Wednesday, June 27, 2012

पित्रों की धरोहर

पहाड़ की दशा देखि,
जिया भरी औंछौं।
पूरवोंजुंलें समेटी पहाड़,
पोथ्युंले छोड़ी पहाड़।
खिति पाती छोड़ी ,
घर बार छोड़ी ।
पुर्वोंजुंकें बसाई कुड़ी ,
पोथ्युंले छोड़ी कुड़ी ।
चार हाथक कुड़ी मजी,
रुंछिया दर्जन भरी ।
गोरु-बाछा भैंस-बाकर,
सब मिल झूली रुंछी।
कस यो जमान आयो,
पितरों की टूटी कुड़ी ।
पोथ्युं कें नि देखि कुड़ी,
बुजुर्गों कुड़ी हाल देखि।
बरसों समायी संपत्ति हमरी,
संकटों में छू यो धरोहर ।
दगडियो प्रदेश छोडो ,
अब देश लौट आओ ।
पितरों की धरोहर ,
फिर हरी-भरी बसाओ।
यही बारम्बार विनती छू,
पितरों कें कुड़ी-बाड़ी बसाओ ।
म्यर पहाड़ की दशा देखि ,
जिया भरी औंछौं।
जिया भरी औंछौं।।

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