Tuesday, October 25, 2016

सरकार की कथनी और करनी में अंतर है

केंद्र सरकार का नारा है स्वदेशी अपनाओ वहीँ दूसरी ओर नारा है आओ हमने FDI के लिए लाल कार्पेट बिछाया है।
साहब अजीब उलझन है एक ओर चाइनीज सामानों को न खरीदने के लिए लोगों से अपील करते हो वहीँ सरकार करोड़ों की मैट्रो डील करती है। जब स्वदेशी ही अपनाना है तो सरकार FDI को भारत में घुश्ने ही क्यों दे रही है। क्यों FDI को बढ़ावा दे रही है? कहीं न कहीं केंद्र सरकार की नज़रों में खोट नजर आता है। यही FDI जब कांग्रेस ला रही थी तब विपक्ष में बैठी बीजेपी इसके विरोध में थी वह नहीं चाहती थी की FDI भारत में आये। परन्तु विपक्ष  से जैसे ही वे सरकार में आये तो FDI इनकी पहली प्रार्थमिकता बन गयी।

हर बार इनके नीति और नियति में खोट दिखाई देता है। वहीँ भक्त लोग इस बात से अघाते नहीं फिर रहे उनका कहना है मोदी जी जो भी कर रहे हैं वह बहुत अच्छा कर रहे हैं। परन्तु वे उन दूरगामी परिणामों से कोशों दूर हैं कि भविष्य में यों ही कोई 15-20 साल बाद भारत दिवालियापन की ओर बढ़ा चलेगा। और यह सिर्फ FDI की नीतियों के कारण होगा।  यदि भारत को किसी देश से सीख लेनी हो तो वह है हमारा पडोशी बांग्लादेश । जो आहिस्ता आहिस्ता स्वदेशी के बल बुते अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहा है।

वहीँ भारत में गरीबों की आबादी लगभग 65% के आसपास है। अब यह सीधी सी बात है कि आज के आधुनिक युग में हर किसी को मोबाईल चाहिए । गरीब व्यक्ति भी यही चाहेगा कि मैं भी जमाने के साथ चलूँ। महंगा न सही पर अपनी जरूरत के हिसाब से एक सस्ता सा मोबाईल खरीद लूँ। ऐसे वक्त में हम ये कहें कि स्वदेशी अपनाएं तो स्वदेशी मोबाईल कंपनी भारत की एक भी नहीं यहाँ तक कि सारे पुरचे तक चाइना से बनकर आते हैं । हर व्यक्ति यही चाहता है कि मुझे जहाँ सस्ता और टिकाऊ सामान मिले उसे खरीदे। हर कोई दो रुपये कमाना या बचाना चाहता है। और आप कहते हैं चाइनीज सामान का बहिष्कार करो। माननीय प्रधनमंत्री जी मैं बहिष्कार करने के लिए तैयार हूँ तो क्या आप चाइना द्वारा करोड़ों की डील का बहिष्कार कर सकते हैं? यदि हमारा प्रधान सेवक ऐसा कर सकता है तब पूरा देश आपके साथ खड़ा है  क्या आप ऐसा करेंगे?
-भास्कर जोशी

Wednesday, October 5, 2016

युद्ध हुआ तो ....................


उडी में हुए आत्मघाती हमले से पूरा भारत खौल उठा है हर भारतीय नागरिक पकिस्तान से बदला लेना चाहता है जो कि स्वाभाविक है। एसे मौक़े पर हर भारतीय का ख़ून खौल उठता है। जिस प्रकार पाकिस्तानी आतंकियों ने कायराना तरीक़े से आघात पहुँचाया है तब एसे समय में भारतीय नागरिकों का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर होना लाज़मी है चाहे वह हिन्दू हो या भारतीय मुस्लिम समाज। हर कोई पाकिस्तान को सबक सीखाने की बात  कहता है।

जब अपनों की जान पर बात आती है तब पूरा हिंदुस्तान एक होकर दुश्मन से बदला लेने को आतुर हो जाता है। हर हिंदुस्तानी उड़ी में हुए आतंकी घटना होने के बाद से पकिस्तान से बदला चाहता है। पाकिस्तान की आतंकवादी विचारधारा एक नपुंसक की भाँति है  जो सामने से वार करने के बजाय छुप छुप कर पीठ पीछे से कायराना हमला करता है। एसे आतंकियों पर नकेल कसना बहुत ज़रूरी है। भारतीय सेना के जवान एसे कायरों पर लगाम लगाने में सक्षम है।

सोशल मीडिया की अगर बात करें तो भारत के कोने कोने से एक ही आवाज़ उठ रही है कि पाकिस्तान से सीधे युद्ध कर आमने सामने की जंग का एलान कर दी जाय। परंतु सीधे तौर पर जंग करना क्या ठीक रहेगा?   अगर एसा होता है तो भारत की अर्थव्यवस्था के साथ साथ प्रधानमंत्री जी के विकास के दावों पर भी पानी फिर जाएगा। इस से अच्छा यही है कि पाकिस्तान का हुक्का पानी बंद कर दिया जाय। ताकि दुनियाँ की नज़र में पाकिस्तान अलग थलग पड़ जाए।

इधर प्रधानमंत्री मोदी जी की कूटनीति की तारीफ करनी होगी जिसके कारण पाकिस्तान की छटपटाहट नजर आ रही है। उसकी घबराहट साफ़ देखी जा सकती है। उड़ी हमले के बाद से वह अत्यधिक घबराया हुआ है कि भारत युद्ध ना छेड़ दे। लेकिन भारत सीधे युद्ध ना करके उसे कूटनीतिक तरीक़े से मात देने का मन बना चुका है। यह जरुरी नहीं कि हर बार बन्दुक की नोक के बलबूते से ही बदला लिया जाए , बदला लेने के कई और कूटनीतिज्ञ कारण भी हो सकते हैं ।

अगर सीधे आमने सामने पाक के साथ युद्ध हुआ तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि आधुनिक समय में युद्ध होना कितना विनाशकारी हो सकता है। यह राजा महाराजाओं के ज़माने का युद्ध नहीं होगा। ना ही यहाँ तलवार बाज़ी से युद्ध जीते जायेंगे। यहाँ सामना होगा विस्फोटक परमाणु एटम बम व घातक मिशाइलों से। ये एटम बम व मिशाइलें मौजूदा पीढ़ी के साथ साथ आने वाली नशलों को भी तबाह कर देगा।  जब भी परमाणु बम की बात उठती है तब हिरोशिमा और नागासाकी का ज़िक्र हमेशा याद किया जाता रहा है। सत्तर साल बीत जाने के बाद भी वह भयावह मंज़र याद दिलाता है कि परमाणु बम कितने ऊँचे दर्जे का राक्षस है और कितनी तबाही मचा सकता है जबकि समय के साथ साथ उन एटम बमों की शक्ति में इज़ाफ़ा होता गया है।

इधार अभी ताज़ा हाल सीरिया को ही देख लें।सीरिया युद्ध में हुए आत्मघाती बम विस्फोटों ने कितना नुक़सान पहुँचाया हैं। मौजूदा जनधन  की हानि होने के साथ साथ भविष्य की आने वाली नई पीढी पर कितना असर पढ़ा है। इसका आपने अंदेशा भी नहीं लगाया होगा। आज इंटरनेट मोबाइल हर किसी के हाथों में है ज़रा यूट्यूब पर सर्च कर सीरिया के विडीओज़ देखें, नवजात बच्चे किस प्रकार उन एटम बमों से ग्रसित हैं। यह देखने के बाद आप जान पाएँगे कि वर्तमान में युद्ध करना कितना विनाशकरी हो सकता है।आज यह संभव नहीं है कि जब किसी दो देशों के बीच युद्ध हो तो किसी एक ही देश का नुकसान होगा। बल्कि दोनों देशों को उसका नतीजा भुगतना होगा।

उधर अगर युद्ध की बात करें तो युद्ध करना अंतिम फ़ैसला है । जब कोई रास्ता न दिखे तब युद्ध ही एक मात्र सहारा है। अभी हमारी केंद्र सरकार बन्दुक की नोक पर युद्ध न करके कूटनीतिक तौर पर पाकिस्तानको घुटने टेकने पर मजबूर करेगी। सरकार को अभी युद्ध के लिए उकसाने की कोशिश न करें। युद्ध करना न करना अंतिम फैसला होगा। पर अभी भारत के पास कई विकल्प है पाकिस्तान का दम घोटने के लिए।

आज के हालात भिन्न हैं हम लोग घर के किसी एक कोने में दुपक कर फ़ेसबुक, व्हट्सप, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया में अपनी प्रतिक्रियाएँ दे रहे होते हैं कि पाकिस्तान को सबक़ सीखाने के लिए युद्ध लड़ना चाहिए और यह सब एक कमरे में बैठे बैठे टेट्स डाल दिया जाता है। यह कहाँ तक उचित है। भावनायें व्यक्त करना अलग बात है और उकसाना कैसे ठीक हो सकता है इसपर विचार करना अतिआवश्यक है।
भास्कर जोशी
९०१३८४३४५९

श्रद्धाजंलि हिंदी को


आ गया दिन श्रद्धांजलि देने का
चौदह सितम्बर हिंदी दिवश का
हिंदी के हम भी हैं चेले
यह बतलाने का दिन आ गया।

शुभकामनाओ का अम्बार लगा है
हिंदी , हिंदी के दिन को याद किया जा रहा है
चलिये इसी बहाने ही सही हिंदी को याद कर लें
दो पुष्प हम भी हिंदी को अर्पित करदें

नए दौर के नए तरीकों संग
हिंदी को याद कर सोशल मीडिया पर स्टेट्स डाले
बधाई हो बधाई हो हिंदी दिवश की बधाई हो
चलो इसी  बहाने हम भी हिंदी के रखवाले बन जाएं

हिंदी को याद कर  कवि सम्मेलन , गोष्ठी करें
फूल माला से हिंदी के रण बांकुरों का स्वागत करें
तालियां बजाकर मदारियों सा लुफ्त उठायें
इन्हीं कारणों से जीते जी मर गयी हिंदी रखवालों के कारण ।
भास्कर जोशी

एक समीक्षा : इंद्रेण कुमाउनी पुस्तक लेखक पूरन चंद्र कांडपाल :

उत्तराखंड साहित्य के जन नायक  आदरणीय पूरन चंद्र कांडपाल जी का बहुत बहुत आभार।
आदरणीय कांडपाल जी से कई बार मुलाक़ात हो चुकी है आप सभी की कृपा से आगे भी होती रहेगी। कांडपाल जी से जब भी मुलाक़ात होती है उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है अभी कुछ दिन पहले एक पुस्तक विमोचन के अवसर पर उनसे पुनः मुलाक़ात हुई । मुलाकात के द्वरान उनसे पहाड़ की शब्द शैली पर बहुत कुछ सीखने को मिला है। हम युवा नए अटपटे भाषा की ओर बढ़े जा रहे हैं और अपने मूल भाषा को पीछे धकेल रहे हैं । चाहता तो था कि इस विवरण को पूरे कुमाउनी शैली में लिखूं पर उन अपने पहाड़ी मित्रों को भी ध्यान में रखता हूँ जो पहाड़ से शहर आकार अपनी मूल भाषा को भूल चुके हैं।

