पहाड़ी दाज्यू, मिले पहाड़ी
कुछ पहाड़ी ऐसे मीले
ठुल्ला -ठुल्ले खूब मिले
दाज्यू कहते- मैं पहाड़ी ।
देखो कैसे मिले पहाड़ी दाज्यू
कहते हैं अपने को पहाड़ी
कई पहाड़ी फैंकते मिले
कई मीले पेशावर
दाज्यू कहते- मैं पहाड़ी ।
मैं भी सोचा पहाड़ी दाज्यू
कैसे कैसे मिले पहाड़ी
न कभी पहाड़ को समझे
न समझे पहाड़ी को
फिर भी कहते - मैं पहाड़ी ।
मैं भी अचरज में दाज्यू
पहाड़ी ने पहाड़ छोड़ा,
पहाड़ी सभ्यता छोड़ी
मातृ भाषा भी भूल गये
तब काहे न बोले दाज्यू - मैं पहाड़ी ।
मुझे भी रोना आता दाज्यू
जब पुरखों कि कुड़ी छोड़ी
तोड़े पुरखों के सपने
बंजर कर दिए उनके हरे भरे खेत
अब क्यूँ ने बोले दाज्यू - मैं पहाड़ी ।
दाज्यू कहना है पहाड़ी अपने को
एक बार पलट के देखो पहाड़ को
लौटा दो पहाड़ की जगमगाहट को
खिल उठे पहाड़ की संस्कृति-सभ्यता-भाषा
फिर बोलना दाज्यू - मैं पहाड़ी ।