Thursday, August 31, 2017

म्यर पहाड़ बानर

म्यर पहाड़ क बानर
य कुड़ी पल कुड़ी
धुरका धुरुक न्यार
न डर, बिल्गहूं न्यार उणी

सार खेत पाती बांज है गयीं
बुतुण हालो चै चितै टिप जाणी
लगुल बुतो टुक चट कर जाणी
कि हूं कुंछा दाज्यू पहाड़ में
झिट घड़ी सफा चट कर जाणी

अनाज भ्यार सुकौहूं हालो
बौज्यू जै माल सपोड जाणी
घर भतेर राशन समाय बेरि धरो
च्वांक ऐ बेर ध्वांर में बैठ सपोड जाणी

रई सई उँ ठुल बानर नि खाण दिणाय
जो ऊनि दल बांग लिबेर घर घर जानी
मि तुमर मि तुमर कै, भीख मांग जानी
पाई पाई बचि खुची, मौ लगै जानी।

सवेंण दिखुण में उनन पी एच डी कराखि
झुट बलाण महारत हासिल कर राखि
म्यर पहाड़ मैस हराइ जस टोप मार राखि
उनर मनखी को जाणो, बात दुःखकि
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गणेश ज्यु बर्थडे

ओ गणेश ज्यु।
कां छा हो
आज तो खूब झरफर हेरै हुनेली
कां जूं कैवाँ जूं हैरै हुनेली
तुमर वां ब्याव को आज
पार्टी सार्टी भी होगी क्या
केक सेक लै बड्याँट से हीकटेगा बल
 ब्योल्च से सोरा सोर होगी बल
 आज ढोल  दमु बैंड लिबेर खूब स्वागत हुणो तुमर
नाचने कूदने खूब लोग मिठै बाँटनयी
मंदिरों में भ्यार बटि लंगर लै चाल् है गयीं
एल तुम लै खूब  फ़ौरी रैई हुन्याला
विसर्जनक दिन जब यूँ लोग
पी खै बेर शक़राबक धुत्त में
गध्यार मैं बगै द्याल
तब तुमन कैं अन्ताज आल
यों तुमर लिजी ना
आपन पीण खांणक जुगाड़ करणी।

प्रवासीय की पीड़ा

य कविता जो शहर में रूनी, कभे घर पहाड़ जाणक मौके नि लगान पर रटन पहाडक जरूर भै। उनर पीड़ा कै कविता में उतारण कोशिश छ भल लागली तो जरूर बताया।

प्रवासीय की पीड़ा

दाज्यू को जाणो पहाड़
कि ल्याला पहाड़ बटि
म्यर गौक लै हाल चाल दिखी आया
म्यर गौंक लै खबर बात पुछ ल्याया।

मि अब शहरी है गयुं
मि अब परिवार वाव है गयुं
रत्ते रत्ते ड्यूटी बाट लाग जानू
ब्याव कभे घर पूजों, के टैम नि भय
नि मिलन मौक अब पहाड़ जाणक
इपने शहरों में लटपटी अलझि रौनु ।

कधीने गौं गाड़क याद एन्छो
नानतिनान  कै आपण बचपन बतौनु
गोर भैंस चरूणक किस्स बतौनु
खेल खेल में मैंसूं पुल्लम खुमानी चोरी किस्स बतौनु
कसिक दिन हमूल पहाड़ में काटि
आज उन दिनन कैं तसैके याद कर ल्युनु।

भट्ट, गहौतक डुबक, मांसक चैन्स
कल्यो में, मडुवे रौट और लाशणक लूंण
चहा-मिश्री कटुक दगै हडकै लिंछि
आ-भागी तू लै आ कैबरे नीबू सानछि
रंगत छि उं दिना जब हम पहाड़ में छि
अब शहर में तसकै रग-बगी गोई।

लला तुम पहाड़ आपण घर जाला
म्यर गौं, म्यर घ्वेटक लै हाल जाणी लिया
अहांण-कहांण तो बजि-गो कुनैच्छि
वॉर पौरक लै घर बांज हैगो कुनैच्छि
तुम घर जाणे हुन्याला
म्यर गौं लै खबर बात पूछ ल्याया।
भास्कर जोशी।

कै पहाड़ ?

कै पहाड़ ?

को पहाड़ कैक पहाड़
न म्यर पहाड़ न त्यर पहाड़
जैक पहाड़ विल लुट पहाड़
खाय पहाड़ भर पहाड़
न रौय पहाड़ न बचि पहाड़
लूट पहाड़ खशोडी पहाड़
चुनि पहाड़ झकोरि पहाड़
न बौज्यूक पहाड़ न बुबूक पहाड़
नेताओं पहाड़ माफियाओं पहाड़
बेचि पहाड़ धंध पहाड़
झन कया म्यर पहाड़
भुलि जया म्यर पहाड़
जान बचि रौली पै पहाड़
लठ्ठ खांण पड़ा कै पहाड़
देखहूँ आला कभते पहाड़
होटल बटि देखि जया पहाड़
को पहाड़ कैक पहाड़
न त्यर पहाड़ न म्यर पहाड़। -भास्कर जोशी

केंद्र सरकार की नाकामी

ये मोदी सरकार की नाकामी नहीं तो और क्या है। 144 धारा लगाने के बाद हजारों की हुजूम लेकर रामरहीम के समर्थक देश की बर्बादी कर रहे हैं। यह सब किसकी जेबों से भरपाई की जाएगी ?

