Wednesday, December 24, 2014

बालकपन

खो गया फिर वहीँ पुरानी यादों में 
क्या दिन थे वे बालकपन के,
न जाने कैसे-कैसे, 
कितने सपने देखते थे
सपनो की दुनियां में, 
हर पल डूबे रहते थे 
न सुध थी अपनी, 
न घर जाने को सुध होती
मस्त मौला घुमाकड़ सा,
फिरता था उस रोज
क्या दिन थे वे बालकपन के
जब भी याद आती है बालकपन की 
फिर वहीँ खो जाता हूँ पुरानी यादों में|

Friday, December 5, 2014

भेंट जया पहाड़

ऐजा भुलू ऐजा दीदा आपणे पहाड़
बुड-बड़ियों कें भेंटी जाया, भेंट जया धेई द्वार
भेंटी जाया आपण मुलुक पहाड़

के भलौ मुलुक हमर, के भलौ पहाड़
के भले  डान कान, हरि-भरी सार,
कस य पलायन हैगो, बांज हैगो पहाड़...........

के भली बोली हमारी, के भलो रिवाज,
गौं गौनु में ढोल दमुवा, बजाछि निशाण
कस य पलायन हैगो, नीरस हैगो पहाड़...............   

गेवाड़ घाटी