Monday, December 17, 2012

दाज्यू बोले मैं पहाड़ी


पहाड़ी दाज्यू, मिले पहाड़ी
कुछ पहाड़ी ऐसे मीले
ठुल्ला -ठुल्ले खूब मिले
दाज्यू कहते- मैं  पहाड़ी ।

देखो कैसे मिले पहाड़ी दाज्यू
कहते हैं अपने को पहाड़ी
कई पहाड़ी फैंकते मिले
कई मीले पेशावर
दाज्यू कहते- मैं  पहाड़ी ।

मैं भी सोचा पहाड़ी दाज्यू
कैसे कैसे मिले पहाड़ी
न कभी पहाड़ को समझे
न समझे पहाड़ी को
फिर भी कहते  - मैं पहाड़ी ।

मैं भी अचरज में दाज्यू
पहाड़ी ने पहाड़ छोड़ा,
पहाड़ी सभ्यता छोड़ी
मातृ भाषा भी भूल गये
तब काहे न बोले दाज्यू - मैं पहाड़ी ।

मुझे भी रोना आता दाज्यू
जब पुरखों कि कुड़ी छोड़ी
तोड़े पुरखों के सपने
बंजर कर दिए उनके हरे भरे खेत
अब क्यूँ ने बोले दाज्यू - मैं पहाड़ी ।

दाज्यू कहना है पहाड़ी अपने को
एक बार पलट के देखो  पहाड़ को
लौटा दो पहाड़ की जगमगाहट को
खिल उठे पहाड़ की संस्कृति-सभ्यता-भाषा
फिर बोलना  दाज्यू - मैं पहाड़ी ।

Monday, December 10, 2012

पुकारता है पहाड़


तुम हो  कहाँ तुम हो  कहाँ,
तुम्हें अपना पहाड़ पुकारता है।
सब कुछ सुना सुना सा हो गया,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

आस लगाये खड़ी है कबसे,
ढूंढ़ रही है हर पगडण्डी पर।
दिन रात आस बिठाये रहती है,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

जब थे तुम नन्हे-मुन्हे से बच्चे,
खेला करते थे इसकी  आँचल में।
क्या अब तुम्हें वो याद आती नही,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

छोड़ कर गए तुम जिस दिन,
बहुत रोई थी वो  उस दिन।
दिन बीते महीने बीते सदियाँ बीत गयी,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

क्या तुमको उसे तडपाने का,
अपनी जन्म भूमि को तरशाने का।
यही  एक मार्ग मिला था क्या,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

सोचा था अब के बर्ष आओगे तुम,
न तुम आये न तुम्हें उसकी याद आई।
कब तक ऐसे ही तडपाओगे तुम,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

अब तो बहुत खेल लिया,
आँख मिचोली का खेल।
अब तो आ भी  जाओ तुम,
तुम हो  कहाँ तुम हो  कहाँ ।।


याद औण लागी रे, म्यर पहाड़ की ।
दिन दुगुण रात चौगुण, लागनी मिगें जी ।।
कसी काटू दिनों की, यूँ मेहण लागनी।
मेहणा-मेहण मिगें,  साल लागनी ।।
याद औण लगी रे.................
.....................................
by पं. भास्कर जोशी


कल में अपने एक दोस्त से मिला
किस से मिला पूछना मत
वह मुझे किसी के यहाँ ले गया
किसके यहाँ ले गया गया पूछना मत
वहां दो चार लोग और मिल गये
कौन-कौन मिले पूछना मत
बात ऐसे हुई हँसते हँसते लोटपोट हो गये
क्यूँ हँसते रहे पूछना मत
उस लड़के को सुन सुन कर
मेरा भी दिमाग भनभनाया
मैंने दो दमुगरे रख दिए
मैंने कहा मैंने दमुगर क्यूँ दिए अब पूछना मत
---------  by भास्कर जोशी

