Tuesday, April 25, 2017

जागो मोदी साहब

कहीं पत्थर बाज
कहीं नक्सल वाद
खोखला कर रहे राष्ट्रवाद
अब तो जागो, मोदी साहब।

बहुत हो गयी जुमला वादी
बहुत हो गयी डीगें हाँकी
शहीद हो रहे माँ भारती के लाल
अब तो जागो, मोदी साहब।

कहा था तुमने, आँखों में आँखें डाल के
गोली का जवाब हम गोली से देंगे
सीना ताने बब्बर शेर सा दहाड़ेंगे
क्या हुवा उन वादों का
अब तो जागो मोदी साहब।
भास्कर जोशी।

Saturday, April 22, 2017

व्यंग : भिकुदा से चर्चा

भीकुदा से इसबार फ़ोन पर इंटरव्यू

हेलो! भिकुदा कहाँ हो ? बहुत दिनों से आप कहीं दिखाई नहीं दे रहे, आखिर क्या बात है ?

क्या बताऊँ भुला!  रामराज्य जो आ गया है !  जबसे यह रामराज्य आया है तबसे हमारे दिन फिर गये।  कुछ भी बोलने की स्थिति में नही हूँ। ना ही कुछ लिखने की स्थिति में। भला कुछ लिखना भी हो तो किसपर लिखें ? चारों ओर मिठास ही मिठास है । सब खुश हैं सिर्फ मुझे छोड़कर । हमें लिखने और बोलने के लिए भी तो  मशाला चाहिए ना? चारों ओर जिधर भी नज़ारे घुमाओ अच्छे दिन  ही दिखाई पड़ते हैं। अब न कहीं रेप हो रहे हैं, न कहीं अत्याचार हो रहा है, न कहीं भ्रष्टाचार हो रहा है, न कहीं उत्पीड़न का मामला आ रहा है, सभी जगह अच्छा ही अच्छा हो रहा है।

भिकुदा में आपकी बात सही से समझ नही पा रहा हूँ। यह आपका आक्रोश है या आने वाले भविष्य की तरफ इशारा कर रहे हो ?

भुला मैं कोई भुत, भविष्य, वर्तमान का ठेकेदार तो हूँ नहीं। हाँ वर्तमान  में जरूर जीता हूँ और उसी को ध्यान में रखकर यह जरूर कहना चाहता हूँ कि आपके अच्छे दिन आ गए हैं । अब कहीं शोरशराबा नहीं होगा। लाउडस्पीकर भी अब बंद हो गए। अब आप चैन से सो सकते हैं, रात को पूरी नींद ले सकते हैं अब कोई भी आपको जल्दी नहीं उठाएगा। आप चाहें तो जिंदगी भर पूरी नींद ले सकते हैं। राम राज्य में किसी को कोई परेशानी नहीं होती थी। अब वही रामराज्य आ गया है। सारी बंदर सेना उत्पात मचाते हुए राम राज्य की स्थापित कर रही है।

भिकुदा आज आपके सुर बदले बदले से नजर आ रहे हैं आखिर क्या कारण है ?

कोई कारण वारण नहीं है भुला। दुःख बस सिर्फ इस बात का रहेगा। कि अब हम किस पर तंज नहीं कस पाएंगे।  जब सबकुछ अच्छा हो गया है तब ऐसे में हम जैसे लोग, टुटा फूटा रोष प्रकट करते थे वह अब हम नहीं कर पाएंगे। क्योंकि अब खुशहाली ही खुशहाली है। ऐसे में हम किस पर तंज लिखें और कहाँ रोष प्रकट करें । जब लिखने और बोलने को कुछ रहा ही नहीं तो भला हमारा क्या होगा ?
..टूँ टूँ टूँ ................फोन कट।

पभजो। 

Thursday, April 20, 2017

कविता

गाँव से कोशों दूर रहकर
गुमशुम पड़ा रहता हूँ घर की याद में
अकेला होना भी अखटाता है
सभी काम ख़ुद ही करने होते हैं
ठेकुली दगड में होती
तो कितना अच्छा होता
वह  खाना पका देती
तो मैं बर्तन धो देता
वह झाड़ू लगा देती
तो मैं पोछा लगा देता
वह कपड़े भीगो देती
तो मैं उन्हें धो देता
काम आधा आधा बँट जाता
शादी के बाद काम सिखना ना पड़े
इसलिए आदत अभी से डाल रहा हूँ
यों समझिए अभी ट्रेनिंग चल रही है
फ़ाइनल तो शादी के बाद हर दिन होगा।
भास्कर जोशी