 कांडपाल जी अब तक कई हिंदी पुस्तकों के साथ साथ कुमाउनी भाषा में भी कई पुस्तकें लिख चुके हैं । जिसमें कुमाऊंनी कवितायेँ। कुमाउनी कहानियां, गीत, निबंध संग्रह व् आदि हैं । उनमे में से  कुमाउनी सामान्य ज्ञान -उज्याव्, महामनखी- यह तीन भाषाओँ में लिखी है हिंदी कुमाउनी और अंग्रेजी में । महा मनखी में उन्होंने महान विभूतियों पर संक्षिप्त प्रकाश डाला है जिन्हें भारत रत्न और पद्मभूषण सम्मन से नवाजा गया है।
आदरणीय कांडपाल जी की कृपा से उनकी 6  पुस्तके मुझे पहले मुलाकातों में प्राप्त हुई हैं। अब जब उनसे पुस्तक विमोचन के द्वरान मुलाक़ात हुई तो उनके कर कमलों द्वारा -स्कूलीनना लिजी 154 अनुच्छेद , 30 कहाणी, और 16 चिट्ठी  से भरपूर " इंद्रेणी " पुस्तक सप्रेम प्राप्त हुई।
आदरणीय कांडपाल जी ने  भले ही यह पुस्तक छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर लिखी हो परन्तु यह बड़ों मानुसों के लिए भी उतनी ही कारगर साबित होगी, ऐसा मुझे लगता है।  154 अनुच्छेद 30 लघु कथाएं व् 16 चिट्ठियों में ज्ञान व् जीवन में उतारने लायक कई महत्वपूर्ण कहानियां व् अनुच्छेद व्यक्त की हैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है क़ि जिन कुमाउनी शब्दों को हमारी नई पीढ़ी भूल गयी है वे कुमाउनी शब्द इस संग्रह में नजर आते हैं।   जिसप्रकार कुमाउनी भाषा का प्रयोग आदरणीय कांडपाल जी ने किया है वे सीखने लायक है। कांडपाल जी ने 16 चिठियां लिखी है उन्हें पढ़ने का आनन्द ही कुछ और मिला शायद ही शब्दों में बयां कर पाऊं। चाचा, ताऊ, स्कुल, मुख्यमंत्री व् अन्य को हम कैसे कुमाउनी में पत्र लिखें इसपर काफी जोर दिया है।
 लिखा हुवा जितना छोटा या सूक्ष्म हो उतना ही मारक भी होता है। और यह कांडपाल जी के इंद्रेणि कुमाउनी पुस्तक में दिखाई देती है। मैंने आज से पहले कभी भी किसी भी  पुस्तक पर अपनी टिप्पणी नहीं दीं। क्योंकि भय रहता था कि अनजाने में पुस्तक के विषय में कुछ अनुचित न लिख बैठूं जिससे लेखक मेरी वजह से लज्जित महसूस करे। थोड़ा साहस जुटाकर आज थोड़ा बहुत लिखने का प्रयत्न किया है। साथ ही कांडपाल जी की इस पुस्तक ने लिखने के लिए भी बाध्य किया है। कुमाउनी भाषा को बढ़ावा व् सीखने के साथ साथ जीवन में उतारने योग्य कई महत्वपूर्ण शिक्षा दी है एक शिक्षक की भांति। कांडपाल जी की यह पुस्तक 'इंद्रेणि" कुमाउनी साहित्य भाषा सीखने वालों के लिए शिक्षक बनकर उभरी है ।

कविता

आप सभी के आशीर्वाद और हरदौल वाणी साप्ताहिक अखबार की कृपा से मेरी रचना को स्थान देने के लिए आदरणीय देवी प्रसाद गुप्ता जी (श्री जी), भाई ललित मोहन राठौर जी का बहुत बहुत आभार

कविता
मैं ही मैं
मैं ही ज्ञानी
मैं ही सबकुछ
मैं ही "अहम्"।

तू तुच्छ
तू मूरख
तू तेरी तूती
तू ही "खल"।

ये मेरा
वो भी मेरा
सब मेरा
मेरा ही "मरा"।

मैं बड़ा
सब में, मैं बड़ा
बड़ों का भी बड़ा
बड़ा ही "तेल में तला"।
भास्कर जोशी
9013843459

एक और भद्दी सियासत

कल दिल्ली में मनीष सिसोदिया प्रेस कॉन्फ्रेंस के द्वारान उनपर एक व्यक्ति ने स्याही फेंक दी। मुझे बहुत ख़ुशी मिली। वह स्याही फैकने वाला व्यक्ति किसी पार्टी से था या नहीं यह अलग मुद्दा है पर स्याही फेककर उसने अच्छा ही किया ।
दिल्ली में आप को वेश्या वृति करने के लिए जनता ने  कुर्सी पर नहीं बैठाया था बल्कि जनता के लिए कुछ काम करेंगे इस लिए बैठाया था पर आप ने क्या किया। रास लीला, वासना व कुर्सी के मोह में अय्याशियां। क्या यही थी आपकी नई राजनीति।
दिल्ली में हर साल इस मौसम में डेंगू और चिकनगुनिया जैसे जान लेवा बीमारियां पनपती हैं क्या आप को यह पता नहीं था। तब भी आप रंगरलियां मनाने विदेश चले गए। दिल्ली की जनता अस्तपतालों  पर पड़े पड़े अपनी बिमारी से लड़ रहे हैं तब इसे में आप दिल्ली की जनता से दूर मौज मस्ती कर रहे हैं। बाद में इसे राजनितिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं ।
सायद आप को याद हो या न हो पर मुझे अच्छे से याद है जब दिल्ली में शिला दीक्षित की सरकार थी तब आप ने क्या किया। कैसे कैसे नौटंकियां दिखाई थी। धरना दे दे कर आपने फालतू के सड़कों पर जाम लगाया था। तब से आजतक आप का क्या बदल गया । आप पहले भी जनता  को परेशान करते थे आज भी सरकार की कुर्सी मिल जाने के बाद भी जनता को परेशान ही कर रहे हैं
ऐसे लोगों पर स्याही क्या और कुछ फेकने चाहिए । जिस से ये राजनीति करना भूल जाएं। लेकिन साथ ही यह हिन्सा ठीक नहीं है. किसी पर स्याही या कुछ फेकना हिन्सा माना जाता है . विरोध के लिए ओर भी तरीके हैं.

काला सच

2 अक्टूबर काला दिवश
जी हां पूरा भारत 2 अक्टूबर को जब गांधी जयंती  मना रहा होता है उसी दिन उत्तराखंड काला दिवश मना रहा होता है। यह काला दिवश हर वर्ष दिल्ली जंतर मंतर पर 1994 मुज्जफरनगर में  शहीद हुए उत्तराखंड के आंदोलनकारियों को  याद कर, दोषियों को सजा देने की मांग की जाती है।

26 साल बीत जाने के बाद भी आजतक उन आरोपियों को सजा नहीं हुई जिन्होंने बर्बरता पूर्वक उत्तराखंड से दिल्ली आ रहे आंदोलनकारियों का कत्लेआम किया। आज भी वे दोषी खुले आम घूम रहे। उन दोषियों के खिलाफ तब से लेकर आज भी 2 अक्टूबर को जंतर मंतर पर काला दिवश के तौर पर धरना प्रदर्शन किया जाता है।

गत 2010 में, मैं जब दिल्ली आया तब जंतर मंतर की जानकारी अपने को नहीं थी । 2011 से  दिल्ली में उत्तराखंड के सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा । उसके बाद ही मुझे काला दिवश व मुज्जफर नगर काण्ड के बारे में पढ़ा और सुना । पिछले पांच वर्षों से मैं भी जंतर मंतर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराता रहा हूँ। लेकिन तब उत्तराखंड के कुछ ही गिने चुने लोग पहुँचते थे। यही कोई 30 या 40 लोग, वह भी बड़ी मुश्किल से। लेकिन पिछले साल जब गया तो देखा इसबार काफी उत्तराखंड के लोग एकत्रित हैं। परंतु उन 30 या 40 लोगों में से 4-5 ही लोग नजर आये जो हर साल दिखाई देते  थे। बाकी सब नदारद थे। जानने के बाद मालूम हुआ कि यह भीड़ उत्तराखंड क्रांतिदल की है। जिन्होंने अभी अभी उत्तराखंड क्रांति दाल जॉइन किया है। एक तरफ अच्छा भी लगा दूसरी ओर दुःख भी हुआ।

अच्छा इसलिए लगा कि पहली बार जंतर मंतर पर उत्तराखंड के लोगों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली। लगा कि दिल्ली केंद्र सरकार तक इस भीड़ का असर पड़ेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुवा।

दूसरी ओर दुःख इसलिए भी हुआ कि उत्तराखंड क्रान्ति दल इस से पहले कहाँ था जिसने उत्तराखंड राज्य आंदोलन की स्थापना की। पांच सालों से लगातार देख रहा था पर कभी इस प्रकार उत्तराखंड क्रांति दल के लोग नहीं दिखे।  एकाएक ऐसा क्या हो गया कि जंतर मंतर पर इनकी भीड़ उमड़ आयी। एकाएक ऐसा कौन सा सपना देख लिया था कि मुज्जफरनगर काण्ड की इन्हें याद हो आयी?

खैर अभी 2017 में उत्तराखंड में चुनाव होने हैं। सियासी दाव पेच खेलना कोई इन राजनीतिज्ञों से सीखें। जब चुनाव नजदीक आते हैं तभी इन्हें अगला पिछला याद आता है। वरना खामखां में तू कौन और मैं कौन?
भास्कर जोशी

हिंसा का मार्ग सही कैसे

शहीद सरदार भगत सिंह को याद कर आज मन में कई सवाल अंदर ही अंदर द्वन्द कर रहे हैं । शायद इसका जवाब आपके पास हो।

एक ओर भारत को ब्रिटीश की गुलामी से आजादी दिलाने वाला शहीद सरदार भगत सिंह है तो उधर आतंकी बुरहान वाणी । दोनों में कितना अंतर है यह मैं स्पष्ट नहीं कर पा रहा हूँ। हो सकता है कि इस पोस्ट को डालने के बाद कई लोग नाराजगी जाहिर करे पर सत्य अपनी जगह पर है।

हर माँ यही चाहती है कि उसका बेटा सरदार भगत सिंह जैसे देश भक्त हो।  जिसने आजदी के लिए हँसते हँसते अपनी जिंदगी भारत के नाम कर दी। ये वही शहीद सरदार भगत सिंह है जिन्हें तब ब्रिटिश सरकार ने आतंकवादी घोषित किया था। हिंसा के बल पर ब्रिटिश की नींव हिला डाली थी। भारत को आजाद कराने के लिए उन्होंने हिंसा का मार्ग अपनाया और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित कर फांसी के तख्ते पर लटका दिया। तब हिंदुस्तानियों ने सरदार भगत सिंह की इस कुर्बानी को भारत के लिए शहादत करार दिया।

अब दूसरी ओर है आतंकी बुरहान वाणी। जो कश्मीर को भारत से आजाद करना चाहते हैं। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ऐसा हम मानते हैं पर वे कुछ कश्मीरी अपने को आजाद नहीं समझते इन्हें लगता है कि वे भारत में गुलाम है। वे अपने को आजाद कराना चाहते हैं कश्मीर को आजाद कराने के लिए बुरहान वाणी ने भी वही हिंसा का रास्ता चुना जो शहीद सरदार भगत सिंह ने चुना था।

इन दोनों में अंतर स्पष्ट नहीं कर पा रहा हूँ क्या आप मदद कर सकते हैं ?-
भास्कर जोशी

कहो कैसी रही

कहो कैसी रही
अब आया न  मजा।

हर बार हिजड़ों की टोली भेज
मेरे देश में दहशत फैहलाय करते थे
अबकी बार बारी हमारी थी
तुम्हारे घर में घुसकर
हिजड़ों की टोली मिटा डाली।
कहो कैसी रही
अब आया न मजा।

बहुत इतराते थे तुम
साँपों को दूध पिलाकर
आतंकवादियों की माला गले में लटकाकर
एक एक पेच कसेंगे तुम्हारे नापाक मनसूबों पर
ना पाक रहेगा न तुम्हारी गीदड़ भक्ति
तुम्हारे घर में घुसकर तुम्हारी ही बजा डालेंगे
कहो कैसी रही
अब आया न मजा ।

सियासी भेड़ियों की सियासत

कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के कुछ चंद लोग, सच मानिये तो चंद लोग नहीं चंद नेता  सेना पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। क्या यह उचित है ?