Monday, November 26, 2012

दडियोक म्यर किस्स

म्यर दगाडिया  याद उने दाज्यू
कतु भला दिन छिय ऊं
रति परी ब्याव तक
दगडियों दगे डोई रुन्छिया
स्कुल हैं दगड़ जंछिया
कानिम एक दुसर हाथ हौन्छी
मासाब अख़बार पण में मस्त रुछी
मैं-म्यर दगडी ब्यर खाहाँ हिट दिछि
ब्यर खण में मस्त है जांछी
स्कुल ले जाणो भूल गोछी
याद आई स्कुलेकी
दौडान दौडान स्कुल पूज दाज्यू
मसाबुले भौल मार चार सिकौड़
इज बाज्यू याद ऐ पड़ा
डाड़ मारने-मारने घर गाय
जेबन ब्यर इसके हया
आंखां में अंशु तहौड़ छि
कानिम लटकाई झौल छि
इजल पूछो के हो च्यला
रुने-रुने क मासाबुल मारी इजा
बौज्युल पूछो किले मारी
मेल क ब्यर खाहाँ जैरछी तब मारी
बौज्यू कें ले गुस आयो
चार सिकौड़ ऊं ले मरगाया
पिड़े मारी भूक ले हराय
जेबन ब्यर  इसके हाय
यो छियो  दडियोक म्यर किस्स
आज  ले ऊं दिना याद करणोई  दाज्यू

Sunday, November 4, 2012

गोश्वामी जी की याद आते रहेगी


कुमाओं के कुमौनी गीतों में
गोपाल दा की याद आती है

दूर कहीं भी उनका गाना बजता
दिलों में सुकून छा जाता

जब भी किसी के घर में
लड़की का शुभ लग्न होता है

तब भी गोपालदा के ही
 गानों का रसास्वाद मिलता

अब भी याद आता है वो गाना
"जा चेली जा स्वरास"

जब भी इस गाने को सुनता हूँ
आँखों में अश्रु, ह्रदय को छलनी कर देता

Wednesday, October 31, 2012

धन्य है मेरा पहाड़



पहाड़ों की सुन्दर वादियों में
हमारे हृदय  की वेदना छिपा है

वो प्रभात की शुभ अलबेला में
सूर्योदय का उद्गम आनंद छिपा है ।

चिणियों की चहकती आवाज में
कोयल की कुहुकती रसास्वाद छिपा है ।

सीढ़ीदार खेतों की  हरियाली में
प्रकृति का व्यव्हार छिपा है ।

कल-कल-छल-छल बहती नदियाँ में
गिरते हुए झरनों का परपात छिपा है ।

देवों की देव भूमि उत्तराखण्ड में
हिमालय के आँचल में स्वर्ग छिपा है ।

ऐसी शुभ  पावन देव भूमि में
मेरा जन्मों का सौभाग्य छिपा है ।

हे माँ ! धन-धन्य है मेरा जीवन
जो तूने इस पावन भूमि पर मुझे जन्म दिया  ।

Tuesday, September 25, 2012

क्या है तू ?


सोच कुछ सोच
क्या है तू ?
करना क्या चाहता है तू ?
तेरी मंजिल है क्या ?
इस दुनियां की भीड़ में
कहीं खो न जाना तू ?
कर मन को एकत्रित
कुछ सोच ऐसा
कर कुछ ऐसा
कि दुनियां तुझे पुकारे
अपनी एक राह पकड़
राह को अपनी मंजिल बना
कर दे कुछ ऐसा
जिस से जीवन सफल हो जाय.....भास्कर जोशी

