की तयारी हो गयी है आप और अपनी पत्नी, बेटे समेत पूजा में बैठिए, कल की तरह एक थाली में राख और एक थाली में चावल ले आइए।
दीवान भाई एक थाली में चावल और एक थाली में राख रख लाए। दीवान भाई की पत्नी बेटे रघु को गोद में उठा ले आइ। गाँव वालों की भीड़ बीते दिन से अधिक होने से कमरे में बैठने की जगह कम पड़ गयी। दीवान भाई उनकी पत्नी और बेटे के लिए बड़ी मस्सकत के बाद बैठने की जगह बन पायी। ड़ंगरी ने अपने आसान को शीश झुकाकर नमन करते हुए उस आसन पर बैठ गया । सहायक ने पूजा की थाली सजायी, दीप जलाया गया और उसे दीवान भाई के हाथ में थमा दिया। कहा - दीवान भाई आरती की थाल लो और ड़ंगरी की पूजा आरचना कर आरती उतारो ।  सहायक जैसे जैसे बताता गया दीवान भाई उसे दोहराते गये। सहायक ने दीवान भाई से आरती की थाल वापस ली, उनसे हाथ जोड़कर बैठने को कहा । दीवान भाई व उनकी पत्नी और बेटा हाथ जोड़कर बैठ गए। रघु कमज़ोरी की वजह से बैठ में सामर्थ नहीं था इसलिए वह अपनी माँ की गोद में सर रख कर लेट गया।

ज़गरी ने अपने हुड़कि में थाप दी और सहायक ने काँसे की थाली में। कमरे में बैठे गाँव के लोग   एकदम शांत हो गये, आवाज़ की चूँ तक नहीं हो रही थी। जग़री और सहायक ने आपस में इशारा हुवा और एक साथ हुड़कि और काँसे की थाली बजने लगी- भमपा पक़म भमपा पक़म, टन टनाटन टन टनाटन,भमपा पक़म भमपा पक़म, टन टनाटन टन टनाटन।
हुड़कि के बजने के साथ साथ जगरिए ने जागर धुन (देवता को पुकारने का मंत्र) गाना शुरू कर दिया, सहायक भी साथ में लयकार गया रहा था। बाहर खड़े गाँव के लोग एक के ऊपर एक चढ़कर अंदर झाँक रहे थे। हुड़किये और थाली के बजने की आवाज़ कभी धीमी होती तो कभी अचानक से तेज़ हो जाती। जगरिए और सहायक ने एक और ज़ोर आवाज़ धुन के साथ हुड़कि और थाल बजायी तो डँगरिए में हलचल होने लगी। सहायक और ज़गरी ने एक बार फिर से ज़ोरदार हुड़कि थाल बजाई गयी। देवता प्रकट हो गया। वह शरीर से हिलहिलाने लगा। धीरे धीरे वह नाचते "जज़िया जय मामू" बोलते हुए राख की थाली में हाथ फेरने लगा। सहायक ने आरती की थाली में दीप जलाया और दीवान भाई से कहा आरती उतारो देवता प्रकट हो गये। दीवान भाई और उनकी पत्नी खड़े होकर आरती उतारने लगे। देवता कभी राख की थाली में हाथ फेरता और कभी उस राख को फूँक मारकर दीवान भाई और गाँव वालों की तरफ़ उड़ता।

