Friday, June 2, 2017

लोगों का क्या

लिखना कुछ और चाहता था मगर लिखा कुछ और ही गया-

लोगों का क्या
उनका काम है कहना
इधर की उधर करना
और उधर की इधर करना।
कहीं मलाई लगाना
कहीं कानों में फुस्काना
चमचागिरी करना
लोगों का क्या
उनका काम है कहना ।
सीधे सादे लोग
अब तुम्हारी यहाँ कोई जगह नहीं
तुम पैदा ही गलत वक्त पर हुए हो
मांग भले ही आज भी तुम्हारी कहीं हो रही हो
मगर गेहूं में घुन की तरह
 तुम जरूर पिस जाओगे
लोगों का क्या
उनका काम है कहना।
एकदम पाक साफ हैं वे लोग
जिनके हाथ रंगे हो रंग से
वे न जाने कितने मुखौटे लिए हुए हैं
फिर भी बेदाग़  सर उठाकर शान से जी रहे हैं
लोगों का क्या
उनका काम है कहना।
सीधे लोग अपना अस्तित्व कैसे बचाएं
कैसे जिए वे इस धूर्त परिपेक्ष में
धीरे धीरे लुप्त हो रही यह प्रजाति भी अब
अगर कहीं संग्रहालय मिले
तो कुछ नमूने के तौर पर रख लेना
ताकि कल यह कह सकेंगे
कि सीधे सादे लोग ऐसे होते थे
लोगों का क्या
उनका काम है कहना ।
भास्कर जोशी

No comments:

गेवाड़ घाटी