Wednesday, December 9, 2015

भारत माँ की संताने

सोमवार 25-10-2015 हरदौल वाणी में प्रकाशित सर्व-धर्म समभाव पर रचित कविता "भारत माँ की संताने" को हरदौल वाणी में स्थान देने के लिए  आदरणीय संपादक श्री जी (Devi Prasad Gupta जी) एवं भाई Lalit Mohan Rathaur जी का बहुत बहुत धन्यवाद।

भारत माँ की सन्ताने

जागो हे जागो, देश वासियों जागो
मेरे हिन्दुस्तानियों, ऐ वतन वासियों जागो
यहाँ न कोई हिन्दू,मुस्लिम, सिख,इसाई,
बढ़कर है हम हिन्दुस्तानी
भारत माँ की संताने हैं हम,
मानवता की एक पहचान बनें

अपनों का रक्त बहाकर,
खुश कैसे रह सकते हैं
मिलकर मनाएं ईद दीवाली,
खेलें खुशियों संग होली
देश भी आपना भेष भी अपना,
फिर काहे अपनों से लडे लड़ाई
भारत माँ की संताने हैं हम,
मानवता की एक पहचान बनें।

याद करो अंग्रेजों की बरबर्ता,
भारत माँ के पूतों को लहू लुहान किया
मिलकर लड़े थे जो अपनों के खातिर,
 उन सपूतो में जाति-पाति का भेद किया
ऐसे वीरों की इस धरती को,
जाति-पाति की बेड़ियों में मत बांधो।
भारत माँ की संताने हैं हम,
मानवता की एक पहचान बनें।

मंदिर-मस्जिद-चर्च-गुरूद्वारे का
हम सब मिलकर सम्मान करें,
आपसी रंजीसें छोडो,
आओ अपनों से नाता जोड़ें।
बांधे थे एक डोरी में हमको,
उस डोरी को और मजबूत करें
भारत माँ की संताने हैं हम,
मानवता की एक पहचान बनें।

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