इसी रविवार को जब हम अपने घरों में छुट्टी मना रहे थे, कुछ लोग मॉल में घूम रहे होंगे , कुछ लोग मूवी देखने थिएटर गए होंगे तो कुछ लोग किसी न किसी बहाने मौज मस्ती कर रहे होंगे पर तभी पकिस्तान से कुछ आतंकियों ने भारत में घुसने की कोशिश की। उस वक्त बॉडर पर 24 साल का जाबांज सिपाही अपने एक और साथी के साथ निगरानी रख रहा था। कि तभी पकिस्तान की ओर से कुछ आतंकी भारत की ओर घुस आए। तब उस 24 साल के बहादुर देश भक्त ने उन आतंकवादियों के साथ गोला बारी शुरू हो गयी। इसी के चलते उस 24 साल के लड़के का साथ दे रहा दूसरा माँ भारती का लाल सहीद हो गया। लेकिन उस जाबांज 24 के लड़के ने अपनी हिम्मत दिखाते हुए उनसे लड़ते रहा। तभी आतंकियों ने गर्नेट दाग कर उस जाबांज सिपाही को घायल कर दिया परन्तु इसके बाद भी वह भारत माँ की रक्षा के लिए लड़ता रहा और कई आतंकियों का खात्मा कर दिया।
गोली बारी की आवाज सुन भारत की सेना टुकड़ी वहां पहुंची तो उनके साथ मिलकर शेष बचे हुए आतंकियों को उलटे पांव भागने को मजबूर कर दिया। और यह सब 24 साल के जाबांज देश का सच्चा रक्षक ही कर सकता है।
इधर सियासी भेड़िये अपने गन्दी राजनीति करने के साथ साथ देश के रक्षकों पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। क्या कुर्सी की लालसा में आदमी इतना नीचे  गिर जाता है कि उसे सही गलत में फर्क नजर नहीं आता हो? देश की रक्षा करने वालों से सबूत मांगे जा रहे हैं? देश की मर्यादा अखंडता को दरकिनार कर देश द्रोह पर उतर आये हैं। यह कहाँ तक उचित है???

Monday, September 5, 2016

शिक्षक दिवश पर एक नजर

शिक्षक दिवस पर आज थोड़ी उत्तराखंड की शिक्षा प्रणाली पर भी कर लें।
उत्तराखंड की सरकारी स्कूलों पर नजर दौड़ाने की आवश्यकता है। एक दौर था जब दो या चार कोष की दुरी पर स्कुल के लिए पैदल जाना होता था। गांव से बच्चों का झुण्ड का झुण्ड निकलता था। सरकारी स्कूलों में इतनी भीड़ होती थी कि टीचर्स के लिए बच्चों का ध्यान रखना बहुत ही मुश्किल होता था। प्राइमरी के स्कूलों में बच्चों का रोना। उन्हें थामना शिक्षकों के लिए भरी पड़ता था।
स्कूलों में बच्चों की भीड़ उस समय यह साबित करती थी कि वह व्यवसाय नहीं है बल्कि शिक्षा का मंदिर है। बाद में सरकारों ने यह निर्णय लिया कि हर गांव में स्कूल हो। स्कुल इतने खोल दिए कि बच्चों व् शिक्षकों की संख्या घटने लगे। एक स्कुल में कक्षा एक से लेकर पांचवी कक्षा तक 10 या पंद्रह बच्चे होने लगे। इतने बच्चों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक। उस शिक्षक हो स्कुल भी खोलना था उसी को कागजी काम भी करने थे उसी को  ही ब्लॉक व् जिला अधिकारी के दिशा निर्देश पर अन्य काम भी करने थे। भला एक शिक्षक 10 काम कैसे कर सकता है यह सोचने वाली बात है।
फिर दौर चला व्यपारिक शिक्षा व्यवस्था का । जो कि खकरीदी और बेचीं जाती है। वह है प्राइवेट स्कूलों का दबदबा । इन स्कूलों न पढाई के साथ साथ सुविधाएं भी दी। पर इन स्कूलों के चलते उन सरकारी स्कूलों की मौजूदा हालात जर्जर स्थिति में पहुँच गयी हैं। आज उन स्कूलों का यह है क़ि एक शिक्षक और दो बच्चे। यह कक्षा एक से पांचवी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों का लेखा जोखा है। उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था को देखकर तो यही लगता है कि वह भी ICU में भर्ती है। लाखों करोड़ों का बजट बनने के बाद भी वह खटिया पर दम तोड़ने के लिये तैयार है। हालात इतने बिगाड़ चुके है कि सरकारी स्कूलों का जिन्दा रहना नामुमकिन सा हो गया है। अब तो ऊपर वाले की दुआ से ही कुछ चमत्कार हो सकता है।  क्योंकि सरकारी दुआ और दवा दोनों ही ठेकेदारों कीजेबों में है।-भस्कार जोशी "पगल'

Sunday, August 28, 2016

आओ बिमाण्डी (बेमानी ) खाएं

आओ थोड़ा बिमाण्डी (बेईमानी) खायें
अब भला बिमाण्डी कोई खाने वाली चीज है क्या। हम ठहरे आम नागरिक हमें कहाँ बिमाण्डी खानी आती है । बस कभी कभार अपनों से छोटी मोटी झूठ बोल लेते हैं अपनीख़ुशी के लिए। झूठ अगर पकडा गया तो फिर हमारी कुटाई शुरू। झूठ भी हमें सही से हजम नहीं होता । अब भला हम बिमाण्डी खाएं भी तो किस से खाएं?
नेताओं का क्या है उन्होंने तो झूठ से स्नातक की डिग्री ली है और बिमाण्डी से पी एच डी। और हम हुए मैट्रिक फेल। ऐसे में भला कैसे बिमाण्डी खाएं। यह तो सोभा भी उन्हीं को देता है जो बिमाण्डी पर पी एच डी कर चुके हों। हमें तो यह भी नहीं मालूम की कितने बिसि के सैकड़ होते हैं गिनती भी ठीक से कर नहीं पाते । अब यही देख लीजिये -40 तक की गिनती तो ठीक ठाक गिन लेते हैं उसके बाद इकाली, बयाली, तिराली, चौराली, पिचाली, छियाली, सताली, अठाली, नावाली, नब्बे, और 60 में हमारी 100 तक गिनती पूरी। ऐसे में भला बिमाण्डी कैसे खाएंगे। 
बिमाण्डी खाने वाले बड़े साहसी होते हैं और बिमाण्डी कर के भूल भी जाते है कि अभी लास्ट टाइम उन्होंने कौन सी बिमाण्डी खाई थी। इसलिए वे बिमाण्डी में भारी भरकम बिमाण्डी खाने में भी संकोच नहीं करते। वे कम कम भी नही खाते बल्कि एक ही बार में सात पीढ़ियों के लिए हो जाए इतना इक्कठा खा लेते हैं। 
वैसे सुना है आजकल उत्तराखंड में बिमाण्डी खाने की होड़ लगी है बात सच है क्या ?- 

रातों रात राम मंदिर बन गया

समूचे भारत में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी. राम मंदिर बनने की ख़ुशी में लोग एक दुसरे को बधाई का सन्देश दे रहे हैं. मिठाई बांटी जा रही हैं. कौन सा भी न्यूज़ चैनल लगाव लें सभी पर राम मंदिर बनने का विषय छाया हुवा है.. व्ह्ट्सअप फेसबुक ट्विटर सब जगह राम मंदिर पर बधाई के सन्देश पर सन्देश भेजे जा रहे हैं. एक रात में यह सब हो गया किसी को कानो कान खबर नहीं हुई. अयोध्या वाशियों को भी इस बात की कोई जानकारी नहीं थी. सुबह जब जाग कर उठे तो देखा भव्य राम मंदिर चमचमा रहा है. वहां के लोग बढ़ चढ़कर राममंदिर की भव्य कला मूर्ति व भगवान राम को स्थापित देख कर खुसी से नांच रहे हैं. मिडिया में खबर आते ही देश भर से लोग राम मंदिर देखने के लिए उमड़ रहे हैं.. 
राममंदिर में भक्तों की भीड़ को देखकर पुलिस की चौकसी बढ़ा दी गयी है उधर भाजपा के खेमे में ख़ुशी के मारे लड्डू बाँट जा रहे हैं. वे खुश हैं कि उन्होंने जो कहा था वह कर दिखाया. परन्तु किया किसने यह उन्हें भी मालूम नहीं है. पर अभी नाचने और झुमने का समय है. राम मंदिर बनने की खुशी में आर एस एस के लोगों में भी उत्सह की लहर उठ रही है वे भाजपा की पीठ थपथपाते हुए अपनी पीठ भी थपथपा रही है. उधर अन्य राजनीतिक दल भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं और भगवा आतंक का राप अलाप रहे हैं,
मिडिया के हर चैनल पर राम मंदिर छ्या हुवा है और आपस में यही डिवेट चल रही है कि कल तक कानों कान किसी को खबर नहीं थी कि रातों रात राम मंदिर बन सकता है और एक ही रात में राम मंदिर बनकर तैयार हो गया.
यह वास्तव में अकल्पनीय है. क्या रात को विश्वकर्मा देव आये और रातों रात मंदिर बना कर चले गये ? यह संभव नहीं. आज के युग में ऐसा होना असम्भव है. सोचने वाली बात यही है कि रातों रात मंदिर कैसे बनगया. लेकिन अभी देश राम मंदिर बनने की ख़ुशी में मस्त है खुशियाँ बांटते हुए लोगों के मुख से यही सुना जा रहा था बधाई हो बधाई राम राज्य लौट आया है ..मैंने भी अपने सभी साथियों को व्ह्ट्सअप और फेसबुक व ट्विटर पर बधाई दे रहा था. कि इतने में किसी ने बहार का दरवाजा खटखटाया जोशी जी ओ जोशी जी आज ऑफिस नही जाना है क्या ? सुबह के आठ बज गये हैं अभी तक उठे नही, झठ से नीद खुली चौंक सा गया ...अपने से कहा- “यह क्या मैं सपना देख रहा था” 

Friday, August 19, 2016

शिक्षा पर चर्चा

भारत की शिक्षा  व्यवस्था हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा हैं .
शिक्षा को लेकर एक पुराना किस्सा याद  आता है ..दिल्ली में आये हुए एकआद साल ही हुवे थे  मित्रों से मिलाना  उत्तराखंड व  अन्य बैठकों में भाग लेने । बड़ा ही  आतुर रहता..इसी बीच मंच पर बोलने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ | तब मंच से मैंने राजनीति और शिक्षा के लचर व्यवस्था को लेकर सवाल उठाये थे | उस बैठक में एक महानुभाव और बैठे हुए थे जिन्होंने शिक्षा को लेकर बड़ी बैठक ओर्गनाइज की थी उन्होंने उस बैठक में आने का न्योता दिया .. बैठकों में भाग लेने के लिए आतुर रहता ही था सो वहां चला गया| वहां सब बड़े बड़े लोग नए चहेरे सूट बूट धारी लोग मैं बड़ा अचंभित था क्योंकि कभी एसी बैठक में गया नही न ही कोई अपने बिरादरी के लोग थे सब अलग अलग राज्य से थे कोई डॉ तो कोई प्रोफ़ेसर तो कोई .........न जाने  क्या क्या। अलग अलग संस्था समूह के लोग बैठक में आये हुए थे .. और अपनी उमर का में एक ही था मेरे आसपास के उमर का कोई नहीं । कुरता पजामे में मैं चुप चाप जाकर पीछे एक कोने पर कुर्सी पकड़ कर बैठ गया .. कुछ देर बाद हौल की सारी कुर्सी भरने लगी । मेरे बगल  वाली कुर्सी पर के सूट बूट नामी टाई धारी व्यक्ति आकार बैठ गये। कुछ देर बाद परिचय हुआ | कहाँ से हो , क्या करते हो? सवाल जवाब का संवाद चलने लगा। शिक्षा के बारे में पूछा कहाँ से की कितनी की | मैंने कहा साहब- मैंने प्राइमरी पाठशाला स्कुल से शुरू किया जिसे आप मुंशीपाल्टी स्कुल कहते हैं और ग्रेजुएशन कर आगे की पढाई जारी है| कुछ देर के बाद एक अजीब सा सवाल कर बैठे- मुंशीपाल्टी स्कूलों के बच्चे अपना विकाश नही कर पाते, जबकि मोडर्न स्कुल के बच्चे काफी आगे निकल जाते हैं | मैंने कहा साहब हम मुंशीपाल्टी के लोग अंगूठे से पैन तक पहुँच गये और मोडर्न स्कुल के आप  लोग पैन से शुरू हुए थे वहीँ पैन  पर अटके  हुए हो .. आप तो आगे बढे ही नही .हम लोग जमीनी लोग हैं उठ कर कभी गिर भी गये तो सभलने में देर नही लगती लेकिन जब आप उठे हुए लोग गिरते हैं तो सभाल नही पाते  हैं| . तो बताओ विकाश किसका हुआ ... ? हम लोगों ने वह असली जी है और आप रहे वह बनावटी दुनियां में । आज भी मंच द्वारा बनवटी ही बात हो रही है। जो सायद ही कभी इसका लाभ ले सकें। पर हाँ हमारे वे मुंशीपाल्टी से निकले हुए लोग ही बड़े औधों पर काम कर रहे बड़ी इमानदारी से ।
खैर सर छोड़िये, आप उस बात को सायद ही समझ पाओगे क्योंकि वह व्यक्ति ही जानता है जो वहां से उठकर निकला हो।
यूँ ही मन किया आप लोगों के साथ शेअर कर दिया ..भास्कर जोशी

