Friday, March 22, 2013

फिल्मों के टाइटल से कुछ व्यंग

दिल वाली दुल्हनियां ले जायंगे
नयाँ रास्ता
आपके खातिर
न घर के न घाट के
नयाँ पड़ोशन
नौ दो ग्यारह
हम दिल दे चुके सनम
दिल तो पागल है
घर आया मेरा परदेशी
दाल में कुछ काला है
मैंने दिल तुझको दिया
गरीबों का दाता
पहले नजर का पहल प्यार
शादी कर के फस गये यार
हाँ मैंने भी प्यार किया
क्यूंकि में झूट नही बोलता
तुमको नही भूल पायंगे
कल किसने देखा
तेरी मेरी कहानी
फिर भी दिल है हिंदुस्तानी
भास्कर जोशी

Monday, March 18, 2013

दुर्बलता का भारत


कहाँ जा रहा है
भारत देश हमारा?
कहाँ लुप्त हो रही
संस्कृति हमारी ?
कहाँ छोड़ आये हम
अपनी धार्मिकता ?
आज दिन प्रतिदिन
हाय  मची है चारों ओर
देश में हीनता-दुर्बलता
घटने का नाम न लेती
चौतरफा हडकंप मची  है
 हर नारी आज द्रौपती बनी है
न जाने क्या होगा इस नारी का ?
जिस भारत वर्ष में
होती थी नारी की पूजा
अब  वही भारत देश बना
उसी नारी का लुटेरा
हर नगर चौराहे पर बैठा दुसाशन
ताक रहा असहाय नारी को
राज गद्दी पर बैठा धृष्टराज
बढ़ा रहा है अत्याचारी-दुराचारी को
आज न कृष्ण यहाँ न राम यहाँ
न सूर्यवंशी न चन्द्र वंशी
क्या कोई भी छत्रिय
इस धरातल पर जीवित न रहा ?
लज्जा शर्म से खड़ा
यह  भारत देश हमारा
वह भारत देश न रहा
जहाँ होती थी नारी की पूजा
दीखते थे संस्कार वहां
मिलता था सम्मान वहां
वहीँ बसते थे राम रहीम कृष्ण सदा ।

बस बहुत हुआ

जाने भी दो अब ,
बहुत हुवा  तमासा,
तुम्ही को अपना साझाकर ,
पाया था हमने ।
हमें क्या पता था ,
तुम गैर थे  गैर ही रहे ,
हम तो फ़ोकट में ,
आस बिठाये बैठे थे ।
हमने तो तुम्हें अपने ,
पलकों पर बैठा रखा था ,
ऐसी भी क्या बात हुई ,
जो मेरे सारे अरमान तोड़ दिये।
टूट गया सपना मेरा ,
सोचा था तुम्हें पालिया ,
जब हुआ सच का सामना ,
सब कुछ बिखरा-बिखरा पाया ।

Friday, March 15, 2013

हिटो पहाड़ जूंला (गीत)
























हिटो दाज्यू हिटो भुला, आपुणा पहाड़ जूंला।
बारो मांस रंग-रंगीलो के भलौ मान्युं छा ।

वार डाना पार डाना, हरियाली का छोरा ।
खेती पाती डावा बोटी, कोयले बुलाण कसी।
पितरों की पितर भूमि, म्यर पहाड़ देव भूमि ।
हिटो दाज्यू हिटो भुला, आपुणा पहाड़ जूंला............

ठंडी हवा ठंडो पाणी,बोट्यों की छ्वाणी।
तीज त्यौहार बारो मास, कौतिकों की रन-बन ।
देवों की देव भूमि, म्यर पहाड़  स्वर्ग भूमि ।
हिटो दाज्यू हिटो भुला,आपुणा पहाड़ जूंला............

म्यर पहाड़ डान-काना में, देवी बसी छन ।
दूनागिरी नैनादेवी मनसा देवी, सबे बसी छन ।
देवी-देवताओं कर्म भूमि, उत्तराखण्ड धर्म भूमि।
हिटो दाज्यू, हिटो भुला, आपुणा पहाड़ जूंला............

पं. भास्कर जोशी

Thursday, March 14, 2013

कलम दवात और पाटी


कलम दवात और पाटी,
कितना खुशनुमा था वो पल ,
याद कर अपने बचपन को ,
हंस खिल उठता हूँ ,
उस पल में ,
सारी दुनियां की ख़ुशी ,
मिल जाती थी उस पल में ,
एसे ही कुछ यादगार लम्हें ,
आज भी याद आते  है ,
पल-पल में ,
वो भी एक दौर था ,
जब स्कुल जाया करते थे  हम ,
कंधे में झोला ,
झोले में होता,
कलम, दवात  और पाटी ।

Thursday, March 7, 2013

मेरे कुमाउनी व्यंग


भास्कर के कुमाउनी व्यंग - बेई ब्याव में आपु दोस्त दगै दोस्त लिजी ब्योली  देखें जैरछी। दगड में म्यर दोस्त इज (माँ)  लै छी । दोस्त इज पूछने कछा-

दोस्त इज -के के कारोबार कर लीं तुमर चेली ।
ब्योली इज- घरपनक कम कर लीं पै।
दोस्त इज -खां पाकुण आंछो नि आन ।
ब्योली इज- रसोई में तो कम जें पै उसी अटक-बिटक में काम करनें छू
दोस्त इज- और के के काम  शिखी छू तुमर चेलिल ।
ब्योली इज- सिलाई और कंप्यूटर कोर्स करी छू येल।
(मैं बहुत देर बटी उन लोगों बात गौर हैं बे सुनणोयी कछा। मन मन में हैन्सी उनेय कछा । चलो बात-वात सब पक्की है गेई ।  म्यर दोस्त म्यर मुख चाही होय की पंडित जी हैंसण किले रेई  )
दोस्त - पंडितज्यू के बात तुम किल हैंसण छा
मैं - कुछ ना यार बस इसके हैन्सी उणे ।
दोस्त - फिर ले
मैं - अरे यार जो पूछ ताज चल रछि बस वी सोचन छी भविष्य में कुछ अलग माहौल हौल ।
दोस्त - कस माहौल पंडितज्यू ?
मैं - ऐल चायल जाणेयी ब्योली देखेहें कुछ सालुं बाद चेली एँल बर देखें हैं तब चेली-बेटी सब नौकरी वाल हैंल चाय्ल उभें बेरोजगार और आई तक च्याल करांक ल्यूने बरयात बाद में चेल करांक ल्येन । उभे चेली करांक जेंल बर कें देखेहें ।   तब पुछेंल चेली करांक बर वालुंह -
चेली तरबे - के के कारोबार कर ल्यूं तुमर च्यल
च्यल करांक- घरपने सब काम कर ल्यूं पे
चेली तरबे - खां बनूण, भाना-कुना, कपड धूंण-धांण कर ली छो तुमर च्यल ।
 च्यल करांक- होय सब कर ल्यूं हमर च्यल ।

गेवाड़ घाटी