Sunday, September 23, 2012

दिल्ली बटी घर दाज्यू

राती परी-ब्याव तक
पहाड़ की याद एंछो
इंतजार करणोयी दाज्यू
दीपावली आली
पहाड़ जाणोक मौक मिल जालौ दाज्यू ।
पकडुल अपुण झोला झिमटा
पहुँच जौंल आनन्द विहार दाज्यू
टक-टकी देखा बेर
देखुला दिल्ली-गनाई गाड़ी दाज्यू
बैठ जुला सिट मा
ड्राइवर आलो गाड़ी चलालो
हीट द्यूला पहाडा दाज्यू ।
गजरोला पहुँचुल
काशीपुर पहुँचुल
पहुँच जुला रामनगर दाज्यू
लियुल रामनगर बटी
द्वि टुकुड मिठैका
गूइं मीठ लागुंला
घर पना मैसुकें दाज्यू ।
रामनगर बटी गाड़ी चली
हीट दियो पहाडा
सोर्याव आलो
भात्रोजखान आल
आलो भिक्यासैन दाज्यू
रिम-झिम उज्याव मैजी
पहुंची जुला मासी दाज्यू ।
मासी बटी द्वि मैल दीपाकोट
उज्याव छिना
पहुंची जुला घर दाज्यू ।

Monday, September 10, 2012

मेरो पहाडा (कुमाउनी गीत )


हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा
धन्य मेरो जन्म भूमि
उत्तराखण्ड देव भूमि
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा …………………….

पहाड़े देवी-देवत्याओं,
डान-काना में वासा,
इष्टों में इष्ट छिना
गोल्ज्यू महा देवा ।
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा ..................

म्यर पहाड़ ऊँचा डाना
बर्फीलो पहाडा ........
के भलो छाजी राछो
हरियाली छोरा ...
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा .....................

तल श्यारी मल श्यारी
खेत टुकूडी छन
खेतों मैजी मनुवा बोती
मनुवे की बहारा
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा ........

ट्याडा-म्याडा गौं बाटा
गौं दूर बसी छन
के भलो म्यर गौं बाखेई
है रो छो छमा छम
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा ........

रंग रंगीलो कुमाऊं म्यरो
छैल छबीलो गढ़वाल
पहाड़ में जनमा मेरो
सुफल हैगो भागा
हाय हाय रे म्यर पहाडा
म्यर पहाडा की छटा .....

Tuesday, September 4, 2012

"ठीटों" की याद आज भी आती है

आज भी याद है कैसे भूल सकते हैं बच्चपन । स्कुल से छुट्टी के दिन की प्रतीक्षा करते थे कि रविवार आये । याद है अभी भी छुट्टी का दिन था मैं घर से 7 - 8 कट्टे लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा । "ठीट" ढूढने इतना दूर निकल गया की मैं रास्ता भी भूल गया असोज का महिना था जंगल की घास इतनी बड़ी थी की रस्ते का पता ही नही लग पा रहा था  । सोचा पहले जिस कम के लिए आया हूँ वो काम पूरा कर लूँ । ठीटों की तलाश शुरू कर दी, मैं एक रौल (छोटा गधेरा ) में के पास पंहुचा । मुझे इतने ठीट मिल गये तो मैं ख़ुशी से पागल हो गया । अब क्या था जी मैंने कट्टे भरने शुरू कर दिए जितने भी कट्टे लाया था सभी वहीँ पर भर गये । अब चिंता होने लगी में इन्हें कैसे ले जाऊं । फिर थोडा देर बैठकर विचार किया कैसे उपाय निकाला जाय चारों ओर नजर घुमाई तभी मुझे एक चिड के पेड़ में सुखी लकड़ी पर एक टंगी हुई रसी दिखाई पड़ी सोचा ये काम भी कर लूँ मैं फिर उस लकड़ी को तोड़ने में लग गया काफी मुसीबतों के साथ आखिर कार प्रयास सफल रहा में उस लकड़ी को तोड़ने में सक्षम रहा । फिर में उसे उसी स्थान पर ले आया जहाँ पर मेरे ठीटों से भरे हुए कट्टे रखे थे । अब मन थोडा विचलित हो गया मैं डरने लगा क्यूँ की में बहुत दूर निकल आया । कुछ देर सोचने के बात में एक उंछे पत्थर पर चढ़ा और वहां से रस्ते की तलास जारी की । दूर मुझे एक बड़ा सा पत्थर दिखाई पड़ा वो पत्थर में गाय चराते वक्त हमने उसमें खूब खिचड़ी पकाई थी । उसी को लक्ष बनाते हूँ एक कट्टा ठीटे और तोड़ी हुई लकड़ी को घसीटते हुए उस पत्थर तक पहुँच ही गया । सभी कट्टों को उस पत्थर पर इक्ट्ठा कर फिर मैं एक-एक कर आशानी के साथ घर ले गया । आज भी मुझे वो दिन याद आते हैं ।

