Saturday, May 23, 2015

.............और बदल गया गांव

          वाह सुन्दर, सपन्न गांव यदि इसे स्वप्नों का गांव कहा जय तो इसमें कोई संकोच नही| गांव की गरिमा देखते ही बनती है गांव की एकता व अखंडता ने इस गांव को सर्वगुण सपन्न बना दिया| युवाओं ने गांव की दिशा और दशा ही बदल दी| यदि गाँव में युवा मंडली की ग्राम सुधार समिति न होती तो यह गांव आज भी वहीँ ज्यों का त्यों रहता| भावेश और उसके तीनों साथियों ने गांव को साथ लेकर गांव को आज संपन्न बना दिया|
          कुछ समय पहले गांव में था ही क्या, कुछ भी तो नहीं, एक निर्जीव की भांति, जिसमें प्राण तो थे मगर देह में शक्ति नहीं थी| गांव में लोग रहते जरुर थे पर एक दुसरे से बिलकुल अनजान| पडोस के घर में क्या कुछ हो रहा है कुछ भी मालूम नही होता पडोसी परिवार कब दुखी रहता, कब सुखी इसका किसीको को कोई मतलब न रहता| इस गांव में चार युवा लड़के थे भावेश, अनुराग, विकाश और मनीष ध| एकदम निकम्मे, बेकार जिनके पास कुछ काम नही था काम करते भी तो क्या करते| पढ़े लिखे होते तो शहर जाकर दो चार रूपये पैसे कमा लेते पर चारों इतने पढ़े लिखे भी नही थे की शहर जाकर कुछ काम करते| भावेश 8वीं तक पढ़ा लिखा तो था पर अनुराग, विकास और मनीष 3सरी, 5वीं और 6टी तक पास थे| दिन भर गाँव में घूमते फिर पास ही में एक खंडहर घर  पास इन चारों ने अपना बैठने का चौपाल बना रखा था जिसमें सुबह से साम तक ये चारों तास की गड्डी लेकर तास खेलते| इन चारों के निकम्मेपन से गांव के लोग इन्हें पसंद न के बराबर करते| गांव में जितने भी इनके उम्र के लड़के थे वे सभी शहर जाकर कुछ न कुछ काम धंदा करने लगे| बस गावं में अब यही चार बचे थे बाकी अभी गांव में बच्चे ही थे जो की अभी स्कुल पढ़ रहे थे
         भावेश थोडा रंगीन मिजाज का था जो हमेशा दूसरों के चेहरे पर हंसी लाने की कोशिस करता था अपने मजकियापन से वह सबको हँसता रहता था लोग उसे पागल समझते थे क्योंकि उसकी हरकतें जोकरों सी होती थी लेकिन उसे गांव के सुख दुःख में अपना सतप्रतिशत सहयोग देता था इसलिए गांव के लोग भावेश को स्नेह भी करते थे भावेश के साथ साथ वे तीनो भी भावेश के कार्यों में सहयोग देते थे चाहे वह अच्छा हो या बुरा पर वे तीनो भावेश का साथ नही छोड़ते थे अधिकतर ये चारों निकम्मों की भांति    चौपाल लगाकर जुवा खेल रहे थे तभी वहां टहलते टहलते भावेश के चाचा भावेश के चाचा आ धमके जो फौंज से रिटायर्ड थे चेहरा एकदम रौबदार था भावेश उनसे बहुत डरता था कई बार चाचा डाठ चुके थे बांकी गांव के लोग उनका फौंजी चाचा का बड़ा सम्मान करते थे| चाचा को देखते ही भावेश छिपने लगा लेकिन फौजी चाचा के नजर से कौन बच पायेगा| चाचा ने उन सभी को जुवा खेलते हुए देख लिए था इसलिए चाचा ने भावेश को आवाज लगाई और भावेश डर से चुपचाप सर झुके चाचा के पास आ गया| फौंजी चाचा ने जो उन्हें खाड़ी-खाड़ी सुनाई| दिन भर यहाँ पर बैठ कर जुवा खेलते हो कुछ काम धाम नही है तुम लोगों के पास कुछ तो काम कर लिया करो घर का हाथ बाटते कुछ परमार्थ का काम ही कर लेते| कुछ तो कर लिया करो यहाँ पर जुवा खेलने से क्या लाभ होगा तुम्हें| सभी डर के मारे घबराने लगे एक दम चुप चारों यही सोच रहे थे चाचा के कब हमारा पीछा छोड़ेंगे| बहुत कुछ सुनाने के बाद चाचा वहां से निकल गये जाते जाते और भी बहुत कुछ बोल गये| अपने जीवन को व्यर्थ मत जाने दो कुछ अच्छा करो ताकि लोग कल को तुम्हे याद कर सके|
