Monday, December 17, 2012

दाज्यू बोले मैं पहाड़ी


पहाड़ी दाज्यू, मिले पहाड़ी
कुछ पहाड़ी ऐसे मीले
ठुल्ला -ठुल्ले खूब मिले
दाज्यू कहते- मैं  पहाड़ी ।

देखो कैसे मिले पहाड़ी दाज्यू
कहते हैं अपने को पहाड़ी
कई पहाड़ी फैंकते मिले
कई मीले पेशावर
दाज्यू कहते- मैं  पहाड़ी ।

मैं भी सोचा पहाड़ी दाज्यू
कैसे कैसे मिले पहाड़ी
न कभी पहाड़ को समझे
न समझे पहाड़ी को
फिर भी कहते  - मैं पहाड़ी ।

मैं भी अचरज में दाज्यू
पहाड़ी ने पहाड़ छोड़ा,
पहाड़ी सभ्यता छोड़ी
मातृ भाषा भी भूल गये
तब काहे न बोले दाज्यू - मैं पहाड़ी ।

मुझे भी रोना आता दाज्यू
जब पुरखों कि कुड़ी छोड़ी
तोड़े पुरखों के सपने
बंजर कर दिए उनके हरे भरे खेत
अब क्यूँ ने बोले दाज्यू - मैं पहाड़ी ।

दाज्यू कहना है पहाड़ी अपने को
एक बार पलट के देखो  पहाड़ को
लौटा दो पहाड़ की जगमगाहट को
खिल उठे पहाड़ की संस्कृति-सभ्यता-भाषा
फिर बोलना  दाज्यू - मैं पहाड़ी ।

Monday, December 10, 2012

पुकारता है पहाड़


तुम हो  कहाँ तुम हो  कहाँ,
तुम्हें अपना पहाड़ पुकारता है।
सब कुछ सुना सुना सा हो गया,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

आस लगाये खड़ी है कबसे,
ढूंढ़ रही है हर पगडण्डी पर।
दिन रात आस बिठाये रहती है,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

जब थे तुम नन्हे-मुन्हे से बच्चे,
खेला करते थे इसकी  आँचल में।
क्या अब तुम्हें वो याद आती नही,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

छोड़ कर गए तुम जिस दिन,
बहुत रोई थी वो  उस दिन।
दिन बीते महीने बीते सदियाँ बीत गयी,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

क्या तुमको उसे तडपाने का,
अपनी जन्म भूमि को तरशाने का।
यही  एक मार्ग मिला था क्या,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

सोचा था अब के बर्ष आओगे तुम,
न तुम आये न तुम्हें उसकी याद आई।
कब तक ऐसे ही तडपाओगे तुम,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

अब तो बहुत खेल लिया,
आँख मिचोली का खेल।
अब तो आ भी  जाओ तुम,
तुम हो  कहाँ तुम हो  कहाँ ।।


याद औण लागी रे, म्यर पहाड़ की ।
दिन दुगुण रात चौगुण, लागनी मिगें जी ।।
कसी काटू दिनों की, यूँ मेहण लागनी।
मेहणा-मेहण मिगें,  साल लागनी ।।
याद औण लगी रे.................
.....................................
by पं. भास्कर जोशी


कल में अपने एक दोस्त से मिला
किस से मिला पूछना मत
वह मुझे किसी के यहाँ ले गया
किसके यहाँ ले गया गया पूछना मत
वहां दो चार लोग और मिल गये
कौन-कौन मिले पूछना मत
बात ऐसे हुई हँसते हँसते लोटपोट हो गये
क्यूँ हँसते रहे पूछना मत
उस लड़के को सुन सुन कर
मेरा भी दिमाग भनभनाया
मैंने दो दमुगरे रख दिए
मैंने कहा मैंने दमुगर क्यूँ दिए अब पूछना मत
---------  by भास्कर जोशी

गेवाड़ घाटी