म्यर पहाड़ रूप देखि,
मन भरी उं छा।
वार डाना पार डाना,
के भौलो मान्युछा।।
पार डाना हरिया घासा,
घस्यारों की रन बन ।
पहाड्की हवा-पाणी देखि,
मन भरी उं छा।।
सौण भादो महेंण आयो
बरखा की रन बन ।
रौल मौल गध्यारा देखि
मन भरी उं छा।।
खेती-पाति डाई-बोटी
बोट्यों की छ्याणी।
घुघूती की घुर सुणि
मन भरी उं छा।
पाणी का नौ-धारा,
पन्यारों की रन बन ।
पहाड्की गागर-तौली देखि
मन भरी उं छा।।
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