Wednesday, July 18, 2012

बच्चपन के दो नायाब मित्र



           मित्रो ये दो मित्र ऐसे हैं जो एक दुसरे के बगैर रहा नही सकते । उत्तराखण्ड "म्यर गेवाड़ घटी" से ये दोनों मित्रो की दोस्ती का कुछ अनोखा अंदाज है इस कहानी के दो मुख्य पात्र हैं बिक्की और कन्नू, भगवान से प्रार्थना करूँगा की इन दोनों की दोस्ती में कभी कोई दरार न आए । मित्रो इन दोनों का दृष्टान्त में आप लोगों को इन दोनों से रूबरू करने की कोशिस करूँगा ।

           कन्नू, बिक्की से लगभग ढेड साल बड़ा है । परन्तु ये दोनों साथ ही रहे हैं  चाहे स्कूल की बात हो या फिर कुछ काम करना हो दोनों साथ ही रहा करते थे । जब ये दोनों छोटे थे, इनके घर वालों ने इन का दाखिला प्राइमरी स्कूल में करवा दिया । कन्नू को प्राइमरी पाठशाला डांग में और बिक्की को प्राइमरी पाठशाला जेठुआ स्कूल में परन्तु इन दोनों का कोई पता नही कब कौन से स्कूल चले जाएँ । कभी मन करे तो बिक्की कन्नू के स्कूल में चले जाये, तो कभी कन्नू बिक्की के स्कूल में चले जाये दोनों की कक्षा एक ही थी । कन्नू को उनके घर वालों ने देर में ही दाखिला करवाया था । पर अब ये दोनों तीसरी कक्षा में पहुँच चुके थे, फिर भी ये दोनों का कोई पता नही कब कौन से स्कूल चले जाएँ ।  घर वालों को इन दोनों का रास पसंद नही आया दोनों के परिवारों ने मिलकर ये गुत्थी सुलझाई तद पश्च्यात कन्नू को भी बिक्की के साथ ही एक ही स्कूल में दाखिला करवा दिया गया । कन्नू और बिक्की अब एक साथ आना जाना और एक ही स्कूल में पढना दोनों जहाँ जाते साथ ही जाते । एक दिन की बात है मास्टर जी स्कूल में इमला लिखा रहे थे । उन दिनों सभी बच्चे सब होल्डर जिप पैन जो शाही से लिखा करते थे । लिखने के दौरान बिक्की से कन्नू की शाही गिर गयी । यहीं से दोनों की खट-पट सुरु हो गई । कन्नू ने बिक्की से साही के पैसे मागे उन दिनों शाही की छोटी से बोतल पचास पैसे में भरी जाती थी । परन्तु बिक्की के पास पैसे नही थे, उस दिन कन्नू के साथ बिक्की का मनमुटाव होने लगा । बिक्की, कन्नू से बार बार बोलता किन्तु कन्नू बोलने से इंकार करता रहा । घर पहुचने के बाद दोनों अपने गांव के साथियों के साथ बैट-बौल खेलने चल दिए । पर कन्नू उस से बात करना ही नही चाहता था। इसी बात पर गांव के और बच्चों ने एक निरणय लिया बिक्की और कन्नू को बैट-बौल मैच का कैप्टन बनाया गया, और दो-दो  रूपये का मैच लड़ाया गया, और यह बोल दिया यदि बिक्की जीता तो कन्नू उसे बोलेगा और यदि हरा तो कन्नू उसे कभी नही बोलेगा होना तो कुछ और ही था दोनों दोस्तों को किस प्रकार से दोस्ती को तोडा गया ।  साथ के मित्र इन दोनों के झगडे से  आनन्द ले रहे थे । मैच शुरु हुआ और गांव के लड़कों ने बिक्की को हराने की बात एक दुसरे के कान में फूंक दिया अब क्या था बिक्की को तो हारना ही था वह हारने के बाद एक पेड़ के निचे बैठ गया और गांव के लड़के उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया बिक्की निराश होकर अपने घर लौट आया दुसरे दिन स्कूल जाते समय बिक्की कन्नू को स्कूल आने के लिए आवाज दे परन्तु कन्नू आवाज का उत्तर देने को ही राजी नही हुआ  दोनों स्कूल पहुंचे प्रार्थना होने के बाद दोनों