Friday, May 29, 2015

बस अब और नही

बस अब और सहन नही होगा
माफिया राज,
कह दो उन लुटेरों से,
बदमासों से,
चोरों से,
ठेकेदारों से,
जो पहाड़ को लुट रहे हैं
बेच रहे हैं,
जमीनों को चट-खा रहे हैं,
अयासी का अड्डा बना रहे है,
यदि अपनी जान की सलामती चाहते हो,
तो सभाल जाओ,
ठहर जाओ,
बंद कर लो
अपने घिनौने कारनामो को |
अब भी वक्त है,
कहीं ऐसा न हो,
कि पहाड़ का बच्चा बच्चा,
अपनी मात्र भूमि मांटी के खातिर,
कंधे पर हथियार लिए,
तुम्हारे मौत का कारण न बन जाये|
अब भी वक्त है, ठहर जाओ,
वरना उत्तराखंड को भी
नक्सली बनने में देर न लगेगी|
इसलिए सभल जाओ, ठहर जाओ
तुम्हारी पल पल की हरकतों पर
हर "पागल" की नजर रहेगी|

Saturday, May 23, 2015

.............और बदल गया गांव

          वाह सुन्दर, सपन्न गांव यदि इसे स्वप्नों का गांव कहा जय तो इसमें कोई संकोच नही| गांव की गरिमा देखते ही बनती है गांव की एकता व अखंडता ने इस गांव को सर्वगुण सपन्न बना दिया| युवाओं ने गांव की दिशा और दशा ही बदल दी| यदि गाँव में युवा मंडली की ग्राम सुधार समिति न होती तो यह गांव आज भी वहीँ ज्यों का त्यों रहता| भावेश और उसके तीनों साथियों ने गांव को साथ लेकर गांव को आज संपन्न बना दिया|
          कुछ समय पहले गांव में था ही क्या, कुछ भी तो नहीं, एक निर्जीव की भांति, जिसमें प्राण तो थे मगर देह में शक्ति नहीं थी| गांव में लोग रहते जरुर थे पर एक दुसरे से बिलकुल अनजान| पडोस के घर में क्या कुछ हो रहा है कुछ भी मालूम नही होता पडोसी परिवार कब दुखी रहता, कब सुखी इसका किसीको को कोई मतलब न रहता| इस गांव में चार युवा लड़के थे भावेश, अनुराग, विकाश और मनीष ध| एकदम निकम्मे, बेकार जिनके पास कुछ काम नही था काम करते भी तो क्या करते| पढ़े लिखे होते तो शहर जाकर दो चार रूपये पैसे कमा लेते पर चारों इतने पढ़े लिखे भी नही थे की शहर जाकर कुछ काम करते| भावेश 8वीं तक पढ़ा लिखा तो था पर अनुराग, विकास और मनीष 3सरी, 5वीं और 6टी तक पास थे| दिन भर गाँव में घूमते फिर पास ही में एक खंडहर घर  पास इन चारों ने अपना बैठने का चौपाल बना रखा था जिसमें सुबह से साम तक ये चारों तास की गड्डी लेकर तास खेलते| इन चारों के निकम्मेपन से गांव के लोग इन्हें पसंद न के बराबर करते| गांव में जितने भी इनके उम्र के लड़के थे वे सभी शहर जाकर कुछ न कुछ काम धंदा करने लगे| बस गावं में अब यही चार बचे थे बाकी अभी गांव में बच्चे ही थे जो की अभी स्कुल पढ़ रहे थे
         भावेश थोडा रंगीन मिजाज का था जो हमेशा दूसरों के चेहरे पर हंसी लाने की कोशिस करता था अपने मजकियापन से वह सबको हँसता रहता था लोग उसे पागल समझते थे क्योंकि उसकी हरकतें जोकरों सी होती थी लेकिन उसे गांव के सुख दुःख में अपना सतप्रतिशत सहयोग देता था इसलिए गांव के लोग भावेश को स्नेह भी करते थे भावेश के साथ साथ वे तीनो भी भावेश के कार्यों में सहयोग देते थे चाहे वह अच्छा हो या बुरा पर वे तीनो भावेश का साथ नही छोड़ते थे अधिकतर ये चारों निकम्मों की भांति    चौपाल लगाकर जुवा खेल रहे थे तभी वहां टहलते टहलते भावेश के चाचा भावेश के चाचा आ धमके जो फौंज से रिटायर्ड थे चेहरा एकदम रौबदार था भावेश उनसे बहुत डरता था कई बार चाचा डाठ चुके थे बांकी गांव के लोग उनका फौंजी चाचा का बड़ा सम्मान करते थे| चाचा को देखते ही भावेश छिपने लगा लेकिन फौजी चाचा के नजर से कौन बच पायेगा| चाचा ने उन सभी को जुवा खेलते हुए देख लिए था इसलिए चाचा ने भावेश को आवाज लगाई और भावेश डर से चुपचाप सर झुके चाचा के पास आ गया| फौंजी चाचा ने जो उन्हें खाड़ी-खाड़ी सुनाई| दिन भर यहाँ पर बैठ कर जुवा खेलते हो कुछ काम धाम नही है तुम लोगों के पास कुछ तो काम कर लिया करो घर का हाथ बाटते कुछ परमार्थ का काम ही कर लेते| कुछ तो कर लिया करो यहाँ पर जुवा खेलने से क्या लाभ होगा तुम्हें| सभी डर के मारे घबराने लगे एक दम चुप चारों यही सोच रहे थे चाचा के कब हमारा पीछा छोड़ेंगे| बहुत कुछ सुनाने के बाद चाचा वहां से निकल गये जाते जाते और भी बहुत कुछ बोल गये| अपने जीवन को व्यर्थ मत जाने दो कुछ अच्छा करो ताकि लोग कल को तुम्हे याद कर सके|