आजादी का जश्न दूसरी तरफ मौत का जाल

एक तरफ आजादी का जश्न था  , दूसरी तरफ मौत का जाल बिछाया जा रहा था।
जी हां सच है। कल आप सभी आजदी के जश्न से झूम रहे थे मौज मस्ती कर रहे थे। पतंक बाजी हो रही थी। आपके पतंक बाजी से किसी की जान जा सकती है । जी हां जब आप पतंक बाजी कर रहे थे तब आपने यह नहीं सोचा होगा कि आपके पतंक उड़ने से किसी की जान भी सकती है। आपके पतंक कटने के साथ जो मांजा (धागा) आप लगाते हैं वह इतना जालिम होता है क़ि किसी का भी गला काट सकता है। जबकि सरकार द्वारा उस धागे पर बैन लगा दिया गया था । लेकिन आज भी वह बाजार में धड़ल्ले से बिक रहा है। वह चाइनीज माजा धागा इतना सख्त है कि टूटता नहीं।
आज चारों तरफ आपके कटे पतँकों के साथ साथ वह धागा जगह जगह बिखरा हुवा है रोड, गलियों मे बड़ी सावधानी से चलना पढ़ रहा है। आपके पतँकों द्वारा बिछे उस जाल में पता नहीं कब पांव में फंस जाए और मुहं के बल गिरकर, अपने हाथ पांव तुड़वा बैठें।
यदि कहीं रोड में इस पार से होते हुए उस पार तक आपकी कटी हुई पतंक मांजा सही चली जाए , तभी को बाइक सवार गुजरे तो यह पक्का है क़ि उस बाइक सवार व्यक्ति क्षतिग्रस्त होगा।
कल से मैं कई बार गिरते गिरते बचा हूँ । एक तो वह धागा साफ साफ दिखाई भी नहीं देता साथ ही आज सुबह गली के केबल तार से लटका हुआ मांजा दयनीय स्थिति में लटका हुआ था। यह सोचकर उसे हटाने का प्रयत्न किया कि किसी के साथ अनहोनी न घटे। जैसे ही उसे हाथ में लिया उसे तोड़ने की कोशिश की तो उसने मेरी हथेली पर चीरा लगा डाला।
इस बात से आप अंदेशा लगा सकते है कि यह मांजा कितना खतरनाक है। आप तो अपने मजे के लिए स्तेमाल कर रहे हो पर यह आपका मजा किसी पर भारी पड़ सकता है। किसी की जान जा सकती है। अपने बच्चों को भी इस बात से परिचय कराएं। -भास्कर

Saturday, July 23, 2016

बड़े अच्छे हैं


जी वे तो
बड़े अच्छे हैं
दिल के सच्चे हैं
मन के भोले हैं
बड़े ही सीधे साधे हैं
बड़ा ही सौम्य स्वभाव हैं उनका
उनसे कुछ न कहना
उनसे कुछ न पूछना
हाँ में हाँ कहना
ना में ना कहना
जो वे कहें वही करना
जो न कहें वह न करना
वे कहें कि वह चोर है
तो कहना हाँ चोर है
वे कहें सब ठीक है क्या
तो कहना हाँ सब ठीक है
अगर तुमने अपने मनकी की
तो वे फिर धरने पर बैठ जायेंगे जी । -भास्कर जोशी

Thursday, July 21, 2016

आंसुओं का सैलाब

अलकनंदा पत्रिका के वर्ष 43 अंक 1 जुलाई याउर हरदौल वाणी सोमवार 18 जुलाई के अंक में प्रकाशित मेरी कविता आँसुओं का सैलाब

आँसुओं का सैलाब

बह उठी आँसूँ की धारा
ज्वलंत, रौद्र, पीड़ा से भरे
ज़ख़्मों की पीड़ा न सह सकी प्रकृति
आँसुओं की प्रलय धारा बह उठी।

क़हर बरपा रहे हैं आँसूँ उसके
न समझ सके दर्द उसका कोई
नर अत्याचारों के चरम पर पहुँचकर
प्रकृति को रोने पर मजबूर किया

सिने पर बम बाँध उसके
विकास का नाम दे दिया
चोट लगी, कहरा उठी
निकल पड़े आँसू भयावह रूप लेकर

नदी रूपी रक्त प्रवाह को बाँधकर
बना दिए आधुनिक बाँध तुमने
भार से उसके छटपटा- तिलमिला उठी
टूट  गये सब, सब्र के बाँध उसके।

सबकुछ तो दिया था प्रकृति ने तुम्हें
फिर क्यों सिने पर ख़ंजर गाढ़ दिया
विकास नहीं विनाश को दावत दी है तुमने
तुम्हारे कृत्यों का भुगतान प्रकृति को करना ही था।-भास्कर जोशी

कहानी-पिता की मज़बूरी

कहानी का पहला भाग सोमवार 18 जुलाई हरदौल वाणी के साप्ताहिक अखबार में प्रकाशित करने के लिए संपादक आदरणीय श्री देवी प्रसाद गुप्ता (श्री जी) साहित्य संपादक श्री ललित मोहन राठौर भाई जी का बहुत बहुत आभार। मित्रो यह कहानी चार भाग में लिखी गयी है। पहल भाग प्रकाशित होने पर आप सभी के बीच है दूसरा, तीसरा तथा चौथा भाग ज्यों ज्यों प्रकाशित होंगे आप सभी के बीच होगा । आप सभी मित्रों द्वारा आशीर्वाद, दुलार सस्नेह बना रहे। यह प्रकाशित होने वाली मेरी दूसरी कहानी है इस से पहले की कहानी भी हरदौल वाणी अख़बार में ही प्रकाशित हुई थी आप सभी का साथ बना रहे। 

पिता की मजबूरी

भाग (१)

 दीवान भाई व उनकी पत्नी  बहुत परेशान थे। परेशानी का कारण था उनका छोटा बेटा 14 साल का रघु। जोकि उसकी बीमारी ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी। अब तक बहुत से डॉक्टरों को दिखा चुके थे बहुत से  जांच करवाये गये पर रिपोर्ट में कुछ नहीं निकलता । डॉक्टर कमज़ोरी बताकर दवाई का पर्चा हाथ में थमा देते। बिस्तर पर लेटे हुए उसे तीन महीने हो चुके थे। दीवान भाई  अपने बेटे रघु  की दिन रात सेवा करते लेकिन रघु की  बीमारी से वह काफ़ी बदहाल हो चुके थे। बीमारी क्या है यह मालूम होता तो अबतक रघु ठीक हो गया होता।

रघु शारीरिक तौर पर कमज़ोर हो चुका था। उसे अंदर बाहर  लाने-लेजाने के लिए हरसमय एक सहारा चाहिए था। दीवान भाई ने क्या कुछ नहीं किया, हकिम, वैद्य से लेकर एक से बढ़कर एक डॉक्टरों को दिखा चुके थे। पर नतीजा कुछ न निकलने से हताश हो चुके थे। एक दिन रघु को देखने के लिए गाँव के कुछ लोग आए उन्होंने  रघु की स्थिति देखी। गाँव के लोग उसके स्वस्थ होने की कामने करते। दीवान भाई गाँव वालों के साथ बैठ अपना दुखडा रोने लगे। गाँव के लोगों ने कहा कि एक बार आप किसी पूछ बाधा (पूछ्यार) करने वाले को क्यों नहीं दिखा लेते। क्या पता क्या हो ? दिखलाने में हर्ज ही क्या है। दीवान भाई इसके लिए कभी तैयार नहीं थे। वे इन सब में विश्वाश नहीं रखते थे लेकिन उनकी पत्नी अपने बेटे की सलामती के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार थी। माँ है ना ! 

दीवान भाई के लाख समझाने पर भी उनकी पत्नी ने उनकी एक न सुनी और ज़िद्द कर बैठी। दीवान भाई ने अपनी पत्नी की ज़िद्द और बेटे की बीमारी के आगे मजबूरन घुटने टेककर हालत से समझौता कर लिया ।

अगले दिन गाँव के बुज़ुर्गों से राय मस्वरा की और उन्हीं लोगों ने पूछ बाधा करने वाली महिला का पता बताया  जो गाँव से एक कोष की दुरी पर रहती थी। दीवान भाई व उनकी पत्नी पूछ बाधा करने वाली महिला के घर पहुँचे। विचार विमर्श करने के बाद, पुछ्यार करने वाली ने बताया कि ' इस परेशानी का कारण आपका  घर ही है इष्टों देवता का रुष्ट होना है। इष्ट (देवता) का कोप सिर्फ़ आपके बेटे पर ही नहीं पूरे परिवार पर पड़ा है। अगर समय पर कुछ ना किया गया तो बाक़ी घर के सदस्यों के साथ भी एसा ही कुछ हो सकता है ।' दीवान भाई ने पूछा कि देवता को कैसे शांत करें?-पूछ करने वाली ने बताया कि आप अपने घर में देव पूजा का आयोजन कराएँ याने  की जागर करवाएँ। अपके गाँव में जागर वाले ज़गरी और ड़ंगरी को बुलाएँ। कैसे करवाना है यह  आप लोग बैठकर तय करलें । दीवान भाई ने बात मानकर पूछ बाधा करने वाली को कुछ पैसे दिए और वहाँ से लौट आया।

घर पहुँचने पर दीवान भाई ने गाँव के जगरी और ड़ंगरी को अपने घर देव पूजा (जागर) के लिए बुलाया। दोनों के पहुँचने पर दीवान भाई ने उनसे कहा कि मैं कल पूछ बाधा करने वाली महिला से मिला और उसने बताया कि हमारे घर का देवता रूष्ट हुवा है क्रोधित है  उसे आप ही शांत कर सकते हैं एसा पूछ बाधा करने वालीने कहा है। अब आप कैसे भी देवता को शांत कीजिए और मेरे बेटे को ठीक कीजिए। डंगरिए और जगरिए के बीच गुपछप बात हो रही थी कि तभी दीवान भाई ने कहा कि मुझे दिन-वार सुझाएँ कब और कैसे करना है।

जगरिए और डंगरिए ने दिन सुझाया और सामान की लिस्ट दे दी। कहा- यह सामान ले आना बाँकि क्या क्या लाना है वह आप मेरे सहायक से पूछ लेना वह आपकी मदद कर देगा। दीवान भाई को उन दोनों ने जो लिस्ट दी, उसके अनुसार सारा सामान बाज़ार से ले आये। सामान अपनी पत्नी को देते हुए दीवान भाई ने कहा - कुछ सामना बच गया हो तो सहायक से पूछ कर आता हूँ। दीवान भाई सहायक के पास गये । वह  लिस्ट दिखाई जो ज़गरी और ड़ंगरी ने दी थी। 
सहायक ने कहा- सारा सामान ले आए हो ना?
दीवान भाई- जी इस पर्चे के अनुसार सब ले आया हूँ। अगर कुछ बच गया हो तो बताएँ ताकि समय पर ला सकूँ
सहायक- असली सामान तो अभी भी छूट ही गया 
दीवान भाई - वह क्या ? उन्होंने जो बताया वह में ले आया हूँ। 
सहायक -इसीलिए उन्होंने मुझसे मिलने के लिए कहा था
दीवान भाई- तो बताएँ क्या सामान छूट गया है
सहायक- ड़ंगरी और ज़गरी के लिए खान पान सही होना चाहिए अगर वे नाराज़ हुवे तो बनने वाले काम और भी अधिक बिगड़ सकते हैं इसलिए उनके खान पान पर विशेष ध्यान रखना होगा।
दीवान भाई-आप बताएँ जो भी लाना हो, मैं लेकर आऊँगा बस मेरा बेटा ठीक होना चाहिए।
सहायक- ठीक है शाम को एक बोतल अलग से ले आना, अभी एक बोतल और एक मुर्ग़े का भुगतान दे ही दो। पूजा के दिन आपके घर पर करना ठीक नहीं होगा इसलिए हम अपने घर पर ही मुर्ग़ा बना लेंगे।
दीवान भाई ने जेब से दो हज़ार रुपए निकाले और सहायक को देकर अपने घर लौट आए दूसरे दिन पूजा के लिए तैयारी भी करनी थी।