Monday, September 3, 2012

संकट से घिरा पहाड़


मडराता संकट मेरे पहाड़ पर ,
साये के तरह पड़ा मेरे पहाड़ पर

निराश  होकर  वीरान सा खड़ा ,
विपदाओं में  अपनों ने छोड़ा ,

प्रकृति ने  नदी-नालों को  सुखा किया ,
खेत-खलियानों को बंजर किया,

जल स्रोतों ने भी  साँस तोडा,
बूंद-बूंद के लिए तरसा  रहा,

जंगल आग से लिपटा रहा ,
चौतरफा मार से झेल  रहा,

संकटों में घिर रहा है पहाड़,
आओ मिलकर एक संकल्प लें,

पहाड़ को संकट से उबारेन का,
हरी-भरी खुशहाली लाने का,

पहाड़ को फिर से जगाने का
वही पहले जैसा स्वर्ग बनाने का ।

Friday, August 31, 2012

डर लगता है


सच्च कहूं डर लगता है
आप से आपके प्यार से
अक्षर लोग प्यार के नाम पर
धोके के शिवा
रुत्वाई  छोड़ जाते हैं
बहुत से जालिम देखे
नाम तो प्यार का  देते हैं
मगर काम सैतनों की कर जाते हैं
सामने से प्यार का मस्का
पीछे से दुश्मनी का खंजर
ये दुनियां की फितरत बन गयी है
किस पर विस्वास करूँ
किस पर न करूँ
सकल से तो सभी भोले लगते हैं
सच्च कहूं डर लगता है
आप से आपके प्यार से

Tuesday, August 28, 2012

याद आता है पहाड़


याद आता है वो पहाड़ ,
छोड़ आया अपना पहाड़

वो पहाड़ का सौन्दर्य,
वो पहाड़ की प्राकृतिक छटा ,
यो पहाड़ का वातावरण,
याद आता है वो पहाड़,
छोड़ आया अपना पहाड़।

वो पहाड़ के रौल-मौल,
वो पहाड़ के गाड-गधेरे,
वो कल-कल-छल-छल बहते झरने,
याद आता है वो पहाड़,
छोड़ आया अपना पहाड़।

वो पहाड़ के उबड़-खाबड़ खेत,
वो खेतों के टेड़े-मेड़े मेंट,
वो पहाड़ की हरियाली,
याद आता है वो पहाड़,
छोड़ आया अपना पहाड़ ।

वो पहाड़ के बार-त्यौहार,
वो पहाड़ के हिसाव-किलमोड़,
वो पहाड़ की कोयल मधुर ध्वनि,
याद आता है वो पहाड़,
छोड़ आया अपना पहाड़।

बीता पहाड़ में बच्चपन मेरा,
वो मेरा उपद्रव करना,
वो गांव की मित्र-मंडली,
अब बस एक यादें बनकर रहा गये,
याद आता है वो पहाड़,
छोड़ आया अपना पहाड़ ।

पं. भास्कर जोशी

Tuesday, August 21, 2012

किसी ने देखा ? मेरा वो सपनों का भारत


किसी ने देखा ?
मेरा वो सपनों का भारत
जिसे कहते थे लोग
सोने की चिड़िया
अब न जाने कहाँ छुट गया
मेरा वो  सपनों का भारत ।

जिस देश में था
भाई चारा सबसे बढकर
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई
थे आपस भाई-भाई
अब न जाने कहाँ खो गया
मेरा वो सपनों का भारत ।

जिस देश बहती स्वच्छ निर्मल धारा
गंगा-यमन-सरस्वती
कर दिया असुद्ध धाराओं को
डाल दिए गट्टर के ढकन में
अब न जाने कहाँ लुप्त हो गये
मेरा वो सपनो का भारत ।

