Friday, January 16, 2015

कहाँ ढुँढु तुझे

कहाँ ढुँढु किस ओर तरासुं तुझे।
कहीं भी तेरा कोई ठिकाना न मिला।।

गली, नुक्कड हर चौराहे ढुँढा तुझे।
पर ठेकुली तेरा कोई अता पता न मिला।।

कई खत भेजे पोस्ट ऑफिस से मैने।
उन खतों का अब तक कोई जवाब न मिला।।

तुझे लेकर न जाने कितने ख्वाब संजोये  हैं मैंने।
चाँद तारों को भी खबर हो गयी पर तुझे खबर न हुई ।।

न चाहकर  भी कई बार मिस किया  तुझे।
तूने कभी मिस किया उसकी हिचकियाँ तक मुझे न मिली।।

तेरी तलाश में अपनी सुध खो बैठा हूँ तेरी बाला से।
फिर भी मेरी सुध का तुझ पर कोई असर न पड़ा|

तुझे ढुँढ-ढुँढ कर मेरी आँखेँ भी पथरा गयी।
इसे मेरी बेचैनी कह या पागलपन तुझे ढुँढे बगैर हार न मानुँगा।।

1 comment:

Gopu Bisht said...

बहुत सुंदर जोशी जी।

गेवाड़ घाटी