Friday, June 2, 2017

मदर्स डे

स्मृति- भाग 1
मदर्स डे स्पेशल

मदर्स डे का दिन था और मैं इसबार गांव अपने घर पर ईजा के साथ था। ज्ञात नहीं था कि आज मदर्स डे है ना ही कभी मनाया। शहर में होता तो सायद सुबह ही फेसबुक या व्हाट्सअप में मैसेज से पता लग जाता। परन्तु गांव अपने घर पहुँच जाने पर मुझे यह ज्ञात नहीं रहता कि मेरे दोनों मोबाईल कौन से जाव् भतेर हैं। फोन भी मेरे दोनों हमेशा साइलेंट मुड़ पर ही रहते हैं मेरी तरह। बशर्ते काम हम दोनों ही अपना बख़ूबी पूरा निभाते हैं।

मदर्स डे की पहले रात्रि में बात करते करते दस ग्यारह बजे गए थे, रिस्तेदारी में शादी थी तो अपना भी पूरा परिवार जमा हुवा था दुःख सुख लगातेहुए समय का पता ही न चला। देर से सोये थे इसलिए देर से उठना स्वाभाविक था। ईजा कितनी भी देरी से सोये, सुबह तीन साढ़े तीन बजे तक उठ ही जाती है। पांच बजे तक ईजा अपना सारा काम निपटा डालती है। नहाने धोने से लेकर, पूजा पाठ व् गाय को धुलाने तक। हमारे लिए पांच बजने का मतलब हुवा आधी रात। परन्तु पांच बजे से ही गांव में चिंड़ियों की चह-चहाट शुरू हो जाती है। ईजा गरमा गरम चाय ले आयी। पर अपनी नींद कहाँ खुलने वाली थी। सुबह की मीठी मीठी नींद में ही ईजा से कह दिया। "टेबल में रख दे अभी चाय गर्म है।" ईजा चाय रखकर अपना नित्य की तरह काम करने लगी। आधे घंटे के बाद ईजा आयी देखा चाय जैसी की तैसी है और वह भी ठंडी हो चुकी है। अब क्या था ईजा का पारा सातवे आसमान पर। "उठ र् च्यापणा, गौल जस पसरिये छै, मैंस कां बटि कति पहुँच गयीं। सात बज गयी, त च्यापण डोट्याव जै सित्ये छ।"

ईजा के सात बजे कहते ही घडी की ओर देखा तो साढ़े पांच ही बजे थे। ईजा को यह तो मालूम ही था कि ये सात बजे से पहले कहाँ उठने वाले हैं इसलिए झूठ-मूठ का कह देती ताकि सात बजे कहते ही चडम्म से उठ बैठेंगे और हुवा भी वही। गिलास में रख़ी ठंडी चाय एक सांस में गटक गया। फिर टाइम की ओर देखा, सात बजने में डेढ़ घंटा अभी बाकी था। सुबह ठंड सी महसूस हो रही थी सो मैंने कमब्बल लिया और मुँह ढक कर फिर सो गया।

सुबह की रुन-झुन नींद आ ही रही थी। की फिर ईजा की आवाज सुनाई पड़ी। तू उठछे नि उठने, भ्यार घाम एगो, आई तले च्यापण सित्ये छ्। नाणक् लिजी पाणि गरम धर रछि, पाणि लै ठण्ड हैगो। तू उठछे नि उठने। कहते हुए ईजा ने कम्ब्ल खिंच कर अन्दर तय कर के रख दिया।

ठण्ड से अब नींद कहाँ आने वाली भला। सो उठ गया और नहा धो के ईजा ने मंदिरों में धुप बत्ती करने को कहा। ठीक वैसे ही किया जैसे ईजा ने बताया था। मंदिरों से आने के बाद  ईजा ने मडुवे की रोटी और मूली के पत्तों की हरी सब्जी बनाकर रखी थी। चार रोटी दनकाने के बाद गांव में सभी से मिलने झूलने चल दिया।

दिन में नदी में नहाने व् शाम को सोमनाथ मेले का अंतिम दिवस में हांजरी लगवाने चल दिया। घूम फिरकर देर से घर पहुँचता हूँ सोचा जरा फेसबुक और व्हाट्सअप देख लिया जाय। थोड़ी देर के लिए नेट ओपन किया तो मालूम हुवा कि आज मदर्स डे है। तब तक ईजा रोटी सब्जी बना लाई। मैंने ईजा से कहा - ईजा हैप्पी मदर्स डे । ईजा का जवाब आया- के दे ? जे कुंणनल्है। आज गडेरी साग बणे राखी। खाछे खा नतर चुप्प हड़ी जा।
मैंने कहा ईजा आज मातृ दिवस है।
ईजा थाली में खाना परोसते हुए कहा - च्यला हमर दिवस बने बेर की करछा, तुम बची चैंछा। तुम खूब दुब जस फई जाया। हमूल आपण दिन जसी तसी काटि हैली। बची खुची लै तसिकै कटि जैंल। कतिकेँ त्यर खुट लै अल्झाई  जान, भली जै ब्वारी मिली जान तो गंग नहायी जांछि। लै द्वी र्वाट और आजि खै ले। नि खै-खैबेर कमजोर है गेछे। शहर में तुम ऐकले हया। ब्याव हैं कोई थक पटे बेर पाणि दींणि, पूछणि लै नि होय। अज़्याल घर ऐरछा, आपणि कसेरी पूरी करि जाओ। इज़ा एक कटोरी में गाय के दूध की मलाई और ले आइ।

ईजा तो ईजा ही है। अपना न खाकर के हमारे लिए बचा बचा कर रखा हुवा था। कि शहर से मेरे बच्चे आएँगे और खाएँगे। शहर में तो सब मिलावटी सामान मिलने वाला हुवा। माँ की ममता जो हुई। वह सारी कठनाई से खुद ही लड़ जाती है भले ही बच्चे कितने भी सयाने हो जाए परन्तु माँ के लिए वे हमेशा ही बच्चे ही हैं।
भास्कर जोशी

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