अपनी कक्षा में पहुंचे, बिक्की ने देखा कन्नू आज दूसरी लाइन में बैठा है बिक्की निराश होकर अपनी रोज की स्थान पर बैठ गया यह कारवां चलता रहा सभी को इस बात की भनक हो चुकी थी, घर वालों को भी पता चल चूका था ये दोनों बोल नही रहे हैं सभी ने अपनी अपनी और से मित्रता करवाने की कोशिस की पर नाकामियाब रहे दोनों जाते तो एक ही स्कूल में और एक ही कक्षा में परन्तु बोलना नामुकिन सा हो गया अब महिना बीतने लगा धीरे धीरे साल बिता समय का पहिये चलता रहा परन्तु दोनों एक दुसरे बात नही करने लगे अब दोनों पांचवी कक्षा में पहुँच गये एक दिन स्कूल के मास्टर श्री उर्वादत्त पोखरियाल जी ने ठान ली आज दोनों की बात करवानी ही है मासाब ने दोनों को पहले एक साथ बैठाया, बोले की तुम दोनों एक ही किताब से गणित के सवाल हल करोगे, दोनों सवाल हल करने लगे लेकिन एक दुसरे से बोले नही दोनों चुप चाप से जैसे भी हो सके सवाल हल किया, मास्टर जी ने दोनों की कापी देखि दोनों के प्रश्नोत्तर अलग अलग थे मास्टर जी ने उन दोनों का हाथ मिलाने की कोशिस की पर दोनों ने बहुत मार खाया परन्तु हाथ नही मिलाया मास्टर जी ने भी अपनी हार मानने में ही अपनी भलाई समझी दोनों का अबोल यूँ ही चलता रहा। सात साल हो चुके थे दोनों को बोलते हुए,  दोनों एक सात एक ही स्कूल में पड़ते चले गये, लेकिन बोल बाला नही हुआ अब दोनों नवीं कक्षा में पड़ने लगे इसे ही इन दोनों का समय बीतता गया एक दिन की बात थी गांव में शादी का  माहौल था सांयकाल में गाने बजने का कार्यक्रम चल रहा था सभी गाँव के लड़के एक साथ इक्ट्ठा होकर फल-फूल चुराने का अपना कार्यक्रम बना रहे थे, बिक्की और कन्नू भी सामिल होना चाहते थे एक बार फिर गाँव के लड़कों ने दोनों के साथ एक और शर्त रखी, पर इस बार दोनों की मित्रता का प्रस्ताव की बात थी बोले तुम दोनों तभी हमारे साथ आओगे जब तुम दोनों एक दुसरे से बोलोगे शर्त मंजूर हुई लेकिन एक समस्या आन पड़ी बात यह थी कि दोनों में पहले कौन बोलेगा, ही बिक्की बोलने को राजी था ही कन्नू बोलने को राजी था बड़ी दुविधा आन पड़ी थी इस गुत्थी को सुलझाने की लिए कई नुक्से अपनाये गये परन्तु गांव के लड़के फिर भी सुलझा नही पाए एक मित्र ने बड़ी समझदारी वाली बात कही बोला एक का करते हैं एक रूपये के सिक्के से ट्रौस करते हैं यदि हैड आए तो बिक्की पहले हाथ मिलाएगा और यदि ट्रेल आए तो कन्नू पहले हाथ मिलाएगा दोनों इस सुझाव  से खुश हो गये, पर दोनों के दिलो में धकाधाकाहाट होने लगी दोनों के मन में एक ही बात उमड़ रही थी कन्नू बोलेगा तो अच्छा है और कन्नू भी यही सोच रहा था पहले बिक्की बोले तो अच्छा होगा, इस बार बिक्की के पक्ष में गया । ट्रौस  किया गया  ट्रौस होते ही ट्रेल बिक्की के पक्ष में आकर गिरा ।  बिक्की ट्रौस में जित गया और कन्नू को पहले हाथ मिलाना पड़ा गाँव के लड़कों ने शोरगुल करना शुरू कर दिया वे लोग इस लिए खुश थे कि उन लोगों ने दोनों दोस्तों को फिर से मिला दिया हाथ मिलाने के बाद दोनों को को गले भी मिलाया गया बिक्की और कन्नू फिर से एक हो गये अब सभी मित्रों के साथ हंसी-हंसी फल-फूल चुराने  निकल पड़े...। अब दोनों जहाँ जाते साथ साथ जाते हैं ।.....................|

