Saturday, September 7, 2013

जाग हे ! मानव

जाग
हे !
मानव
उठ  निद्रा  से
कर उदार में
सूरज सा
किरण
ला सवेरा
हिन्द में ।
काल रात्रिनी
निशाचरि
महंगाई
भ्रष्टाचारी
रूप लेकर
है डसने आई ।

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