Thursday, March 7, 2013

मेरे कुमाउनी व्यंग


भास्कर के कुमाउनी व्यंग - बेई ब्याव में आपु दोस्त दगै दोस्त लिजी ब्योली  देखें जैरछी। दगड में म्यर दोस्त इज (माँ)  लै छी । दोस्त इज पूछने कछा-

दोस्त इज -के के कारोबार कर लीं तुमर चेली ।
ब्योली इज- घरपनक कम कर लीं पै।
दोस्त इज -खां पाकुण आंछो नि आन ।
ब्योली इज- रसोई में तो कम जें पै उसी अटक-बिटक में काम करनें छू
दोस्त इज- और के के काम  शिखी छू तुमर चेलिल ।
ब्योली इज- सिलाई और कंप्यूटर कोर्स करी छू येल।
(मैं बहुत देर बटी उन लोगों बात गौर हैं बे सुनणोयी कछा। मन मन में हैन्सी उनेय कछा । चलो बात-वात सब पक्की है गेई ।  म्यर दोस्त म्यर मुख चाही होय की पंडित जी हैंसण किले रेई  )
दोस्त - पंडितज्यू के बात तुम किल हैंसण छा
मैं - कुछ ना यार बस इसके हैन्सी उणे ।
दोस्त - फिर ले
मैं - अरे यार जो पूछ ताज चल रछि बस वी सोचन छी भविष्य में कुछ अलग माहौल हौल ।
दोस्त - कस माहौल पंडितज्यू ?
मैं - ऐल चायल जाणेयी ब्योली देखेहें कुछ सालुं बाद चेली एँल बर देखें हैं तब चेली-बेटी सब नौकरी वाल हैंल चाय्ल उभें बेरोजगार और आई तक च्याल करांक ल्यूने बरयात बाद में चेल करांक ल्येन । उभे चेली करांक जेंल बर कें देखेहें ।   तब पुछेंल चेली करांक बर वालुंह -
चेली तरबे - के के कारोबार कर ल्यूं तुमर च्यल
च्यल करांक- घरपने सब काम कर ल्यूं पे
चेली तरबे - खां बनूण, भाना-कुना, कपड धूंण-धांण कर ली छो तुमर च्यल ।
 च्यल करांक- होय सब कर ल्यूं हमर च्यल ।

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