Sunday, May 3, 2020

कविता - गांव की ओर

लौट चल गांव की ओर

लौट चल गांव मुसाफिर
लौट चल फिर गांव को।
छोड़ गया था तू जहाँ
फिर वहीँ से कर शुरू।

लगा दिए थे घरों में ताले
खोल फिरसे उन दरवाजों को
वर्षों से देवथान में पड़े थे जले
जला दीये, रोशन कर फिरसे घर को।

बंजर हो गयी थी पुरखों की खेती
बैलै दौड़ा फिर "हल" कर खेतो को
लिए चल कंधों पर बीज की पोठली
कर दे फिरसे हरे भरे इन खेतों को।

नौले, स्रोत, गाड़ गधेरे तेरी राह देख रहे
गली चौराहे की पगडण्डी बाट निहार रहे
प्रकृति अपने बांह फैलाये खड़ी है कबसे
कर फिरसे खिलखिलाते आबाद गांव को ।

शहर से लौटने का कर दृढ संकल्प
गांव की मिट्टी संग फिर से नाता जोड
बहुत घुट लिया चार दीवारों की बीच
अब तो खोल गांव के उन दरवाजों को।
भास्कर जोशी

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