Wednesday, December 24, 2014

बालकपन

खो गया फिर वहीँ पुरानी यादों में 
क्या दिन थे वे बालकपन के,
न जाने कैसे-कैसे, 
कितने सपने देखते थे
सपनो की दुनियां में, 
हर पल डूबे रहते थे 
न सुध थी अपनी, 
न घर जाने को सुध होती
मस्त मौला घुमाकड़ सा,
फिरता था उस रोज
क्या दिन थे वे बालकपन के
जब भी याद आती है बालकपन की 
फिर वहीँ खो जाता हूँ पुरानी यादों में|

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