खो गया फिर वहीँ पुरानी यादों में
क्या दिन थे वे बालकपन के,
न जाने कैसे-कैसे,
कितने सपने देखते थे
सपनो की दुनियां में,
हर पल डूबे रहते थे
न सुध थी अपनी,
न घर जाने को सुध होती
मस्त मौला घुमाकड़ सा,
फिरता था उस रोज
क्या दिन थे वे बालकपन के
जब भी याद आती है बालकपन की
फिर वहीँ खो जाता हूँ पुरानी यादों में|
क्या दिन थे वे बालकपन के,
न जाने कैसे-कैसे,
कितने सपने देखते थे
सपनो की दुनियां में,
हर पल डूबे रहते थे
न सुध थी अपनी,
न घर जाने को सुध होती
मस्त मौला घुमाकड़ सा,
फिरता था उस रोज
क्या दिन थे वे बालकपन के
जब भी याद आती है बालकपन की
फिर वहीँ खो जाता हूँ पुरानी यादों में|