तुमने यह क्या किया रे
कभी आपदा तो कभी आग
कभी पलायन तो कभी सूखा
इन सबका ज़िम्मेदार कौन है रे कौन है ?
जंगल तुम काटो
बाँध तुम बाँधो
उलट पलट तुम करो
भुगतना मुझे पड़ता है
पानी की बर्बादी तुम करो
सूखे के हालात तुम पैदा करो
जब मचे पानी की त्राहि त्राहि
तब भुगतना मुझे पड़ता है
चीड के पेड़ तुम लगाओ
लीसा उस से तुम कमाओ
जब लगे आग जंगलों में
तब भुगतना मुझे पड़ता है
पहाड़ छोड़कर तुम भागो
घर को खंडहर तुम बनाओ
अकेलेपन की बेचैनी से
भुगतना तो मुझे पड़ता है
कैसे मतलबि हो तुम लोग
अपने सुख से मुझे भूल जाते हो
करते, धरते सबकुछ तुम ही हो
भुगतना तो मुझे पड़ता है
मुझे तुम ज़ख़्म पर ज़ख़्म देते रहो
मैं पीड़ा से झुँझलाती रहूँ
तुम नोटों के बंडल में बेच डालो मुझे
भुगतना तो मुझे पड़ रहा है
भास्कर जोशी
9013843459
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