Thursday, March 12, 2015

ग्रहण नारी पर .......

हाय कैसी विडम्बना है इस देश की
9-3-2015 हरदौल वाणी
महिला दिवश पर विशेष अंक पर प्रकाशित 
नारी को देवी मानकर जिस देश ने पूजा
आज उसी नारी पर अत्याचार हुआ
माँ की कोख से लेकर बुढ़ापे तक
न जाने कितनी याचनाओं से गुजरना पड़ता है
हाय यह कैसी विडम्बना है इस देश की | -1

अभी तो माँ की कोख में माह भी न बीता था
चले भ्रूण हत्या करने पुत्र मोह के अहंकारी
क्या दोष था उस अबोध कन्या का
जिसका गला तुमने गर्भ में ही दबोच दिया
कैसी नीचता है यह तुम्हें अपने पर घृणा न आई|
हाय यह कैसी विडम्बना है इस देश की |-2

प्यारी दुलारी गुडिया सी, नटखट बिटिया
खिल-खिलाकर अपनी मस्तियों से रंग भरती
खेल-कूद की दीवानी, बचपन के भरी
बाबुल ने बोझ समझकर उसे ब्याह दिया
कैसी लाचारी है यह तुम्हे अपने पर शर्म न आई |
हाय यह कैसी विडम्बना है इस देश की |-3

आज वह ससुराल को सब कुछ मान चुकी
जिसे बाबुल ने बड़े लाड़ प्यार से पाला था
कभी सास-ससुर के ताने सुनती
तो कभी पति के अत्याचारों से सहम जाती
जिसे वह अपना समझ बैठी थी
वह ससुराल उसे कभी अपना न पाया| 
हाय यह कैसी विडम्बना है इस देश की |-4

जिस देश ने सर्वत्र की है नारी की पूजा
उसी नारी को आज चौराहे पर निर्वस्त्र किया
हाय लगेगी उस नारी की इस देश को
जिसने रोशन किया माँ, बहन, बेटी बनकर घर को
और आज उसी नारी पर चौतरफा ग्रहण लगा हुआ|
हाय यह कैसी विडम्बना है इस देश की |-5



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