मुझे याद है जब हरियाणा में चुनाव होने थे तब हरियाणा में बीजेपी का एक बड़ा सा तबका रामरहीम से मिलने गया था और उस से समर्थन को कहा था तब डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम ने बीजेपी को समर्थन देकर बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी।

यही कारण है कि खट्टर सरकार उनके समर्थकों को रोकने के बजाय उनके समर्थकों को खुल्ला छूट दिया हुआ है। धारा 144 लगाने के बाद किसकी मजाल कि कोई सरकारी वाहनों या अन्य वस्तुओं को आग के हवाले कर दे। सरकार के अपने वोट बैंक और नाकामी  के चलते 25 से अधिक लोगों की जान चली गयी।

 जब 25 लोगों की जान चली जाती है कई लोग घायल हो जाते तब खट्टर साहब का बयान आता है। अरे कुछ तो शर्म करो। लोगों की जान जाने के बाद भी तुम जैसे गैरजिम्मेदाराना लोग सरकार में बने कैसे रह सकते हो। ऐसा ही कुछ उत्तरप्रदेश में भी हुआ जब 30 बच्चों की जान चली जाती है तब दवाब में ये बयान देते हो कि हम इसकी तहक़ीकात करेंगे। आप जैसे गैरजिम्मेदार लोगों के मुंह से बस यही सुनना बाकी रह जाता है।

मोदी जी धन्य हैं आप और आपकी विकास वाली टीम का। जो देश में बहुत अच्छे से विकास ला रहे हो। यही विकास था ना आपका । कि मजे ले कोई और भरे कोई। शर्म करो धिक्कार है ऐसी राजनीतिक व्यवस्था । धिकार है तुम्हारी कानून व्यवस्था पर।

घंतर-14 प्रेस वार्ता विथ भीकूदा



बल भीकूदा देश में यह हो क्या रहा है?

आप तो मीडिया हैं क्या आपको पता नहीं कि देश में क्या हो रहा है। हां पता होगा भी कैसे चीन मीडिया की तरह आप लोग भी सरकार की बोली बोलते हैं तब ऐसे में  आपको  देश की परेशानी कहाँ दिखाई पड़ती हैं। मीडिया तो आजकल सरकारों की कठपुतलियां बनकर रह गयी है।

नहीं भीकूदा ऐसा नहीं है अब राम रहीम को ही देख लीजिए , मीडिया पूरा कवर कर रही है।

जी हां दुनियां देख रही है मीडिया किसे कवर करती है किसे नहीं। यदि मीडिया चाहती कि वह स्वतंत्र होकर देश की तमाम मुद्दों को सामने लाकर सरकार के सामने रखती और सरकार के मंत्रियों से पूछती कि आप जनता के समस्याओं का निदान क्यों नही करते ? क्यों जंतर मंतर पर खड़े होकर लोग मागें माँग रहे हैं। उनकी मांगे पूरी क्यों नहीं करते ? पर मीडिया का ध्यान उधर कहाँ हैं वहां से TRP भी तो नहीं मिलती। रही बात राम रहीम की । उसे तो आप कवर करोगे ही क्योंकि उससे आपको TRP तो मिलनी है साथ ही सरकार में बैठे मंत्रियों तक आपकी रिपोर्ट पहुंच सके और वे अपनी बयान बाजी कर सकें। उसके बाद आप उन बयान बाजी पर बेतुकी डिबेट कर हम लोगों का मत्था चटोगे। क्या यही काम रह गया मीडिया का ?

भीकूदा मीडिया तो हमेशा ही देश दुनिया के मुद्दों को उठती रही है। चाहे वे घोटाले हो दंगे हो, भ्रष्टाचार हो , सामाजिक मुद्दे हो सभी तो उठती रही है, मीडिया ही तो है जो दुनियां के सामने कच्चाचिट्ठा खोल कर रखती है ।

जी इस बात से इनकार नहीं करता कि मीडिया ऐसे मुद्दों को सामने नहीं लाइ। जरूर लाई। परन्तु मौजूदा हालात पर गौर करें तो अभी मीडिया सरकार के अधीन है सरकार जैसा चाह रही है वैसा ही शो कर रही है। अब  उत्तराखंड के पंचेश्वर बांध को ही ले लें । इस मुद्दे को मीडिया ने कौन सा स्थान दिया। वहां के लोगों को न ही विस्थापन के लिए कोई भूमि आवंटित की न ही किसी प्रकार का मुआबजा देने को सरकार सरकार राजी है। सबसे बड़ी बात की सरकार पर्यावरण को लेकर सरकार बड़ी बड़ी बातें करती है ऐसे में उत्तराखंड नदी नालों में बांध बनाने से सरकार क्या बतलाना चाहती है। क्या मीडिया ने समस्याएं सरकार के सामने रखी ? क्या उन हुक्मरानों से पूछा कि आप पहाड़ की जनता के साथ ऐसा दूर व्यवहार क्यो कर रहे हो ? नहीं पूछा ना । भला क्यों पूछोगे। उसी सरकार की बदौलत ही तो तुम्हारा न्यूज चैनल् और प्रिंटिंग प्रेस चल रहे हैं। ऐसे में मीडिया कहाँ हैं ?

भीकूदा के घंतर चालू आहे ।

गेवाड़ घाटी