Thursday, April 20, 2017

कविता

गाँव से कोशों दूर रहकर
गुमशुम पड़ा रहता हूँ घर की याद में
अकेला होना भी अखटाता है
सभी काम ख़ुद ही करने होते हैं
ठेकुली दगड में होती
तो कितना अच्छा होता
वह  खाना पका देती
तो मैं बर्तन धो देता
वह झाड़ू लगा देती
तो मैं पोछा लगा देता
वह कपड़े भीगो देती
तो मैं उन्हें धो देता
काम आधा आधा बँट जाता
शादी के बाद काम सिखना ना पड़े
इसलिए आदत अभी से डाल रहा हूँ
यों समझिए अभी ट्रेनिंग चल रही है
फ़ाइनल तो शादी के बाद हर दिन होगा।
भास्कर जोशी

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