नीलाम कर दिया बिच चौराहे में
भ्रष्ट इन भ्रष्टाचारियों ने
लुट-मार-क्षीण कर दिया भारत को
भर लिए अपने कोठरे
कैद कर लिया सोने की चिड़िया को
अब ढुढुं तो  कहाँ ढुढुं ?
किसी ने देखा ?
मेरा वो सपनों का भारत
किसी ने देखा ?
मेरा वो सपनों का भारत

स्वरचित- पं भास्कर जोशी

Monday, August 6, 2012

संकट मेरे पहाड़ पर

टूट पड़ा है संकट 
मेरे पहाड़ पर 
न हसने को जी चाहता है 
न खाने को 
सुनी खबर पहाड़ की 
हडबडाहट सी मच गई 
इसे में क्या समझूँ ?
प्रकृति का मार कहूँ 
या हमारी किस्मत 
किसको दोषी समझूँ ?
देव भूमि देवों की 
कहते हैं उत्तराखण्ड
कहाँ गये वे देव ?
जिन्हें पूजा करते 
माष त्यौहारों में 
न दिखा उन्हें 
अपने रोते बिलखते बच्चों को 
कहाँ छुप गये तुम 
सामने क्यूँ नही आते 
क्यूँ कहर ढाते हो 
मेरे पहाड़ पर 
क्यूँ हसी खुसी दुनियां में 
विराम लगा दिया तुमने ।
स्वरचित -पं. भास्कर जोशी

Sunday, August 5, 2012

अपनी भी एक पहचान हो


अक्षर मैं  सोचता हूँ
अपनी भी एक पहचान हो
हर रस्ते पर मेरा नाम हो
जिस चौराहे से निकलूं
उस चौराहे पर मेरा नाम हो
सपने तो खूब देखता हूँ
दुःख तब होता है
जब निराशा हाथ लगती है
हर वक्त तलाश करता हूँ
कोई तो ऐसी खूबी  होगी
जिस से में अपने को पहचान सकूँ
कैसे मैं अपने को साबित करूँ
इस बढ़ते  हुए मुकाबलों का
इस धरा पर भटक रहा हूँ
अपनी पहचान बनाने को
हर राह पर अटकलें हैं
मंजिल भी धुंधली दिखती है
कौन सा राह पकडूँ ?
जिस से मुझे मेरी पहचान बन जाये
जिसमें  मुझे मेरी मंजिल मिल जाये ।
स्वरचित- पं. भास्कर जोशी

Wednesday, August 1, 2012

में करूँ तो क्या करूँ


में करूँ तो क्या करूँ
जब भी कुछ करना चाहूँ
बंधाएं आन पड़ती हैं
जब भी भला करने की सोचूं
तो अक्षर बुरा बन जाता हूँ
हर बार की तरह
इस बार भी सोचा
एक नेक काम कर लूँ
पर अर्चने
रास्ता रोक लेती हैं
कैसे निजात पाऊं
इन दुविधाओं से
आँखों से आसूं
मन में चुभते बातें
अंगारों की तरह
लिपटते हैं जहन में
कैसे छुटकारा दिलाऊं
स्वरचित - भास्कर जोशी
 

Wednesday, July 18, 2012

बच्चपन के दो नायाब मित्र



           मित्रो ये दो मित्र ऐसे हैं जो एक दुसरे के बगैर रहा नही सकते । उत्तराखण्ड "म्यर गेवाड़ घटी" से ये दोनों मित्रो की दोस्ती का कुछ अनोखा अंदाज है इस कहानी के दो मुख्य पात्र हैं बिक्की और कन्नू, भगवान से प्रार्थना करूँगा की इन दोनों की दोस्ती में कभी कोई दरार न आए । मित्रो इन दोनों का दृष्टान्त में आप लोगों को इन दोनों से रूबरू करने की कोशिस करूँगा ।

