गाँव से कोशों दूर रहकर
गुमशुम पड़ा रहता हूँ घर की याद में
अकेला होना भी अखटाता है
सभी काम ख़ुद ही करने होते हैं
ठेकुली दगड में होती
तो कितना अच्छा होता
वह खाना पका देती
तो मैं बर्तन धो देता
वह झाड़ू लगा देती
तो मैं पोछा लगा देता
वह कपड़े भीगो देती
तो मैं उन्हें धो देता
काम आधा आधा बँट जाता
शादी के बाद काम सिखना ना पड़े
इसलिए आदत अभी से डाल रहा हूँ
यों समझिए अभी ट्रेनिंग चल रही है
फ़ाइनल तो शादी के बाद हर दिन होगा।
भास्कर जोशी
गुमशुम पड़ा रहता हूँ घर की याद में
अकेला होना भी अखटाता है
सभी काम ख़ुद ही करने होते हैं
ठेकुली दगड में होती
तो कितना अच्छा होता
वह खाना पका देती
तो मैं बर्तन धो देता
वह झाड़ू लगा देती
तो मैं पोछा लगा देता
वह कपड़े भीगो देती
तो मैं उन्हें धो देता
काम आधा आधा बँट जाता
शादी के बाद काम सिखना ना पड़े
इसलिए आदत अभी से डाल रहा हूँ
यों समझिए अभी ट्रेनिंग चल रही है
फ़ाइनल तो शादी के बाद हर दिन होगा।
भास्कर जोशी
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