Monday, July 16, 2012

नजरें ढूढती हैं उन्हें,


नजरें ढूढती हैं उन्हें,
हर वक्त तलाशती उन्हें।
कभी दिन के उजाले में ,
तो कभी सपनों में ।
कभी परि बनके आते ,
स्वप्नों को नई दिशा दे जाते ।
देखकर प्रात: सूरज की किरणों को ,
निकल पड़ता हूँ चार पैसे कमाने को। 
काम के उलझनों से थका हुआ ,
नीद के झोंके में खो जाता हूँ ।
इक धुधली तस्वीर दिखती मुझे ,
मानो कहीं दूर से निहारती मुझे ।
पास से  निहारने को जी चाहता है, 
पल में अदृश्य हो जाती है ।
खो जाने को जी चाहता है ,
स्वप्नों की रंगीन दुनियां में। 
हर पल खोजता हूँ मैं ,
रास्ते के गलियारों में ।
मन में बसी धुधली सी तस्वीर को ,
निर्मल नैनों से स्पष्ट रूप देखने को।
न जाने कब मुझे मेरा  चाद्वीं का चाँद देखेगा,
न जाने कब मुझे मेरे मन की "प्रीती" मिलेगी ।
खोजता हूँ पल पल उन्हें ,
नजरें हर पल ढूढती हैं उन्हें।।

Tuesday, July 10, 2012

राह की ओर


तू सोच मत इनता
राह अगर है सची ,
सीढियों की राह बना
चलता जा तू चलता जा।

पैर डग मगा जाये
नियंत्रण रख अपने पर,
पीछे मुड कर न देख कभी
चलता जा तू चलता जा ।

कभी रुकें ना पैर
राह की कठिनाइयों,
एसा दृढ  संकल्प बना
चलता जा तू चलता जा ।

सहारा न ले किसी का
विश्वास रख अपने पर,
छूं ले राह की बुलंदियों को
चलता जा तू चलता जा ।

जीवन के इस अन्धकार को
दीपक का दीप  जलाकर ,
प्रकाश किरणों की राह बना
चलता जा तू चलता जा ।

ठानी है राह बनाने की
खुद को मजबूत बना,
हर राह को आशान बना
चलता जा तू चलता जा ।


Sunday, July 8, 2012

बच्चपन

कतु भल बच्चपन छि।

एक अलग दुनियां बसाई छि।
खूब खेल छि ,
खूब मस्ती करछी ।
न दुःख छि,
न गम छि ।
न खांण होश छि ,
न घर जाणक होश रुंछी।
कतु भल बच्चपन छि।।
कभते लड़ छि ,
थोड़ी देर में फिर ख़ुशी हैं जांछी।
न ककणी ढूंढ़ छि ,
न की लुकी लुकी बे डाड़ मार्छी ।
कभते यो कुड़ी ,
तो कभते पल कुड़ी ।
कतु भल बच्चपन छि।।
कोई न आपण छि,
न तो हम कैके छि।
हंस हंस बे लोगों कें ,
आपण बस में करछी ।
यो मतलबी दुनियां बटी,
बहुत दूर रुछी ।
कतु भल बच्चपन छि।।