           कन्नू, बिक्की से लगभग ढेड साल बड़ा है । परन्तु ये दोनों साथ ही रहे हैं  चाहे स्कूल की बात हो या फिर कुछ काम करना हो दोनों साथ ही रहा करते थे । जब ये दोनों छोटे थे, इनके घर वालों ने इन का दाखिला प्राइमरी स्कूल में करवा दिया । कन्नू को प्राइमरी पाठशाला डांग में और बिक्की को प्राइमरी पाठशाला जेठुआ स्कूल में परन्तु इन दोनों का कोई पता नही कब कौन से स्कूल चले जाएँ । कभी मन करे तो बिक्की कन्नू के स्कूल में चले जाये, तो कभी कन्नू बिक्की के स्कूल में चले जाये दोनों की कक्षा एक ही थी । कन्नू को उनके घर वालों ने देर में ही दाखिला करवाया था । पर अब ये दोनों तीसरी कक्षा में पहुँच चुके थे, फिर भी ये दोनों का कोई पता नही कब कौन से स्कूल चले जाएँ ।  घर वालों को इन दोनों का रास पसंद नही आया दोनों के परिवारों ने मिलकर ये गुत्थी सुलझाई तद पश्च्यात कन्नू को भी बिक्की के साथ ही एक ही स्कूल में दाखिला करवा दिया गया । कन्नू और बिक्की अब एक साथ आना जाना और एक ही स्कूल में पढना दोनों जहाँ जाते साथ ही जाते । एक दिन की बात है मास्टर जी स्कूल में इमला लिखा रहे थे । उन दिनों सभी बच्चे सब होल्डर जिप पैन जो शाही से लिखा करते थे । लिखने के दौरान बिक्की से कन्नू की शाही गिर गयी । यहीं से दोनों की खट-पट सुरु हो गई । कन्नू ने बिक्की से साही के पैसे मागे उन दिनों शाही की छोटी से बोतल पचास पैसे में भरी जाती थी । परन्तु बिक्की के पास पैसे नही थे, उस दिन कन्नू के साथ बिक्की का मनमुटाव होने लगा । बिक्की, कन्नू से बार बार बोलता किन्तु कन्नू बोलने से इंकार करता रहा । घर पहुचने के बाद दोनों अपने गांव के साथियों के साथ बैट-बौल खेलने चल दिए । पर कन्नू उस से बात करना ही नही चाहता था। इसी बात पर गांव के और बच्चों ने एक निरणय लिया बिक्की और कन्नू को बैट-बौल मैच का कैप्टन बनाया गया, और दो-दो  रूपये का मैच लड़ाया गया, और यह बोल दिया यदि बिक्की जीता तो कन्नू उसे बोलेगा और यदि हरा तो कन्नू उसे कभी नही बोलेगा होना तो कुछ और ही था दोनों दोस्तों को किस प्रकार से दोस्ती को तोडा गया ।  साथ के मित्र इन दोनों के झगडे से  आनन्द ले रहे थे । मैच शुरु हुआ और गांव के लड़कों ने बिक्की को हराने की बात एक दुसरे के कान में फूंक दिया अब क्या था बिक्की को तो हारना ही था वह हारने के बाद एक पेड़ के निचे बैठ गया और गांव के लड़के उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया बिक्की निराश होकर अपने घर लौट आया दुसरे दिन स्कूल जाते समय बिक्की कन्नू को स्कूल आने के लिए आवाज दे परन्तु कन्नू आवाज का उत्तर देने को ही राजी नही हुआ  दोनों स्कूल पहुंचे प्रार्थना होने के बाद दोनों अपनी कक्षा में पहुंचे, बिक्की ने देखा कन्नू आज दूसरी लाइन में बैठा है बिक्की निराश होकर अपनी रोज की स्थान पर बैठ गया यह कारवां चलता रहा सभी को इस बात की भनक हो चुकी थी, घर वालों को भी पता चल चूका था ये दोनों बोल