Saturday, April 6, 2013

बिखरे बिखरे से


(1) अफशोस है अपने लब्जों से मुझे
      जाने  कितनों के दिल दुखाये होंगे मैंने ।
      जो भी अल्फाज निकले जुबां से मेरे
      जड़ बनकर उगल दिए सारे मैंने ।

(2)   सब लोग  भूल गये हमें जाने कहाँ चले दिए  हम,
       थे तो भू-धरा पर ही फिर भी अनजान हो गये हम ।


(3)  चल रे मुशाफिर चलता जा
      पल भर का आनंद लेताजा
      दुःख- सुख, जीवन का है पहिया
     जिन्दगी की डगर पर हँसते-गाते चलता जा।

(4)- जाते जाते हमें भूल मत जाना
       अगले मोड़ पर हम ही मिलंगे |

(5)    कह कर गए थे वो हमसे 'फिर' मिलते रहेंगे
        अब लगता है कि वो हमें 'फिर' में ही टाल गये।

(6) याद याद आती है उनकी अक्षर गायब रहते हैं
     फिर भी उनके आने का इंतजार हर वक्त करते हैं


(7)  जब कभी भी देखता हूँ उन्हें चेहरे पर मुश्कान खिल उठती है
       देखते हैं वो हमें तिरछी नज़रों से, और  हम  घायल..............।

(8)  मैं जहाँ कहीं भी रहूँ आपको पकड़ क्र रखूँगा
       छुट गये गर आप हमसे फिर आप जैसा न मिलेगा हमें ।

(9)  वो दुपके से आकर कान में कुछ कह गये हमसे
      प्यारी सी अंगडाई ली और हम नींद से जाग गये ।

(10) बहुत हुआ अब तो आ भी जाओ ,
        और कितना तडपाओगे हमको।
        दिन  बीत गया अँखियाँ तरस रही है तुम से
       कब तक यूँ ही आंख मिचोली खेलोगे हमसे ।

(11) अगर मगर की दुनियां ने हमें खूब दिया नाचय
      वाह रे निंदक संवारे हम पर ही खेल आजमाय ।

(12)  दुनियां की इस रेस में, हम भी शामिल हो गये
         हम भागे क्यूँ थे अब भी इस से अनजान है ।

(13) एहसास था हमें तुम लौटकर आओगे जरुर
       मगर आने में तुमने बहुत देर कर दी

(14)  राहों पर चलते चलते
       अक्सर ठोकर लग ही जाती है
       सभल गये तो दुनियां चल पड़ी
      गिर गये तो ये दुनिया और गिर देती है

(15)  वर्षों से ढुंढ रहा हूँ तुम्हें
        बड़ी सिद्दत के बाद दीखे  हो
         बस अब एक कदम दूर हूँ तुमसे ।

(16) सिर्फ एक बार हंसकर, कहकर तो देखा होता
       मैं अपनी जिन्दगी का जीवन, तुम्हारे नाम कर देता  ।

(17 ) बस जाऊं तुम्हारे मदमस्त निहारे इन नैनन में
        फिर एक नीर की बूंद भी टपकने न दूँ इन नैनन से ।

(18) तब लूटकर ले गये भारत की अमुल्य खजाने को लुटेरे
       यह प्रचालन आज भी जारी रखा है इन सफ़ेद सौदागरों ने
        करोड़ों की पूंजी विदेशी सरजमी में जमा कर डाला
        न थके सौदागर भारत के संपत्ति को बेचते-बेचते ।

(19) गरीबी की मार से बिलखता देख उस युवा पीढ़ी को,
        जो दो वक्त की रोटी के लिए दर बदर की सीढ़ी चढ़ता रहा ।
        फिर भी नशीब में न मिलती दो वक्त की रोटी  भूख मिटाने को,
       वहीँ देश के सौदागर नेता चले बयानों से भूख मिटने को।।

(20)  देश के भ्रष्ट नेता चले, भ्रष्टाचार का तलवार लिए । 
      गरीबों की गरीबी मिटा न सके, तो गरीब ही मिटने चले । 

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