भाग (२)

सुबह के चार बजे थे। दीवान भाई उठे, घर के बाँकि सदस्यों को भी समय पर जगा लिया गया ताकि समय पर घर के सारे काम हो जाए। दीवान भाई और उनकी पत्नी ने सुबह के आठ बजे तक घरेलु काम काज सब निपटा लिये। अब वे जागर की  तैयारी करने में जुट गये। इत्तेफाक  से उन्हें याद आया कि सहायक ने शाम  के लिए एक बोतल  शराब की और मँगाई थी। दीवान भाई ने अपनी पत्नी से कहा मुझे अभी बाज़ार जाना होगा, कुछ सामान छूट गया है उसे ले आता हूँ। तब तक तुम जागर के सारे सामान को एक टोकरी में लगाकर रख दो ताकि जब वे आएँ तो सारी सामग्री उन्हें देने में सुविधा होगी।
दीवान भाई ने झोला लिया, बाज़ार की तरफ़ चल पड़े । उधर ड़ंगरी, ज़गरी और सहायक अपनी पार्टी की तयारी में जुट गए। पहले ही वे दीवान भाई से एक बोतल और मुर्ग़े का पैसा ले चुके थे। दोपहर से ही उनका मुर्ग़ा-सुर्गा बोतल-सोतल खुल गयी। उन लोगों के हाथ में आज अच्छा ख़ासा मुर्ग़ा (दीवान भाई) जो फसा था। इधर दीवान भाई उनके शाम के पीने खाने के लिए एक बोतल शराब और ले आए।

शाम के छः बजे होंगे, तभी वे तीनों शराब पीकर-खा कर आ पहुँचे। दीवान भाई ने  उनकी आव भगत की, सम्मान के साथ आशन पर बिठाया। उनसे चाय नास्ते के लिए पूछा गया पर उन्होंने मना कर दिया और कहा- आज हमारा व्रत है बस एक बर्तन में हमें पीने के लिए पानी दे दें।
उधर रघु ने अपनी पीड़ा रोकर सबका ध्यान अपनी ओर खीचने की  पुरजोर कोशिश की, ताकि वह भी इस हलचल का कारण जान सके|  उसे बाहर जाना था पर घर के सभी सदस्य शाम  की तयारी में व्यस्त  थे। किसी को उसका ध्यान नहीं आया। जब उससे सहन नहीं हुआ तो वह रोने लगा। रोने की आवाज़ सुनकर उसकी माँ दौड़ती हुई पहुँची। माँ ने उसे देखा तो उसे बाहर ले आयी, रघु को बाहर आता देख दीवान भाई के आँखों से आँसूँ टपक पड़े। मन ही मन सोच रहे थे जिसके लिए यह सब ताम झाम हो रहा है आज मैं उसी को ही भूल गया हूँ कैसा बाप हूँ मैं, अपने बेटे की देख रेख तक न कर सका? वे अपने आप को कोषने लगे। दौड़ते हुए दीवान भाई रघु के पास पहुँचे, अपनी पत्नी से कहा- जाओ तुम घर के और काम देखो, रघु को मैं देखता हूँ।थोड़ा देर रघु को बाहर घुमाने के  बाद उसे बिस्तर पर लेटा दिया । उधर सहायक ने दीवान भाई को आवाज़ दी-दीवान भाई.... ओ दीवान भाई .......। दीवान भाई दौड़ते हुए उनके पास पहुँचे, सहायक ने उन्हें अपना कान नज़दीक करने  को कहा। सहायक कान में फुसफुसाते हुए कहा -आपसे जो एक बोतल अलग से शराब की मँगाई थी उसे मुझे चुपके  से दे दें।
दीवान भाई - जी ठीक है अभी लाया।
दीवान भाई अंदर गये और छुपते छुपाते वह शराब की बोतल उन्हें थमा दी।

ज़गरी, ड़ंगरी और सहायक ने लोगों की नज़रों से छुपाते हुवे शराब की बोतल खोल ली । वे अपने घर से ही झोले में वे मुर्ग़े का माँस रख लाये थे| उन्होंने अपने झोले से मुर्ग़े की टाँग निकाली, मुँह पीछे की ओर किया और झट से शराब गटक गये ताकि कोई देख न ले। कई देर तक यह नाटक चलता रहा, उधर दीवान भाई और उनकी पत्नी ने भोजन का पूरा इंतज़ाम कर लिया था । रात के आठ बज गए थे। दीवान भाई की पत्नी ने कहा-जाओ जी ! ज़गरी, ड़ंगरी को खाने के लिए बुला लाओ, सबकुछ तैयार हो गया है।
दीवान भाई उन तीनों के पास गए और भोजन करने के लिए आग्रह किया। सहायक ने अपने झोले में झाँका, उसमें अभी भी शराब की पूरी बोतल भरी हुई थी मात्र एक पव्वा ही ख़त्म हुआ होगा। सहायक ने दोनों के कान में फुसफुसाते हुए कहा-अभी तो पूरी बोतल भरी हुई है एक-एक पैग और मार लेते हैं फिर चलते खाने को।
बहाना बनाते हुए ड़ंगरी ने कहा-दीवान भाई, बस आधा घंटा और रुक जाओ, मैंने अभी संध्या पूजा नहीं की, मैं पूजा कर लूँ फिर साथ में भोजन करते हैं।
दीवान भाई - जी ठीक है।
सहायक ने झोले से बोतल निकाली और शराब फिर गटक गये। बीच बीच में झोले से माँस के टुकड़े निकालते और झट से मुँह में दबा लेते।
जागरिए ने सहायक से कहा- अभी आधा बचाकर के रखना, रात में ज़रूरत पड़ सकती है। सहायक ने वैसा ही किया, शराब की बची हुई बोतल पर कसकर ढक्कन लगा दी गयी और झोले में डाल दिया गया। घर के किसी एक सदस्य से कहलावा भेजा कि ड़ंगरी ने अपनी पूजा कर ली  है अब वे खाने के लिए आ रहे हैं।

उनके भोजन के लिए चौकी लगायी गयी। तीनों के लिए भोजन परोसा गया। भोजन करने में ही घंटा भर से अधिक बीता दिया। नशे से अब उनकी ज़बान भी लड़खड़ाने लगी थी। जैसे तैसे भोजन करने के बाद वे उठने लगे तो वे सही से खड़े नहीं हो सके थे। शराब के नशे से उनके पाँव सीधे ने पड़कर आड़े तिर्छे पड़ने लगे। जगरिए ने दीवार का सहारा लिया और लड़खड़ाते हुए बोला-आप लोग भी जल्दी जल्दी खाइए फिर पूजा शुरू करते हैं। एक तसले में अलग से आग जल दीजिए उसकी राख पूजा में काम आएगी। दीवान भाई गये और तसला ले आए। राख बनाने केलिए उसमें लकड़ियाँ जला दी। उनकी पत्नी ने सभी को खाना खिलाया, चूल्हा चौकी, बर्तन साफ़ किए, यह सब करते-करते रात के साढ़े दस बज चुके थे।
घड़ी देखकर ज़गरी ने  आवाज़ देते हुए दीवान भाई व उनकी पत्नी को बुलाया, और कहा-समय बहुत हो गया है जल्दी जल्दी तयारी करो, पूजा का सामान ले आओ। दीवान भाई व उनकी पत्नी पूजा का सामान ले आये और सहायक को दे दिया।
ज़गरी, ड़ंगरी और सहायक के हालात देखकर यह नहीं लगा कि आज देव पूजा होनी है बल्कि एसा लग रहा था जैसे कि राक्षस, भुत पूजा की तैयारी हो रही हो। इसबीच जैसे तैसे देव पूजा करने का विधि विधान शुरू किया गया।जागर लगाने की तयारी की गयी।

भाग (३)

जागर (देव पूजा) देखने के लिए गाँव वालों का जमावड़ा लग चुका था। कमरे का आधा हिस्सा ठसा ठस भर गया। कुछ लोग बाहर बैठे हुए थे, कई लोग दरवाज़े से झाँक रहे थे, तो कई खिड़की से। कमरे के बाक़ी हिस्से को सहायक ने रेखा खिंचीकर पाट दी थी। जिससे कि लोग उस आधे हिस्से में घुस ना सकें। वे तीनों एक क़तार में बैठे हुए थे। तभी सहायक ने लड़खड़ाते हुवे ज़बानसे आवाज़ लगाई- दीवान! अरे वो दीवान!
शराब के नशे में अब वे अपने आपको सबसे बड़ा आदमी समझने लगे थे। वास्तविकता भी यही थी, अगर वे न हों तो जागर कैसी! बाहर से दीवान भाई दौड़ते हुए अंदर पहुँचे। सहायक से कहा - जी आपने बुलाया?
सहायक- अब देर दार किस लिए। आओ और अपनी पत्नी, बेटे को भी साथ लेकर पूजा में बैठो, साथ ही वह सामान की टोकरी लेकर के आओ,  जिसमें पूजा का सामान रखा हुआ है और ड़ंगरी के लिए एक अलग सा आसन।
दीवान भाई ने अपनी पत्नी से कहा- अरे भागवान सुनती हो! बाहर का ये सब काम झाम छोड़ो, तुम्हें अभी पूजा में बैठना है और पूजा की टोकरी सजाकर तुमने जो रखी थी उसे जल्दी ले आओ। मैं रघु को लेकर आता हूँ कहीं सो न गया हो।

इसबीच दीवान भाई अपने बेटे रघु को ले आए और उनकी पत्नी पूजा की टोकरी। सहायक सामान सजाने लगा। देवता (डंगरिए) के लिए आसन लगाया गया। जागर की रस्म शुरू होने लगी। जगरिये ने अपने झोले में हाथ डाला पर शराब के नशे में उसका हाथ  बार बार झोले में न जाकर आडा तिरछा जा रहा था। कई बार प्रयास करने पर भी हाथ झोले में नहीं घुसता। अन्ततः झोले को ही उल्ट दिया। उसमे से हुडकी (देव पूजा (जागर) में बजाने वाला वाद्ययंत्र) अलग छटक़ गयी। हुड़कि को अपने हाथ में ले लिया और जैसे तैसे हुडुकी को दुरस्त किया। सहायक को एक कांसे की थाली दी गयी, उसने भी अपने झोले से दो छोटे छोटे पतले से डंडे निकाल लिए जिससे काँसे की थाली को बजाया जा सके। सहायक ने दीवान भाई से कहा- एक आरती की थाली लेकर आओ, बाहर तसले में जो आग जलाई थी उसमें राख तैयार हो गया होगा किसी से कहकर एक थाली में राख और एक थाली में चावल मंगाने को कहो। लेकिनदीवान भाई ख़ुद ही गये, एक थाली में राख और एक थाली में चावल ले आए।

जागर का दरबार सज चूका था। सहायक ने दीवान भाई को बुलाया और कहा की अपनी पत्नी और बेटे को ड़ंगरी के सामने बिठाओ।
सहायक ने आरती की थाल सजाई. धुप दीप जलाकर, उसे दीवान भाई के हाथ में दे दिया और कहा-आप दोनों आगे आकर देवता की (डंगरी) पूजा करो, आरती उतारो। सहायक जैसे जैसे बताता गया, दीवान भाई वैसे वैसे करते गये। सहायक ने डंगरी के आगे राख और चावल की थाली रख दिया, अपने गुरु (जगरिये) से कहा- गुरु सब रेडी है । अब आप चाल दो (कार्यक्रम को आगे बढ़ावो)

