Monday, December 10, 2012

पुकारता है पहाड़


तुम हो  कहाँ तुम हो  कहाँ,
तुम्हें अपना पहाड़ पुकारता है।
सब कुछ सुना सुना सा हो गया,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

आस लगाये खड़ी है कबसे,
ढूंढ़ रही है हर पगडण्डी पर।
दिन रात आस बिठाये रहती है,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

जब थे तुम नन्हे-मुन्हे से बच्चे,
खेला करते थे इसकी  आँचल में।
क्या अब तुम्हें वो याद आती नही,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

छोड़ कर गए तुम जिस दिन,
बहुत रोई थी वो  उस दिन।
दिन बीते महीने बीते सदियाँ बीत गयी,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

क्या तुमको उसे तडपाने का,
अपनी जन्म भूमि को तरशाने का।
यही  एक मार्ग मिला था क्या,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

सोचा था अब के बर्ष आओगे तुम,
न तुम आये न तुम्हें उसकी याद आई।
कब तक ऐसे ही तडपाओगे तुम,
अब तो आ भी  जाओ तुम।।

अब तो बहुत खेल लिया,
आँख मिचोली का खेल।
अब तो आ भी  जाओ तुम,
तुम हो  कहाँ तुम हो  कहाँ ।।

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