व्यंग : पत्थर मार प्रोडेक्ट



टीवी के विज्ञपनों में आपने कुछ इस तरह के विज्ञपन भी देखे हौंगे- आज ही घर ले आएं। अपने किस्मत को आजमाएं, यह आपके भाग्य  को चमका देगी, यह प्रोडेक्ट घर लाने के बाद आप कुछ ही दिनों में मालामाल हो जायेंगे। आज ही खरीदें यह प्रोडेक्ट अभी कॉल करे फ़लाणे नम्बर पर। इसी तर्ज पर काश्मीर घाटी में पत्थर प्रोडेक्ट चल रहा है। और वह कुछ इस तरह चल रहा है -

आज ही मारें पत्थर,  नौकरी सीधे आपके घर पहुंचेगी। सारी जिंदगी घर बैठे बैठे कमाएंगे लाखों-करोड़ों। पहले मैं भारतीय आर्मी के खिलाफ रोड पर उतरता था तब मुझे सिर्फ पांच सौ रूपये मिलते थे। जबसे पाकिस्तान से प्रोडेक्ट पत्थर लिया और भारतीय जवानों पर पत्थर मारने लगा तबसे हर दिन दस हजार तक कमा लेता हूँ। अब मैं खुद कंपनी का मैलिक बन गया हूँ। आप भी इस प्रोडेक्ट का लाभ उठायें। और घर बैठे बैठे कमाएं पैसे। यह सब काश्मीर में एक  विज्ञपन की तरह हो रहा है।

काश्मीर घाटी में पत्थर मार बिजनेश खूब फल फूल रहा है। पत्थर मारने का शौक अब बिजनेश बन चूका है। करोड़ों रूपये निवेश किये जा रहे हैं।  कभी लोग अपनी आत्म रक्षा के लिए प्रकृतिनुमा पत्थर का प्रयोग किया करते होंगे । परन्तु रोजगार और जल्द से जल्द मालामाल होने के लिए पत्थर मारना आजकल नया दौर शुरू हुवा है। इस नए दौर में पत्थर बाजों को प्रशिक्षण देने वाला भी महान ही रहा होगा । अब जरा सोचो जब पत्थर मारने वालों को दिन के छः से सात हजार रुपये मिलते हौं। तो प्रशिक्षण देने वाले तो लाखों में खेल रहे हौंगे। जब प्रशिक्षण देने वाले लाखों में खेलते है तो प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थाऐं  कितने में खेला खेल रहे हौंगे।

 कभी रोष प्रकट करने के लिए अहिंसा वादी आंदोलन किया जाता था  या कहीं चौपाल पर एक चटाई बिछा कर धरना दिया जाता। चूँकि वक्त बदला तो परमपरायें भी बदलती गयी। एक दौर चला नेताओं पर स्याही फैकने का। तब किस कंपनी की स्याही फैकने में स्तेमाल किया गया यह देखा जाने लगा। और फिर उस कंपनी का बिजनेश चल पड़ता है वह भी बड़े जोरों से । फिर दौर चला जूते, चप्पल, सैंडलों का। जो जूता फैके उसे पार्टी टिकट देती, और जिस कंपनी का वह जूता चप्पल होता उसे विज्ञापन बनाकर पेस किया जाने लगा। यह सब बिजनेस करने के भी तौर तरीके रहे। जिसने मार खाया, कंपनी  उसे भी पैसा खिला देती और  जिसने मारा उसे भी पैसे वैसे देकर किसी प्रांत का नेता बन दिया जाता। देखते ही देखते सभी मुनाफे में।

बहरहाल अपने मुनाफे के लिए देश के साथ गद्दारी कैसे सहन कर सकते हैं।  देश की रक्षा के लिए तैनात जवानों पर ही पत्थर मारने और आजादी जैसे नारों पर यह देश कैसे इन पत्थरबाजों को माफ़ करेगा। भले ये देश विरोधी पाकिस्तानी एजेंट कितना भी फल फूल लें पर जल्द ही सेना द्वारा ये लोग जहन्नुम की सैर करते नजर आएंगे।
भास्कर जोशी
हरदौल वाणी में पूर्व प्रकाशित 

कविता

द्वन्द उठता है अंतःकरण में
भीषण ज्वाला धधक रही
लपटें आतुर है चहुँ ओर फैलने को
मिटाकर राख करने की जिद कर रही।

जब देखता हूँ इधर उधर
रक्तबीज मानो पनप रहा।
चौराहे पर बैठ पूतना
सबको विषपान करा रही।

सीमा पर से ताक रहा दुश्मन
खेल रहा अबोध पत्थर बंदूकों से
अपनी ही माँ माटी के सीने पर
कश्मीर चुभो रहा है खंजर।

मेरे माटी ने भी दिए है लाखो सपूत
माँ धरती की रक्षा के खातिर।
सीना ताने डेट है सीमा पर
दुश्मन का सीना छलनी करने को।
-भास्कर जोशी
हरदौल वाणी अख़बार में पूर्व प्रकाशित 

गेवाड़ घाटी