Saturday, July 7, 2012

म्यर पहाड़ रूप देखि



म्यर पहाड़ रूप देखि,
 मन भरी उं छा।
वार डाना पार डाना,
 के भौलो मान्युछा।।

पार डाना हरिया घासा,
घस्यारों की रन बन ।
पहाड्की हवा-पाणी देखि,
 मन भरी उं छा।।

सौण भादो महेंण आयो
बरखा की रन बन ।
रौल मौल गध्यारा देखि
 मन भरी उं छा।।

खेती-पाति डाई-बोटी
बोट्यों की छ्याणी।
घुघूती की घुर सुणि
 मन भरी उं छा।

पाणी का नौ-धारा,
पन्यारों की रन बन ।
पहाड्की गागर-तौली देखि
 मन भरी उं छा।।

Thursday, July 5, 2012

बचपन की यादें


यादगार सिसोण (बिच्छु घास, गडवाल में- कनैल)

सीसोंण, कनैल (बिच्छू घास)
आज मुझे मेरे बचपन की याद आ रही है जब में लगभग १०-११ बर्ष का था । गेवाड़ घाटी की या यूँ कहिये कुमाऊं का सबसे बड़ा मेला सोमनाथ का मेला हर वर्ष मई के दुसरे सोमवार को लगता है जो लगभग १४ दिन तक रहता था । आज यह मेला सिमट कर मात्र ७ दिन का रहा गया है । मैं आप को वहीँ अपने बचपन में ले चलता हूँ । पहले समय में छोटे बच्चों को सोमवार और मंगल वार को जाने नही देते थे । बुधवार को मौका मिलता था । आज बुधवार है और आज हमें भी मौका मिला है सोमनाथ के मेले में जाने का । सुबह से मैं कभी इधर तो कभी इधर डोल रहा था । ख़ुशी इतनी थी मैं कुछ बता नही सकता । दिन का खाना भी भूल गया बस एक ही रट थी । आज सोमनाथ के मेले में जाना है । लगभग ३ बजे हमारे यहाँ से लोग मेले के लिए प्रस्थान करते थे, और अभी समय १२ बजे थे । और मैं १२ बजे ही मुंह हाथ धोकर अपने बक्शे में से नए कपडे निकल कर पहन लिया । जाना था ३ बजे और कपडे पहन लिया १२ ही । बार बार घडी को देखूं घडी चल ही नही रही है । घडी अपनी गति से चल रही थी पर मैं घडी को हर ५-१० सेकंड में घडी देख रहा था । धीरे-धीरे समय बीतता गया अब ३ बज ही गये । गांव के और लोग भी तैयार होकर निकलने लगे । में पहली बार मेला देखने को जा रहा हूँ । अपनी माँ के साथ अब घर से चलना शुरू किया । और मैं और मेरा बाल सखा हम दोनों आगे-आगे चलने लगे । अब क्या था जी कभी मेरा दोस्त आगे तो कभी मैं आगे बस दौड़ लगनी शुरू कर दी । मैं दौड़ लगा रहा था कि मेरे पांव में ठोकर लगी और मैं गेंद की तरह लोट-पोट होता हुआ सिसोण की झाड़ में घुस गया । अब क्या था जी किसे मेले की याद थी । अब तो सिसोण के वालावा कोई और शब्द निकला ही नही । मेरे साथ चल रहे मेरे दोस्त और मुझे आधे रास्ते घर को भेज दिया गया । मैं रोते हूँ घर पहुंचा । मैं कैसे भूल सकता हूँ वो यादगार लम्हें और ये सिसोण।

