हाय कैसी विडम्बना है इस
देश की
9-3-2015 हरदौल वाणी महिला दिवश पर विशेष अंक पर प्रकाशित |
नारी को देवी मानकर जिस देश
ने पूजा
आज उसी नारी पर अत्याचार
हुआ
माँ की कोख से लेकर बुढ़ापे
तक
न जाने कितनी याचनाओं से
गुजरना पड़ता है
हाय यह कैसी विडम्बना है इस
देश की | -1
अभी तो माँ की कोख में माह
भी न बीता था
चले भ्रूण हत्या करने पुत्र
मोह के अहंकारी
क्या दोष था उस अबोध कन्या
का
जिसका गला तुमने गर्भ में
ही दबोच दिया
कैसी नीचता है यह तुम्हें
अपने पर घृणा न आई|
हाय यह कैसी विडम्बना है इस
देश की |-2
प्यारी दुलारी गुडिया सी,
नटखट बिटिया
खिल-खिलाकर अपनी मस्तियों
से रंग भरती
खेल-कूद की दीवानी, बचपन के
भरी
बाबुल ने बोझ समझकर उसे
ब्याह दिया
कैसी लाचारी है यह तुम्हे
अपने पर शर्म न आई |
हाय यह कैसी विडम्बना है इस
देश की |-3
आज वह ससुराल को सब कुछ मान
चुकी
जिसे बाबुल ने बड़े लाड़ प्यार
से पाला था
कभी सास-ससुर के ताने सुनती
तो कभी पति के अत्याचारों
से सहम जाती
जिसे वह अपना समझ बैठी थी
वह ससुराल उसे कभी अपना न
पाया|
हाय यह कैसी विडम्बना है इस
देश की |-4
जिस देश ने सर्वत्र की है
नारी की पूजा
उसी नारी को आज चौराहे पर
निर्वस्त्र किया
हाय लगेगी उस नारी की इस
देश को
जिसने रोशन किया माँ, बहन,
बेटी बनकर घर को
और आज उसी नारी पर चौतरफा
ग्रहण लगा हुआ|
हाय यह कैसी विडम्बना है इस
देश की |-5