Tuesday, April 5, 2016

उत्तराखंड कुर्सी पर ढाईया का प्रकोप

उत्तराखंड कुर्सी पर ढाईया का प्रकोप 

प्रतिष्ठित अखबार हरदौल वाणी में लेख को स्थान देने के लिया आदरणीय श्री देवी प्रसाद गुप्ता जी (श्री जी) भाई ललित शौर्य जी का बहुत बहुत आभार।

उत्तराखंड की सियासी उठापटक में नुक़सान किसका? कोंग्रेस और भाजपा दोनों दलें अपनी अपनी सियासी घोड़े ढ़ईया की चालें चल रहे हैं। एक दूसरे को गिराने की जद्दोजहद में लगे हैं। आपसी लड़ाई लड़ रहे हैं यहाँ तक कि मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा विधायकों की ख़रीद परोख करते हुए एक विडियो भी सामने आया है इन सबके बीच उत्तराखंड का जो हाल दोनों पार्टियों ने किया है वह किस से छुपा नहीं। उत्तराखंड को नरक में पहुँचाने का जो काम इन दोनों पार्टियों ने किया उससे उत्तराखंड की जनता को बड़ा नुक़सान पहुँचा है लेकिन जनता की फ़िकर किसे है ? कुर्सी की इस लड़ाई में जनता ही पिसती हुई आइ है और आगे भी इन नेताओं के सियासी चालों से जनता को ही पिसना होगा है।

इससे तो यही जान पड़ता है कि उत्तराखंड में ढईया का प्रकोप अधिक है क्योंकि एन डी तिवारी के अलावा कोई भी मुख्यमंत्री उत्तराखंड की सत्ता को पाँच साल तक संभाल नहीं पाया। क्योंकि हर साल, दो साल में उत्तराखंड को एक और मुख्यमंत्री का ताज थमा दिया जाता है। इन मुख्यमंत्रियों के लिए काम की ज़िम्मेदारी महत्वपूर्ण नहीं रहती बल्कि कुर्सी बचाओ महत्वपूर्ण है। नेताओं की जनता के प्रति अहमियत कितनी है इस बात से आप हम सभी परिचित हैं।

उत्तराखंड बनने के बाद अबतक 8 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का पेड़ लगा हो। हवा से पेड़ हिले तो टपाक़ से मुख्यमंत्री पेड़ गिर जाते है। सायद ही अबतक इतने कम समय में अन्य किसी राज्यों में इतने मुख्यमंत्री बने हों पर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का पेड़ होने से यह लाभ ज़रूर मिला है। अब तो आलम यह है कि आने वाले वर्षों में प्रकृति ने अच्छा साथ दिया तो पेड़ों पर और अत्यधिक मुख्यमंत्री लटके होंगे। चूँकि पैदावार अच्छी रही तो समय आने पर बाक़ी के राज्यों को उत्तराखंड राज्य अन्य राज्यों को भी मुख्यमंत्रियों का सप्लाय करेगा और यह पहला राज्य बनेगा जो मुख्यमंत्री की खेती करने वाला राज्य होगा।

बहरहाल उत्तराखंड की जनता मायूस खड़ी है मानो चौराहे पर उसे बिन कपड़े के खड़ा कर दिया हो। लेकिन सत्ता धारी लोग राष्ट्रपति सासन लगने के बाद ख़ुश हैं और बहुत से लोग ना ख़ुश भी। क्योंकि उत्तराखंड की कुर्सी अभी रिक्त हो चुकी है। अब पार्टियों का यह ज़ोर रहेगा कि अगला राजा हमारा हो और राजशाही हमारी चले, हमारी ही ताजपोशी हो। वहीं दूसरी अन्य पार्टियाँ भी इसी जद्दोजहद में जुटी हुई है कि इस बार की सत्ता की डोर हमारे हाथ में हो।

इन सबके बीच उत्तराखंड की जनता मायूस, नि:सहाय, लाचार खड़ी है वह अब भी यही भ्रम हैं कि द्वारे किसके जाया जाय। जिन्हें वोट देकर विधानसभा भवन भेजा था, वे होटलों में जाकर अपनी राजनीतिक खिचड़ी उमाल रहे हैं। ये ऐस-कैस के सौदागर करोड़ों की धाँधले बाज़ी कर उत्तराखंड को अनाथ बनाकर सियासीदार मौज मस्ती के लिए पिकनिक और सैर सपाटे का आनंद उठा रहें हैं। ऐसे में उत्तराखंड का भला कैसे होगा ? उस जनता का क्या जिसने अपना क़ीमती वोट देकर इन नेताओं से कई उम्मीदें सजाकर रखे थे? उत्तराखंड की ऐसी उठापटक देख पुराना एक गीत याद आता - 
क़समें वादे प्यार वफ़ा अब, बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे, नेता हैं नेताओं का क्या ? -भास्कर जोशी पागल

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