Tuesday, September 25, 2012

क्या है तू ?


सोच कुछ सोच
क्या है तू ?
करना क्या चाहता है तू ?
तेरी मंजिल है क्या ?
इस दुनियां की भीड़ में
कहीं खो न जाना तू ?
कर मन को एकत्रित
कुछ सोच ऐसा
कर कुछ ऐसा
कि दुनियां तुझे पुकारे
अपनी एक राह पकड़
राह को अपनी मंजिल बना
कर दे कुछ ऐसा
जिस से जीवन सफल हो जाय.....भास्कर जोशी

Sunday, September 23, 2012

दिल्ली बटी घर दाज्यू

राती परी-ब्याव तक
पहाड़ की याद एंछो
इंतजार करणोयी दाज्यू
दीपावली आली
पहाड़ जाणोक मौक मिल जालौ दाज्यू ।
पकडुल अपुण झोला झिमटा
पहुँच जौंल आनन्द विहार दाज्यू
टक-टकी देखा बेर
देखुला दिल्ली-गनाई गाड़ी दाज्यू
बैठ जुला सिट मा
ड्राइवर आलो गाड़ी चलालो
हीट द्यूला पहाडा दाज्यू ।
गजरोला पहुँचुल
काशीपुर पहुँचुल
पहुँच जुला रामनगर दाज्यू
लियुल रामनगर बटी
द्वि टुकुड मिठैका
गूइं मीठ लागुंला
घर पना मैसुकें दाज्यू ।
रामनगर बटी गाड़ी चली
हीट दियो पहाडा
सोर्याव आलो
भात्रोजखान आल
आलो भिक्यासैन दाज्यू
रिम-झिम उज्याव मैजी
पहुंची जुला मासी दाज्यू ।
मासी बटी द्वि मैल दीपाकोट
उज्याव छिना
पहुंची जुला घर दाज्यू ।

Monday, September 10, 2012

मेरो पहाडा (कुमाउनी गीत )


हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा
धन्य मेरो जन्म भूमि
उत्तराखण्ड देव भूमि
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा …………………….

पहाड़े देवी-देवत्याओं,
डान-काना में वासा,
इष्टों में इष्ट छिना
गोल्ज्यू महा देवा ।
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा ..................

म्यर पहाड़ ऊँचा डाना
बर्फीलो पहाडा ........
के भलो छाजी राछो
हरियाली छोरा ...
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा .....................

तल श्यारी मल श्यारी
खेत टुकूडी छन
खेतों मैजी मनुवा बोती
मनुवे की बहारा
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा ........

ट्याडा-म्याडा गौं बाटा
गौं दूर बसी छन
के भलो म्यर गौं बाखेई
है रो छो छमा छम
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा ........

रंग रंगीलो कुमाऊं म्यरो
छैल छबीलो गढ़वाल
पहाड़ में जनमा मेरो
सुफल हैगो भागा
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा .....

Tuesday, September 4, 2012

"ठीटों" की याद आज भी आती है

आज भी याद है कैसे भूल सकते हैं बच्चपन । स्कुल से छुट्टी के दिन की प्रतीक्षा करते थे कि रविवार आये । याद है अभी भी छुट्टी का दिन था मैं घर से 7 - 8 कट्टे लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा । "ठीट" ढूढने इतना दूर निकल गया की मैं रास्ता भी भूल गया असोज का महिना था जंगल की घास इतनी बड़ी थी की रस्ते का पता ही नही लग पा रहा था  । सोचा पहले जिस कम के लिए आया हूँ वो काम पूरा कर लूँ । ठीटों की तलाश शुरू कर दी, मैं एक रौल (छोटा गधेरा ) में के पास पंहुचा । मुझे इतने ठीट मिल गये तो मैं ख़ुशी से पागल हो गया । अब क्या था जी मैंने कट्टे भरने शुरू कर दिए जितने भी कट्टे लाया था सभी वहीँ पर भर गये । अब चिंता होने लगी में इन्हें कैसे ले जाऊं । फिर थोडा देर बैठकर विचार किया कैसे उपाय निकाला जाय चारों ओर नजर घुमाई तभी मुझे एक चिड के पेड़ में सुखी लकड़ी पर एक टंगी हुई रसी दिखाई पड़ी सोचा ये काम भी कर लूँ मैं फिर उस लकड़ी को तोड़ने में लग गया काफी मुसीबतों के साथ आखिर कार प्रयास सफल रहा में उस लकड़ी को तोड़ने में सक्षम रहा । फिर में उसे उसी स्थान पर ले आया जहाँ पर मेरे ठीटों से भरे हुए कट्टे रखे थे । अब मन थोडा विचलित हो गया मैं डरने लगा क्यूँ की में बहुत दूर निकल आया । कुछ देर सोचने के बात में एक उंछे पत्थर पर चढ़ा और वहां से रस्ते की तलास जारी की । दूर मुझे एक बड़ा सा पत्थर दिखाई पड़ा वो पत्थर में गाय चराते वक्त हमने उसमें खूब खिचड़ी पकाई थी । उसी को लक्ष बनाते हूँ एक कट्टा ठीटे और तोड़ी हुई लकड़ी को घसीटते हुए उस पत्थर तक पहुँच ही गया । सभी कट्टों को उस पत्थर पर इक्ट्ठा कर फिर मैं एक-एक कर आशानी के साथ घर ले गया । आज भी मुझे वो दिन याद आते हैं ।

Monday, September 3, 2012

संकट से घिरा पहाड़


मडराता संकट मेरे पहाड़ पर ,
साये के तरह पड़ा मेरे पहाड़ पर

निराश  होकर  वीरान सा खड़ा ,
विपदाओं में  अपनों ने छोड़ा ,

प्रकृति ने  नदी-नालों को  सुखा किया ,
खेत-खलियानों को बंजर किया,

जल स्रोतों ने भी  साँस तोडा,
बूंद-बूंद के लिए तरसा  रहा,

जंगल आग से लिपटा रहा ,
चौतरफा मार से झेल  रहा,

संकटों में घिर रहा है पहाड़,
आओ मिलकर एक संकल्प लें,

पहाड़ को संकट से उबारेन का,
हरी-भरी खुशहाली लाने का,

पहाड़ को फिर से जगाने का
वही पहले जैसा स्वर्ग बनाने का ।

गेवाड़ घाटी