सहायक की बात सुनकर जगरिये ने हुड्किया हाथ में लिए और बजाना शुरू किया, हुडुका जैसे ही बजाने लगा तो उसके आवाज से कमरा हुड्किए से गूँज उठा- भम-पा-पकम-भम-पा-पक़म। साथ में सहायक ने कांसे की थाली को उल्ट कर उसे भी बजाने लगा। अब हुडकी और थाली एक साथ बज रथे। हुड़का और थाली से कमरा गूँजने लगा- भम-पा-पक़म-भम-पा-पक़म, टन-टना-टन-टन-टना-टन, दोनों एक साथ बज थे।

घर का माहौल एकदम गमगीन हो चूका था। एक दम शांत, कमरे से चूँ तक आवाज़ नहीं उठ रही थी, सिवाय हुड़कि और थाली के। वे दोनों शराब के नशे में हुडकी और थाली बजाये जा रहे, लगभग पंद्रह मिनट तक ऐसे ही चलता रहा। सहायक अभी भी थोडा होश में था पर जग़री को शराब का अधिक ही नशा चढ़ा हुआ था। वह नशे में हुड्किए को बजाए जा रहा था।  इधर सहायक ने जगरिये को दो चार बार कोहनी मारी और कहा अब देवता को पुकारो, आगे की चाल लगाओ..............।

नशे में जगरिए ने देवता को पुकारने की जागर लगायी। सहायक भी पीछे पीछे से लयकार गा रहा था। लेकिन दोनों की जिह्वा शराब के नशे में न जाने क्या बड़ बड़ा रही थी। कुछ भी साफ़ साफ़ नहीं सुनाई दे रहा था। ड़ंगरिया अपने आसन पर एक टक़ बैठा हुवा था। प्रकट होने वाले देवता की अभी तक कोई हलचल नहीं हुई। जागर धुन लगाते हुए एक घंटे से अधिक समय बीत गया था। अंदर बैठे गाँव के लोग अब बड़बड़ाने लगे थे। तभी सहायक ने अपने गुरु जगरिए को फिर से कोहनी मारी।
सहायक- गुरु देवता तो प्रकट नहीं हो रहा, क्या किया जाय।
जगरिया- एक बार चाल, ज़ोर और ऊँची आवाज़ में देकर देखते हैं।
जगरिया और सहायक ने फिर एक बार जागर धुन ज़ोर और ऊँची आवाज़में लगाई। हुड़की और थाली को ऊँची आवाज से बजाया गया पर देवता था कि टस का मस ना हुवा, कोई भी हलचल नहीं दिखी। इसबार फिर सहायक ने जागरिए को कोहनी मारी, मूँड़ी हिलाते हुवे इशारा किया, कि गुरु कुछ नहीं हुवा। जगरिए ने जागर लगानी ठप कर (रोक) दी। थाली और हुड़की का बजना बन्द हो गया। कमरे में गाँव वालों की सड़बुड़ाहट होने लगी, इस बीच दीवान भाई बहुत चिंतित होने लगे, उन्हें लगा क्या जो हो गया।
दीवान भाई ने पूछा - क्या हुवा ? देवता प्रकट होगा की नहीं?
जगरिया- तुम्हारा देवता बहुत रूष्ट हुआ है। इसी लिए प्रकट नहीं हो रहा है। लेकिन फिर एक बार कोशिश करके देखते हैं तब तक थोड़ा चाय पानी का इंतज़ाम कर लो। (बहाना बनाते हुए)

दीवान भाई की पत्नी जागर से उठी, चाय पानी का इंतज़ाम करने लगी। उधर सहायक के झोले में अभी भी आधा बोतल  शराब बचा हुआ था। उसे देखते हुए सहायक ने जगरिये से कहा गुरु क्यों न हम भी इसे ख़त्म कर ही दें।
सहायक, जगरी और ड़ंगरी के बीच इशारा हुआ और वे तीनों बाहर जाने का बहाना बनाकर उस आधे बोतल शराब को भी चट कर आए। सभी को चाय पानी पिलाया गया। पुनः एक बार फिर जागर लगायी गयी। वही सब फिर से दोहराया गया। देवता की आरती करना, थाली और हुड़की का बजना। जागर धुन से देवता को पुकारना। इतना सबकुछ करने के बाद भी देवता प्रकट ही नहीं हुवा। भला होता भी कैसे। शराब-मुर्ग़ा खाने के बाद देवता कहाँ आने वाले थे, जबकि एसे में राक्षषों की सम्भावना और अधिक बढ़ जाती है।

देर बहुत हो चुकी थी। रात के एक बज गये होंगे। रघु भी यह सब देखकर चिड़चिड़ा सा हो गया था, वह बेचारा किसी से क्या कहता। एकाएक वह रोने लगा। इधर ज़गरी, ड़ंगरी और सहायक ने आपस में इशारा करते हुए जागर लगाना स्थगित कर दिया और यह सब दूसरे दिन के लिए टाल दिया गया।

भाग (४)

सुबह के चार बजे रोज़ की तरह दीवान भाई उठे, घर के कामों में अपनी पत्नी के साथ हाथ बटाने लगे। सुबह की साफ़ सफ़ाई पूजा पाठ करते करते 8 बज गये थे। ड़ंगरी, ज़गरी और सहायक ये तीनों रात में यही दीवान भाई के यहाँ ठहरे हुवे थे। जब वे उठे तो वे एक दूसरे का मुख देख रहे थे, सायद पहले दिन जो उन्होंने किया था उससे वे लज्जित से हो गये थे। उन्हें भी ठीक से याद नहीं कि बीते रात में क्या किया था। कैसे कैसे ड्रामे किए थे। ज़गरी ने सहायक से कहा-कल रात देवता प्रकट हुवा कि नहीं। सहायक तब इन दोनों से थोड़ा होश में था उसने बीती रात की सारी कहानी बयां की। बताया कि आपने आज के लिए जागर टाल दी थी। उन तीनों की जब आपस में बातें हो रही थी कि तभी दीवान भाई ट्रे में तीन कप चाय ले आये। चाय हाथों में थमाते हुवे दीवान भाई ने कहा- गुरु शाम के लिए क्या तयारी करनी है? बजार से कुछ लाना वग़ैरह हो तो बता दीजिए। मैं बाज़ार जाकर अभी ले आता हूँ।
ड़ंगरी ने बात टालते हुवे कहा- नहीं नहीं जो सामान आप पहले से लाए हुए हो उसी से काम हो जाएगा।
दीवान भाई चाय की ट्रे लेकर वहाँ से बाहर चले आए।
दीवान भाई के चले जाते ही सहायक ने ड़ंगरी से कहा- क्या गुरु ! यह मौक़ा बार बार नहीं आता। शाम के लिए भी एक बोतल शराब मँगवा ही लेते ।
ड़ंगरी- देख भाई ! दीवान भाई पहले से ही अपने बेटे के लिए बहुत परेशान है। पहले ही डॉक्टर वग़ैरह में काफ़ी रूपैया पैसा गँवा चुका  है और फिर इस जागर में भी बहुत रुपए पैसे ख़र्च हो चुके हैं अगर कल को भगवान न चाहे उसके बेटे को कुछ हो गया तो यह पाप का बोझ लेकर हम कहाँ जाएँगे। उन लोगों ने अब हमपर आस जगा रखी है। एसे में भला .......ना बाबा ना । मेरा मन अब नहीं मान रहा है।
ज़गरी- हाँ हाँ बिलकुल सही कहा। आज शाम को एसा कुछ नहीं होना चाहिए। रात गयी सो बात गयी।

शाम होते होते जागर की तयारी शुरू हो चुकी थी। खाना पीनी  समय से होने लगा था। शाम के छः बजे थे कि खाना पानी के लिए आवाज़ लगाई गयी। सभी सदस्यों ने भोजन किया। और साफ़ सफ़ाई करते करते शाम के आठ बज गये थे।
वे तीनों ने आज शराब को छूवा तक नहीं। जैसे कि शराफ़त पर उतर आए हौं। कुछ देर बाद वे तीनों अंदर गए और देव पूजा जागर की तैयारी में जुट गए। देवता का आसान लगाया गया। जग़री और सहायक ने अपना आसान लगाने के बाद अपने साज हूड़किया ठीक करने लगे। सहायक ने भी काँसे की थाली और उसे बजाने के लिए दोनों डंडे निकाल लिए। गाँव वालों का जमावड़ा भी लगने लगा था। आज पहले दिन से अधिक गाँव वालों की भीड़ देखने के लिए जमा हो गई थी। दीवान भाई और उनकी पत्नी बाहर बिखरे हुए सामान को संभालने में जुटे थे कि तभी सहायक ने आवाज़ लगाई- दीवान भाई अरे ओ दीवान भाई! पूजा की तयारी हो गयी है आप और अपनी पत्नी, बेटे समेत पूजा में बैठिए, कल की तरह एक थाली में राख और एक थाली में चावल ले आइए।
दीवान भाई एक थाली में चावल और एक थाली में राख रख लाए। दीवान भाई की पत्नी बेटे रघु को गोद में उठा ले आइ। गाँव वालों की भीड़ बीते दिन से अधिक होने से कमरे में बैठने की जगह कम पड़ गयी। दीवान भाई उनकी पत्नी और बेटे के लिए बड़ी मस्सकत के बाद बैठने की जगह बन पायी। ड़ंगरी ने अपने आसान को शीश झुकाकर नमन करते हुए उस आसन पर बैठ गया । सहायक ने पूजा की थाली सजायी, दीप जलाया गया और उसे दीवान भाई के हाथ में थमा दिया। कहा - दीवान भाई आरती की थाल लो और ड़ंगरी की पूजा आरचना कर आरती उतारो ।  सहायक जैसे जैसे बताता गया दीवान भाई उसे दोहराते गये। सहायक ने दीवान भाई से आरती की थाल वापस ली, उनसे हाथ जोड़कर बैठने को कहा । दीवान भाई व उनकी पत्नी और बेटा हाथ जोड़कर बैठ गए। रघु कमज़ोरी की वजह से बैठ में सामर्थ नहीं था इसलिए वह अपनी माँ की गोद में सर रख कर लेट गया।

ज़गरी ने अपने हुड़कि में थाप दी और सहायक ने काँसे की थाली में। कमरे में बैठे गाँव के लोग   एकदम शांत हो गये, आवाज़ की चूँ तक नहीं हो रही थी। जग़री और सहायक ने आपस में इशारा हुवा और एक साथ हुड़कि और काँसे की थाली बजने लगी- भमपा पक़म भमपा पक़म, टन टनाटन टन टनाटन,भमपा पक़म भमपा पक़म, टन टनाटन टन टनाटन।
हुड़कि के बजने के साथ साथ जगरिए ने जागर धुन (देवता को पुकारने का मंत्र) गाना शुरू कर दिया, सहायक भी साथ में लयकार गया रहा था। बाहर खड़े गाँव के लोग एक के ऊपर एक चढ़कर अंदर झाँक रहे थे। हुड़किये और थाली के बजने की आवाज़ कभी धीमी होती तो कभी अचानक से तेज़ हो जाती। जगरिए और सहायक ने एक और ज़ोर आवाज़ धुन के साथ हुड़कि और थाल बजायी तो डँगरिए में हलचल होने लगी। सहायक और ज़गरी ने एक बार फिर से ज़ोरदार हुड़कि थाल बजाई गयी। देवता प्रकट हो गया। वह शरीर से हिलहिलाने लगा। धीरे धीरे वह नाचते "जज़िया जय मामू" बोलते हुए राख की थाली में हाथ फेरने लगा। सहायक ने आरती की थाली में दीप जलाया और दीवान भाई से कहा आरती उतारो देवता प्रकट हो गये। दीवान भाई और उनकी पत्नी खड़े होकर आरती उतारने लगे। देवता कभी राख की थाली में हाथ फेरता और कभी उस राख को फूँक मारकर दीवान भाई और गाँव वालों की तरफ़ उड़ता।