दीवान भाई ने देवता से कहा -हे इष्ट। हे कुलदेवता! हम नर बानर हैं ग़लती हम ही करते हैं कभी अनायास ग़लतियाँ की हो  तो हमें क्षमा करें । ग़लती हमने की होगी परंतु भुगतना मेरे बेटे को पड़ रहा है कृपा कर हमें क्षमा करें और मेरे बेटे को स्वस्थ करें।
देवता- (अवतरित हिलहलाते  नाचते हुवे) तूने मेरी पूजा की मैं ख़ुश हूँ परंतु इतने वर्षों से तुझे मेरी याद तक नहीं आयी। यही कारण था कि तेरे बेटे को दुःख दिया।
दीवान भाई- हे प्रभु हम अज्ञानी हैं आपके ही बाल बच्चे हैं हमें क्षमा कीजिए मेरे पुत्र पर दया कीजिए
देवता- अगर तू रोज मेरे मन्दिर में धूप दीप जलाएगा तो में सब ठीक कर दूँगा क्या तू एसा कर पाएगा?
दीवान भाई- हे देव ज़रूर करूँगा बस आप मेरे बेटे को ठीक कर दीजिए जो आप कहोगे वही करूँगा।
देवता- ला कहाँ है तेरा बेटा, इधर ला मेरी गोद दे।
दीवान भाई ने रघु को देवता के आगे रख दिया । देवता ने रघु उठाया और अपने गोद में रख दिया। राख से भरी हुई थाली से मुट्ठी भर राख उठाई रघु के माथे पर लगा दिया। और कहा - जा आज के बाद तू ख़ुश रह। कोई भी बीमारी तुझे छू नहीं पाएगी। यह कहते हुए देता चला गया। ज़गरी ने दीवान भाई को दिलाशा देते कहा- दीवान भाई अब चिंता की कोई बात नहीं देवता ने आपके सारे रास्ते खोल दिए हैं। अब आपका बेटा जल्द स्वस्थ हो जाएगा। चिंता की कोई बात नहीं।

जागर अच्छे से सम्पन्न  हो गया था। डंगरी, जगरी और सहायक रात में वहीँ रुक गये हुए थे । सुबह जब वे उठे तो अपना झोला उठाया और दीवान  भाई से जाने की अनुमति माँगी। दीवान भाई ने कहे अनुसार अच्छी ख़ासी दाम दक्षिणा दी और चले गये।

महीना भर बीतने को था। रघु की तबियत सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही थी। दीवान भाई की चिंता, उनके माथे की सिकन साफ़ देखी जा सकती थी। रघु की देख रेख में वे पिछले कुछ रातों से सोए  नहीं थे। सोने के लिए जाते भी तो  रघु के बारे में सोच सोचकर नींद ग़ायब हो जाती। सुबह से ही बाहर आज मौसम का मिज़ाज बिगड़ा हुआ था। काफ़ी तेज़ बारिस हो रही थी। बादलों की गड़गड़ाहट व ज़ोरदार बिजली चमक रही थी। दीवान भाई खिड़की के पास कुर्सी लगाकर बैठ गए। अपने बारे में सोचना मानो वे तो भूल ही गये। ध्यान हमेशा रघु की तरफ़ ही जाता। सोचते भी कैसे, अंदर बीमार बेटा जो लेता था। इतना रुपया पैसा भी नहीं बचा था कि शहर जाकर अच्छे से डॉक्टर को दिखा सके। पहले ही काफ़ी डॉक्टर को दिखा चुके थे। दवाई पानी में काफ़ी ख़र्च हो चुका था । शेष जितना पैसा बचा था वह जागर में ख़र्च हो गया। नौबत यहाँ तक आ गयी कि जिसदिन मज़दूरी करते उसदिन चूल्हा जलता। मगर बारिस होने की वजह से आज काम पर नहीं जा सके। कई रातों की नींद आँखों पर भारी पड़ रही थी। रघु की चिंता में अपने आप ही अकेले-अकेले बड़बड़ाए जा रहे थे। तो कभी भगवान से दुवा माँगते कि मेरा बेटा ठीक हो जाए। चलने फिरने लग जाए तो वे उसके साथ घूमने जाएँगे ख़ूब मस्ती करेंगे। एकाएक उनकी आँखें भर आइ । बेटे रघु के स्वस्थ होने की कामना करते हुए ना जाने कब उनकी आँख लग गयीं और वे कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो गये।
भास्कर जोशी........................

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