गाँव की गलियां और चौबारे
प्यारे ! कुछ तो कहते जाओ
हमें निसहाय छोड़कर तुम चले गये
लौटकर फिर कब आओगे
यह तो बतलाते जाओ |
पूछती हैं हमसे
गाँव की गलियां और चौबारे
प्यारे ! शायद ही अब तुम्हे
याद होगा बचपन अपना
इन्हीं गांव की गलियों और चौबारों ने
तुम्हें घर का पता बतलाया था
खेलते कूदते इन्ही गलियों में
तुमने अपना बचपन बिताया था
क्या तुम्हे अपना बचपन याद नही आता ?
पूछती हैं हमसे
गाँव की गलियां और चौबारे
प्यारे ! मैं यादों के सहारे
दिन रात तुमरी रह तकती हूँ
लौटकर आओगे तुम
यही आश अबतक जगी है मुझे में
एक बार मुड़कर तो देखो
अपने गांव की मिट्टी, गलियों और चौबारों को
मुझे विश्वास है तुम लौटकर आओगे|
पूछती हैं हमसे
गाँव की गलियां और चौबारे
प्यारे ! तुम आओगे ना ?
तुम आओगे !
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