         भावेश को ये बात घर कर गयी पर करे भी तो क्या करे इतने पढ़े लिखे तो थे नही कि ऑफिसर बन जाते| बहुत देर तक चारों इसी बात पर चर्चा कर रहे थे कि आखिर ऐसा क्या किया जाय| सोचते हुए दिन बीतने को था पर अब तक कोई ऐसा काम नही ढूढ़ पाए | भावेश ने कहा चलो घर को चलते हैं पर आज आप सभी घर जाकर सोचना कि हमें क्या करना चाहिए ? और कल फिर इसी जगह पर मिलेंगे जिसका आइडिया अच्छा होगा उस काम को हम लोग करना शुरू कर देंगे|चारों मित्र रात भर सोचते रहे पर कुछ भी अच्छा परिणाम नही निकला|
         दुसरे दिन की सुबह हुई भावेश आपनी माँ का एकलौता बेटा था पिता का साया तो था नही और माँ का हाथ बटाने वाला और कोई न था घर का सारा काम निपटा कर वह अनुराग के घर की ओर बढ़ा| साथ ही हाथ में एक छड़ी लेली| भावेश अभी भी सोच विचार कर रहा था ध्यान कहीं और होने के कारण भावेश का पैर रास्ते के बीचों बीच पड़े गड्ढे में जा गिरा लेकिन हाथ में छड़ी होने की वजह से वह गिरने से सभाल गया| मन में विचार आया कि मैं तो गिरते गिरते सभाल गया पर गाँव का कोई बुजुर्ग व्यक्ति का पाँव पड़ा तो न जाने क्या होगा| चलो क्यूँ न इस गड्ढे को ही भर दिया जाय| हाथ में छड़ी थी ही उसी से किनारे से मिटटी खोदी और गड्ढे को भरने लगा| अब तक भावेश के तीनो मित्र रोज के स्थान पर पहुँच चुके थे| बहुत देर से भावेश के आने का इंतजार करते रहे विचार करते रहे कि भावेश अबतक पहुंचा क्यूँ नही रोज ही तो इस टाइम तक आ ही जाता था| मनीष बोल पड़ा कहीं भावेश की तबियत तो नही बिगड़ गयी वरना आने का टाइम तो हो गया
विकाश क्या पता घर में कोई मेहमान आया हो इसलिए देरी हो गयी हो
अनुराग ने कहा क्यूँ न उसके घर चल कर देखें
          तीनो भावेश की घर की बढ़ चले| देखा क्या भावेश छड़ी से मिट्टी खोद रहा है और उस मिटटी को लेजाकर बढे से गड्ढे को भर रहा है मनीष बोला चलो चलकर देखते हैं आखिर भावेश कर क्या रहा है| भावेश के निकट आते ही अनुराग ने पूछा भाई क्या कर रहे हो भावेश भईया इस गड्ढे को भर रहा हूँ अभी गिरते गिरते बचा हूँ इस गड्डे से मनीष हस्ते हुए बोला भावेश भाई कल शाम को हम सभी ने कुछ विचार करने को कहा था और तुम हो कि गड्डे को भरने में लगे हो | भावेश बोला उस बारे में थोड़ी देर बाद बात करते हैं पहले इस गड्डे को भरने में मेरी मदद करो| तीनो भावेश के साथ हाथ बटाने लगे और देखते ही देखते गड्डे को रस्ते के बराबर कर दिया| भावेश के मन में कुछ विचार आने लगा और अपने दोस्तों से बोला क्यूँ न आज गांव के रस्ते में जितने भी गड्डे हैं सभी को भर दिया जाय| अनुराग ने कहा भाई आज बहुत हो गया गड्डों को फिर भर देंगे
भावेश ने कहा भाई कोई गिरने से बच जाए तो तुम्हे दुवा देगा| क्या पता इसी में हमारी भलाई हो| अनुराग, विकाश और मनीष भावेश के बातों से सहमत हुए और लग गये गांव के गड्डों को भरने में देखते ही देखते सभी गड्डे उन्होंने भर डाले| लेकिन रस्ते के आस पास कांटे दार झाड़ियाँ थी जिससे भरे हुए गड्डे दूर से दिख नही रहे थे फिर विचार किया क्यूँ न इन झाड़ियों को भी साफ कर दें फिर क्या था चारों ने मिलकर रास्ते को चमका दिया दूर से ही देखने में लग रहा था गाँव में कुछ काम चल रहा है | 



