यादगार सिसोण (बिच्छु घास, गडवाल में- कनैल)
सीसोंण, कनैल (बिच्छू घास) |
आज मुझे मेरे बचपन की याद आ रही है जब में लगभग १०-११ बर्ष का था । गेवाड़ घाटी की या यूँ कहिये कुमाऊं का सबसे बड़ा मेला सोमनाथ का मेला हर वर्ष मई के दुसरे सोमवार को लगता है जो लगभग १४ दिन तक रहता था । आज यह मेला सिमट कर मात्र ७ दिन का रहा गया है । मैं आप को वहीँ अपने बचपन में ले चलता हूँ । पहले समय में छोटे बच्चों को सोमवार और मंगल वार को जाने नही देते थे । बुधवार को मौका मिलता था । आज बुधवार है और आज हमें भी मौका मिला है सोमनाथ के मेले में जाने का । सुबह से मैं कभी इधर तो कभी इधर डोल रहा था । ख़ुशी इतनी थी मैं कुछ बता नही सकता । दिन का खाना भी भूल गया बस एक ही रट थी । आज सोमनाथ के मेले में जाना है । लगभग ३ बजे हमारे यहाँ से लोग मेले के लिए प्रस्थान करते थे, और अभी समय १२ बजे थे । और मैं १२ बजे ही मुंह हाथ धोकर अपने बक्शे में से नए कपडे निकल कर पहन लिया । जाना था ३ बजे और कपडे पहन लिया १२ ही । बार बार घडी को देखूं घडी चल ही नही रही है । घडी अपनी गति से चल रही थी पर मैं घडी को हर ५-१० सेकंड में घडी देख रहा था । धीरे-धीरे समय बीतता गया अब ३ बज ही गये । गांव के और लोग भी तैयार होकर निकलने लगे । में पहली बार मेला देखने को जा रहा हूँ । अपनी माँ के साथ अब घर से चलना शुरू किया । और मैं और मेरा बाल सखा हम दोनों आगे-आगे चलने लगे । अब क्या था जी कभी मेरा दोस्त आगे तो कभी मैं आगे बस दौड़ लगनी शुरू कर दी । मैं दौड़ लगा रहा था कि मेरे पांव में ठोकर लगी और मैं गेंद की तरह लोट-पोट होता हुआ सिसोण की झाड़ में घुस गया । अब क्या था जी किसे मेले की याद थी । अब तो सिसोण के वालावा कोई और शब्द निकला ही नही । मेरे साथ चल रहे मेरे दोस्त और मुझे आधे रास्ते घर को भेज दिया गया । मैं रोते हूँ घर पहुंचा । मैं कैसे भूल सकता हूँ वो यादगार लम्हें और ये सिसोण।
मेरा बचपन
च्याऊं (कुकुरमुत्ता) |
नमस्कार सुप्रभात । बचपन कितना
सुखदाई होता है यही सोच कर हम
लोग अपने आप को अपने की कुछ
वस्तुओं को देखकर अपने बचपन को
तलाश करते हैं मुझे याद है जब मैं
छोटा था मैं और मेरा बाल सखा हम
दोनों बहुत खेला करते जहाँ जाना है
साथ जाते थे । एक बार बारिश के
महीने की बात थी, बारिश ख़त्म होने
के बाद हम दोनों घुमने निकल पड़े ।
बरशांत के महीने में कई वस्तुएं
बहार निकल आती हैं जैसे कि
(कुमाउनी में) घन्गुड, च्यांउं,
(कुकुरमुत्ता) आदि, अधिक मात्र में
निकल आते हैं । इसी बिच हमें एक
छत्री पर नजर पड़ी हम दोनों उस पर
टूट पड़े । इस के बाद क्या था जी
अब तो निकल पड़े झाड़ियों में पांव
पर जूते-चप्पल कुछ भी नहीं, ये भी
नही सोचा कांटे चुभ जायंगे , बस
दौड़ पड़े । जैसे ही दूर से दिखा भी तो पहले ही कह देते (यो म्यर छू मैल पैली देखो, ना मैल पैली देखो यो म्यर छू ) ये मेरा है । बात बात में
झगडा कर बैठते थे । वास्तव में बिता हुआ बचपन कितना सुखदाई होता है । पचपन के लम्हों को याद कर
हम लोग हंस बैठते हैं कभी कभी तो खुद बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं बार बार यही सोचते है कास यह
बचपन फिर लौट कर आता
सुखदाई होता है यही सोच कर हम
लोग अपने आप को अपने की कुछ
वस्तुओं को देखकर अपने बचपन को
