द्वन्द उठता है अंतःकरण में
भीषण ज्वाला धधक रही
लपटें आतुर है चहुँ ओर फैलने को
मिटाकर राख करने की जिद कर रही।
जब देखता हूँ इधर उधर
रक्तबीज मानो पनप रहा।
चौराहे पर बैठ पूतना
सबको विषपान करा रही।
सीमा पर से ताक रहा दुश्मन
खेल रहा अबोध पत्थर बंदूकों से
अपनी ही माँ माटी के सीने पर
कश्मीर चुभो रहा है खंजर।
मेरे माटी ने भी दिए है लाखो सपूत
माँ धरती की रक्षा के खातिर।
सीना ताने डेट है सीमा पर
दुश्मन का सीना छलनी करने को।
-भास्कर जोशी
हरदौल वाणी अख़बार में पूर्व प्रकाशित
भीषण ज्वाला धधक रही
लपटें आतुर है चहुँ ओर फैलने को
मिटाकर राख करने की जिद कर रही।
जब देखता हूँ इधर उधर
रक्तबीज मानो पनप रहा।
चौराहे पर बैठ पूतना
सबको विषपान करा रही।
सीमा पर से ताक रहा दुश्मन
खेल रहा अबोध पत्थर बंदूकों से
अपनी ही माँ माटी के सीने पर
कश्मीर चुभो रहा है खंजर।
मेरे माटी ने भी दिए है लाखो सपूत
माँ धरती की रक्षा के खातिर।
सीना ताने डेट है सीमा पर
दुश्मन का सीना छलनी करने को।
-भास्कर जोशी
हरदौल वाणी अख़बार में पूर्व प्रकाशित
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