Thursday, April 19, 2012

म्यर पहाड़ के हाल हनौल


म्यर पहाड़ के हाल हनौल,
सोच सोच बे परेशान छुं,
कतु भाल छि उ दिन ,
जब में स्कुल पड़ छि,
स्कुल बे एबे खेल हूँ जान्छी,
उं दिनों कें याद करनू
 और सोच्नु के भलौ दिन छि,
आज सोच बे हैरान छुं,
म्यर पहाड़ के हाल हनौल ।
सोच सोच बे परेशान छुं,
घर-घर कुड़ी-बड़ी,
बंजर हैगिन
बाखेय-बाखेय में कोई निछु,
एक कुण में आम बैठी छू ,
आस लगे राखी ,
कभे आला म्यर नाती नतना,
यौ सोच बे हैरान छू
म्यर पहाड़ के हाल हनौल,
सोच सोच बे परेशान छुं,
}{पं. भास्कर जोशी }{

Sunday, April 15, 2012

गेवाड़ घाटी



गेवाड़ घाटी के बारे में आप लोग बहुत कुछ जानते होंगे, हमारी गेवाड़ घाटी, मासी से चौखुटिया तक की पूरी बैल्ट गेवाड़ घाटी में आती है जैसे की - तल्ला गेवाड़ (मासी), मल्ला गेवाड़ (चौखुटिया) गेवाड़ घाटी का एक बड़ा ही लोकप्रिय घाटी रही है जहाँ तक गेवाड़ घाटी के बारे में मैंने बुजुर्ग लोगों से पूछा उन  लोगों से गेवाड़ घाटी के बहुत से एतिहासिक राज मालूम हुए |

                कहा जाता है कि ३००-४०० ई. पूर्व यहाँ राजा बैराठ जी का साम्राज्य हुवा करता था, जिसका पिथौडगड, तिब्बत, इसे कई राज्यों तक राज था | राजा बैराठ जी का कीर्ति पताका  चारों ओर फैली हुई थी |

कहा जाता है कि एक बार गेवाड़ घाटी बैराठ (चांदिखेत(चौखुटिया)-धुतलिया) में बहुत ही विनाशकारी युद्ध हुवा था | जिस में खून की नदियाँ बह गयी थी | नदी के दोनों ओर का आज भी मिट्टी में बहुत अंतर देखा गया है नदी के इस पार चांदिखेत में लाल मिट्टी है और  उस पार धुतालिया में सफेद  मिट्टी है कहा जाता है कि चांदिखेत में खून की नदियाँ बहने के कारण से वहां की मिट्टी लाल है ...

राजा बैराठ के  नाम से ही आज भी चंदिखेत की मैदानी खेती को  बैराठ तया के नाम से जाना जाता है |

राजा बैराठ के राज्य के बाद लगभग २०० वर्ष बाद कत्यूरियों का आगमन हुवा|

    गेवाड़ घाटी में कत्युरी राजाओं का आना हमारे लिए गर्व की बात है कि हम उसी गेवाड़ घाटी में हमारा जन्म हुवा | 

"वन्दे महापुरुष ते चरणाविन्दम "

                   कुछ एसा करके जाओ कि आने वाली पीढियां तुम पर गर्व करे | सब मिलकर चलो कुछ तुम बदलो कुछ हम बदलें | जीवन लघु है, सफल वही होता है  जो वक्त की धरा के साथ चलता है हम सदा रहें यह जरुरी नही पर हमारी हमारी संवेदनायें जीवित रहनी चाहिए | इसी मान्यताओं को धरा पर उतार कर कत्युरी नरेशों ने धर्म राज की स्थापना की थी इसलिए राम, कृष्ण के बाद किसी राजवंशी राजाओं को देवताओं की तरह पूजा जाता है तो सूर्यवंशी कत्युरी नरेश ही हैं | उनकी पूजा नौला कन्ठापुरी, जय भूमियाँ , जय जिया , कत्युर , राजाओं के महाराज , दुदाधारी, धामदेव  आल , विरमदेव आल आदि विश्लेषणों के साथ बड़ी श्रद्धा के साथ उत्तराखण्ड , नेपाल, हरियाणा, कश्मीर में किसी न किसी रूप में आज भी की जाती है .. उतारी भारत के इतिहास में सबसे लम्बे समय तक घर्मराज्य करने वाले कत्युरी नरेशों में सोलह चक्रवर्ती राजा हुए | उन्होंने बिलखती, त्राहि-त्राहि करती, भयभीत जनता को एक राज्य , एक झण्डा, एक धर्मसूत्र में पिरोकर स्वर्णयुग का सृजन किया था |

गेवाड़ घाटी