Tuesday, December 29, 2015

धरती माँ

प्यारी सी
दुलारी है वो।
नटखट सी
खिलखिलाती है वो
हंसती है तो
जग को महका देती है  वो
खेलती है तो
संग प्रकृति भी ठुमके लगाती है।
रोती है तो
जग में तांडव मचा देती है वो
छेड़े गर कोई उसे तो
आग के गोले बरसा देती हैं वो
पूजा करे उसकी कोई तो
खनिजों का अमबार लगा देती है वो।
खंजर घोंपे अगर कोई तो
खाक ए सुपुर्द कर देती है वो ।
देख भाल करें उसकी तो
सीने से लगाकर स्वर्ग की अनुभति करा देती है वो।
ऐसी ही है मेरी
प्यारी सी दुलारी सी
नटखट सी मेरी धरती माँ। 

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