दीवान भाई ने देवता से कहा -हे इष्ट। हे कुलदेवता! हम नर बानर हैं ग़लती हम ही करते हैं कभी अनायास ग़लतियाँ की हो  तो हमें क्षमा करें । ग़लती हमने की होगी परंतु भुगतना मेरे बेटे को पड़ रहा है कृपा कर हमें क्षमा करें और मेरे बेटे को स्वस्थ करें।
देवता- (अवतरित हिलहलाते  नाचते हुवे) तूने मेरी पूजा की मैं ख़ुश हूँ परंतु इतने वर्षों से तुझे मेरी याद तक नहीं आयी। यही कारण था कि तेरे बेटे को दुःख दिया।
दीवान भाई- हे प्रभु हम अज्ञानी हैं आपके ही बाल बच्चे हैं हमें क्षमा कीजिए मेरे पुत्र पर दया कीजिए
देवता- अगर तू रोज मेरे मन्दिर में धूप दीप जलाएगा तो में सब ठीक कर दूँगा क्या तू एसा कर पाएगा?
दीवान भाई- हे देव ज़रूर करूँगा बस आप मेरे बेटे को ठीक कर दीजिए जो आप कहोगे वही करूँगा।
देवता- ला कहाँ है तेरा बेटा, इधर ला मेरी गोद दे।
दीवान भाई ने रघु को देवता के आगे रख दिया । देवता ने रघु उठाया और अपने गोद में रख दिया। राख से भरी हुई थाली से मुट्ठी भर राख उठाई रघु के माथे पर लगा दिया। और कहा - जा आज के बाद तू ख़ुश रह। कोई भी बीमारी तुझे छू नहीं पाएगी। यह कहते हुए देता चला गया। ज़गरी ने दीवान भाई को दिलाशा देते कहा- दीवान भाई अब चिंता की कोई बात नहीं देवता ने आपके सारे रास्ते खोल दिए हैं। अब आपका बेटा जल्द स्वस्थ हो जाएगा। चिंता की कोई बात नहीं।

जागर अच्छे से सम्पन्न  हो गया था। डंगरी, जगरी और सहायक रात में वहीँ रुक गये हुए थे । सुबह जब वे उठे तो अपना झोला उठाया और दीवान  भाई से जाने की अनुमति माँगी। दीवान भाई ने कहे अनुसार अच्छी ख़ासी दाम दक्षिणा दी और चले गये।

महीना भर बीतने को था। रघु की तबियत सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही थी। दीवान भाई की चिंता, उनके माथे की सिकन साफ़ देखी जा सकती थी। रघु की देख रेख में वे पिछले कुछ रातों से सोए  नहीं थे। सोने के लिए जाते भी तो  रघु के बारे में सोच सोचकर नींद ग़ायब हो जाती। सुबह से ही बाहर आज मौसम का मिज़ाज बिगड़ा हुआ था। काफ़ी तेज़ बारिस हो रही थी। बादलों की गड़गड़ाहट व ज़ोरदार बिजली चमक रही थी। दीवान भाई खिड़की के पास कुर्सी लगाकर बैठ गए। अपने बारे में सोचना मानो वे तो भूल ही गये। ध्यान हमेशा रघु की तरफ़ ही जाता। सोचते भी कैसे, अंदर बीमार बेटा जो लेता था। इतना रुपया पैसा भी नहीं बचा था कि शहर जाकर अच्छे से डॉक्टर को दिखा सके। पहले ही काफ़ी डॉक्टर को दिखा चुके थे। दवाई पानी में काफ़ी ख़र्च हो चुका था । शेष जितना पैसा बचा था वह जागर में ख़र्च हो गया। नौबत यहाँ तक आ गयी कि जिसदिन मज़दूरी करते उसदिन चूल्हा जलता। मगर बारिस होने की वजह से आज काम पर नहीं जा सके। कई रातों की नींद आँखों पर भारी पड़ रही थी। रघु की चिंता में अपने आप ही अकेले-अकेले बड़बड़ाए जा रहे थे। तो कभी भगवान से दुवा माँगते कि मेरा बेटा ठीक हो जाए। चलने फिरने लग जाए तो वे उसके साथ घूमने जाएँगे ख़ूब मस्ती करेंगे। एकाएक उनकी आँखें भर आइ । बेटे रघु के स्वस्थ होने की कामना करते हुए ना जाने कब उनकी आँख लग गयीं और वे कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो गये।
भास्कर जोशी........................

Wednesday, July 20, 2016

घंतर:12 नेता तुम्ही हो


कुछ समय से देश में बहुत कुछ घटनाएं घट रही हैं। इसका जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि सरकारें हैं चाहे वह जम्मूकश्मीर का मशाल हो या फिर दादरी का अखलाख कांड हो।
राजनीतिक पार्टियां बिना कुछ सोचे जाने बगैर  अपनी रोटियां सेकने चली जाती हैं दिल्ली JNU का वो भारत विरोधी नारों का मशाल काफी गरमाया रहा तमाम पार्टियां अपनी रोटी सेकने चली गयी। उन्होंने एक बार भी यह नहीं सोचा कि ये देश को खंडित कर रहे हैं हम इनका साथ क्यों दें पर नहीं उन्हें सिर्फ किसी न किसी बहाने केंद्र सरकार को घेरना है चाहे उन्हें मल में लोट पोट ही क्यों न होना पड़े। और उन्होंने किया भी ऐसा ही।

दूसरी ओर दादरी अखलाख कांड काफी चर्चा में रहा गौ मांस को लेकर। सुप्रीम कोर्ट ने अब अखलाख के पूरे परिवार को हिरासत में लेना का फरमान जरी करते हुए कहा कि यह सच है वे गौ मांस के ही भक्षण कर रहे थे। लेकिन जब यह मामला उठा था तब भी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी रोटी सेकनी चाही यह बिना सोचे समझे। वास्तविकता से वे कोषों दूर निकालकर आगे आये दिल्ली से नेता दौड़े दौड़े भागे । और उन्होंने अपने हिसाब से उसकी रिपोर्ट तैयार कर ली। यहाँ तक की अखिलेश सरकार ने वोट बैंक के खातिर लाखों का मुवाबजा भी दे दिया। सुनने में यह भी आया की नोएडा में उन्हें फ्लैट भी दिया गया है। इतना मुआबजा अगर हमारे देश के लिए  लड़ने वाले शहीद परिवारों को मिलता तो वे अपने बच्चों को सक्षम बनाकर देश हित के लिए उपयोग होता। लेकिन राजनीति तो राजनीति है किसी भी पार्टी ने रिपोर्ट तक नहीं आने दी । अब जब रिपोर्ट आई तो कोई भी इस मशाले पर बोलना नहीं चाहता सभी छुपते छुपाते फिर रहे हैं ।

उधर उत्तराखंड में घोड़े की चाल बिगड़ गयी। अच्छा खासा चार पाँव का  घोडा उसे लंगड़ा बना दिया । शक्तिमान के शहीद होते ही सियासी उठापटक ऐसी हुई की  मुख्यमंत्री की कुर्सी दाव पर लग गयी।  जाते जाते वापस  हाथ में आ गयी। बीजेपी को निचा दिखाने के लिए  फिर मुख्यमंत्री ने घोड़े पर  दाव लगाया और रातों रात घोडा चौराहे से गायब हो गया।जनता को तो इस राजनीति ने मारा ही है पर उस  अबोध जानवर को भी नहीं छोड़ा। उसे भी राजनीति की ऐसी मार पड़ी कि प्राण त्यागने पड़े।

सियासतदारों की इस लड़ाई में मारा गया गरीब जिसकी कोई सुनने को राजी नहीं। तब ऐसे मैं कैसे कहूँ कि तुम देश के नेता हो, तुम जनता के लीडर हो, तुम हिन्दू के नेता हो, तुम मुश्लिम के नेता हो, तुम दलित के नेता हो, अरे तुम देश विरोधी नेता हो जो देश की मर्यादा बेच रहे । तुम्हे तो सिर्फ कुर्सी प्यारी है देश नहीं । तब मैं कैसे कहूँ किस मुह से कहूँ कि तुम देश देश के भविष्य हो रखवाले हो देश  में अमन चाहते हो सुख -शांति चाहते हो, कैसे कहूँ  ?
भास्कर जोशी 

Friday, July 15, 2016

घन्तर-11 : भिकूदा, नेता जी संवाद



भीकू दा- नमस्कार नेता जी
मंत्री- नमस्कार जी नमस्कार ! कैसे हो और कैसे आना हुवा?
भीकू दा- जी आपसे मिलने आए हैं ।
मंत्री -कुछ काम तो होगा न या एसे ही चले आए ? जल्दी बोलो क्या काम है ?
भीकू दा -क्यूँ मतदाता अपने मंत्री से मुलाक़ात नहीं कर सकता है ?
मंत्री-देखो मेरे पास समय नहीं है
भीकू दा - मरने जा रहे हो क्या?
मंत्री- मतलब ?
भिकूदा- आपके पास काम आधिक होगा ना लेकिन कभी मतदाता से दो टूक बात भी तो कर लेते।
मंत्री-देखो मतदाता वोट देने तक के ही थे। वैसे भी आपके पास क्या सबूत है कि आपने मुझे मतदान दिया था?
भिकूदा- तो क्या मरे हुए लोग आपको मत दान दे गये थे।
मंत्री-मतलब ?
भीकूदा-मतदाता ने  वोट नहीं दिया तो किसने दिया। फिर तो कोई भूत ही आए हौंगे बूथ पर आपको वोट देने।
मंत्री-पैसे ख़र्च किए थे मैंने। पानी की तरह पैसा बहाया था उस से जीता हूँ ना की आपके वोट से।
भिकूदा-ओ हो तब तो आप पैसे के लिए ही काम करोगे
मंत्री-कहना क्या चाहते हो ?
भिकूदा-अब आपको पैसों ने जिताया है तो स्वाभाविक है अब आप पैसे के लिए ही काम करोगे। पैसा ही कमाओगे पैसा ही खाओगे तो एसे में जनता का क्या होग ?
मंत्री- एसा तो मैंने नहीं कहा। तुम लोग मेरी बात को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हो। यह बाताओ कि आप किस उद्देश्य से आये हो?
भीकूदा- उद्देश्य तो था पर आपकी बातें सुनने के बाद यह तय है कि आप उसका भी मूल्य लेंगे।
मंत्री- देखो अगर मुझे लाभ मिला तो आपका काम ज़रूर करूँगा।
भीकूदा- काम तो था परंतु लाभ मिलेगा यह कह नहीं सकता।
मंत्री- जब कोई लाभ ही नहीं मिलने वाला तो फिर किस मुँह से आये थे।
भीकूदा- आप हमारे जनप्रतिनिधि ठहरे तो सोचकर आया था कि आप हमारा प्रतिनिधित्व करेंगे । पर ....
मंत्री- पर क्या ?
भीकू दा- रहने दें आपकी बातों ने ही बहुत कुछ कह दिया।
मंत्री-देखो फ़ालतू काम के लिए मेरे पास समय नहीं है आप जा सकते हैं
भीकू दा- जी धन्यवाद। (जाते जाते) ध्यान रहे अगला चुनाव सर पर है......। भास्कर जोशी

Tuesday, July 12, 2016

कविता

अरे ओ उत्तराखंड के
साफ सुथरे
कीचड़ में पलने वाले
भल मैसो।
तुमने हमारे
सुप् चोर डाले
तमक गागर
चोर डाले
पहाड़ की
आबो हवा तक
चोर डाली।
जब तम्हें ये भी कम लगा
तब  तुमने
मुर्दों के कफ़न
तक चुराकर डकार गए
अब तुम गोभरिकिड से
भौल मैस हो गए।
आओ फूल माला से
तुम्हारा स्वागत करें
हमारा कीमती वोट
आपके झोले में ही जायेगा।- भास्कर जोशी

मजा ही कुछ और है

पहाड़ में लोटपोट होने का
मजा ही कुछ और है
हिनोय खेलने का
ग्ध्यर में नहाने का
सिसोणक बुज में घुरिने का
मजा ही कुछ औरहै
धोपरी घाम में
आमक बोट में हिलोय्ने का
ककड़ी  चोरने का
मैन्सुं बोट में लम्थर मारने का
मजा ही कुछ और है
ब्यव को रामलीला देखने का
छिलुक बायबेर देखने का
और
लुट से घा पु चुराकर जलाने का मजा ही कुछ और है -भास्कर जोशी