कहानी आगे  जारी है  प्रतीक्षा करें .........................

दाज्यू पहाड़ बेचि है

बेचि है दाज्यू बेचि है
पहाड़ खोदी खोदी बेर बेचि है ।
हमर पितरों जमीन
हमर नी रैगोय
हमर जमीन पर
दलाल मालिक बण गिन
विकाश विकाशे नाम पर
हमर पहाड़ बेचि है ।
झट्ट जागी जाओ आजि मुणि दिन
हमर घर हमर निरोल
दूर बटी देखि बेर
लट्ठ  मारि बेर हमुकें
घर  बटि भजाई जाल।
आजि ले रईं सईं बचैले
बखता बचै सकछै बचैले
आपण  रईं सईं पितरों जमीन बचैले
नतर भो त्यर घर, पहाड़
त्यर नि रौल
नेतानु और दलालुं जेबक् माल हॉल।
-पागल पहाड़ी

Monday, May 11, 2015

किसानों की अनदेखी कब तक

            एक तरफ फसल क्षति के सदमे से किसानों का मारने का सिलसिला जरी है तो दूसरी ओरओर केंद्र और राज्य सरकारें अपनी राजनैतिक्ता को सिद्ध करने के लिए एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला जरी रखे हैं । ऐसे में किसानों की सुद कौन लेगा ? एक ओर प्रकृति की मार से फसल की पैदावार नष्ट हो गई तो दूसरी ओर राजनीतिक दलों की अनदेखी। किसान अपना दुखड़ा रोए तो किसके सामने ? केंद्र व राज्य सरकारें यह सब जानते हुए भी किसानों के लिए अब तक कुछ खास नही कर पाई है । 
                   भारत को कृषि प्रधान कहा जाता है और यहाँ की 80 फीसदी आबादी खेतों पर ही निर्भर करती है इसके बाबजूद देश में यह क्षेत्र सबसे पिछड़ा है। किसानों की हालिया रिपोर्ट आने के बाद भी किसानों की समस्याओं पर ध्यान देने की फुर्सत न तो सरकार को है न ही किसी राजनीतिक पार्टी को। पर हाँ उनकी आत्महत्या के मामले में विपक्षी पार्टियों के लिए सरकार पर हमला करने का हथियार जरूर बना है। 
            एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के मुताबिक हर 30 मिनट में एक किसान आत्महत्या करता है, यानि अन्नदाता की भूमिका निभाने वाला किसान अब अपनी जान भी बचाने में असमर्थ है। केंद्रीय ख़ुफ़िया विभाग ने भी हल में किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर एक रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, उसमें कहा गया कि किसानों की आत्महत्या की वजह प्राकृतिक भी है और कृत्रिम भी। इनमे आसमान बारिश, ओलावृष्टि, सिंचाई की दिक्कतों, सूखा और बाढ़ को प्राकृतिक वजह की श्रेणी में रखा गया था, साथ ही कीमतें तय करने की नीतियों और विपणन सुविधाओं की कमी को मानवनिर्मित बताया गया है, लेकिन इस रिपोर्ट में कहीं भी इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि आखिर समस्या पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है!
11 मई 2015 हरदौल वाणी