तलाश करते हैं मुझे याद है जब मैं
छोटा था मैं और मेरा बाल सखा हम
दोनों बहुत खेला करते जहाँ जाना है
साथ जाते थे । एक बार बारिश के
महीने की बात थी, बारिश ख़त्म होने
के बाद हम दोनों घुमने निकल पड़े ।
बरशांत के महीने में कई वस्तुएं
बहार निकल आती हैं जैसे कि
(कुमाउनी में) घन्गुड, च्यांउं,
(कुकुरमुत्ता) आदि, अधिक मात्र में
निकल आते हैं । इसी बिच हमें एक
छत्री पर नजर पड़ी हम दोनों उस पर
टूट पड़े । इस के बाद क्या था जी
अब तो निकल पड़े झाड़ियों में पांव
पर जूते-चप्पल कुछ भी नहीं, ये भी
नही सोचा कांटे चुभ जायंगे , बस
दौड़ पड़े । जैसे ही दूर से दिखा भी तो पहले ही कह देते (यो म्यर छू मैल पैली देखो, ना मैल पैली देखो यो म्यर छू ) ये मेरा है । बात बात में
झगडा कर बैठते थे । वास्तव में बिता हुआ बचपन कितना सुखदाई होता है । पचपन के लम्हों को याद कर
हम लोग हंस बैठते हैं कभी कभी तो खुद बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं बार बार यही सोचते है कास यह
बचपन फिर लौट कर आता
गाँव की कुछ खट्टी मीठी बातें
साथियों आज गाँव की कुछ बात आप सभी को अवगत करता हूँ गाँव में लोग किस तरह जीवन यापन करते हैं व उनकी भाषा शैली पर थोडा बहुत प्रकाश डालते हैं प्रकाश डालने से पहले मैं आप लोगों को बता दूँ
मैं इस में कुछ कुमाउनी भाषा का भी प्रयोग करूँगा जो आप सभी को पसंद आयेगा ।
मैं इस में कुछ कुमाउनी भाषा का भी प्रयोग करूँगा जो आप सभी को पसंद आयेगा ।
पुरुषों का समूह : गाँव में अधिकतर लोग शराब में डूब जाते हैं और इस के अलावा उन्हें कुछ सूझता नही है
और कोई बात करने को होता ही नही है तो आइये और देखें किस तरह की बात करते हैं
और कोई बात करने को होता ही नही है तो आइये और देखें किस तरह की बात करते हैं
पधान जी : और हो हेम दा के हरी ठाट बाट,
हेम दा : के ना हो पधान सैप मौसम भौल है रो आज द्यो ले हैगो ।
पधान जी : ठीक कुनेछा हो हेम दा आज मौसम लागुणी जस है रो,
हेम दा : हो होय ठीक कुनेछा, हिटो पे, पा पार दानसिंह दुकान में हिटो,
पधान जी : किले हो राती राती पर खुल गे छो दुकान ।
हेम दा : होय पे आज तो मौसम आई हौय ।
पधान जी : हिटो पे हिटो ।
(दोनों लोग निकल पड़ते हैं दुकान की ओर वहां पर दो लोग विपिन दा और केशब दा मिल जाते हैं )
पधान जी : हाय येती विपिन और केशब दा ले बैठ रेई ।
केशब दा : आओ आओ हो पधान सैप ।
विपिन दा : ओ पधान जी आज तो थोडा बहुत हुनेचें ।
पधान जी : हो होय हिटो, लगाओ हो दानसिंह जी चार गिलास लगाओ ।
(दान सिंह जी शराब लेकर देते हैं और अब पिने के बाद देखिये किस प्रकार की बात करते है
लड़खड़ाते हुए)
लड़खड़ाते हुए)
विपिन दा: ओ पधान जी पे ब्लोक बे कतु पैंस मिली ।
पधान जी : किले रे वोती खांण लाग रो छो के ।
केशब दा : किले पैस मिलनेर भाय तुम लोगुन कें हो पधान सैप।
पधान जी : तुम लोगुन कें म्यर पैंस जादा देखिनी नै (गालियों की बौछार करते हुए )
हेम दा : अरे पधान जी यों लोग पेई बाद यसे कुनि सब भूल जनि यूँ , हिटो अब तुम कें ले जादा चढ़ गे हिटो
घर हैं जुल अब ।
घर हैं जुल अब ।
(दोनों लोग घर को निकल बैठे । ये था आज के पुरुषों का समूह )
मित्रो यह लेख से यदि किसी को भी दुःख पहुंचा हो तो क्षमा चाहूँगा । यह लेख मनोरंजन मात्र है ।
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