कहाँ ढुँढु किस ओर तरासुं तुझे।
कहीं भी तेरा कोई ठिकाना न मिला।।
गली, नुक्कड हर चौराहे ढुँढा तुझे।
पर ठेकुली तेरा कोई अता पता न मिला।।
कई खत भेजे पोस्ट ऑफिस से मैने।
उन खतों का अब तक कोई जवाब न मिला।।
तुझे लेकर न जाने कितने ख्वाब संजोये हैं मैंने।
चाँद तारों को भी खबर हो गयी पर तुझे खबर न हुई ।।
न चाहकर भी कई बार मिस किया तुझे।
तूने कभी मिस किया उसकी हिचकियाँ तक मुझे न मिली।।
तेरी तलाश में अपनी सुध खो बैठा हूँ तेरी बाला से।
फिर भी मेरी सुध का तुझ पर कोई असर न पड़ा|
तुझे ढुँढ-ढुँढ कर मेरी आँखेँ भी पथरा गयी।
इसे मेरी बेचैनी कह या पागलपन तुझे ढुँढे बगैर हार न मानुँगा।।
कहीं भी तेरा कोई ठिकाना न मिला।।
गली, नुक्कड हर चौराहे ढुँढा तुझे।
पर ठेकुली तेरा कोई अता पता न मिला।।
कई खत भेजे पोस्ट ऑफिस से मैने।
उन खतों का अब तक कोई जवाब न मिला।।
तुझे लेकर न जाने कितने ख्वाब संजोये हैं मैंने।
चाँद तारों को भी खबर हो गयी पर तुझे खबर न हुई ।।
न चाहकर भी कई बार मिस किया तुझे।
तूने कभी मिस किया उसकी हिचकियाँ तक मुझे न मिली।।
तेरी तलाश में अपनी सुध खो बैठा हूँ तेरी बाला से।
फिर भी मेरी सुध का तुझ पर कोई असर न पड़ा|
तुझे ढुँढ-ढुँढ कर मेरी आँखेँ भी पथरा गयी।
इसे मेरी बेचैनी कह या पागलपन तुझे ढुँढे बगैर हार न मानुँगा।।
1 comment:
बहुत सुंदर जोशी जी।
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