नही रहे हैं सभी ने अपनी अपनी और से मित्रता करवाने की कोशिस की पर नाकामियाब रहे दोनों जाते तो एक ही स्कूल में और एक ही कक्षा में परन्तु बोलना नामुकिन सा हो गया अब महिना बीतने लगा धीरे धीरे साल बिता समय का पहिये चलता रहा परन्तु दोनों एक दुसरे बात नही करने लगे अब दोनों पांचवी कक्षा में पहुँच गये एक दिन स्कूल के मास्टर श्री उर्वादत्त पोखरियाल जी ने ठान ली आज दोनों की बात करवानी ही है मासाब ने दोनों को पहले एक साथ बैठाया, बोले की तुम दोनों एक ही किताब से गणित के सवाल हल करोगे, दोनों सवाल हल करने लगे लेकिन एक दुसरे से बोले नही दोनों चुप चाप से जैसे भी हो सके सवाल हल किया, मास्टर जी ने दोनों की कापी देखि दोनों के प्रश्नोत्तर अलग अलग थे मास्टर जी ने उन दोनों का हाथ मिलाने की कोशिस की पर दोनों ने बहुत मार खाया परन्तु हाथ नही मिलाया मास्टर जी ने भी अपनी हार मानने में ही अपनी भलाई समझी दोनों का अबोल यूँ ही चलता रहा। सात साल हो चुके थे दोनों को बोलते हुए,  दोनों एक सात एक ही स्कूल में पड़ते चले गये, लेकिन बोल बाला नही हुआ अब दोनों नवीं कक्षा में पड़ने लगे इसे ही इन दोनों का समय बीतता गया एक दिन की बात थी गांव में शादी का  माहौल था सांयकाल में गाने बजने का कार्यक्रम चल रहा था सभी गाँव के लड़के एक साथ इक्ट्ठा होकर फल-फूल चुराने का अपना कार्यक्रम बना रहे थे, बिक्की और कन्नू भी सामिल होना चाहते थे एक बार फिर गाँव के लड़कों ने दोनों के साथ एक और शर्त रखी, पर इस बार दोनों की मित्रता का प्रस्ताव की बात थी बोले तुम दोनों तभी हमारे साथ आओगे जब तुम दोनों एक दुसरे से बोलोगे शर्त मंजूर हुई लेकिन एक समस्या आन पड़ी बात यह थी कि दोनों में पहले कौन बोलेगा, ही बिक्की बोलने को राजी था ही कन्नू बोलने को राजी था बड़ी दुविधा आन पड़ी थी इस गुत्थी को सुलझाने की लिए कई नुक्से अपनाये गये परन्तु गांव के लड़के फिर भी सुलझा नही पाए एक मित्र ने बड़ी समझदारी वाली बात कही बोला एक का करते हैं एक रूपये के सिक्के से ट्रौस करते हैं यदि हैड आए तो बिक्की पहले हाथ मिलाएगा और यदि ट्रेल आए तो कन्नू पहले हाथ मिलाएगा दोनों इस सुझाव  से खुश हो गये, पर दोनों के दिलो में धकाधाकाहाट होने लगी दोनों के मन में एक ही बात उमड़ रही थी कन्नू बोलेगा तो अच्छा है और कन्नू भी यही सोच रहा था पहले बिक्की बोले तो अच्छा होगा, इस बार बिक्की के पक्ष में गया । ट्रौस  किया गया  ट्रौस होते ही ट्रेल बिक्की के पक्ष में आकर गिरा ।  बिक्की ट्रौस में जित गया और कन्नू को पहले हाथ मिलाना पड़ा गाँव के लड़कों ने शोरगुल करना शुरू कर दिया वे लोग इस लिए खुश थे कि उन लोगों ने दोनों दोस्तों को फिर से मिला दिया हाथ मिलाने के बाद दोनों को को गले भी मिलाया गया बिक्की और कन्नू फिर से एक हो गये अब सभी मित्रों के साथ हंसी-हंसी फल-फूल चुराने  निकल पड़े...। अब दोनों जहाँ जाते साथ साथ जाते हैं ।.....................|

गेवाड़ घाटी