Tuesday, October 13, 2015

सहारा

किसे अपना कहूँ
कौन सुने मेरी 
अकेलेपन की बेचैनी है
तब कलम उठा लिख लेता हूँ कविता |
हरदौल वाणी 12-10-2015 में प्रकाशित 
बिन बात के
हर गली, चौराहे, नुक्कड़ पर
आपनो की जंग छिड़ी है
कौन सुलह कराये
दुनियां तमासा देखती है
ह्रदय विषमित हो उठता है
तब कलम उठा लिख लेता हूँ कविता |
डर लगने लगा है भ्रमित आपनो से
कहीं उनके कर्मों का ठीकरा मेरे सर न लाद दें
गर आवाज उठाऊं तो सर कलम कर दें
चुप पड़ा रहता हूँ ठिठक कर कोने में कहीं
तब कलम उठा लिख लेता हूँ कविता |
सहारा किसका लूँ
कौन दूर तलक साथ निभाए मेरा
उठते अन्तःकरण में द्वन्द की पीड़ाकौन सुनेगा मेरी व्यथा
तब कलम उठा लिख लेता हूँ कविता |

कागज कलम से नाता जुड़ गया
उसी संग, हंसी ठिठोली, मस्ती करूँ
देश दुनियां की पहल करूँ
जब भी बात करने को मन करे मेरा
तब कलम उठा लिख लेता हूँ कविता |
-भास्कर जोशी "पागल"

Monday, October 5, 2015

रामलीला स्मृति

#स्मृति रामलीला
आजकल जग जगां में रामलीला तैयारी चली रै। कुमाउनी रामलीला देखण में अरु आनंद ऊँ। एक सालक बात बतुनु हमर यां रामलीला चली भे भीकू दा खूब रामलीला शौक़ीन भाय आदुक हैबेर सकर उनुकें डाइलॉग याद भै। रोज रामलीला में उनर एक रॉल पक्का होय। काधिने उं रामक साइड हुनेर भाय काधिने रावणक साइड। लेकिन रॉल एक न एक पक्का होय। एक दिन उ घर बटी रामलीला पाठ खेल हूँ जल्दी निकल गाय बाट बाटे कुछ दगडी मिल गया तो सिद्ध पहुँच गाय शराबक ठ्यक में द्वी चार पैक मारी बाद भीकू दा कभते राम कभते लक्ष्मण तो कभते सुपनखा तो कभते क्याप्प् डाइलॉग बडबडान भैगाय।
मिल कॉय : भीकू दा आज रामलीला में नि जाण्या के ? आज स्वयम्बर छ बल
भीकू दा : ओ हो आज्जे छ स्वयंबर ।मिल तो आज धनुष तोण छ।
मी: धनुष तो राम ज्यु तोडेन तुम के करला वां
भीकू दा : हाय भुला सबु हैब बढ़िया रॉल तो म्यर छु। चल फटाफट हिट नतर आज इपने खै पी बे टोटिल है रूल ।
रामलीला में स्वयंबर देखण में खूब भीड़ हई भै। और भीकू दा पछिल बाट जैबेर सिद्ध मेकप रुम में पहुँच ज्ञाय। मेकप ले उनुल आपण हाथल आपण कर । एक साइड आदुक दाढ़ी लगाय और दोहर साइड आदु काटी मुछ । और आंग में फाटी फूटी लधोडि धेखण लैकक छी हो। रामलीला डरेक्टर भीकू दा हैं कुनेछि भिकुवा यस पेई खाई में  के गड़बड़ झन करिये अंतरि हाली द्यूल एतिकेँ ।
भीकू दा चुप चाप मंच तरफ बाट लॉग गाय और मन मने बड़बड़ाट करने कुनेछि मंच में जांण दे फिर बतूल।
भीकू दा मंच पै पहुँच ज्ञाय् सब लोग भीकू दा केन देखि बेर हसन हँसने भाँट टूट ज्ञाय। मंच पर पहुँचते ही द्वारपालल पूछ
द्वारपाल : महाराज आप कौन हैं  किस  देश के राजा हो अपना परिचय दें
भीकू दा: मैं भिकुवा देश का राजा भिकुवा हूँ
द्वारपालल भीकू दा कै स्थान पर बैठे दे थोड़ी देर में धनुष तोडणे प्रक्रिया सुरु हेय। बाद में भीकू दा नंबर आया तब भीकू दा धनुषे उथाकें  ठाढ़ हाईबे एक हाथ धनुष पर लगाई भे दोहर  हाथ जनक ऊथाँ करी भै और नजर डाइरेक्टर ऊथाँ।
भीकू दा : ओ रे सीता डाइरेक्टर । तोड़ी द्यू धनुष । आज सोमरस पी बेर आरयुं ताकत ले निमखण आई रै।
डाइरेक्टर पर्दे पिछड़ी बटी कुनो : भिकुवा त्यर कम्मर तोड़ी द्यूल अग़र के गड़बड़ करी तो ।
भीकू दा डाइरेक्टर कें फिर चिढ़ाओ ।
भीकू दा : आज तो य धनुष मैं तोडुल बौज्यु लें कैंल ठीक करौ च्यौला त्वील ब्वारी ल्य गे छै
डाइरेक्टर एक हाथ में लठ लिबेर मन्द मन्द आवाज में आ तू भ्यार त्यर मौणी पछिल् च्यापुल आज यें। अगर धनुष पर त्विल के गड़बड़ कर पै दिखिए ।
भीकू दा डाइरेक्टर बटी डर ज्ञाय तब दरपालल कौय
द्वारपाल : महाराज धनुष तोड़ने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाय
भीकू दा फिर उसीके एक हाथ जनक ऊथाँ करिबे और नजर डाइरेक्टर ऊथाँ
भीकू दा : जा रे सीता डाइरेक्टर नी तोड़न तुमर धनुष कतई हाथ नि लगूँ इपर। भली भल कुट कुट गोरी फनार ठेकुली जस सीता बड़ाई हुनि तो धनुष तोड़ी दिछि घर में बौज्यु ले कुन के भौलो ब्वारी  लै रै छे च्यला। लेकिन य बड़ाई भे तुमुल अहिरावण जस सीता। जैक मुखम् बटी दाढ़ी फुटनेई । को करो येक दगड ब्या। य भस्मा सुर जस राम बड़ाई भै य आफि लिजां सीता कैं येके लिजी ठीक छु।
भीकू दाल उठाई वां बटी आपण ताम झाम और मंच छोड़ी बटी ऐज्ञाय| लोगनक हसने हंसने बिडौ।

गेवाड़ घाटी