मजे की जन्दगी जीने वाले पुरदा आज खाट पर अंतिम सांसे गिन रहा है | कल तक सब कुछ ठीक था| वही अपनी मजेदार लाइफ स्टाइल मजाकिया अंदाज में जीने वाले पुरदा पुरे गाँव में मसहुर थे| कभी भी गांव में कोई परेशान हो तो दौड़े दौड़े मदद करने पहुँच जाते थे और हँसते हँसते खुसी बाँट आया करता थे| एकाएक एसा क्या हुआ की खटिया पर पड़ने की नौबत आ गयी|
कल साम को ही मंगल भाई साहब ने उन्हें हँसते गाते देखा था तब तक सब कुछ ठीक था| हिम्मत दा बता रहे थे कल देर रात पुरदा की मुलाकात ठेकदार साहब से हुई थी| वे बता रहे थे कि जो नदी किनारे पुरदा की जमीन को ठेकेदार उसे खोदकर वहां से रेता बजरी निकलना चाहता है लेकिन पुरदा ठेकेदार को माना करते रहे| ठेकेदार को उस जमीन का लालच था उसे किसी भी कीमत पर हांसिल करना चाहता था इसीलिए कल शाम पुरदा से मिलने के लिए ठेकेदार शराब की बोतल के साथ आया था | पुरदा बहुत समय तक शराब को लेकर ना ना करते रहे क्योंकि डॉ ने उन्हें पीने के लिए सख्त माना ही की थी |
पुरदा पहले बहुत अधिक शराब पीते थे अधिक पीने से पुरदा का लीवर ने ठीक से काम करना बंद कर दिया था दावा दारू चल ही रही है लेकिन ठेकेदार की जोर जबरदस्ती के कारण उन्होंने एक गिलास चड़का ही लिया| शराब का नशा जब तक हावी होता उस से पहले ही ठेकेदार ने उस जमीन के कागज़ पर झूट मूट से सिग्नेचर करवा लिए| ठेकेदार का काम अब बन चूका था ऐसे में ठेकेदार ने भागने में अपनी भलाई समझी और जाते जाते पुरदा से कहा गया आपने नदी किनारे की जामीन मुझे देकर बहुत अच्छा किया| इसका दाम में कल तक आपको भेज दूंगा| पुरदा के कान में जैसे ही ये बात घुसी तन मन में आग सी लगने लगी उठ कर जब तक ठेकेदार को पकड़ पाते शराब की वजह से पुरदा की तबियत एकाएक बिगड़ने लगी, ठेकेदार वहां से भाग खड़ा हुवा|
अच्छा हुवा हिम्मत दा वही दूकान के आसपास ही उस समय घूम रहे थे जब पुरदा को खून की उल्टियाँ होने लगी तो हिम्मद दा ने उन्हें देख लिया और तुरंत एम्बुलेंश बुलाकर हॉस्पिटल ले गये | डॉ से पुरदा की जांच की और रिपोर्ट में पाया कि पुरदा के लीवर ने काम करना बंद कर दिया है हालत बिगडती जा रही थी डॉ ने कहा अब दावा दारू से ठीक नही होने वाले हो सके तो इन्हें घर लेकर जाओ सायद पने घर पर अंतिम साँसें ले सके| हिम्मत दा उन्हें वक्त रहते घर ले आये|
चाँद घड़ियाँ ही घर पर सांस ली और वे इस संसार से अलविदा कह गये |
कल साम को ही मंगल भाई साहब ने उन्हें हँसते गाते देखा था तब तक सब कुछ ठीक था| हिम्मत दा बता रहे थे कल देर रात पुरदा की मुलाकात ठेकदार साहब से हुई थी| वे बता रहे थे कि जो नदी किनारे पुरदा की जमीन को ठेकेदार उसे खोदकर वहां से रेता बजरी निकलना चाहता है लेकिन पुरदा ठेकेदार को माना करते रहे| ठेकेदार को उस जमीन का लालच था उसे किसी भी कीमत पर हांसिल करना चाहता था इसीलिए कल शाम पुरदा से मिलने के लिए ठेकेदार शराब की बोतल के साथ आया था | पुरदा बहुत समय तक शराब को लेकर ना ना करते रहे क्योंकि डॉ ने उन्हें पीने के लिए सख्त माना ही की थी |
पुरदा पहले बहुत अधिक शराब पीते थे अधिक पीने से पुरदा का लीवर ने ठीक से काम करना बंद कर दिया था दावा दारू चल ही रही है लेकिन ठेकेदार की जोर जबरदस्ती के कारण उन्होंने एक गिलास चड़का ही लिया| शराब का नशा जब तक हावी होता उस से पहले ही ठेकेदार ने उस जमीन के कागज़ पर झूट मूट से सिग्नेचर करवा लिए| ठेकेदार का काम अब बन चूका था ऐसे में ठेकेदार ने भागने में अपनी भलाई समझी और जाते जाते पुरदा से कहा गया आपने नदी किनारे की जामीन मुझे देकर बहुत अच्छा किया| इसका दाम में कल तक आपको भेज दूंगा| पुरदा के कान में जैसे ही ये बात घुसी तन मन में आग सी लगने लगी उठ कर जब तक ठेकेदार को पकड़ पाते शराब की वजह से पुरदा की तबियत एकाएक बिगड़ने लगी, ठेकेदार वहां से भाग खड़ा हुवा|
अच्छा हुवा हिम्मत दा वही दूकान के आसपास ही उस समय घूम रहे थे जब पुरदा को खून की उल्टियाँ होने लगी तो हिम्मद दा ने उन्हें देख लिया और तुरंत एम्बुलेंश बुलाकर हॉस्पिटल ले गये | डॉ से पुरदा की जांच की और रिपोर्ट में पाया कि पुरदा के लीवर ने काम करना बंद कर दिया है हालत बिगडती जा रही थी डॉ ने कहा अब दावा दारू से ठीक नही होने वाले हो सके तो इन्हें घर लेकर जाओ सायद पने घर पर अंतिम साँसें ले सके| हिम्मत दा उन्हें वक्त रहते घर ले आये|
चाँद घड़ियाँ ही घर पर सांस ली और वे इस संसार से अलविदा कह गये |
2 comments:
आज हमारे पहाड़(गाँव) में न जाने ऐसे कितने पुर दा हैं जो इन दुराचारी, बेशरम ठेकेदारों के अत्याचार को भुगत रहे हैं। अब इसमें गलती केवल एक की ही कहें ये भी उचित नहीं लग रहा है.....शराब और ठेकेदार की गलती तो है ही और कुछ हद तक मजबूर-लाचार पुर दा जैसे लोगों की भी जिन्होने शराब का अंगीकार करके अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारी। बहुत सुंदर पोस्ट जोशी जी।
सच कहा बिष्ट जी आपने आज पहाड़ों में ऐसे कई पुरदा हैं जो अपनी जमीन बचाने के लिए मौत से लड़ रहे हैं साथ ही शराब से अपने परिवार को दरिद्रता का के हवाले कर रहे हैं फिर भी पहाड़ ठेकेदारों व शराब के गिरफ्त में धँसता जा रहा है न जाने पहाड़ियों को कब अकल आएगी। आप यहाँ आये उसके लिए बहुत बहुत आभार।
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