         भावेश को ये बात घर कर गयी पर करे भी तो क्या करे इतने पढ़े लिखे तो थे नही कि ऑफिसर बन जाते| बहुत देर तक चारों इसी बात पर चर्चा कर रहे थे कि आखिर ऐसा क्या किया जाय| सोचते हुए दिन बीतने को था पर अब तक कोई ऐसा काम नही ढूढ़ पाए | भावेश ने कहा चलो घर को चलते हैं पर आज आप सभी घर जाकर सोचना कि हमें क्या करना चाहिए ? और कल फिर इसी जगह पर मिलेंगे जिसका आइडिया अच्छा होगा उस काम को हम लोग करना शुरू कर देंगे|चारों मित्र रात भर सोचते रहे पर कुछ भी अच्छा परिणाम नही निकला|
         दुसरे दिन की सुबह हुई भावेश आपनी माँ का एकलौता बेटा था पिता का साया तो था नही और माँ का हाथ बटाने वाला और कोई न था घर का सारा काम निपटा कर वह अनुराग के घर की ओर बढ़ा| साथ ही हाथ में एक छड़ी लेली| भावेश अभी भी सोच विचार कर रहा था ध्यान कहीं और होने के कारण भावेश का पैर रास्ते के बीचों बीच पड़े गड्ढे में जा गिरा लेकिन हाथ में छड़ी होने की वजह से वह गिरने से सभाल गया| मन में विचार आया कि मैं तो गिरते गिरते सभाल गया पर गाँव का कोई बुजुर्ग व्यक्ति का पाँव पड़ा तो न जाने क्या होगा| चलो क्यूँ न इस गड्ढे को ही भर दिया जाय| हाथ में छड़ी थी ही उसी से किनारे से मिटटी खोदी और गड्ढे को भरने लगा| अब तक भावेश के तीनो मित्र रोज के स्थान पर पहुँच चुके थे| बहुत देर से भावेश के आने का इंतजार करते रहे विचार करते रहे कि भावेश अबतक पहुंचा क्यूँ नही रोज ही तो इस टाइम तक आ ही जाता था| मनीष बोल पड़ा कहीं भावेश की तबियत तो नही बिगड़ गयी वरना आने का टाइम तो हो गया
विकाश क्या पता घर में कोई मेहमान आया हो इसलिए देरी हो गयी हो
अनुराग ने कहा क्यूँ न उसके घर चल कर देखें
          तीनो भावेश की घर की बढ़ चले| देखा क्या भावेश छड़ी से मिट्टी खोद रहा है और उस मिटटी को लेजाकर बढे से गड्ढे को भर रहा है मनीष बोला चलो चलकर देखते हैं आखिर भावेश कर क्या रहा है| भावेश के निकट आते ही अनुराग ने पूछा भाई क्या कर रहे हो भावेश भईया इस गड्ढे को भर रहा हूँ अभी गिरते गिरते बचा हूँ इस गड्डे से मनीष हस्ते हुए बोला भावेश भाई कल शाम को हम सभी ने कुछ विचार करने को कहा था और तुम हो कि गड्डे को भरने में लगे हो | भावेश बोला उस बारे में थोड़ी देर बाद बात करते हैं पहले इस गड्डे को भरने में मेरी मदद करो| तीनो भावेश के साथ हाथ बटाने लगे और देखते ही देखते गड्डे को रस्ते के बराबर कर दिया| भावेश के मन में कुछ विचार आने लगा और अपने दोस्तों से बोला क्यूँ न आज गांव के रस्ते में जितने भी गड्डे हैं सभी को भर दिया जाय| अनुराग ने कहा भाई आज बहुत हो गया गड्डों को फिर भर देंगे
भावेश ने कहा भाई कोई गिरने से बच जाए तो तुम्हे दुवा देगा| क्या पता इसी में हमारी भलाई हो| अनुराग, विकाश और मनीष भावेश के बातों से सहमत हुए और लग गये गांव के गड्डों को भरने में देखते ही देखते सभी गड्डे उन्होंने भर डाले| लेकिन रस्ते के आस पास कांटे दार झाड़ियाँ थी जिससे भरे हुए गड्डे दूर से दिख नही रहे थे फिर विचार किया क्यूँ न इन झाड़ियों को भी साफ कर दें फिर क्या था चारों ने मिलकर रास्ते को चमका दिया दूर से ही देखने में लग रहा था गाँव में कुछ काम चल रहा है | 



कहानी आगे  जारी है  प्रतीक्षा करें .........................

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