मेरा बचपन 





च्याऊं (कुकुरमुत्ता)
नमस्कार सुप्रभात । बचपन कितना 
सुखदाई होता है यही सोच कर हम 
लोग अपने आप को अपने की कुछ 
वस्तुओं को देखकर अपने बचपन को 
तलाश करते हैं मुझे याद है जब मैं 
छोटा था मैं और मेरा बाल सखा हम 
दोनों बहुत खेला करते जहाँ जाना है 
साथ जाते थे । एक बार बारिश के 
महीने की बात थी, बारिश ख़त्म होने 
के बाद हम दोनों घुमने निकल पड़े । 
बरशांत के महीने में कई वस्तुएं 
बहार निकल आती हैं जैसे कि 
(कुमाउनी में) घन्गुड, च्यांउं, 
(कुकुरमुत्ता) आदि, अधिक मात्र में 
निकल आते हैं । इसी बिच हमें एक 
छत्री पर नजर पड़ी हम दोनों उस पर 
टूट पड़े । इस के बाद क्या था जी 
अब तो निकल पड़े झाड़ियों में पांव 
पर जूते-चप्पल कुछ भी नहीं, ये भी 
नही सोचा कांटे चुभ जायंगे , बस 
दौड़ पड़े । जैसे ही दूर से दिखा भी तो पहले ही कह देते (यो म्यर छू मैल पैली देखो, ना मैल पैली देखो यो म्यर छू ) ये मेरा है । बात बात में 
झगडा कर बैठते थे । वास्तव में बिता हुआ बचपन कितना सुखदाई होता है । पचपन के लम्हों को याद कर 
हम लोग हंस बैठते हैं कभी कभी तो खुद बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं बार बार यही सोचते है कास यह 
बचपन फिर लौट कर आता 


गाँव की कुछ खट्टी मीठी बातें 


साथियों आज गाँव की कुछ बात आप सभी को अवगत करता हूँ गाँव में लोग किस तरह जीवन यापन करते हैं व उनकी भाषा शैली पर थोडा बहुत प्रकाश डालते हैं प्रकाश डालने से पहले मैं आप लोगों को बता दूँ 
मैं इस में कुछ कुमाउनी भाषा का भी प्रयोग करूँगा जो आप सभी को पसंद आयेगा । 


पुरुषों का समूह : गाँव में अधिकतर लोग शराब में डूब जाते हैं और इस के अलावा उन्हें कुछ सूझता नही है 
और कोई बात करने को होता ही नही है तो आइये और देखें किस तरह की बात करते हैं 




पधान जी : और हो हेम दा के हरी ठाट बाट,


हेम दा : के ना हो पधान सैप मौसम भौल है रो आज द्यो ले हैगो ।

पधान जी : ठीक कुनेछा हो हेम दा आज मौसम लागुणी जस है रो,

हेम दा : हो होय ठीक कुनेछा, हिटो पे, पा पार दानसिंह दुकान में हिटो,

पधान जी : किले हो राती राती पर खुल गे छो दुकान ।

हेम दा : होय पे आज तो मौसम आई हौय ।

पधान जी : हिटो पे हिटो ।

(दोनों लोग निकल पड़ते हैं दुकान की ओर वहां पर दो लोग विपिन दा और केशब दा मिल जाते हैं )

पधान जी : हाय येती विपिन और केशब दा ले बैठ रेई ।

केशब दा : आओ आओ हो पधान सैप ।

विपिन दा : ओ पधान जी आज तो थोडा बहुत हुनेचें ।

पधान जी : हो होय हिटो, लगाओ हो दानसिंह जी चार गिलास लगाओ ।

(दान सिंह जी शराब लेकर देते हैं और अब पिने के बाद देखिये किस प्रकार की बात करते है 


लड़खड़ाते हुए)

विपिन दा: ओ पधान जी पे ब्लोक बे कतु पैंस मिली ।

पधान जी : किले रे वोती खांण लाग रो छो के ।

केशब दा : किले पैस मिलनेर भाय तुम लोगुन कें हो पधान सैप।

पधान जी : तुम लोगुन कें म्यर पैंस जादा देखिनी नै (गालियों की बौछार करते हुए )

हेम दा : अरे पधान जी यों लोग पेई बाद यसे कुनि सब भूल जनि यूँ , हिटो अब तुम कें ले जादा चढ़ गे हिटो 


घर हैं जुल अब ।

(दोनों लोग घर को निकल बैठे । ये था आज के पुरुषों का समूह )

मित्रो यह लेख से यदि किसी को भी दुःख पहुंचा हो तो क्षमा चाहूँगा । यह लेख मनोरंजन मात्र है ।

गेवाड़ घाटी