कविता

ज्ञान वहाँ होता है
जहाँ संस्कार होते हैं
संस्कार वहाँ होता है
जहाँ माँ होती है

माँ वहाँ होती है
जहाँ घर होता है
जहाँ घर होता है
वहीं स्वर्ग होता है

लेकिन आजकल स्वर्ग
आश्रमों के नर्क में है
क्योंकि माँ
वहीं तड़पती, रोती हुई पाई जाती है।
-भास्कर जोशी

सपना (स्वेण)

बेई ब्याव को मैंने के भल क स्वेण् देखा था। ओइजा कत्थब पुज गया ठहरा मैं। पैली तो बहुत देर तक पैदल चलता रहा,  चलते चलते य लोक से उ लोक पहुँच गया। उ लोक पहुँचते ही वां बड् भारि शीश महल देखा। लुकी लुकी के  मैं भतेर पहुंचा तो देखा वहां कोई नहीं। लेकिन भाई देखकर तो हैरान हो गया सोचने लगा कास यह महल मेरा होता। तभी इतने में एक आवाज गूंजी आइये आईये आपका स्वागत है आपका स्वागत। दै बज्जर में चट्ट करके लुकी गया। मुझे लगा कोई ठुल मैस आ रहा होगा उसी का स्वागत कर रहे होंगे सायद । तभी फिर आवाज आई "आप छिप क्यों रहे हैं यह महल आपका ही" मैंने अपनी मुंडी थोडा  बहार निकालकर देखा तो सुंदर सुंदर  अफ्सरायें अतिथि सत्कार के लिए फूल माला लिए खड़े थे  निचे से ऊपर को उनका सौंदर्य देख रहा था मुखडी तक पहुँचने ही वाला था कि एक आवाज आई "जोशी जी ओ जोशी जी 8 बज गए आज ऑफिस नहीं जाना है क्या?
दै मचेत झस जस हुई चदम्म् उठा हबड़ तबड में सब काम निपटाकर ऑफिस चल दिया। -भास्कर जोशी

कविता

बलुवा त्यार कपाव में
कास यूँ घन्तर पड़ा
जो दिखाई नि दिनाय
पर खुन्यो कर जाणई।

महंगाई कम हैगो कुनेयी
कधिने जीरो हैं जां त्
कधिने ख्वर् पड़ जां
आज्याल स्वर्ग बटी चै रौ।

 बलुवा रे झुंगर मडुवा तू नि खान कुनि है
दाव भात ग्युं रवाट् तिगें चैन हया
काम तू के नि करनि भये रे
स्वेण् तू टाटा अम्बानी जस देखनी भये।

कविता

आपको क्या लगा
गधेरे के चोर
अब सरीफ हो गए
अरे अब तो वे
सरे आम
खुल्लम खुल्ला
चोरी करते हैं
और पेश करते हैं
अपने आपको
जनता का चाहने वाला।
साहब आप कितना भी
पाउडर चपोड़ लो
मगर अंदर से तुम्हारे
बुकणेन् कालेपन की
बु आती है साहब -भास्कर जोशी

एक घन्तर दिल्ली के नाम


दिल्ली जैसा मज़ाक़ कहीं और न हो। यह एसा मज़ाक़ है जो खेल खेल में गधे को कुर्सी थमा दी। अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री अपने  कामों का ब्यौरा विज्ञापन के ज़रिए देते हैं ताकि लोगों तक उनके कामों का हिसाब किताब पहुँचजा सके। लेकिन इधर दिल्ली में ठीक इसके उलट है यहाँ कामों का ब्यौरा नहीं दिया जाता बल्कि अपने नौटंकीपन के चरम पर पहुँचकर जनता द्वारा दिए गये टेक्स का विज्ञापन के ज़रिए ग़लत उपयोग किया जाता है।

एक वर्ष बीत जाने के बाद भी दिल्ली की मौजूदा सरकार ने प्रधानमंत्री जी के शिकायतों की पोटालि बाँध कर रखी है सायद यहीं पिछले एक साल का "आप सरकार" के काम का लेखा जोखा हो। आप सरकार ने क़सम ली हुई है कि हम जनता के लिए कुछ काम नहीं करेंगे। अगर काम करेंगे तो सिर्फ़ प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ झूठी विज्ञापन निकलेंगे।

दिल्ली में अब तक क्या काम हुवा है यह तो आप ही जानते हैं जनता सिर्फ़ मुँह ताक रही है कि आप कुछ कर दें। जतने वादे आप ने चुनाव के द्वारान किए थे सायद ही कोई पूरा हुवा हो। शीलादीक्षित को जेल भेजने के लिए बड़े बड़े कारनामे किए यही कारण है कि आज आप नेता एक एक कर जेल जा रहे हैं शीला दीक्षित को तो भेज ना सके पर हाँ अब वे ख़ुद ही जेल की ओर रूख करने लगे हैं। इन सबके बीच आप सरकार की नीति साफ़ रही है कि वे जनता की सेवा के लिए नहीं बल्कि अपनी सत्ता की लालसा को जीने के लिए आए हैं तथा काम न कर मोदी साहब को कोसना ही आप का परम धर्म नज़र आता है।

इस नेक काम के लिए आप सरकार का बहुत बहुत धन्यवाद। आसा करता हूँ कि आप आगे भी पंजाब  व अन्य राज्यों में भी एसी ही गंध फैलाएँगे।
धन्यवाद
एक
सामान्य वोटर

कविता

ये वही लिंडुर है साहब
जो कल तक
देश भक्ति के गीत गाते थे
फिर इन्होंने
समाज सेवा के नाम पर
जनता को ठगने का बीड़ा उठाया
वाह वाही बटोरी
नेताओं के आगे पिच्छू
चमचागिरी की
और आज दीमक की तरह
हमारे सर पर बैठे हैं ।
आइये साहब आइये
देश की बाग़ डोर
निर्दोषो के खून से रंगे हुए
 आपके हाथों में हैं
आप ही सच्चे देश भक्त हैं
आप ही जनता के सेवक हैं
आपको सत् सत् नमन।।
भास्कर जोशी

Friday, June 24, 2016

उत्तराखंड की सियासत

उत्तराखंड  में सियासी पारा काफी गर्म होने लगा है दोस्तों.. सभी पार्टियाँ अपनी अपनी जोर की नुमाईस में जुट गयी हैं..लेकिन सोचने वाली बात यहं है कि अब तक की सरकारों ने हमें पलायन और बेरोजगारी की शिवा दिया ही क्या है..बजाय हाथ में पार्टियों के झंडे और और देशी शराब पिलाकर ये लोग अपने आप को खलीफा समझ बैठे हैं.. आम जन जीवन को तो ये लोग कुछ समझते ही नहीं.. अगर समझा होता तो सायद पहाड़ का हाल यूँ न बिगड़ता... 17 साल होने को हैं उत्तराखंड को बने हुए पर मिला क्या ..

समझने वाली बात यह हैं कि  आने वाले चुनावों में आम जनता क्या फैसले लेती हैं .. क्या वह अब तक के हुए कृत्यों से कुछ सीख लेती हैं या फिर वहीँ ढांक के तीन पात .. याने कि फिर यही कांग्रेस बीजेपी की सरकार . या फिर वह जो आजतक कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस की गोद में बैठने वाली UKD...

सच बात तो यह हैं कि उत्तराखंड में रह रहे लोगों की परवाह किसी की पार्टी को नहीं हैं न ही पलायन की चिंता हैं न ही युवाओं को रोजगार को लेकार राजनीतिक पार्टियाँ इस ओर ध्यान देती हैं. उन्हें सिर्फ अपने तिजोरियों को भरने से फुर्सत नहीं मिलती हैं.

साथियों पहाड़ में युवा पीढ़ी की हालत एसी हो चुकी हैं कि वह न घर का रहा न घाट का.. पहाड़ में आज दिन प्रतिदिन युवाओ की संख्या में कमी होती जा रही हैं जो बचे हैं वे भी शहर की ओर ताक रहे हैं .. आने वाले समय में पहाड़ में रह रहे लोग शहरों में होंगे और शहर के लोग पहाड़ में.. वे भी रंगरलियाँ मानाने जायेंगे .. बल्कि जा रहे हैं .. नैनीताल, भीमताल, अल्मोड़ा, रानीखेत जैसे पर्यटक स्थलों में बाहरी दलालों और ठेकेदारों के लॉज बने हुए हैं.. जो दो चार दिन के लिए रंगरलियाँ मानाने के लिए आते हैं ..

यह सिर्फ राज्य सरकारों के देख रेख में हो रहा है यदि कोई स्थानीय व्यक्ति विरोध करता है तो उसे गुंडों द्वारा गायब कर दिया जाता है सिर्फ और सिर्फ यह राज्य सरकार के सहमति से ही होता है.. पहले की बीजेपी सरकार और अभी वर्तमान में कांग्रेस की सरकारों का ही यह नतीजा हैं .

फैसला आम जनता के हाथों में हैं कि वह अपनी कीमती वोट किस ओर डालती हैं..तथा दूसरी समस्य यह भी हैं कि उत्तराखंड में इन दो पार्टियों के अलावा कोई और चारा भी नहीं हैं वहीँ UKD स्थानीय पार्टी अपनी शाख तक नहीं बचा पाई है अब तक.. यह हम सभी को सोचने समझने की जरूरत हैं कि हमें करना क्या हैं.. 2017 के विधानसभा चुनाओं में हमें अपनी कौन सी भूमिका निभानी है इसपर ध्यान देने कि आवश्कता हैं.. गाँव गाँव के लोग एकत्रित होकर अपने गांव को कैसे उन्नति की ओर लेकर जाना हैं बगैर नेताओं के इन सवालों पर जोर देने की बात होनी चाहिए और आमल करने की भी..............
भास्कर जोशी.
चिन्तक

Saturday, May 28, 2016

पहाड़ का दर्द


तुमने यह क्या किया रे
कभी आपदा तो कभी आग
कभी पलायन तो कभी सूखा
इन सबका ज़िम्मेदार कौन है रे कौन है ?

जंगल तुम काटो
बाँध तुम बाँधो
उलट पलट तुम करो
भुगतना मुझे पड़ता है

पानी की बर्बादी तुम करो
सूखे के हालात तुम पैदा करो
जब मचे पानी की त्राहि त्राहि
तब भुगतना मुझे पड़ता है

चीड के पेड़ तुम लगाओ
लीसा उस से तुम कमाओ
जब लगे आग जंगलों में
तब भुगतना मुझे पड़ता है

पहाड़ छोड़कर तुम भागो
घर को खंडहर तुम बनाओ
अकेलेपन की बेचैनी से
भुगतना तो मुझे पड़ता है

कैसे मतलबि हो तुम लोग
अपने सुख से मुझे भूल जाते हो
करते, धरते सबकुछ तुम ही हो
भुगतना तो मुझे पड़ता है

मुझे तुम ज़ख़्म पर ज़ख़्म देते रहो
मैं पीड़ा से झुँझलाती रहूँ
तुम नोटों के बंडल में बेच डालो मुझे
भुगतना तो मुझे पड़ रहा है

भास्कर जोशी
9013843459

पहाड़ का दर्द


तुमने यह क्या किया रे
कभी आपदा तो कभी आग
कभी पलायन तो कभी सूखा
इन सबका ज़िम्मेदार कौन है रे कौन है ?

जंगल तुम काटो
बाँध तुम बाँधो
उलट पलट तुम करो
भुगतना मुझे पड़ता है

पानी की बर्बादी तुम करो
सूखे के हालात तुम पैदा करो
जब मचे पानी की त्राहि त्राहि
तब भुगतना मुझे पड़ता है

चीड के पेड़ तुम लगाओ
लीसा उस से तुम कमाओ
जब लगे आग जंगलों में
तब भुगतना मुझे पड़ता है

पहाड़ छोड़कर तुम भागो
घर को खंडहर तुम बनाओ
अकेलेपन की बेचैनी से
भुगतना तो मुझे पड़ता है

कैसे मतलबि हो तुम लोग
अपने सुख से मुझे भूल जाते हो
करते, धरते सबकुछ तुम ही हो
भुगतना तो मुझे पड़ता है

मुझे तुम ज़ख़्म पर ज़ख़्म देते रहो
मैं पीड़ा से झुँझलाती रहूँ
तुम नोटों के बंडल में बेच डालो मुझे
भुगतना तो मुझे पड़ रहा है

भास्कर जोशी
9013843459

गेवाड़ घाटी