Wednesday, July 31, 2013

पहाड़ भी रोता है

कब-कब  नहीं  रोया पहाड़
हर दिन हर पल हर क्षण रोता है पहाड़

जब तुमने अपने केवड़ पर ताले ठोखे
खेत-खलियानों को बंजर कर डाले
और तुम जिसदिन पहाड़ से प्लायन कर गये
उस दिन भी रोया था पहाड़ ।

विकाश के नाम पर पहाड़ के अंग-अंग में
कुदाल, संभल छैनी सब चला डाला
एक पल भी यह न सोचा
पहाड़ को भी दर्द हुआ होगा
उस दिन भी रोया था पहाड़ ।

पहाड़ के सीने में बांधों का बोझ बांध डाला
फिर एक के बाद एक बांधों का शिलशिला चला डाला
पहाड़ कब तक सहन करता बांधों बोझ
क्रोध से अपने  ही गोद में हजारों का बलिदान चड़ा डाला
उस दिन भी रोया था पहाड़ ।

कब-कब  नहीं  रोया पहाड़
हर दिन हर पल हर क्षण रोता रहा पहाड़ । 

2 comments:

Kavita Rawat said...

सच समय रहते पहाड़ का दर्द सबको समझना होगा
बहुत बढ़िया प्रस्तुति

Bhaskar joshi said...

बहुत बहुत धन्यवाद कविता रावत जी . आपने इस ब्लॉग में आकर हमें जो सम्मान दिया उसके हम ऋणी हैं . आभार आपका

गेवाड़ घाटी