Wednesday, July 20, 2016

घंतर:12 नेता तुम्ही हो


कुछ समय से देश में बहुत कुछ घटनाएं घट रही हैं। इसका जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि सरकारें हैं चाहे वह जम्मूकश्मीर का मशाल हो या फिर दादरी का अखलाख कांड हो।
राजनीतिक पार्टियां बिना कुछ सोचे जाने बगैर  अपनी रोटियां सेकने चली जाती हैं दिल्ली JNU का वो भारत विरोधी नारों का मशाल काफी गरमाया रहा तमाम पार्टियां अपनी रोटी सेकने चली गयी। उन्होंने एक बार भी यह नहीं सोचा कि ये देश को खंडित कर रहे हैं हम इनका साथ क्यों दें पर नहीं उन्हें सिर्फ किसी न किसी बहाने केंद्र सरकार को घेरना है चाहे उन्हें मल में लोट पोट ही क्यों न होना पड़े। और उन्होंने किया भी ऐसा ही।

दूसरी ओर दादरी अखलाख कांड काफी चर्चा में रहा गौ मांस को लेकर। सुप्रीम कोर्ट ने अब अखलाख के पूरे परिवार को हिरासत में लेना का फरमान जरी करते हुए कहा कि यह सच है वे गौ मांस के ही भक्षण कर रहे थे। लेकिन जब यह मामला उठा था तब भी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी रोटी सेकनी चाही यह बिना सोचे समझे। वास्तविकता से वे कोषों दूर निकालकर आगे आये दिल्ली से नेता दौड़े दौड़े भागे । और उन्होंने अपने हिसाब से उसकी रिपोर्ट तैयार कर ली। यहाँ तक की अखिलेश सरकार ने वोट बैंक के खातिर लाखों का मुवाबजा भी दे दिया। सुनने में यह भी आया की नोएडा में उन्हें फ्लैट भी दिया गया है। इतना मुआबजा अगर हमारे देश के लिए  लड़ने वाले शहीद परिवारों को मिलता तो वे अपने बच्चों को सक्षम बनाकर देश हित के लिए उपयोग होता। लेकिन राजनीति तो राजनीति है किसी भी पार्टी ने रिपोर्ट तक नहीं आने दी । अब जब रिपोर्ट आई तो कोई भी इस मशाले पर बोलना नहीं चाहता सभी छुपते छुपाते फिर रहे हैं ।

उधर उत्तराखंड में घोड़े की चाल बिगड़ गयी। अच्छा खासा चार पाँव का  घोडा उसे लंगड़ा बना दिया । शक्तिमान के शहीद होते ही सियासी उठापटक ऐसी हुई की  मुख्यमंत्री की कुर्सी दाव पर लग गयी।  जाते जाते वापस  हाथ में आ गयी। बीजेपी को निचा दिखाने के लिए  फिर मुख्यमंत्री ने घोड़े पर  दाव लगाया और रातों रात घोडा चौराहे से गायब हो गया।जनता को तो इस राजनीति ने मारा ही है पर उस  अबोध जानवर को भी नहीं छोड़ा। उसे भी राजनीति की ऐसी मार पड़ी कि प्राण त्यागने पड़े।

सियासतदारों की इस लड़ाई में मारा गया गरीब जिसकी कोई सुनने को राजी नहीं। तब ऐसे मैं कैसे कहूँ कि तुम देश के नेता हो, तुम जनता के लीडर हो, तुम हिन्दू के नेता हो, तुम मुश्लिम के नेता हो, तुम दलित के नेता हो, अरे तुम देश विरोधी नेता हो जो देश की मर्यादा बेच रहे । तुम्हे तो सिर्फ कुर्सी प्यारी है देश नहीं । तब मैं कैसे कहूँ किस मुह से कहूँ कि तुम देश देश के भविष्य हो रखवाले हो देश  में अमन चाहते हो सुख -शांति चाहते हो, कैसे कहूँ  ?
भास्कर जोशी 

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