सरकारी आंकड़ों पर यदि नजर डालें तो किसानों की समस्या बद से बत्तर होती जा रही है। एनसीआरबी के मुताबिक, वर्ष 1995 से 2013 के बीच तीन लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। वर्ष 2012 में 13,754 किसानों ने विभिन्न वजहों से आत्महत्या की थी और 2013 में 11,744 किसानों ने आत्महत्या की। वर्ष 2014 मई भी आत्महत्या की दर में तेजी आई है। अंग्रेजी अख़बार 'द टाइम्स ऑफ़ इंडिया' खबर के मुताबिक महाराष्ट्र में ही 1921 किसानों ने आत्महत्या की थी। हालाँकि अभी सरकारी आंकड़ों की रिपोर्ट आनी बल्कि है। न्यूज चैनल बीबीसी के मुताबिक इस वर्ष जनवरी से मार्च तक महारष्ट्र के विदर्भ में अब तक 601 किसानों ने आत्महत्या की है। वहीँ पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने बेमौसम बरसात में कम से कम 35 किसानों की खुदकुसी की बात स्वीकार की थी। बंगाल, राजस्थान, गुजरात,मध्यप्रदेश, और तमिलनाडू का भी यही हल है। इन राज्यों में साल दर साल आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। 
              कहने को केंद्र सरकार ने मुआवजे का एलान किया है,पर किसानों को कब और कितना मिलेग यह कुछ समय बाद साफ नजर आएगा। अब तक किसानों की पीड़ा न राज्य सरकारें समझ पाई हैं न ही केंद्र सरकार। ऐसा नही है कि केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को पता नही, बल्कि वे लोग संसद सत्र के दौरान किसानों की बात हमेशा से बराबर आवाज उठाते रहे हैं , पर जमीनी हकीकत यही है कि किसानों को कभी सही समय पर उचित मुआवजा नही मिल सका। यहाँ तक की उत्तर प्रदेश की सरकार ने किसानों के साथ 61-62 रूपये का चैक देकर जो मजाक किया है उसकी भी अनदेखी नही की जा सकती। किसानों को लेकर केंद्र व राज्य सरकारें कितनी संवेदनशील हैं यह अभी तक स्पष्ट नही हो पाया है। अगर राज्य सरकारों का किसानों के प्रति यही हाल रहा तो किसानों की आत्महत्याओं की सुर्खियां बनी रहेंगी। रही सही कसर केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाकर किसानों की कमर तोड़ रही है।
                केंद्र सरकार कॉरपोरेट जगत को जमीं देने के लिए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में नए संशोधन कर लोकसभा में पूर्ण बहुमत से पास कर लिया, अब राज्यसभा में पास करने के लिए बड़े आतुर है। ताकि उद्योग पतियों को किसानों की ज़मीन लेने में किसी भी प्रकार से कष्ट उठाना न पड़े, भले ही किसानों को अपनी पैतृक जमीन से वंचित होना पड़े। जो उपजाऊ जमीन पीढ़ी-दर-पीढ़ी से किसानों का भरण पोषण करते रही अब उसे उस भू-माता से वंचित किया जायेगा। केंद्र सरकार दोगुना, तीनगुना मुआवजा व नौकरी जैसे प्रलोभन देकर किसानों को रिझाने का प्रयत्न कर रही , ताकि किसान अपनी भू-माता को उद्योगपतियों के हवाले कर दें। जो उपजाऊ जमीन किसानों को कई पीढ़ियों से पालती आ रही है और न जाने आगे कितनी पीढ़ियों को पालेगी। तब ऐसे में प्रश्न उठता है कि मुआवजे व नौकरी से किसान अपनी कितनी पीढ़ियों को पाल सकेगी?
                   भारत को सिंचित करने वाला किसान दोराहा पर लटका हुवा है। एक तरफ खाई तो दूसरी और कुआं, यानि दोनों ओर मौत। सरकारें छोटा-मोटा मुआवजा देकर या राहत पॅकेज का एलान कर अपने दायित्व से मुक्त हो जाती हैं। नतीजा समस्या जस की तस बनी रहती हैं और आत्महत्या का चक्र जारी रहता है आखिर अन्नदाताओं के आत्महत्या का सिलसिला कब तक चलता रहेगा?
पं. भास्कर जोशी

गेवाड़ घाटी