नजरें ढूढती हैं उन्हें,
हर वक्त तलाशती उन्हें।
कभी दिन के उजाले में ,
तो कभी सपनों में ।
कभी परि बनके आते ,
स्वप्नों को नई दिशा दे जाते ।
देखकर प्रात: सूरज की किरणों को ,
निकल पड़ता हूँ चार पैसे कमाने को।
काम के उलझनों से थका हुआ ,
नीद के झोंके में खो जाता हूँ ।
इक धुधली तस्वीर दिखती मुझे ,
मानो कहीं दूर से निहारती मुझे ।
पास से निहारने को जी चाहता है,
पल में अदृश्य हो जाती है ।
खो जाने को जी चाहता है ,
स्वप्नों की रंगीन दुनियां में।
हर पल खोजता हूँ मैं ,
रास्ते के गलियारों में ।
मन में बसी धुधली सी तस्वीर को ,
निर्मल नैनों से स्पष्ट रूप देखने को।
न जाने कब मुझे मेरा चाद्वीं का चाँद देखेगा,
न जाने कब मुझे मेरे मन की "प्रीती" मिलेगी ।
खोजता हूँ पल पल उन्हें ,
नजरें हर पल ढूढती हैं उन्हें।।
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